Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
स्तनपान या बोतल से दूध पिने के दौरान शिशु बहुत से कारणों से रो सकता है। माँ होने के नाते यह आप की जिमेदारी हे की आप अपने बच्चे की तकलीफ को समझे और दूर करें। जानिए शिशु के रोने के पांच कारण और उन्हें दूर करने के तरीके।

स्तनपान करने से सिर्फ बच्चे को ही नहीं वरन माँ को भी कई तरह की बीमारियोँ से लड़ने का ताकत मिलता है।
जो महिलाएं अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन कैंसर और गर्भाशय का कैंसर होने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है। स्तनपान से शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बेहतर होता है।
मां का दूध बच्चे के लिए सुरक्षित, पौष्टिक और सुपाच्य होता है। माँ का दूध बच्चे में सिर्फ पोषण का काम ही नहीं करता बल्कि बच्चे के शरीर को कई प्रकार के बीमारियोँ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करता है।
माँ के दूध में calcium होता है जो बच्चों के हड्डियोँ के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शिशु और माता दोनों के लिए स्तनपान की प्रक्रिया एक सुखद अनुभव होना चाहिए। लेकिन इस प्रक्रिया में थोड़ा भी तनाव किसी न किसी समस्या की तरफ इशारा कर सकता है।
शिशु बोल कर तो बता नहीं सकता है की उसे क्या समस्या सता रही है। इसीलिए वे रो कर अपनी समस्या या तकलीफ का इजहार करने की कोशिश करते हैं।
बच्चे को थोड़ी सी परेशानी होने पे वो रोने लगेगा।
दूध पिने के बाद बच्चा उलटी कर देता है। बच्चे को दूध पिलाने के बाद डकार अवश्य दिलाना चाहिए। दूध पीते वक्त बच्चे के पेट में हवा चली जाती है। इस कारण बच्चे को गैस की समस्या का सामना करना पड़ता है। बच्चे को डकार दिलाने से उलटी (vomit) और हिचकी (बेबी hiccups) की समस्या से बचा जा सकता है। इसके आलावा भी बहुत से कारण हैं बच्चे के दूध पिके उलटी करने के।
चलिए जानने की कोशिश करते हैं उन पांच कारणों के बारें जिनकी वजह से बच्चे स्तनपान के दौरान रोते हैं।
स्तनपान के दौरान शिशु के रोने से पहले अगर शिशु खांसता है और फिर अपने आप को माँ के स्तनों से अलग करता है - और - कभी कभी तो खांसते - खांसते माता के ऊपर उलटी तक कर देता है - तो इसका मतलब यह हो सकता है की आप के स्तनों के दूध का बहाव इस वक्त बहुत तेज़ है।
जिस दिन आप के स्तनों से दूध का बहाव तेज़ हो उस दिन आप अपने पीठ के बल लेट जाएँ और शिशु को अपने पेट पे लिटा दें। अब पेट पे लेटे-लेटे स्थिति में अपने बच्चे को दूध पिलएं। थोड़ी देर के बाद आप अपनी स्थिति में परिवर्तन कर सकते हैं अपने शिशु को गोद में बैठा के दूध पिलाने की कोशिश कर सकते हैं। पुरे स्तनपान के दौरान अपने बच्चे को पेट पे लेटाये लेटाये दूध न पिलायें। सिर्फ थोड़ी देर के लिए इस स्थिति में दूध पिलायें नहीं तो माँ को mastitis या clogged ducts का खतरा रहता है।
