Category: Baby food Recipes
By: Salan Khalkho | ☺7 min read
अंगूर से बना शिशु आहार - अंगूर में घनिष्ट मात्र में पोषक तत्त्व होता हैं जो बढते बच्चों के लिए आवश्यक है| Grape Baby Food Recipes – Grape Pure - शिशु आहार -Feeding Your Baby Grapes and the Age to Introduce Grapes

अंगूर में flavonoids होते हैं जो हृदय के स्वास्थ्य के लिए अच्छा हैं। अंगूर "खराब" कोलेस्ट्रॉल को शारीर में कम करता हैं। अंगूर मैं प्रचुर मात्र मैं antioxidant होता हैं। लाल या गहरा चमड़ी वाली अंगूर में सबसे अधिक एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। अंगूर बच्चों के शारीरिक और बौद्धिक विकास में बहुत यौग्दन देता है।
अंगूरों में एंटीबायोटिक की विशेषता भी होती है जो बच्चों के प्रतिरोधक छमता को बढाता और विकसित करता है।
एक कप अंगूर को ब्लेंडर या मिक्सी में डाल के आप अपनी जरुरत के अनुसार दर-दरा या बहुत बारीक़ पीस सकती हैं। बच्चा बहुत छोटा है तो बहुत बारीक़ कर दीजिये और अगर बच्चा बड़ा है तो दर-दरा रहने दीजिये।
केवल अंगूर का प्यूरी बना के आप बच्चे को दे सकती हैं या चाहे तो अंगूर के साथ आप दुसरे फल भी मिला के प्यूरी बना सकती हैं। आप अगर चाहें तो बच्चे को अंगूर को छील के भी दे सकती हैं। सही तरीके से किया जाये तो अंगूर को छीलना बेहद आसन काम है। पील अंगूर और मिश्रण या प्यूरी के रूप में आवश्यक तो सेवा या अन्य खाद्य पदार्थों के साथ मिश्रण। आप अंगूर के छील को छोड़ सकते हैं यदि आप पासा या प्यूरी कर सकते हैं ताकि कोई घुट-संकट नहीं है

सभी माता-पिता को अंगूर से सम्बंधित बहुत सी बातों को ले कर चिंता रहती है। जैसे की वे अपने बच्चे को किस उम्र से अंगूर देना प्रारंभ कर सकते हैं। या अंगूर से कोई एलर्जी का जोखिम तो नहीं हैं।
बच्चे जब ६ महीने के होते हैं तभी से उन्हें अंगूर दिया जा सकता है। बच्चों को अंगूर से एलर्जी का खतरा तो नहीं है मगर अंगूर बच्चों के गले में अटक सकता है। इसलिए बच्चों को अंगूर से घुटन का खतरा बना रहता है। अंगूर गोल होता है और इसी लिए बच्चे इसे चबाने की बजाये निगलने की कोशिश करते हैं और इस कोशिश में अंगूर शिशु के गले में फँस सकता है।
बच्चिन को अंगूर को छील' के मैश कर के देना सबस अच्छा तरीका है बच्चों अंगूर खिलने का। आप अंगूर की पुरी भी बना के बच्चे को दे सकते हैं। इससे बच्चों के गले में अंगूर फसने का कोई खतरा नहीं रहता है।

कई अन्य फलों की तरह अंगूर बहुत पतली त्वचा के कारण बहुत नाजुक होते हैं। आपको उन्हें खरीदने के कुछ दिनों के भीतर ही उपयोग कर लेना चाहिए। आप जितना लंबे समय तक अंगूर को संग्रहीत (store) करेंगे , वो उतना नरम होता जायेगा। अपने बच्चे को खिलाने के लिए अंगूर का चयन करते समय, हमेशा बीज रहित अंगूर को चुनें। अंगूर ऐसा खरीदें जो मुलायम न हो, जिसपे दाग या स्पॉट न हो। मुलायम और दाग वाले अंगूर खराब होने के कगार पे हैं और उनके पास ज्यादा शेल्फ जीवन नहीं बचा है।
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हर मां बाप अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते हैं कि अपने बच्चों को वह सभी आहार प्रदान करें जिससे उनके बच्चे के शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व मिल सके। पोषण से भरपूर आहार शिशु को सेहतमंद रखते हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि भारत में शिशु के भरपेट आहार करने के बावजूद भी वे पोषित रह जाते हैं। इसीलिए अगर आप अपने शिशु को भरपेट भोजन कराते हैं तो भी पता लगाने की आवश्यकता है कि आपके बच्चे को उसके आहार से सभी पोषक तत्व मिल पा रहे हैं या नहीं। अगर इस बात का पता चल जाए तो मुझे विश्वास है कि आप अपने शिशु को पोषक तत्वों से युक्त आहार देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
नॉर्मल डिलीवरी से शिशु के जन्म में कई प्रकार के खतरे होते हैं और इसमें मौत का जोखिम भी होता है - लेकिन इससे जुड़ी कुछ बातें हैं जो आपके लिए जानना जरूरी है। शिशु का जन्म एक साधारण प्रक्रिया है जिसके लिए प्राकृतिक ने शरीर की रचना किस तरह से की है। यानी सदियों से शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी के पद्धति से ही होता आया है।
जुकाम के घरेलू उपाय जिनकी सहायता से आप अपने छोटे से बच्चे को बंद नाक की समस्या से छुटकारा दिला सकती हैं। शिशु का नाक बंद (nasal congestion) तब होता है जब नाक के छेद में मौजूद रक्त वाहिका और ऊतक में बहुत ज्यादा तरल इकट्ठा हो जाता है। बच्चों में बंद नाक की समस्या को बिना दावा के ठीक किया जा सकता है।
शिशु को 6 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेपेटाइटिस बी और इन्फ्लुएंजा से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु को बहुत छोटी उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात शिशु से ले कर एक साल तक की उम्र के बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता ही वो अपने शरीर का तापमान वयस्कों की तरह नियंत्रित कर सकें। इसलिए यह जाना बेहद जरुरी है की बच्चे को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है।
माँ बनना बहुत ही सौभाग्य की बात है। मगर माँ बनते ही सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती है की अपने नन्हे से शिशु की देख भाल की तरह की जाये ताकि बच्चा रहे स्वस्थ और उसका हो अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास।
जब आपका बच्चा बड़े क्लास में पहुँचता है तो उसके लिए ट्यूशन या कोचिंग करना आवश्यक हो जाता है ,ऐसे समय अपने बच्चे को ही इस बात से अवगत करा दे की वह अपना ध्यान खुद रखें। अपने बच्चे को ट्यूशन भेजने से पहले उसे मानसिक रूप से तैयार केर दे की उसे क्या पढाई करना है।
अंगूर में घनिष्ट मात्र में पाशक तत्त्व होते हैं जो बढते बच्चों के शारीरक और बौद्धिक विकास के लिए जरुरी है। अंगूर उन कुछ फलों में से एक हैं जो बहुत आसानी से बच्चों को digest हो जाते हैं। जब आपका बच्चा अपच से पीड़ित है तो अंगूर एक उपयुक्त फल है। बच्चे को अंगूर खिलाने से उसके पेट की acidity कम होती है। शिशु आहार baby food
केला पौष्टिक तत्वों का बेहतरीन स्रोत है। ये उन फलों में से एक हैं जिन्हे आप अपने बच्चे को पहले आहार के रूप में भी दे सकती हैं। इसमें लग-भग वो सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हैं जो एक व्यक्ति के survival के लिए जरुरी है। केले का प्यूरी बनाने की विधि - शिशु आहार (Indian baby food)
केला पौष्टिक तत्वों का जखीरा है और शिशु में ठोस आहार शुरू करने के लिए सर्वोत्तम आहार। केला बढ़ते बच्चों के सभी पौष्टिक तत्वों की जरूरतों (nutritional requirements) को पूरा करता है। केले का smoothie बनाने की विधि - शिशु आहार in Hindi
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
बच्चों के शुरुआती दिनों मे जो उनका विकास होता है उसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है| इसका असर उनके बाकि के सारी जिंदगी पे पड़ता है| इसी लिए बेहतर यही है की बच्चों को घर का बना शिशु-आहार (baby food) दिया जाये जो प्राकृतिक गुणों से भरपूर हों|
प्राथमिक उपचार के द्वारा बहते रक्त को रोका जा सकता है| खून का तेज़ बहाव एक गंभीर समस्या है। अगर इसे समय पर नहीं रोका गया तो ये आप के बच्चे को जिंदगी भर के लिए नुकसान पहुंचा सकता है जिसे शौक (shock) कहा जाता है। अगर चोट बड़ा हो तो डॉक्टर स्टीच का भी सहारा ले सकता है खून के प्रवाह को रोकने के लिए।
जन्म के बाद गर्भनाल की उचित देखभाल बहुत जरुरी है। अगर शिशु के गर्भनाल की उचित देखभाल नहीं की गयी तो इससे शिशु को संक्रमण भी हो सकता है। नवजात शिशु में संक्रमण से लड़ने की छमता नहीं होती है। इसीलिए थोड़ी सी भी असावधानी बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
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अगर आप इस बात को ले के चिंतित है की अपने 4 से 6 माह के बच्चे को चावल की कौन सी रेसेपी बना के खिलाये - तो यह पढ़ें चावल से आसानी से बन जाने वाले कई शिशु आहार। चावल से बने शिशु आहार बेहद पौष्टिक होते हैं और आसानी से शिशु में पच भी जाते हैं।
बच्चा रो कर ही अपनी बात माँ के सामने रखता हैं। आपका छोटा सा बच्चा खुद अपने आप कुछ नहीं कर सकता हैं। बच्चा अपने हर छोटी-बढ़ी जरूरत के लिए माँ पर आश्रित रहता हैं और रो कर ही अपनी जरूरतों को बताता है।
दिमागी बुखार (मेनिन्जइटिस) की वजह से दिमाग को नुकसान और मौत हो सकती है। पहले, बहुत अधिक बच्चों में यह बीमारियां पाई जाती थी, लेकिन टीकों के इस्तेमाल से इस पर काबू पाया गया है। हर माँ बाप को अपने बच्चों को यह टिका अवश्य लगवाना चाहिए।
अंडे से एलर्जी होने पर बच्चों के त्वचा में सूजन आ जाना , पूरे शरीर में कहीं भी चकत्ता पड़ सकता है ,खाने के बाद तुरंत उलटी होना , पेट में दर्द और दस्त होना , पूरे शरीर में ऐंठन होना , पाचन की समस्या होना, बार-बार मिचली आना, साँस की तकलीफ होना , नाक बहना, लगातार खाँसी आना , गले में घरघराहट होना , बार- बार छीकना और तबियत अनमनी होना |