Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺9 min read
हर प्रकार के आहार शिशु के स्वस्थ और उनके विकास के लिए ठीक नहीं होता हैं। जिस तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए सही तो उसी तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए बुरे भी होते हैं। बच्चों के आहार को ले कर हर माँ-बाप परेशान रहते हैं।क्योंकि बच्चे खाना खाने में बहुत नखड़ा करते हैं। ऐसे मैं अगर बच्चे किसी आहार में विशेष रुचि लेते हैं तो माँ-बाप अपने बच्चे को उसे खाने देते हैं, फिर चाहे वो आहार शिशु के स्वस्थ के लिए भले ही अच्छा ना हो। उनका तर्क ये रहता है की कम से कम बच्चा कुछ तो खा रहा है। लेकिन सावधान, इस लेख को पढने के बाद आप अपने शिशु को कुछ भी खिलने से पहले दो बार जरूर सोचेंगी। और यही इस लेख का उद्देश्य है।

पौष्टिक आहार ना केवल शिशु को पोषण प्रदान करते हैं बल्कि उसके विकास में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
जिस प्रकार पौष्टिक आहार शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं, उसके विकास के लिए जरूरी होते हैं ठीक उसी तरह कुछ ऐसे आहार होते हैं जो इसी का उल्टा काम करते हैं। ये आहार ना केवल शिशु के विकास को बाधित करते हैं बल्कि फूड प्वाइजनिंग का भी काम करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि कुछ आहार ऐसे हैं जो शिशु के लिए फूड पाइजन हो सकते हैं।
अफसोस इस बात का है कि ऐसे बहुत से आहार हम हर दिन अपने बच्चों को खिलाते हैं।
छोटे बच्चों का पाचन तंत्र बाजार में मिलने वाले आहारों के लिए अभ्यस्त नहीं होता है। इस वजह से उन्हें कई बार अपच/ indigestion का सामना करना पड़ता है।
अगर अपने बच्चों की सेहत के प्रति जागरुक हैं तो आपको अपने बच्चों को स्वस्थ-आहार प्रदान करना पड़ेगा।
जिससे छोटे बच्चों के पाचन तंत्र पर अनचाहा दबाव ना पड़े, और उनकी विकास के लिए सभी जरूरी पोषक तत्व उन्हें उनके आहार से मिल सके।
एक अध्ययन के अनुसार बच्चों में 95% क्रॉनिक डिजीज की वजह (chronic diseases), गलत आहारों का चुनाव है।
इसका मतलब यह है कि हम अपने बच्चों को अधिकांश बीमारियों से बचा सकते हैं अगर हम केवल उन के आहार पर ध्यान दें तो।
इस लेख में हम चर्चा करने जा रहे हैं कुछ ऐसे आहारों के बारे में जिनसे काफी गंभीर फूड प्वाइजनिंग बच्चों को हो सकती है।
शिशु का पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील होता है। क्योंकि यह पूरी तरह विकसित नहीं है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उनका पाचन तंत्र विकसित होता जाता है।
इसलिए बहुत जरूरी है किसी को शुरुआती सालों में सही आहार दिया जाए ताकि उनका विकास अच्छी तरह हो सके, और उनका पाचन तंत्र दरुस्त रहे।
दूध और चीनी का मिश्रण होने की वजह से यह पचने में काफी समय लेता है। यह प्राकृतिक रूप से बहुत अम्लीय भी होता है।
इसका नतीजा यह होता है की कभी कभी बच्चों को खट्टे डकार भी आते हैं और उल्टी भी हो सकती है। अपने बच्चों को कम से कम चॉकलेट मिल्क दें।
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बच्चों के विकास के लिए दूध बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके बजाये आप अपने बच्चों को सादा दूध चीनी के साथ दे सकती हैं और साथ ही अपने बच्चों को दूध से बने उत्पाद भी दे सकते हैं जैसी पनीर। यह आपके शिशु के पाचन तंत्र के लिए सुरक्षित भी है और पौष्टिक भी। सबसे अच्छी बात ये है की यह आसानी से पच भी जाता है।
इसे तो आप अपने बच्चों को बिल्कुल भी ना दें। महीने में एक या दो बार आप अपने बच्चों को मायोनीज़ (Mayonnaise) दे सकती हैं।
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लेकिन इसे हमेशा देना, स्वास्थ्य की दृष्टि से बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। इसमें बहुत ज्यादा तेल और अंडा होता है। इतनी अधिक मात्रा शिशु के विकास को बाधित कर सकती है।
आप अपने बच्चे को मायोनीज़ (Mayonnaise) के बदले बटर या मक्खन दे सकती हैं।
रेडी टू ईट नगेट्स और चीज़ बॉल बच्चों को बहुत पसंद आता है। यह आसानी से हर स्टोर्स और मॉल में भी उपलब्ध है। इसे बनाना भी आसान है।
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इसे बनाने के लिए आपको केवल इसे तलने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन यह आहार आपके बच्चे के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।
