Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, अगर शिशु को एलर्जी नहीं है, तो आप उसे 6 महीने की उम्र से ही अंडा खिला सकती हैं। अंडे की पिली जर्दी, विटामिन और मिनिरल का बेहतरीन स्रोत है। इससे शिशु को वासा और कोलेस्ट्रॉल, जो उसके विकास के लिए इस समय बहुत जरुरी है, भी मिलता है।

अगर आप ये सोच रही हैं की क्या आप अपने शिशु को अंडा दे सकती हैं - तो
जी हाँ आप बिलकुल दे सकती हैं
बशर्ते
आप का बच्चा 6 महीने का या उससे बड़ा हो।
6 महीने से छोटे बच्चों को कोई ठोस आहार ना दें। उन्हें केवल माँ का दूध पिलायें।
कुछ सालों पहले यह राय दे जाती थी की बच्चे को एक साल से पहले अंडा नहीं देना चाहिए। मगर इन दिनों हुए शोध में यह बात सामने आयी है की बच्चे पे इसके कोई लाभ नहीं की बच्चे को जल्दी अंडा दें या देरी से। तो हकीकत यह है की एक साल तक रूकने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अगर आप अपने शिशु को 6 महीने की उम्र से ही अंडा देना चाहती हैं, तो बेशक दीजिये, मगर एक बार अपने शिशु के डॉक्टर से अवशय सलाह ले लें।
आप ने अक्सर बहुतों को कहते सुना होगा की बच्चों को हर दिन अंडा नहीं देना चाहिए क्योंकि उसमे प्रचुर मात्र में फैट (fat) और कोलेस्ट्रॉल होता है।

लेकिन सच बात तो ये है की बच्चों को हर दिन अंडा दिया जा सकता है। नवजात शिशु और बच्चों को - बड़ों की तुलना में ज्यादा फैट (fat) और कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता पड़ती है।
नवजात शिशु का मस्तिष्क और अंग (organs) पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। इनके उचित विकास में अंडे में मौजूद फैट (fat) और कोलेस्ट्रॉल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस बात का ध्यान रहे की शिशु को 6 महीने से स्तनपान के आलावा कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए। मैंने यहां "नवजात शिशु" शब्द का इस्तेमाल किया है, लेकिन मेरा अभिप्रायः 6 महीने या उससे बड़े बच्चों से है।

अंडा उन 8 आहारों में से एक है जिनसे शिशु को एलेर्जी होने की सम्भावना सबसे ज्यादा है। इसीलिए आप को शिशु को अंडा देते समय नए आहार से सम्बंधित तीन दिवसीय नियमो का पालन करना चाहिए। अगर आप को थोड़ी भी शंका लगे की आप के शिशु को अंडे से एलेर्जी हो रही है तो आप तुरंत अंडा देना रोक दें।
अंडे में दो हिस्से होते हैं। पहला - अंडे का पीला हिस्सा जिसे जर्दी कहते हैं और दूसरा - अंडे का सफ़ेद हिस्सा। अंडे का पीला हिस्सा जिसे जर्दी कहते हैं - इसमें प्रचुर मात्रा में फैट (fat) और कोलेस्ट्रॉल होता है - जो शिशु के दिमाग और अंगो के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

इसमें शिशु के विकास के लिए वो सारे पोषक तत्त्व मौजूद हैं जो उसके संतुलित विकास के लिए जरुरी है। - लेकिन इसमें अलेर्जी पैदा करने वाला कोई तत्त्व मौजूद नहीं है।
अंडे का सफ़ेद हिस्सा मुख्यता प्रोटीन है। इसमें चार ऐसे प्रोटीन है, जो इंसानों में एलेर्जी पैदा करने की छमता रखते हैं। नवजात शिशु और बच्चों को अंडे की जर्दी से कोई खतरा नहीं है। लेकिन अंडे के सफ़ेद हिस्से से एलेर्जी की सम्भावना हो सकती है।

अगर आप के शिशु में पहले से ही एलेर्जी की तरह के लक्षण दिखे हों - जैसे की शरीर पे एलेर्जी वाले चकते - तो उसे अंडा देने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह अवशय ले लें।

कुछ सालों पहले बाल रोग विशेषज्ञ इस बात की राय देते थे की शिशु को एक साल से पहले अंडा देना उचित नहीं है। लेकिन 2008 में हुए शोध में यह बात साबित हो गयी है की बच्चों को देर से अंडे देने से उनमे एलेर्जी होने की सम्भावना को टाला नहीं जा सकता है। इसीलिए अब बाल रोग विशेषज्ञ बच्चों को अंडा खिलने के लिए किसी विशेष उम्र पे जोर नहीं देते हैं।

अस्थमा होने की स्थिति में शिशु को तुरंत आराम पहुचने के घरेलु उपाय। अपने बच्चे को अस्थमा के तकलीफ से गुजरते देखना किस माँ-बाप के लिए आसान होता है? सही जानकारी के आभाव में शिशु का जान तक जा सकता है। घर पे प्रतियेक व्यक्ति को अस्थमा के प्राथमिक उपचार के बारे में पता होना चाहिए ताकि आपातकालीन स्थिति में शिशु को जीवन रक्षक दवाइयां प्रदान की जा सकें।
एक्जिमा एक प्रकार का त्वचा विकार है जिसमें बच्चे के पुरे शारीर पे लाल चकते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली बहुत हती है। एक्जिमा बड़ों में भी पाया जाता है, लेकिन यह बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। एक्जिमा की वजह से इतनी तीव्र खुजली होती है की बच्चे खुजलाते-खुजलाते वहां से खून निकल देते हैं लेकिन फिर भी आराम नहीं मिलता। हम आप को यहाँ जो जानकारी बताने जा रहे हैं उससे आप अपने शिशु के शारीर पे निकले एक्जिमा का उपचार आसानी से कर सकेंगे।
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।
सभी बच्चे नटखट होते हैं। लेकिन बच्चों पे चलाना ही एक मात्र समस्या का हल नहीं है। सच तो ये है की आप के चिल्लाने के बाद बच्चे ना तो आप की बात सुनना चाहेंगे और ना ही समझना चाहेंगे। बच्चों को समझाने के प्रभावी तरीके अपनाएं। इस लेख में हम आप को बताएँगे की बच्चों पे चिल्लाने के क्या - क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
कहानियां सुनने से बच्चों में प्रखर बुद्धि का विकास होता है। लेकिन यह जानना जरुरी है की बच्चों को कौन सी कहानियां सुनाई जाये और कहानियौं को किस तरह से सुनाई जाये की बच्चों के बुद्धि का विकास अच्छी तरह से हो। इस लेख में आप पढ़ेंगी कहानियौं को सुनने से बच्चों को होने वाले सभी फायेदों के बारे में।
शुद्ध देशी घी शिशु को दैनिक आवश्यकता के लिए कैलोरी प्रदान करने का सुरक्षित और स्वस्थ तरीका है। शिशु को औसतन 1000 से 1200 कैलोरी की जरुरत होती है जिसमे 30 से 35 प्रतिशत कैलोरी उसे वासा से प्राप्त होनी चाहिए। सही मात्रा में शुद्ध देशी घी शिशु के शारीरिक और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देता है और शिशु के स्वस्थ वजन को बढ़ता है।
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं शिशु की खांसी, सर्दी, जुकाम और बंद नाक का इलाज किस तरह से आप घर के रसोई (kitchen) में आसानी से मिल जाने वाली सामग्रियों से कर सकती हैं - जैसे की अजवाइन, अदरक, शहद वगैरह।
जानिए घर पे वेपर रब (Vapor rub) बनाने की विधि। जब बच्चे को बहुत बुरी खांसी हो तो भी Vapor rub (वेपर रब) तुरंत आराम पहुंचता है। बच्चों का शरीर मौसम की आवशकता के अनुसार अपना तापमान बढ़ने और घटने में सक्षम नहीं होता है। यही कारण है की कहे आप लाख जतन कर लें पर बच्चे सार्ड मौसम में बीमार पड़ ही जाते हैं।
