Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺6 min read
बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी जैसे की dose, side effects, टीका लगवाने की विधि।The BCG Vaccine is currently uses in India against TB. Find its side effects, dose, precautions and any helpful information in detail.
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BCG वैक्सीन शिशु को टीबी की बीमारी से बचाव के लिए दिया जाता है।
टीबी एक अत्यंत गंभीर बीमारी है।
लेकिन
सबसे दुखद बात यह है
की टीबी की बीमारी किसी को भी किसी भी अवस्था में हो सकता है। टीबी की बीमारी से बहुत तकलीफ होती है।
बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) शिशु को जन्म से पंद्रह दिनों के भीतर लगाना जरुरी है।
शिशु के टीकाकरण से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्राप्त करें।
यह टिका अधिकांश मामलों में शिशु को अस्पताल में ही लगा दिया जाता है। बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) के शिशु को ओरल पोलियो का (जीरो) डोज भी पिलाया दिया जाता है।
भारत सरकार की तरफ से बीसीजी का टीका सभी बच्चों के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है।
BCG का पूरा नाम है Bacillus Calmette–Guerin और यह एक तरह का वैक्सीन है तो शिशु को पूरी उम्र भर टीबी की बीमारी से बचाने के लिए दिया जाता है। बीसीजी का टिका बहुत सस्ता, सुरक्षित और आसानी से मिल जाने वाला टिका है। बीसीजी का टिका मुख्यता पांच साल से छोटे उम्र के बच्चों को टीबी की बीमारी से बचाने के लिए दिया जाता है। इस वैक्सीन/टिके का इस्तेमाल bladder cancer के उपचार में भी किया जाता है।

बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) का सर्वप्रथम इस्तेमाल 1921 में किया गया था। विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) के अनुसार BCG वैक्सीन विश्व के सबसे सुरक्षित और प्रभावी दवाओं में से एक माना गया है।
बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) को इस्तेमाल करने का तरीका यह ही की उसे त्वचा के अंदर inject किया जाता है। बीसीजी का टिका देने के उपरांत जिस जगह पे बीसीजी का टिका दिया गया है उस जगह को कम से कम २४ घंटों तक सूखा रखने की आवश्यकता है।
बीसीजी का टिका एक बार ही दिया जाना काफी है। मगर कभी कभी पहली बार देने पे यह कारगर साबित नहीं होता है। इसलिए सुरक्षात्मक तौर पे इसे (2-3 महीने के बाद) उस स्थिति में दोहराया जा सकता है जब पहली बार बीसीजी का टिका कारगर साबित न हुवा हो तो। बीसीजी का टिका कारगर साबित हुआ है यह नहीं इस बात का पता TB skin test के द्वारा लगाया जा सकता है।
बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) से कुछ शिशुओं में दुष्प्रभाव (side effects) भी हो सकता है। बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) देने के कुछ समय बाद भी अगर दुष्प्रभाव (side effects) समाप्त नहीं हो रहा हो तो तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
आहार किसी कारणवश आप के बच्चे को बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) शेड्यूल के हिसाब से नहीं लगा हो तो भी आप अपने शिशु को 5 वर्ष की आयु तक कभी भी BCG वैक्सीन का टिका लगवा सकते हैं।
अगर शिशु को पहले छह महीने की आयु तक BCG वैक्सीन का टिका अगर नहीं लगा है तो आप को अपने शिशु को BCG वैक्सीन लगवाने से पहले 'मोन्टु टेस्ट' करवाना आवश्यक है। अगर 'मोन्टु टेस्ट' का रिजल्ट नेगेटिव हो तभी आप को अपने शिशु को बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) लगवाना चाहिए।
बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए आप को अपने नजदीकी शिशु विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
साल 1989 में भारत की कुल जनसँख्या का २% टीबी की बीमारी से पीड़ित थी।
इस हिसाब से देखा जाये तो उस वक्त हर साल कुल 15 million टीबी के मरीजों की संख्या प्रकाश में आती थी। इसमें से २५% मरीज sputum positive होते थे। यानि ये ऐसे मरीज होते थे जिनसे संक्रमण बहुत आसानी से दूसरों तक फ़ैल सकता था।
राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम (NTP) ने २५ साल पुरे कर लिए हैं।
भारत में अभी भी हर साल क्षय रोग के मामले प्रकाश में आते हैं। मगर अब उतनी संख्या में लोग क्षय रोग (pulmonary tuberculosis) से पीड़ित नहीं होते हैं जितनी की तीन दशक पहले। इसका श्रेय भारत सरकार के कार्यक्रम राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम (NTP) को जाता है।
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Vitamin E शरीर में कोशिकाओं को सुरक्षित रखने का काम करता है यही वजह है कि अगर आप गर्भवती हैं तो आपको अपने भोजन में ऐसे आहार को सम्मिलित करने पड़ेंगे जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन इ (Vitamin E ) होता है। इस तरह से आपको गर्भावस्था के दौरान अलग से विटामिन ई की कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
पूरी गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के लिए यह बहुत आवश्यक है की वह ऐसे पोषक तत्वों को अपने आहार में सम्मिलित करें जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं तथा गर्भ में पल रहे शिशु का विकास भी बहुत तेजी से होता है और इस वजह से शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। पोषक तत्वों की कमी शिशु और माँ दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसी तरह का एक बहुत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है Vitamin B12.