माँ के स्तनों से दूध का बहाव भी कम होने से शिशु हतहास हो जाता है क्यूंकि इससे स्तनपान के बाद भी बच्चे की भूख शांत नहीं होती है। अगर शिशु स्तनों से तेज़ दूध के बहाव को पिने का आदि हो गया है तो धीमी बहाव से उसे चिड़चिड़ाहट होगी और वो रोयेगा। दूध पिलाते-पिलाते आप अपने स्तनों का अदला बदली भी कर सकती हैं ताकि शिशु को दूध पर्याप्त बहाव में मिल सके। दूध पिलाते वक्त स्तनों को बदलने से माँ के शरीर को यह निर्देश मिलता है की उसे और दूध तैयार करने की आवश्यकता है। इससे माँ के स्तनों में दूध की मात्रा भी बढ़ती है।
ऐसी स्थिति में आप अलग से अपने शिशु को बोतल से भी दूध पिलायें ताकि उसकी भूख शांत हो सके और उसे आवश्यकता के अनुसार से आहार मिल सके।
नवजात शिशु में एसिड रिफलक्स के लक्षण भी देखे गए हैं। जैसे की स्तनपान के बाद या बतल से दूध पिने के बाद उलटी हो जाना। शिशु का दूध पिने के बाद इस तरह से उलटी कर देना कोई समस्या नहीं है जब तक की उसे इससे कोई तकलीफ न हो। मगर अगर शिशु को स्तनपान के दौरान या बोतल से दूध पीते वक्त तकलीफ हो रही है तो आप तुरंत शिशु विशेषज्ञ की राय लें।
अगर आप काबच्चा अक्सर दूध पिने के बाद उल्टी कर देता है। उसका वजन ठीक तरह से नहीं बढ़ रहा है, उसके सांसों से बदबू आती है और वो आराम दायक नींद नहीं सो पा रहा है - तो ये सारी बातें इशारा करती है की कहीं आप के शिशु को GERD तो नहीं। बहुत से स्थितियों में शिशु को बिना ऊपर दिए गए लक्षण के भी एसिड रिफलक्स हो सकता है। जैसे की कई बार दूध शिशु के मुँह तक पहुँच जाता है और शिशु उसे उलटी करने की बजाये पुनः घोट (निगल) लेता है। खैर जो भी स्थिति हो - डॉक्टर की राय महत्व पूर्ण है।
माँ के दूध से शिशु को अलेर्जी होना एक अनहोनी बात है। मागय कई दुर्लभ घटनाओं में इस परिस्थिति को देखा गया है। माना जाता है की यह तब होता है जब माँ ने आहार में कुछ ऐसा खाया है जिसके प्रति उसका शिशु अलेर्जिक। माँ जो भी आहार ग्रहण करती है वही शिशु को स्तनपान के द्वारा मिलता है। शिशु का शरीर व्यस्क की तरह विकसित नहीं है। इसी वजह से उसके अंदर बहुत से आहारों के प्रति संवेदनशीलता है। ये आहार जब माँ के दूध में होते हैं तो माँ के दूध से शिशु को अलेर्जी होने की सम्भावना बनती है। अगर आप अपने शिशु को स्तनपान कराती हैं तो जितने दिनों तक आप उसे स्तनपान करना चाहती हैं उतने दिनों तक आप कुछ भी ऐसा-वैसा न खाएं जिससे आप के शिशु को अलेर्जी होने की सम्भावना हो।
अगर आप अनुभव करें की कुछ विशेष आहार ग्रहण करने के बाद आप का शिशु अक्सर रोता है तो आप जितने दिनों तक स्तनपान करा रही हैं उतने दिनों तक उस विशेष आहार को ग्रहण न करें। अगर जरुरत पड़े तो अपने आहार में जरुरी बदलाव करें और अपने डॉक्टर से भी संपर्क करें।
अगर आप का शिशु हर बार स्तनपान के दौरान रोता है तो इस बात की भी सम्भावना है की आप के शिशु को पसंद नहीं है जिस तरह से आप अपने शिशु को दूध पिलाती हैं। हो सकता है की आप के शिशु को उस तरह का सहारा नहीं मिल पा रहा की बच्चा आराम से दूध पि सके। स्तनपान करते वक्त इस तरह से बैठिये या लेटिए की आप का शिशु स्तनपान के दौरान या बोतल से दूध पीते वक्त आरामदायक स्थिति में हो।
