Category: बच्चों की परवरिश
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
गर्भवती महिलाएं जो भी प्रेगनेंसी के दौरान खाती है, उसकी आदत बच्चों को भी पड़ जाती है| भारत में तो सदियोँ से ही गर्भवती महिलायों को यह नसीहत दी जाती है की वे चिंता मुक्त रहें, धार्मिक पुस्तकें पढ़ें क्योँकि इसका असर बच्चे पे पड़ता है| ऐसा नहीं करने पे बच्चे पे बुरा असर पड़ता है|

महाभारत का वो किस्सा तो आप जानते ही होंगे जहाँ अर्जुन के बेटे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला अपने माँ के कोख में ही सिख ली थी जब अर्जुन अभिमन्यु की माँ से सोते वक्त चक्रव्यूह के बारे में बातें कर रहा था।
मगर अफ़सोस, जब तक अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को यह बता पता की चक्रव्यूह को भेदकर बहार कैसे आये तब तक वो सो गयी और अर्जुन की यह वार्तालाप वहीँ समाप्त हो गयी। अभिमन्यु तो चक्रव्यूह में घुसने का तरीका तो सिख गया मगर यह नहीं जान सका की चक्रव्यूह से कैसे बहार आते हैं। और आखिरकार इसी वजह से अभिमन्यु चक्रव्यूह में फस कर वीरगति को प्राप्त होते हैं।

बहुत से लोग इस कथा पे विश्वास करते हैं। मगर बहुत इसे एक काल्पनिक पौराणिक कथा या महर्षि वेद व्यास द्वारा लिखी केवल एक महा काव्य मानते हैं। इस वजह से वे इस बात को गम्भीरता से नहीं लेते हैं। मगर यह बात अब आधुनिक विज्ञानं ने भी प्रामाणिक कर दिया है की बच्चे मां के गर्भ में रहते हुए ही सिखने लगते हैं।
यह बात पिछले कुछ दशक में हुए अनेक अध्यन में पाया गया है की बच्चे मां के गर्भ में रहते हुए माँ से बहुत कुछ सीखते हैं। ऐसा सिर्फ इंसानो में ही नहीं, वरन बहुत से जानवरों में भी यह गौर करने वाली बात पायी गयी ही।
एक बहुत मजेदार अध्यन के बारे में आप को मैं बताना चाहूंगा। एडीलेड की फ्लाइंडर्स यूनिवर्सिटी में एक बहुत ही रोचक अध्यन हुआ। अध्यन फेयरी रेन नामक चिड़िया पे किया गया। अध्यन में पाया गया की रात के वक़्त अंडे सेने वाली मादा फेयरी रेन एक अलग ही तरह की आवाज़ निकालती थी।
यह ताजूब की बात थी क्योँकि परिंदे अंडे सेने का काम चुपचाप करते हैं ताकि दुश्मन को पता न चल जाये। मगर यह चिड़िया खूब आवाज करती थी। जब अंडो के फूटने का वक्त आया तो मुख्या अध्यन करता ने पाया की अंडे से चूज़े बहार आकर ठीक उसी तरह का आवाज कर रहे हैं। इसका मतलब चूज़े इस तरह का आवाज निकलना अपनी माँ से अंडे में रहते वक्त सीखे।
मगर सवाल यह है की माँ ने बच्चों को इस तरह का आवाज निकलना क्योँ सिखाया।
तो बात यह है की कोयल एक बहुत ही आलसी चिड़िया है। कोयल बच्चे पालने के अपने जिम्मेदारी से बचने के लिए चुपचाप फेयरी रेन के घोंसले में अंडे दे आती है। फेयरी रेन, कोयल के अंडो को अपना समझ उसे सेती है। जब बच्चे अंडे से बहार आते हैं तो कोयल के बच्चे सबसे ज्यादा शोर मचाते हैं। इसका नतीजा यह होता है की फेयरी रेन आवाज सुन कर अपने असल बच्चों को छोड़ कोयल के बच्चों को ही सारा खाना खिला देती है। इसकी वजह से फेयरी रेन के असल बच्चे भूख से मर जाते हैं।
कोयल के इस धोखे से बचने के लिए फेयरी रेन रात-रात भर जग कर अपने बच्चे को एक खास किस्म का आवाज निकलना सिखाती है ताकि जब बच्चे अंडे से बहार आएं और इसी तरह का आवाज निकले तो वो उन्हें आसानी से पहचान जाये और अपने बच्चों को चुन चुन कर आहार प्रदान करे। यानि फेयरी रेन ने कोयल के धोखे से बचने के लिए कुदरती तोड़ निकल लिया।
यह तो हुई परिंदो की बात, चलिए अब करते हैं हम इंसानो की बात।
पिछले कुछ दशक में शिशुओं पे हुए अनुसंधान में यह बात साबित हुई है की बच्चों में खान-पान, स्वाद, आवाज़, ज़बान जैसी चीज़ें सीखने की बुनियाद माँ के गर्भ में रहते हुए ही हो जाती है।
भारत में तो सदियोँ से ही गर्भवती महिलायों को यह नसीहत दी जाती है की वे चिंता मुक्त रहें, धार्मिक पुस्तकें पढ़ें क्योँकि इसका असर बच्चे पे पड़ता है। ऐसा नहीं करने पे बच्चे पे बुरा असर पड़ता है।
गर्भकाल के दौरान माँ को अपने मानसिक और शारीरिक स्वस्थ दोनों का ख्याल रखना जरुरी है। सिर्फ इस बात पे ध्यान देना जरुरी नहीं है की मसालेदार चीज़ें और बहुत ज्यादा गरिष्ट आहार (तेल में ताली हुई वस्तुएं) न खायी जाएँ, वरन जितना हो सके पौष्टिक आहार खाया जाये। इसके साथ ही साथ इस बात पे भी जोर देने की आवश्यकता है की अच्छे माहौल में भी रहा जाये जिससे माँ की मानसिक मनोदशा पे अनुकूल प्रभाव पड़े। क्योँकि माँ जिन हालात से गर्भकाल के दौरान गुजरती है और जिस प्रकार के वातावरण में रहती है, उसका सीधा असर बच्चे पे पड़ता है।
हाल के कुछ सालों के अध्यन में एक बात और सामने आई है की गर्भवती महिलाएं जो भी प्रेगनेंसी के दौरान खाती है, उसकी आदत बच्चों को भी पड़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योँकि गर्भवती महिलाएं जो भी खाती हैं, वो इनके खून के जरिये बच्चे को भी मिलता है। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, वैसे वैसे बच्चे को माँ के स्वाद का आदत पड़ जाता है।
उत्तरी आयरलैंड के बेलफ़ास्ट की यूनिवर्सिटी में हुवे एक अध्यन में मुख्या अध्यन करता पीटर हेपर ने पाया की गर्भकाल के दौरान जा माताएं लहसुन खाती थी, उन माताओं के बच्चों को भी जन्म के बाद लहसून खूब पसंद आता था। पीटर हेपर ने अध्यन में पाया की जब भ्रूण, गर्भ के दसवें हफ्ते में पहुँचता है तो मां के ख़ून से मिलने वाले पोषण को निगलने लगता है। इसका सीधा सा मतलब यह है की बच्चे को उसी वक्त से माँ के आहार का स्वाद मिलने लगता है।
अमेरिका के पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में भी एक मिलता जुलता अध्यन हुआ जिसमे यह पाया गया की जो गर्भवती महिलाएं, प्रेगनेंसी के दौरान खूब गाजर खाती थी, उनके बच्चों के जन्म के बाद जब गाजर से बना baby food दिया गया तो उन्हें गाजर से बना शिशु आहार पसंद आया। इसका मतलब बच्चे को गाजर के स्वाद का चस्का माँ के गर्भ में रहते हुए ही लग गया था।
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ताजे दूध की तुलना में UHT Milk ना तो ताजे दूध से बेहतर है और यह ना ही ख़राब है। जितना बेहतर तजा दूध है आप के शिशु के लिए उतना की बेहतर UHT Milk है आप के बच्चे के लिए। लेकिन कुछ मामलों पे अगर आप गौर करें तो आप पाएंगे की गाए के दूध की तुलना में UHT Milk आप के शिशु के विकास को ज्यादा बेहतर ढंग से पोषित करता है। इसका कारण है वह प्रक्रिया जिस के जरिये UHT Milk को तयार किया जाता है। इ लेख में हम आप को बताएँगे की UHT Milk क्योँ गाए के दूध से बेहतर है।
बच्चे या तो रो कर या गुस्से के रूप में अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन बच्चे अगर हर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगे तो आगे चलकर यह बड़ों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। मां बाप के लिए आवश्यक है कि वह समय रहते बच्चे के गुस्से को पहचाने और उसका उपाय करें।
जानिए घर पे वेपर रब (Vapor rub) बनाने की विधि। जब बच्चे को बहुत बुरी खांसी हो तो भी Vapor rub (वेपर रब) तुरंत आराम पहुंचता है। बच्चों का शरीर मौसम की आवशकता के अनुसार अपना तापमान बढ़ने और घटने में सक्षम नहीं होता है। यही कारण है की कहे आप लाख जतन कर लें पर बच्चे सार्ड मौसम में बीमार पड़ ही जाते हैं।
अगर आप के शिशु को केवल रात में ही खांसी आती है - तो इसके बहुत से कारण हो सकते हैं जिनकी चर्चा हम यहाँ करेंगे। बच्चे को रात में खांसी आने के सही कारण का पता लगने से आप बच्चे का उचित उपचार कर पाएंगे। जानिए - सर्दी और जुकाम का लक्षण, कारण, निवारण, इलाज और उपचार।
क्या आप के पड़ोस में कोई ऐसा बच्चा है जो कभी बीमार नहीं पड़ता है? आप शायद सोच रही होंगी की उसके माँ-बाप को कुछ पता है जो आप को नहीं पता है। सच बात तो ये है की अगर आप केवल सात बातों का ख्याल रखें तो आप के भी बच्चों के बीमार पड़ने की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी।