एक्जिमा एक प्रकार का त्वचा विकार है जिसमें बच्चे के पुरे शारीर पे लाल चकते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली बहुत हती है। एक्जिमा बड़ों में भी पाया जाता है, लेकिन यह बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। एक्जिमा की वजह से इतनी तीव्र खुजली होती है की बच्चे खुजलाते-खुजलाते वहां से खून निकल देते हैं लेकिन फिर भी आराम नहीं मिलता। हम आप को यहाँ जो जानकारी बताने जा रहे हैं उससे आप अपने शिशु के शारीर पे निकले एक्जिमा का उपचार आसानी से कर सकेंगे।
बच्चों के शारीर पे एक्जिमा एक बहुत ही तकलीफदेह स्थिति है। कुछ बातों का ख्याल रखकर और घरेलु इलाज के दुवारा आप अपने शिशु को बहुत हद तक एक्जिमा की समस्या से छुटकारा दिला सकती हैं। इस लेख में आप पढ़ेंगी हर छोटी और बड़ी बात का जिनका आप को ख्याल रखना है अगर आप का शिशु एक्जिमा की समस्या से परेशान है!
आसन घरेलु उपचार दुवारा अपने बच्चे के शारीर से चेचक, चिकन पॉक्स और छोटी माता, बड़ी माता के दाग - धब्बों को आसानी से दूर करें। चेचक में शिशु के शारीर पे लाल रंग के दाने निकल, लेकिन अफ़सोस की जब शिशु पूरितः से ठीक हो जाता है तब भी पीछे चेचक - चिकन पॉक्स के दाग रह जाते हैं। चेचक के दाग के निशान चेहरे और गर्दन पर हो तो वो चेहरे की खूबसूरती को बिगाड़ देते है। लेकिन इन दाग धब्बों को कई तरह से हटाया जा सकता है - जैसे की - चिकन पॉक्स के दाग हटाने के लिए दवा और क्रीम इस्तेमाल कर सकती हैं और घरेलु प्राकृतिक उपचार भी कर सकती हैं। हम आप को इस लेख में सभी तरह के इलाज के बारे में बताने जा रहें हैं।
विटामिन डी की कमी से शिशु का शारीर कई प्रकार के रोगों से ग्रसित हो सकता है। शिशु का शारीरिक विकास भी रुक सकता है। इसीलिए जरुरी है की शिशु के शारीर को पर्याप्त मात्र में विटामिन डी मिले। जब बच्चे बाहर धूप में खेलते हैं और कई प्रकार के पौष्टिक आहार ओं को अपने भोजन में सम्मिलित करते हैं तो उन के शरीर की विटामिन डी की आवश्यकता पूरी हो जाती है साथ ही उनकी शरीर को और भी अन्य जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं जो शिशु को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है।
नॉर्मल डिलीवरी से शिशु के जन्म में कई प्रकार के खतरे होते हैं और इसमें मौत का जोखिम भी होता है - लेकिन इससे जुड़ी कुछ बातें हैं जो आपके लिए जानना जरूरी है। शिशु का जन्म एक साधारण प्रक्रिया है जिसके लिए प्राकृतिक ने शरीर की रचना किस तरह से की है। यानी सदियों से शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी के पद्धति से ही होता आया है।
गर्भावस्था के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए विटामिंस बहुत आवश्यक होते हैं। लेकिन इनकी अत्यधिक मात्रा गर्भ में पल रहे शिशु तथा मां दोनों की सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने से बचें। डॉक्टरों से संपर्क करें और उनके द्वारा बताए गए निश्चित मात्रा में ही विटामिन का सेवन करें। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने के कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं।
कहानियां सुनने से बच्चों में प्रखर बुद्धि का विकास होता है। लेकिन यह जानना जरुरी है की बच्चों को कौन सी कहानियां सुनाई जाये और कहानियौं को किस तरह से सुनाई जाये की बच्चों के बुद्धि का विकास अच्छी तरह से हो। इस लेख में आप पढ़ेंगी कहानियौं को सुनने से बच्चों को होने वाले सभी फायेदों के बारे में।
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) से प्रभावित बच्चों को पढाई में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है। ये बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) के लक्षणों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों पे ध्यान देने की ज़रुरत है। उन्हें डांटे नहीं वरन प्यार से सिखाएं और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करें।
सर्दी और जुकाम की वजह से अगर आप के शिशु को बुखार हो गया है तो थोड़ी सावधानी बारत कर आप अपने शिशु को स्वस्थ के बेहतर वातावरण तयार कर सकते हैं। शिशु को अगर बुखार है तो इसका मतलब शिशु को जीवाणुओं और विषाणुओं का संक्रमण लगा है।
अगर आप के शिशु को केवल रात में ही खांसी आती है - तो इसके बहुत से कारण हो सकते हैं जिनकी चर्चा हम यहाँ करेंगे। बच्चे को रात में खांसी आने के सही कारण का पता लगने से आप बच्चे का उचित उपचार कर पाएंगे। जानिए - सर्दी और जुकाम का लक्षण, कारण, निवारण, इलाज और उपचार।
बदलते मौसम में शिशु को सबसे ज्यादा परेशानी बंद नाक की वजह से होता है। शिशु के बंद नाक को आसानी से घरेलु उपायों के जरिये ठीक किया जा सकता है। इन लेख में आप पढेंगे - How to Relieve Nasal Congestion in Kids?
दैनिक जीवन में बच्चे की देखभाल करते वक्त बहुत से सवाल होंगे जो आप के मन में आएंगे - और आप उनका सही समाधान जाना चाहेंगी। अगर आप डॉक्टर से मिलने से पहले उन सवालों की सूचि त्यार कर लें जिन्हे आप पूछना चाहती हैं तो आप डॉक्टर से अपनी मुलाकात का पूरा फायदा उठा सकती हैं।
शिशु को 5 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला, डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
गर्भवती महिलाएं जो भी प्रेगनेंसी के दौरान खाती है, उसकी आदत बच्चों को भी पड़ जाती है| भारत में तो सदियोँ से ही गर्भवती महिलायों को यह नसीहत दी जाती है की वे चिंता मुक्त रहें, धार्मिक पुस्तकें पढ़ें क्योँकि इसका असर बच्चे पे पड़ता है| ऐसा नहीं करने पे बच्चे पे बुरा असर पड़ता है|
Beta carotene से भरपूर गाजर छोटे शिशु के लिए बहुत पौष्टिक है। बच्चे में ठोस आहार शुरू करते वक्त, गाजर का प्यूरी भी एक व्यंजन है जिसे आप इस्तेमाल कर सकते हैं। पढ़िए आसान step-by-step निर्देश जिनके मदद से आप घर पे बना सकते हैं बच्चों के लिए गाजर की प्यूरी - शिशु आहार। For Babies Between 4-6 Months
अगर आप यह चाहते है की आप का बच्चा भी बड़ा होकर एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बने तो इसके लिए आपको अपने बच्चे के खान - पान और रहन - सहन का ध्यान रखना होगा।
अगर आप का शिशु 6 महिने का हो गया है और आप सोच रही हैं की अपने शिशु को क्या दें खाने मैं तो - सूजी का खीर सबसे बढ़िया विकल्प है। शरीर के लिए बेहद पौष्टिक, यह तुरंत बन के त्यार हो जाता है, शिशु को इसका स्वाद बहुत पसंद आता है और इसे बनाने में कोई विशेष तयारी भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
लाल रक्त पुरे शरीर में ऑक्सीजन पहुचाने में मदद करता है। लाल रक्त कोशिकायों के हीमोग्लोबिन में आयरन होता है। हीमोग्लोबिन ही पुरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचता है। बिना पर्याप्त आयरन के आपके शरीर में लाल रक्त की कमी हो जाएगी। बहुत से ऐसे भोजन हैं जिससे आयरन के कमी को पूरा किया जा सकता है।