शिशु को सर्दी और जुकाम (sardi jukam) दो कारणों से ही होती है। या तो ठण्ड लगने के कारण या फिर विषाणु (virus) के संक्रमण के कारण। अगर आप के शिशु का जुकाम कई दिनों से है तो आप को अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कुछ घरेलु उपचार (khasi ki dawa) की सहायता से आप अपने शिशु की सर्दी, खांसी और जुकाम को ठीक कर सकती हैं। अगर आप के शिशु को खांसी है तो भी घरेलु उपचार (खांसी की अचूक दवा) की सहायता से आप का शिशु पूरी रात आरामदायक नींद सो सकेगा और यह कफ निकालने के उपाय भी है - gharelu upchar in hindi
शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
आप के शिशु को अगर किसी विशेष आहार से एलर्जी है तो आप को कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ेगा ताकि आप का शिशु स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मगर कभी medical इमरजेंसी हो जाये तो आप को क्या करना चाहिए?
ठण्ड के दिनों में बच्चों का अगर उचित ख्याल न रखा जाये तो वे तुरंत बीमार पड़ सकते हैं। कुछ विशेष स्वधानियाँ अगर आप बरतें तो आप का शिशु ठण्ड के दिनों में स्वस्थ और सुरक्षित रह सकता है। जानिए इस लेख में ठंड में बच्चों को गर्म रखने के उपाय।
शिक्षक वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ माना जाता है। शिक्षक ही एक अबोध तथा बाल - सुलभ मन मस्तिष्क को उच्च शिक्षा व आचरण द्वारा श्रेष्ठ, प्रबुद्ध व आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के माध्यम आश्रम व गुरुकुल हुआ करते थे। वहां गुरु जन बच्चों के आदर्श चरित के निर्माण में सहायता करते थे।
Indian baby sleep chart से इस बात का पता लगाया जा सकता है की भारतीय बच्चे को कितना सोने की आवश्यकता है।। बच्चों का sleeping pattern, बहुत ही अलग होता है बड़ों के sleeping pattern की तुलना मैं। सोते समय नींद की एक अवस्था होती है जिसे rapid-eye-movement (REM) sleep कहा जाता है। यह अवस्था बच्चे के शारीरिक और दिमागी विकास के लहजे से बहुत महत्वपूर्ण है।
चावल का खीर मुख्यता दूध में बनता है तो इसमें दूध के सारे पौष्टिक गुण होते हैं| खीर उन चुनिन्दा आहारों में से एक है जो बच्चे को वो सारे पोषक तत्त्व देता है जो उसके बढते शारीर के अच्छे विकास के लिए जरुरी है|
चूँकि इस उम्र मे बच्चे अपने आप को पलटना सीख लेते हैं और ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, आप को इनका ज्यादा ख्याल रखना पड़ेगा ताकि ये कहीं अपने आप को चोट न लगा लें या बिस्तर से निचे न गिर जाएँ।
अधिकांश बच्चे जो पैदा होते हैं उनका पूरा शरीर बाल से ढका होता है। नवजात बच्चे के इस त्वचा को lanugo कहते हैं। बच्चे के पुरे शरीर पे बाल कोई चिंता का विषय नहीं है। ये बाल कुछ समय बाद स्वतः ही चले जायेंगे।
बच्चों में भूख की कमी एक बढती हुई समस्या है। यह कई कारणों से होती है जैसे की शारीर में विटामिन्स की कमी, तापमान का गरम रहना, बच्चे का सवभाव इतियादी। लेकिन कुछ घरेलु तरीके और कुछ सूझ-बूझ से आप अपने बच्चे की भूख को बढ़ा सकती हैं ताकि उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उसके शारीर को सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व मिल सके।
चावल का पानी (Rice Soup, or Chawal ka Pani) शिशु के लिए एक बेहतरीन आहार है। पचाने में बहुत ही हल्का, पेट के लिए आरामदायक लेकिन पोषक तत्वों के मामले में यह एक बेहतरीन विकल्प है।
अगर आप इस बात को ले के चिंतित है की अपने 4 से 6 माह के बच्चे को चावल की कौन सी रेसेपी बना के खिलाये - तो यह पढ़ें चावल से आसानी से बन जाने वाले कई शिशु आहार। चावल से बने शिशु आहार बेहद पौष्टिक होते हैं और आसानी से शिशु में पच भी जाते हैं।