Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺13 min read
6 माह से 1 साल तक के शिशु को आहार के रूप में दाल का पानी,चावल का पानी,चावल,सूजी के हलवा,चावल व मूंग की खिचड़ी,गूदेदार, पके फल, खीर, सेरलेक्स,पिसे हुए मेवे, उबले हुए चुकंदर,सप्ताह में 3 से 4 अच्छे से उबले हुए अंडे,हड्डीरहित मांस, भोजन के बाद एक-दो चम्मच पानी भी शिशु को पिलाएं।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि 6 माह तक के शिशु को सिर्फ और सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए। शिशु का पाचन तंत्र पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता है। शिशु की अवस्था किसी भी प्रकार के ठोस आहार को लेने की नहीं होती है इसीलिए 6 माह तक शिशु सिर्फ मां के दूध पर ही आश्रित होता है।
लेकिन एक मा की सबसे बड़ी चिंता यह होती है की वह अपने शिशु को 6 महीने के बाद आहार के रूप में क्या खिलाए। शिशु को स्वस्थ रखने के लिए एक मां हर संभव कोशिश करती है।
6 माह के शिशु में ठोस आहार शुरू करते वक्त आप उसे दाल का पानी, चावल का पानी, खीर और हलुआ दे सकती। आप अपने शिशु को फल और सब्जियौं को भी उबाल के दे सकती। इन्हें उबालने के बाद आप इसे पीस के चमच की सहायता से अपने शिशु को खिलाएं।
9 महीने तक के शिशु को आप आहार में ऐसे भोजन दें जो मुलायम हो और जिसे आप का शिशु आसानी से निगल। इस उम्र में बहुत से बच्चों में पुरे दांत नहीं आते। लेकिन उनके मसूड़े इतने मजबूत होते हैं की वे चावल और उबले आलू को खा।
इससे शिशु को 1 साल तक की अवस्था में आने पर ठोस आहार खाने की आदत पड़ जाएगी। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आप अपने 1 साल तक के शिशु को सही रूप से क्या खिलाएं की आपका शिशु पूर्ण रुप से स्वस्थ रहे।
यह कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिन्हें आप अपने शिशु को थोड़ी मात्रा में दे सकती हैं।

जैसे बिना छिलके के सेब, नाशपाती, खजूर ,तरबूजा, आम आदि। सब्जी के रूप में गाजर, गोभी, लौकी ,पालक ,कद्दू आदि। उबले हुए शकरकंद , बेसन का चिल्ला, दाल का पानी,दलिया, सूप, दाल-चावल, दही, रोटी आदि। 1 साल तक की अवस्था में शिशु को 1 दिन में 400 मिली ग्राम से अधिक दूध न दें अधिक दूध पिलाने से शिशु को भूख कम लगेगी जिससे वह ठोस आहार को खाने में रुचि नहीं दिखाएगा। जिससे शिशु को मिलने वाले अन्य पोषक तत्व जैसे आयरन विटामिनस आदि नहीं मिल पाएंगे।
कुछ ऐसे भी खाद्य पदार्थ होते हैं, जो शिशु को 1 साल तक की अवस्था मैं नहीं देना चाहिए जैसे की-
शहद- बाल रोग विशेषज्ञ बच्चों को शहद ना देने की सलाह देते हैं क्योंकि शहद में एक प्रकार का बैक्टीरिया पाया जाता है जिसे Clostrimium Botulinum कहते हैं। यह शिशु क पाचन तंत्र पे आक्रमण कर देते है,जो बहुत ही भयंकर और जानलेवा बीमरी पैदा करता है।

साबुत मेवे - शिशु ke 1 साल होने से पहले तक आप उसे अखरोट या बादाम साबुत रुप में खाने को नहीं दें। एक साल से छोटे बच्चों के दांत और मसूड़े इतने मजबूत नहीं होते हैं की वे इस कुंच के खा सकते हैं। निगलने से ये उनके गले में फंस भी सकता है।
मांस मछली - 1 साल तक के शिशु की पाचन तंत्र अभी ऐसी अवस्था में नहीं होती है कि वह मांस मछली जैसे खाद्य पदार्थों को आसानी से पचा सके इसीलिए शिशु को ये खाद्य पदार्थ अभी नहीं देनी चाहिए।
नवजात बच्चे के लिए सबसे अच्छा आहार सिर्फ मां का दूध ही होता है। यह सभी प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। दूध की सही मात्रा के सेवन से बच्चा हष्ट पुष्ट रहता है।

मां का दूध पीते रहने से मां और बच्चे के बीच एक भावनात्मक रिश्ता भी बन जाता है। मां का दूध शिशु को बाहरी संक्रमण से बचा कर रखता है। कुछ मां बच्चे को कभी कभी उबला पानी, फ्रूट जूस या ग्लूकोस पानी जैसी चीजें दे देती हैं। जो इस अवस्था के बच्चे के लिए बिल्कुल आवश्यक नहीं होता है।
सच बात तो ये है की छेह महीने से पहले शिशु को माँ के दूध के आलावा कुछ भी नहीं देना चाहिए। पानी भी नहीं। छेह माह से पहले शिशु को पानी देना खतरनाक हो सकता है।
जो बच्चा मां का दूध नियमित रूप से पीता है उसे अस्थमा जैसे रोग होने का खतरा बहुत कम होता है। शुरुआत के 3 महीने में मां का भोजन भी बच्चे के स्वास्थ्य पे प्रभाव डालता है।
इसीलिए मां को अपने भोजन का विशेष ध्यान देना चाहिए। मां के शरीर में आयरन की कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे मां के शरीर में दूध अच्छी तरह से नहीं बनता है।
जिससे नवजात शिशु को सही रूप से दूध नहीं मिलता है।
मां को बच्चे के जन्म के 3 महीने तक आयरन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करते रहना चाहिए जैसे चुकुंदर , अनार , पालक, अमरुद ,लाल मीट,अंडा ,सूखे मेवे आदि।
ऐसे कुछ प्रमुख खाद्य पदार्थों से मां में होने वाली आयरन की सभी कमी को पूरा किया जा सकता है।
इस उम्र में शिशु को पोषक तत्वों की भरपूर आवश्यकता होती है। इस अवस्था में शिशु को मां के दूध के साथ साथ ठोस आहार भी देना शुरू कर देना चाहिए।

इसकी शुरुआत दाल के पानी, दलिया, सेर्लेक्स आदि देकर करनी चाहिए। सेर्लेक्स को अच्छी तरह से मैश करके बच्चे को थोड़े थोड़े समय अंतराल पर देना उचित होता है।
इससे बच्चे के शरीर के विकास के लिए पर्याप्त पोषक तत्व मिल जाते हैं। धीरे-धीरे बच्चे को दोपहर में भी कुछ नया ठोस आहार दे जिसे शिशु आसानी से हजम कर सके।
इस प्रकार समय-समय पर शिशु के भोजन में बदलाव करते रहना चाहिए। जब भी आप शिशु को नया भोजन देती हैं तो आप उसे कम से कम एक सप्ताह तक देते रहिये। ऐसा करने से यदि आपके शिशु को उस भोजन से किसी प्रकार की एलर्जी हो रही है तो उसका पता आपको चल जाएगा।
शिशु को सूजी के बने हलवे , मैश किए हुए केले, चीनी व दूध के साथ मिलाकर या पकाकर देना बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें आप कम से कम एक चम्मच बारीक पीस हुए मेवो का प्रयोग जरूर करें। बारीक पिसे हुए मेवे शिशु के लिए बहुत ही लाभदायक होता है , क्योंकि मेवो में बहुत ही ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। 3 से 6 माह तक के शिशु को भोजन खिलाते समय इस बात का ध्यान दें कि भोजन को चम्मच के द्वारा ही खिलाए। ऐसी आदत से बच्चे को बाद में ठोस आहार खाने में समस्या नहीं होगी।
जब शिशु हलवा जैसे आहार को आसानी से पचाने लगे तो उसे चावल और मूंग की दाल से बनाया गया खिचड़ी देना चाहिए। साथ ही इस अवस्था में शिशु को हल्के सुपाच्य सब्जियां और गूदेदार फलों को खिलाना चाहिए।
फल व सब्जियों से शिशु के शरीर में आयरन की कमी पूरी होती है। फल व सब्जियां सदैव पक्की अवस्था में ही होनी चाहिए क्युकी कच्ची सब्जियां और फल को शिशु हजम नहीं कर सकता है। यदि बच्चे को सही रूप से आहार दिया जाए तो बच्चे का वजन 5 महीने में दुगना हो जाता है जो कि एक स्वस्थ बच्चे के लिए बहुत ही अच्छा संकेत होता है।
6 से 8 महीने तक के शिशु को ठोस आहार लेने की आदत पड़ जाती है इस समय शिशु को फल-सब्जियां दी जानी चाहिए। इस उम्र में बच्चे बहुत नटखट होते हैं और भोजन को खुद से खाने लगते हैं।

बच्चों की इस आदत को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्चे के दांत भी निकलने शुरू हो जाते हैं जिससे बच्चों को दातों में बेचैनी होती है और उस बेचैनी को शांत करने के लिए वह चीजों को मुंह में डालकर चबाना शुरु कर देते हैं।
ऐसा करने से उन्हें दस्त जैसी समस्या हो सकती है। इस आदत को रोकने के लिए बच्चे को एक बिस्किट या टोस्ट दे सकती हैं जिसे वह चूसता रहे। बच्चे को उबला हुआ आलू फोड़ के सादा देना चाहिए। अगर चाहे तो उसे हल्का नमक भी डाल कर दे सकते हैं।
बच्चे को इस उम्र में अंडा भी खिलाया जा सकता है। सप्ताह में 3 से 4 अंडा खिलाना बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
इस उम्र तक के बच्चों को फल सब्जी आदि खाद्य पदार्थों के साथ-ही-साथ फिश चिकन और मीट भी खिलाया जा सकता है।