अगर अब तक आपने अपने बच्चों को इसे खिलाती आई है तो अब से अपने बच्चों को इन्हें खिलाना कम करें। व्यस्त माताओं के लिए झटपट आहार तैयार करने का यह एक सुलभ तरीका है।
लेकिन यह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। बेहतर यह होगा कि आप अपने बच्चों के लिए घर पर ही स्वस्थ नगेट्स तैयार करें।
बच्चों के इस पसंदीदा मिठाई में चीनी के अलावा कुछ नहीं होता है। लेकिन चीनी में पोषण चुटकी मात्र नहीं होता है। इसीलिए इसे एम्प्टी कैलोरी (Empty Calorie) कहा जाता है।
शिशु के बढ़ते शरीर के विकास के लिए पोषक तत्वों की बहुत आवश्यकता पड़ती है। पोषण की कमी में शिशु को कुपोषण भी हो सकता है।
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शिशु का शरीर हर प्रकार की बीमारी से उबरने के बाद फिर से पहले जैसा स्वस्थ होने की क्षमता रखता है। लेकिन कुपोषण से शिशु के शरीर को हुए नुकसान की भरपाई कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती है।
इसीलिए सबसे बेहतर यह होगा कि शिशु को कुपोषण होने ही नहीं दिया जाए। क्योंकि चीनी बहुत सरलता से शरीर में अवशोषित हो जाता है इसीलिए दूसरे आहारों की तुलना में शरीर चीनी के अवशोषण को प्राथमिकता देता है।
इसका नतीजा यह होता है कि शरीर को कैलोरी यानी ऊर्जा तो मिल जाती है लेकिन पोषण नहीं मिलता है।
कुपोषण केवल भूख के कारण नहीं होता है बल्कि यह कई बार स्वस्थ आहार ना मिलने की वजह से भी होता है। इसके अलावा लॉलीपॉप (Lollipops) और दूसरी Candy को बच्चे बहुत देर तक मुंह में रखकर चूसते हैं।
इससे उनके दांतों में कैविटी होने की संभावना भी बढ़ जाती है। बच्चों को आप कभी कभी लॉलीपॉप (Lollipops) दे सकती हैं, लेकिन अपने बच्चों को इसका आदत कभी पड़ने ना दें।
बिना पाश्चराइज्ड किया हुआ दूध (Unpasteurized milk), शिशु के पेट में संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है। शिशु के शुरुआती कुछ महीनों और सालों में दूध और उससे बने आहार, शिशु के मुख्य आहारों में से होते हैं।
इसीलिए आपको इस बात का ध्यान देने की आवश्यकता पड़ेगी कि आप के शिशु का दूध को फ्रिज में स्टोर करके रखा जाए।
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शिशु को दूध पिलाने से पहले उसे अच्छी तरह से उबाल लिया जाए। दूध में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है। इसीलिए दूध बहुत जल्दी खराब भी हो जाता है।
बाजार से पैकेट दूध खरीदते समय उसके पैकेट के ऊपर पढ़ लें की दूध को पाश्चराइज्ड (Pasturize) किया गया है या नहीं।
सब्जी काटने वाले बोर्ड (Vegetable cutting board) पर अगर आप कच्चे मीट को काटते हैं और फिर बिना धोए उसे अपने बच्चों के लिए फलों को काटने के लिए इस्तेमाल करती हैं, तो यह आपके बच्चों के लिए जानलेवा हो सकता है।
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किचन में साफ सफाई का ध्यान अगर ना रखा जाए तो बच्चों को अपच की समस्या हो सकती है। उन्हें फूड प्वाइजनिंग भी हो सकता है।
किचन में मीट को काटने के लिए अलग बोर्ड (Cutting board) और फल सब्जियों को काटने के लिए अलग बोर्ड (Vegetable cutting board) का इस्तेमाल करें। फल और सब्जियों को रखने के लिए अलग भगौनो (Containers/Bowls) का भी इस्तेमाल करें।
तले हुए आहार में कितनी तेल की मात्रा होती है, इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकती हैं आप। बाजार में उपलब्ध इस्माइली और फ्राइज (Smileys and Fries) में पहले से ही बहुत तेल होता है।

बाजार से रेडीमेड इस्माइली और फ्राइज (Smileys and Fries) खरीदने की बजाएं, आप इसे अपने बच्चों के लिए घर पर ही तैयार करने की कोशिश करें।
इसे बनाना बेहद आसान है, और आपको इस की रेसिपी आसानी से इंटरनेट पर मिल जाएगी।
हालांकि बच्चे खुद ही बहुत ज्यादा मसाले वाले आहार नहीं खाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे मसाले जैसे कि अदरक, इलायची और लौंग इतने चटक नहीं होते हैं।

इस वजह से इनसे बने आहार बच्चे सहजता से खा लेते हैं। लेकिन इन मसालों की मात्रा अगर आहार में अधिक हो जाए तो यह बच्चों में एसिडिटी और बेचैनी पैदा कर सकते हैं।
आज कल बाजार में ऐसे रेस्टोरेंट, फूड कोर्ट, और जॉइंट की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो विशेषकर बच्चों के लिए आहार बनाती है।