कुछ बातों का ख्याल अगर रखा जाये तो शिशु को SIDS की वजह से होने वाली मौत से बचाया जा सकता है। अकस्मात शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) की वजह शिशु के दिमाग के उस हिस्से के कारण हो सकता है जो बच्चे के श्वसन तंत्र (साँस), दिल की धड़कन और उनके चलने-फिरने को नियंत्रित करता है।
बच्चों के हिचकी का कारण और निवारण - स्तनपान या बोतल से दूध पिलाने के बाद आप के बच्चे को हिचकी आ सकती है। यह होता है एसिड रिफ्लक्स (acid reflux) की वजह से। नवजात बच्चे का पेट तो छोटा सा होता है। अत्यधिक भूख लगने के कारण शिशु इतना दूध पी लेते है की उसका छोटा सा पेट तन (फ़ैल) जाता है और उसे हिचकी आने लगती है।
अक्सर नवजात बच्चे के माँ- बाप जल्दबाजी या एक्साइटमेंट में अपने बच्चे के लिए ढेरों कपडे खरीद लेते हैं। यह भी प्यार और दुलार जाहिर करने का एक तरीका है। मगर माँ-बाप अगर कपडे खरीदते वक्त कुछ बातों का ध्यान न रखे तो कुछ कपड़ों से बच्चे को स्किन रैशेज (skin rash) भी हो सकता है।
अगर आप भी अपने लाडले को भारत के सबसे बेहतरीन बोडिंग स्कूलो में पढ़ने के लिए भेजने का मन बना रहे हैं तो निचे दिए बोडिंग स्कूलो की सूचि को अवश्य देखें| आपका बच्चा बड़ा हो कर अपनी जिंदगी में ना केवल एक सफल व्यक्ति बनेगा बल्कि उसे शिक्षा के साथ इन बोडिंग स्कूलो से मिलगे ढेरों खुशनुमा यादें|
पीट दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए| आज के दौर में सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चों को भी पीठ दर्द का सामना करना पद रहा है| नाजुक सी नन्ही उम्र से ही बच्चों को अपने वजन से ज्यादा भारी बैग उठा के स्कूल जाना पड़ता है|
घरेलु नुस्खे जिनकी सहायता से आप अपने बच्चे के पेट में पल रहे परजीवी (parasite) बिना किसी दवा के ही समाप्त कर सकेंगे। पेट के कीड़ों का इलाज का घरेलु उपाए (stomach worm home remedies in hindi). शिशु के पेट के कीड़े मारें प्राकृतिक तरीके से (घरेलु नुस्खे)
दूध वाली सेवई की इस recipe को 6 से 12 महीने के बच्चों को ध्यान मे रख कर बनाया गया है| सेवई की यह recipe है छोटे बच्चों के लिए सेहत से भरपूर| अब नहीं सोचना की 6 से 12 महीने के बच्चों को खाने मे क्या दें|
बच्चे के पांच महीने पुरे करने पर उसकी शारीरिक जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में जानकारी जरुरी है की बच्चे के अच्छी देख-रेख की कैसे जाये। पांचवे महीने में शिशु की देखभाल में होने वाले बदलाव के बारे में पढ़िए इस लेख में।
अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|
Benefits of Breastfeeding for the Mother - स्तनपान करने से सिर्फ बच्चे को ही नहीं वरन माँ को भी कई तरह की बीमारियोँ से लड़ने का ताकत मिलता है। जो महिलाएं अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन कैंसर और गर्भाशय का कैंसर होने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं और teenage वाली उम्र में आते हैं उनके शरीर में तेज़ी से अनेक बदलाव आते हैं। अधिकांश बच्चे अपने माँ बाप से इस बारे कुछ नहीं बोलते। आप अपने बच्चों को आत्मविश्वास में लेकर उनके शरीर में हो रहे बदलाव के बारे में उन्हें समझएं ताकि उन्हें किसी और से कुछ पूछने की आवश्यकता ही न पड़े।
बच्चों में भूख की कमी एक बढती हुई समस्या है। यह कई कारणों से होती है जैसे की शारीर में विटामिन्स की कमी, तापमान का गरम रहना, बच्चे का सवभाव इतियादी। लेकिन कुछ घरेलु तरीके और कुछ सूझ-बूझ से आप अपने बच्चे की भूख को बढ़ा सकती हैं ताकि उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उसके शारीर को सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व मिल सके।
छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।
अगर आप इस बात को ले के चिंतित है की अपने 4 से 6 माह के बच्चे को चावल की कौन सी रेसेपी बना के खिलाये - तो यह पढ़ें चावल से आसानी से बन जाने वाले कई शिशु आहार। चावल से बने शिशु आहार बेहद पौष्टिक होते हैं और आसानी से शिशु में पच भी जाते हैं।