अगर आप का बच्चा स्तनपान या बोतल से दूध पिने के दौरान रोये तो अपनी और अपने बच्चे की स्थिति को बदल के दूध पिलाने की कोशिश करें।
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छोटे बच्चों के मसूड़ों के दर्द को तुरंत ठीक करने का घरेलु उपाय हम आप को इस लेख में बताएँगे। शिशु के मसूड़ों से सम्बंधित तमाम परेशानियों को घरेलु नुस्खे के दुवारा ठीक किया जा सकता है। घरेलु उपाय के दुवारा बच्चों के मसूड़ों के दर्द को ठीक करने का सबसे बड़ा फायेदा ये होता है की उनका कोई भी साइड इफेक्ट्स नहीं होता है। यह शिशु के नाजुक शारीर के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं और इनसे किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन होने का भी डर नहीं रहता है। लेकिन बच्चों का घरेलु उपचार करते समय आप को एक बात का ध्यान रखना है की जो घरेलु उपचार बड़ों के लिए होते हैं - जरुरी नहीं की बच्चों के लिए भी वह सुरक्षित हों। उदाहरण के लिए जब बड़ों के मसूड़ों में दरद होता है तो दांतों के बीच लोंग दबा लेने से आराम पहुँचता है। लेकिन यह विधि बच्चों के लिए ठीक नहीं है क्यूंकि इससे बच्चों को लोंग के तेल से छाले पड़ सकते हैं। बच्चों के लिए जो घरेलु उपाय निर्धारित हैं, केवल उन्ही का इस्तेमाल करें बच्चों के मसूड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए।
मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। यह अधिकांश बदलाव शरीर में हो रहे हार्मोनअल (hormonal) परिवर्तन की वजह से होते हैं। और अगले कुछ दिनों में जब फिर से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य हो जाता है तो यह समस्याएं भी खत्म होनी शुरू हो जाती है। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो एक मां को अक्सर बहुत परेशान कर देती है। इन्हीं में से एक बदलाव है बार बार यूरिन होना। अगर आपने कुछ दिनों पहले अपने शिशु को जन्म दिया है तो हो सकता है आप भी बार-बार पेशाब आने की समस्या से पीड़ित हो।
गर्भावस्था के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए विटामिंस बहुत आवश्यक होते हैं। लेकिन इनकी अत्यधिक मात्रा गर्भ में पल रहे शिशु तथा मां दोनों की सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने से बचें। डॉक्टरों से संपर्क करें और उनके द्वारा बताए गए निश्चित मात्रा में ही विटामिन का सेवन करें। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने के कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं।
बच्चे के जन्म के बाद माँ को ऐसे आहार खाने चाहिए जो माँ को शारीरिक शक्ति प्रदान करे, स्तनपान के लिए आवश्यक मात्र में दूध का उत्पादन में सहायता। लेकिन आहार ऐसे भी ना हो जो माँ के वजन को बढ़ाये बल्कि गर्भावस्था के कारण बढे हुए वजन को कम करे और सिजेरियन ऑपरेशन की वजह से लटके हुए पेट को घटाए। तो क्या होना चाहिए आप के Diet After Pregnancy!