बच्चों को यहां के बने आहार बहुत स्वादिष्ट और आकर्षक लगते हैं। इसका कारण यह है कि इसमें अत्यधिक मात्रा में चटक रंगों का इस्तेमाल और कृत्रिम जायकों (आर्टिफीसियल फ्लेवर/कृत्रिम स्वाद) का इस्तेमाल होता है। लेकिन कृत्रिम स्वाद और चटक रंग आपके शिशु के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
कभी कभार अपने बच्चों को ऐसी जगहों पर आप ले के जा सकती है। लेकिन अपने बच्चों को ऐसी जगहों पर हमेशा लेकर नहीं जाएँ।
बाजार में उपलब्ध रेडीमेड आहार जैसे कि नूडल्स और पास्ता झटपट तैयार हो जाते हैं और यह खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होते हैं।
लेकिन इन में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, वसा और अत्यधिक मात्रा में स्वाद बढ़ाने के लिए MSG का इस्तेमाल किया जाता है।

इस वजह से यह आपके शिशु के लिए स्वस्थ बिल्कुल नहीं है। आप अपने बच्चों के लिए घर पर स्वस्थ नूडल और पास्ता बना सकती हैं।
ना केवल यह पोषण से भरपूर होंगे, बल्कि आपके बच्चों के स्वास्थ्य विकास के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होंगे।
ऊपर जो आहार हमने बताए हैं, यह कुछ आम आहार हैं जिनकी वजह से अधिकांश मामलों में बच्चों को फूड प्वाइजनिंग की समस्या होती है।
3 साल तक के उम्र के बच्चों का पाचन तंत्र बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है। अगर शिशु का पाचन तंत्र इन आहारों को सही तरीके से हजम ना कर सके तो फूड प्वाइजनिंग की संभावना बन जाती है।
मां के दूध पर निर्भर रहना और फाइबर का कम सेवन करने के कारण अक्सर बच्चे को कब्ज की समस्या बनी रहती है। ठोस आहार देने के बावजूद बच्चे को सामान्य होने में समय लगता है। इन दिनों उसे मल त्यागने में काफी दिक्कत हो सकती है।
पूरी गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के लिए यह बहुत आवश्यक है की वह ऐसे पोषक तत्वों को अपने आहार में सम्मिलित करें जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं तथा गर्भ में पल रहे शिशु का विकास भी बहुत तेजी से होता है और इस वजह से शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। पोषक तत्वों की कमी शिशु और माँ दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसी तरह का एक बहुत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है Vitamin B12.
बहुत से बच्चों और बड़ों के दातों के बीच में रिक्त स्थान बन जाता है। इससे चेहरे की खूबसूरती भी कम हो जाती है। लेकिन बच्चों के दातों के बीच गैप (डायस्टेमा) को कम करने के लिए बहुत सी तकनीक उपलब्ध है। सबसे अच्छी बात तो यह है की अधिकांश मामलों में जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं, यह गैप खुद ही भर जाता है। - Diastema (Gap Between Teeth)
बच्चों की आंखों में काजल लगाने से उनकी खूबसूरती बहुत बढ़ जाती है। लेकिन शिशु की आंखों में काजल लगाने के बहुत से नुकसान भी है। इस लेख में आप शिशु की आँखों में काजल लगाने के सभी नुकसानों के बारे में भी जानेंगी।
8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
जानिए कीवी फल खाने से शरीर को क्या क्या फायदे होते है (Health Benefits Of Kiwi) कीवी में अनेक प्रकार के पोषक तत्वों का भंडार होता है। जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने में सक्षम होते हैं। कीवी एक ऐसा फल में ऐसे अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को बैक्टीरिया और कीटाणुओं से भी लड़ने में मदद करते। यह देखने में बहुत छोटा सा फल होता है जिस पर बाहरी तरफ ढेर सारे रोए होते हैं। कीवी से शरीर को अनेक प्रकार के स्वास्थ लाभ मिलते हैं। इसमें विटामिन सी, फोलेट, पोटेशियम, विटामिन के, और विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। कीवी में ढेर सारे छोटे काले बीज होते हैं जो खाने योग्य हैं और उन्हें खाने से एक अलग ही प्रकार का आनंद आता है। नियमित रूप से कीवी का फल खाने से यह आपके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है यानी कि यह शरीर की इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
बच्चे के जन्म के बाद माँ को ऐसे आहार खाने चाहिए जो माँ को शारीरिक शक्ति प्रदान करे, स्तनपान के लिए आवश्यक मात्र में दूध का उत्पादन में सहायता। लेकिन आहार ऐसे भी ना हो जो माँ के वजन को बढ़ाये बल्कि गर्भावस्था के कारण बढे हुए वजन को कम करे और सिजेरियन ऑपरेशन की वजह से लटके हुए पेट को घटाए। तो क्या होना चाहिए आप के Diet After Pregnancy!
6 महीने की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच होनी चाहिए। जबकि 6 महीने के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
शिशु की खांसी एक आम समस्या है। ठंडी और सर्दी के मौसम में हर शिशु कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता है। इसके लिए डोक्टर के पास जाने की अव्शाकता नहीं है। शिशु खांसी के लिए घर उपचार सबसे बेहतरीन है। इसका कोई side effects नहीं है और शिशु को खांसी, सर्दी और जुकाम से रहत भी मिल जाता है।
माँ बनना बहुत ही सौभाग्य की बात है। मगर माँ बनते ही सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती है की अपने नन्हे से शिशु की देख भाल की तरह की जाये ताकि बच्चा रहे स्वस्थ और उसका हो अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास।
इस गेम को खेलने के बाद बच्चे कर लेते हैं आत्महत्या|सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पे खेले जाने वाला गेम 'ब्लू व्हेल चैलेंज' अब तक पूरी दुनिया में 300 से ज्यादा बच्चों का जान ले चूका है| भारत में इस गेम की वजह से छह किशोर खुदखुशी कर चुके हैं| अगर पेरेंट्स समय रहते नहीं सतर्क हुए तो बहुत से पेरेंट्स के बच्चे इंटरनेट पे खेले जाने वाले गेम्स के चक्कर में घातक कदम उठा सकते हैं|
सात से नौ महीने (7 to 9 months) की उम्र के बच्चों को आहार में क्या देना चाहिए की उनका विकास भलीभांति हो सके? इस उम्र में शिशु का विकास बहुत तीव्र गति से होता है और उसके विकास में पोषक तत्त्व बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
केला पौष्टिक तत्वों का जखीरा है और शिशु में ठोस आहार शुरू करने के लिए सर्वोत्तम आहार। केला बढ़ते बच्चों के सभी पौष्टिक तत्वों की जरूरतों (nutritional requirements) को पूरा करता है। केले का smoothie बनाने की विधि - शिशु आहार in Hindi
समय से पहले बच्चों में ठोस आहार की शुरुआत करने के फायदे तो कुछ नहीं हैं मगर नुकसान बहुत हैं| बच्चों के एलर्जी सम्बन्धी अधिकांश समस्याओं के पीछे यही वजह हैं| 6 महीने से पहले बच्चे की पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होती है|
माँ-बाप सजग हों जाएँ तो बहुत हद तक वे आपने बच्चों को यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं। भारत में बाल यौन शोषण से सम्बंधित बहुत कम घटनाएं ही दर्ज किये जाते हैं क्योँकि इससे परिवार की बदनामी होने का डर रहता है। हमारे भारत में एक आम कहावत है - 'ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।'
आज के दौर की तेज़ भाग दौड़ वाली जिंदगी मैं हर माँ के लिए यह संभव नहीं की अपने शिशु के लिए घर पे खाना त्यार कर सके| ऐसे मैं बेबी फ़ूड खरीदते वक्त बरतें यह सावधानियां|
अधिकांश बच्चे जो पैदा होते हैं उनका पूरा शरीर बाल से ढका होता है। नवजात बच्चे के इस त्वचा को lanugo कहते हैं। बच्चे के पुरे शरीर पे बाल कोई चिंता का विषय नहीं है। ये बाल कुछ समय बाद स्वतः ही चले जायेंगे।
हाइपोथर्मिया होने पर बच्चे के शरीर का तापमान, अत्यधिक कम हो जाता है। हाईपोथर्मिया से पीड़ित वे बच्चे होते हैं, जो अत्यधिक कमज़ोर होते हैं। बच्चा यदि छोटा हैं तो उससे अपने गोद में लेकर ,कम्बल आदि में लपेटकर उससे गर्मी देने की कोशिश करें।
वायरल संक्रमण हर उम्र के लोगों में एक आम बात है। मगर बच्चों में यह जायद देखने को मिलता है। हालाँकि बच्चों में पाए जाने वाले अधिकतर संक्रामक बीमारियां चिंताजनक नहीं हैं मगर कुछ गंभीर संक्रामक बीमारियां भी हैं जो चिंता का विषय है।