यह अच्छी तरह से पक्का होना चाहिए और शिशु के लिए मुलायम भी होना चाहिए। हड्डी वाला हिस्सा बच्चे को भूलकर भी नहीं देना चाहिए। क्योंकि बच्चों में पूर्ण रूप से दांत विकसित नहीं हुए रहते हैं।
ऐसे में हड्डी युक्त मास बच्चे के खाने के लिए हानिकारक हो सकता है।
11 महीने के बाद बच्चे का वजन पहले की तुलना में कम हो जाता है या स्थिर रहता है। यह कोई चिंता का विषय नहीं है।

जब बच्चा 1 साल का हो जाता है तो उसका का वजन जन्म के समय के वजन से 3 गुना हो जाता है बढ़ते बच्चों को समय समय पर दूध बिस्किट और फ्रूट जूस आदि देते रहना चाहिए।
मिश्रित रूप से दिए गए संतुलित आहार से बच्चे के शरीर में होने वाली सभी कमियां दूर होती रहती है।
6 महीने के बाद अपने शिशु को ठोस आहार खिलाना शुरू कर दे। शिशु को दिन में दो बार ठोस आहार देना चाहिए। लेकिन रात में सिर्फ मां का दूध ही शिशु को पिलाना चाहिए।

रात में कभी भी शिशु को ठोस आहार नहीं देना चाहिए। आप अपने शिशु को दिन भर में 10 से 12 बार दूध पिला सकती हैं। ठोस आहार सदैव दूध पिलाने के बाद ही शिशु को देना चाहिए।
जब आप शिशु को 6 महीने के बाद पहली बार आहार खिलाने की शुरूआत करते हैं तो उसे फलों का रस जैसे की मौसमी, अनार, सेब आदि दे सकती हैं।

इसके साथ आप उसे दाल का पानी, चावल का पानी, और हरि पत्तेदार सब्जियों का सूप भी पिला सकती हैं। जब कुछ दिन तक शिशु ऐसे आहार खाने लगता है तो आप धीरे-धीरे और ठोस आहार को शिशु के भोजन में शामिल करना शुरू कीजिये।
सुबह के समय शिशु को आप अपना दूध पिलाएं क्योंकि इस समय शिशु के लिए स्तनपान सबसे अच्छा माना जाता है। शिशु के सुबह उठने के साथ ही आप उसे अपना दूध पिलाएं।
शिशु की मालिश करने से पहले उसे दाल का पानी पिलाना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। एक साल से छोटे बच्चों को कभी भी तड़का लगे हुए दाल के पानी को नहीं देना चाहिए।

शिशु के नहाने के बाद उसे अपना दूध पिलाएं क्योंकि नहाने के बाद शिशु की मस्पेशियाँ रिलैक्स हो जाती है और स्तनपान के बाद वह आराम से सो सकता। दोपहर के समय आप अपने शिशु को घर का बना हुआ ताजा सूप या फलों का जूस दे सकती हैं।
दोपहर के समय शिशु को जूस देने से उसे जुकाम का खतरा नहीं रहता है। शिशु को बाजार का खरदा हुआ जूस देने की बजाये आप ताजे फलों का जूस घर पे ही निकल के अपने बच्चे को पिलायें। बाहरी या डिब्बाबंद जूस से संक्रमण होने का खतरा रहता है।
शाम के समय आप अपने शिशु को मूंग की दाल की खिचड़ी दे सकती हैं। इससे शिशु का पेट भरा भरा रहता है साथ ही यह आसानी से हजम भी हो जाता है।
रात में सोने से पहले आप अपने बच्चे को सूजी की खीर या दलिया दे सकती हैं, इससे शिशु का पेट तो भरा ही रहेगा साथ ही रात में वह बार-बार स्तनपान नहीं करना चाहेगा और आसानी से सो सकेगा।
जब शिशु का पेट पूर्ण रूप से भरा नहीं रहता है तो वह अक्सर भूख के कारण रात में उठते हैं।
जब आपका शिशु अच्छी तरह से ठोस आहार को खाना शुरू कर देता है तो आप उसे बीच-बीच में एक या दो चम्मच पानी भी पिला सकती हैं।

शिशु को दूध वह ठोस आहार के साथ-साथ पानी की भी आवश्यकता होती है। छेह महीने के बच्चे या उससे बड़े बच्चों को दिन भर पानी पिलाते रहें ताकि उनके शारीर में पानी की आवश्यक मात्रा बनी रहे।
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