यूटीआई संक्रमण के लक्षण, यूटीआई संक्रमण से बचाव, इलाज। गर्भावस्था के दौरान क्या सावधानियां बरतें। यूटीआई संक्रमण क्या है? यूटीआई का होने वाले बच्चे पे असर। यूटीआई संक्रमण की मुख्या वजह।
नौ महीने पुरे कर समय पे जन्म लेने वाले नवजात शिशु का आदर्श वजन 2.7 kg - से लेकर - 4.1 kg तक होना चाहिए। तथा शिशु का औसतन शिशु का वजन 3.5 kg होता है। यह इस बात पे निर्भर करता है की शिशु के माँ-बाप की लम्बाई और कद-काठी क्या है।
सर्दी के मौसम में बच्चों का बीमार होना स्वाभाविक है। सर्दी और जुकाम के घरेलु उपचार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्राप्त करें ताकि अगर आप का शिशु बीमार पड़ जाये तो आप तुरंत घर पे आसानी से उपलब्ध सामग्री से अपने बच्चे को सर्दी, जुकाम और बंद नाक की समस्या से छुटकारा दिला सकें। आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खे शिशु की खांसी की अचूक दवा है।
बच्चों को ठण्ड के दिनों में सर्दी और जुकाम लगना आम बात है। लेकिन बच्चों में 12 तरीके से आप खांसी का घरेलु उपचार कर सकती है (khansi ka gharelu upchar)। सर्दी और जुकाम में अक्सर शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह एक अच्छा संकेत हैं क्योँकि इसका मतलब यह है की बच्चे का शरीर सर्दी और जुखाम के संक्रमण से लड़ रहा है। कुछ घरेलु तरीकों से आप शिशु के शारीर की सहायता कर सकती हैं ताकि वो संक्रमण से लड़ सके।
शिशु को 6 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेपेटाइटिस बी और इन्फ्लुएंजा से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
अब तक ३०० बच्चों की जन ले चूका है हत्यारा ब्लू-व्हेल गेम। अगर आप ने सावधानी नहीं बाराती तो आप का भी बच्चा हो सकता है शिकार। ब्लू-व्हेल गेम खलता है बच्चों के मानसिकता से। बच्चों का दिमाग बड़ों की तरह परिपक्व नहीं होता है। इसीलिए बच्चों को ब्लू-व्हेल गेम से सुरक्षित रखने के लिए माँ-बाप की समझदारी और सूझ-बूझ की भी आवश्यकता पड़ेगी।
आप के शिशु को अगर किसी विशेष आहार से एलर्जी है तो आप को कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ेगा ताकि आप का शिशु स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मगर कभी medical इमरजेंसी हो जाये तो आप को क्या करना चाहिए?
इस गेम को खेलने के बाद बच्चे कर लेते हैं आत्महत्या|सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पे खेले जाने वाला गेम 'ब्लू व्हेल चैलेंज' अब तक पूरी दुनिया में 300 से ज्यादा बच्चों का जान ले चूका है| भारत में इस गेम की वजह से छह किशोर खुदखुशी कर चुके हैं| अगर पेरेंट्स समय रहते नहीं सतर्क हुए तो बहुत से पेरेंट्स के बच्चे इंटरनेट पे खेले जाने वाले गेम्स के चक्कर में घातक कदम उठा सकते हैं|
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फाइबर और पौष्टिक तत्वों से युक्त, मटर की प्यूरी एक बेहतरीन शिशु आहार है छोटे बच्चे को साजियां खिलने का| Step-by-step instructions की सहायता से जानिए की किस तरह आप ताज़े हरे मटर या frozen peas से अपने आँखों के तारे के लिए पौष्टिक मटर की प्यूरी कैसे त्यार कर सकते हैं|
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चावल का पानी (Rice Soup, or Chawal ka Pani) शिशु के लिए एक बेहतरीन आहार है। पचाने में बहुत ही हल्का, पेट के लिए आरामदायक लेकिन पोषक तत्वों के मामले में यह एक बेहतरीन विकल्प है।
सब्जियौं में ढेरों पोषक तत्त्व होते हैं जो बच्चे के अच्छे मानसिक और शारीर विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब शिशु छेह महीने का हो जाये तो आप उसे सब्जियों की प्यूरी बना के देना प्रारंभ कर सकती हैं। सब्जियों की प्यूरी हलकी होती है और आसानी से पच जाती है।
क्या आप चाहते हैं की आप का बच्चा शारारिक रूप से स्वस्थ (physically healthy) और मानसिक रूप से तेज़ (mentally smart) हो? तो आपको अपने बच्चे को ड्राई फ्रूट्स (dry fruits) देना चाहिए। ड्राई फ्रूट्स घनिस्ट मात्रा (extremely rich source) में मिनरल्स और प्रोटीन्स प्रदान करता है। यह आप के बच्चे के सम्पूर्ण ग्रोथ (complete growth and development) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
बच्चो में कुपोषण का मतलब भूख से नहीं है। हालाँकि कई बार दोनों साथ साथ होता है। गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को उसकी बढ़ने के लिए जरुरी पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते। बच्चों को कुपोषण से बचने के लिए हर संभव प्रयास जरुरी हैं क्योंकि एक बार अगर बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाये तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता।