Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
तो अब आप का शिशु 15-18 महीने की उम्र का है।
बहुत ख़ुशी की बात है - समय कितना तेज़ी से निकल जाता है।
ऐसा लगता है की जैसे आप अभी कल ही तो माँ बानी हैं। - हैं ना :)
हमे उम्मीद है की आप अपने बच्चे को सारी जरुरी टिके (vaccination) समय पे लगवा रही होंगी।
एक माँ-बाप के लिए उसके शिशु के स्वस्थ से बढ़ कर और कुछ भी नहीं है।
शिशु के पहले कुछ साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये एक ऐसा समय है जब आप को अपने शिशु का खास ख्याल रखना पड़ेगा।
शिशु के शरीर में और एक व्यस्क के शरीर में एक मूल भूत अंतर होता है। - व्यस्क के शरीर में कई प्रकार के बिमारियों, रोगाणुओं और जीवाणुओं से लड़ने की रोग प्रतिरोधक छमता होती है।
शिशु के शरीर मैं रोगों से लड़ने की छमता नहीं होती है। उसके शरीर में यह छमता धीरे-धीरे त्यार होती है। पहले एक साल में शिशु को रोगों से लड़ने की छमता उसे उसके माँ से स्तनपान के जरिये मिलती है।
शिशु को निर्धारित समय समय पे टिके लगाने से उसके शरीर में रोगों से लड़ने की रोगप्रतिरोधक छमता त्यार होती है। आप की कोशिश यह होनी चाहिए की आप के शिशु को कोई भी टिका छूटे नहीं। सभी टिके समय पे लगे।
लेकिन
अगर कोई टिका (immunization schedule) छूट जाये तो - जैसे ही आप को याद आये तुरंत अपने नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें। ताकि बाल रोग विशेषज्ञ के राय के अनुसार उसे छूटे हुए टिके लगाए जा सके।
बच्चों की तीन आम बीमारियां - मम्प्स, खसरा और रूबेला - इन तीनो बिमारियों से आप अपने शिशु को एम एम आर (मम्प्स, खसरा, रूबेला) के वैक्सीन के द्वारा बचा सकते हैं। खसरा में शिशु को बुखार, त्वचा पे rash, खांसी, नाक का बहना और आँखों में पानी के लक्षण देखने को मिलते हैं। ज्यादा गंभीर स्थिति में शिशु को कान का संक्रमण, दस्त, निमोनिया, मस्तिष्क को छती और अंतिम चरण में मृत्यु भी हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए यहां देखें।
वेरिसेला यानी, छोटी माता, या चिकन पॉक्स बेहद संक्रामक बीमारी है। वेरिसेला की दूसरी खुराक आप के शिशु को यह varicella-zoster virus (VZV) नमक जीवाणु के संक्रमण से बनता है। इए के संक्रमण से शिशु के पुरे शारीर पे दानेदार चकते निकल आटे हैं जिन में पानी भरा होता है। संक्रमित बच्चे को बुखार और थकन लगता है। शिशु के लिए चिकन पॉक्स होना बहुत चिंता का विषय है। इसका संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को हवा के द्वारा - संक्रमित व्यक्ति के खासने से फैलता है।
D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) भारत सरकार द्वारा जारी अनिवार्य टीकों की सूचि में समलित है। यह टिका 6 महीने से कम उम्र के शिशु को दिया जाता है। हर साल करीब एक साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चे विकासशील देशों में डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) के संक्रमण के कारण मृत्यु के शिकार होते हैं। ये मुख्यता वो बच्चे हैं जिन्हे D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) या तो नहीं लगाया गया या फिर समय पे नहीं लगाया गया।
हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) वैक्सीन - शिशु को बहुत ही खतरनाक विषाणु (bacteria) के संक्रमण से बचाता है। इस खतरनाक विषाणु (bacteria) का नाम है - Haemophilus influenzae type b - और इस के संक्रमण से दमागी बुखार, मस्तिष्क को छती, फेफड़ों का इन्फेक्शन (lung infection) , मेरुदण्ड का रोग और गले का गंभीर संक्रमण भी शामिल है।
न्यूमोकोकल (pneumococcal) का संक्रमण एक contagious बीमारी - जिसका मतलब होता है की इस बीमारी को फ़ैलाने के लिए किसी मछर या मक्खी की जरुरत नहीं पड़ती है - बल्कि इसका संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को हवा के द्वारा ही फ़ैल जाता है। न्यूमोकोकल (pneumococcal) काफी गंभीर संक्रमण है और इसके संक्रमण से व्यक्ति को निमोनिया (Pneumonia), रक्त संक्रमण या दिमागी बुखार तक होने का खतरा रहता है।
मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) टीका शिशु के शारीर में एंटीबाडीज (antibodies) का निर्माण करता है। OPV टीका के द्वारा शिशु के शारीर में पैदा हुए एंटीबाडीज (antibodies), शिशु को पोलियो के वायरस से बचाते हैं। पोलियो का वायरस शिशु के nervous system पे आक्रमण करता है और शारीर को लकवा ग्रस्त कर देता है। लेकिन जिन बच्चों को मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) दिया जाता है - उन बच्चों में पोलियो के वायरस से लड़ने के लिए एंटीबाडीज (antibodies) पैदा हो जाता है और शिशु पोलियो के वायरस से सुरक्षित हो जाता है।
टाइफाइड एक प्रकार के जीवाणु के संक्रमण से होता है। टाइफाइड का संक्रमण होने पे शिशु बहुत अधिक बीमार हो जाते हैं और यह बीमारी उनके लिए जानलेवा भी हो सकता है। टाइफाइड का संक्रमण फैलता है दूषित आहार और पानी के सेवन से। टाइफाइड भारत देश में आम बात है और इसीलिए शिशु को टाइफाइड की संक्रमण से बचने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए।
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