Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺6 min read
बदलते परिवेश में जिस प्रकार से छोटे बच्चे भी माइग्रेन की चपेट में आ रहे हैं, यह जरूरी है कि आप भी इसके लक्षणों को जाने ताकि आप अपने बच्चों में माइग्रेन के लक्षणों को आसानी से पहचान सके और समय पर उनका इलाज हो सके।

बच्चों में माईग्रेन के लक्षण और घरेलु उपचार
माइग्रेन, पिछले कुछ वर्षों तक केवल व्यस्क लोगों में ही देखने को मिलता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह बीमारी बच्चों में भी आम होती जा रही है। इसकी मुख्य वजह है हमारे जीवनशैली में बदलाव, अत्यधिक तनाव की स्थिति और असंतुलित खानपान।
माइग्रेन की समस्या दिमाग में नसों की सूजन की वजह से होता है। इसके कारण बहुत तकलीफ होती है। माइग्रेन हलाकि विशेष रूप से बड़ों में ज्यादा देखने को मिलता है इसी वजह से माइग्रेन पर मौजूद अधिकांश जानकारियां बड़ों पर ही केंद्रित है।
लेकिन बदलते परिवेश में जिस प्रकार से छोटे बच्चे भी माइग्रेन की चपेट में आ रहे हैं, यह जरूरी है कि आप भी इसके लक्षणों को जाने ताकि आप अपने बच्चों में माइग्रेन के लक्षणों को आसानी से पहचान सके और समय पर उनका इलाज हो सके।
जीवन में हर किसी को कभी न कभी सर दर्द की समस्या का सामना करना पड़ता है। सर दर्द की मुख्य वजह खराब जीवन शैली और अनियमित खान-पान है।
कई देशों में सर दर्द से संबंधित हुए शोध में यह बात सामने आया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को सर दर्द की समस्या का सामना ज्यादा करना पड़ता है।
लेकिन इसके साथ ही शोध में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है - वह यह है कि अब बच्चे भी आसानी से सर दर्द की समस्या से पीड़ित पाए जाते हैं।

-माइग्रेन की समस्या से पीड़ित बच्चे के सर के एक हिस्से में दर्द का अनुभव करते हैं। इन्हें ऐसा लगता है मानो इन के सिर पर कोई हथौड़े से वार कर रहा है।
माइग्रेन से संबंधित विशेषज्ञों के अनुसार, माइग्रेन का दर्द सिर में अचानक से उठता है और फिर यह बढ़ता ही चला जाता है। माइग्रेन की अवस्था में शिशु को रोशनी अच्छा नहीं लगता है।

जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली नसों में तनाव व सूजन आने लगता है तब सिर में माइग्रेन का दर्द उठता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में माइग्रेन की समस्या ज्यादा पाई जाती है। कुछ दशकों पहले तक बच्चों में माइग्रेन की समस्या एक बहुत ही दुर्लभ बात थी।
लेकिन बीते कुछ वर्षों में बच्चों में भी माइग्रेन की समस्या एक आम बात बन गई है। बच्चों में माइग्रेन की समस्या का निदान समय पर नहीं किया गया तो इसके बहुत गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।
वैसे तो माइग्रेन की समस्या होने पर हर किसी को खास ख्याल रखने की जरूरत है। लेकिन अगर माइग्रेन की समस्या से बच्चे पीड़ित है तो और भी ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है साथ ही कुछ विशेष बातों का ख्याल भी रखने की जरूरत है।
बच्चों में माइग्रेन के दौरान ज्यादातर सामान्य दवाइयां बेअसर होती है क्योंकि सिर के जिस हिस्से में माइग्रेन का दर्द होता है वहां पर सामान्य दर्द निवारक दवाइयां काम नहीं करती है।
माइग्रेन सिर के दर्द की एक ऐसी समस्या है जो कुछ सालों पहले तक केवल व्यस्क लोगों में ही पाई जाती थी, वह भी मुख्यता महिलाओं में। लेकिन पिछले कुछ सालों में माइग्रेन की घटनाओं में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है। अब माइग्रेन की शिकायत बच्चों में भी देखने को मिलती है।
पिछले दशक में हमारी जीवन शैली, हमारे रहन सहन और हमारे वातावरण में बहुत प्रकार के परिवर्तन हुए हैं और इनका असर हमारे शरीर में अनेक रुप से हो रहा है। जिसमें से एक माइग्रेन भी है। बच्चों में माइग्रेन होने की मुख्य वजह यह है:
अगर आपका शिशु बार बार सिर के दर्द की शिकायत कर रहा है तो हो सकता है कि यह माइग्रेन के प्रारंभिक लक्षण हो। माइग्रेन की अवस्था में सिर की केवल एक हिस्से में ही दर्द होता है।
यह एक ऐसा न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है जिसमें सिर में रह रहकर एक तरफ बहुत तेज दर्द होता है। यह दर्द कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक बना रह सकता है।
माइग्रेन के दर्द में बच्चे को और भी दूसरी शारीरिक समस्याएं हो सकती है उदाहरण के लिए गैस का बनना, मितली और उल्टी।
माइग्रेन में शिशु को तेज रोशनी और तेज आवाज से भी परेशानी होती है। समय पर इनका इलाज ना मिलने पर यह ब्रेन हेमरेज या लकवे का कारण भी बन सकता है।
बच्चों का शरीर कई मायने में बड़ों की शरीर की तुलना में भिन्न होता है। बच्चों का शरीर बड़ों की शरीर की तरह पूरी तरह विकसित नहीं होता है।
जो दवाइयां बड़ों की बीमारियों को आसानी से ठीक कर देती है, जरूरी नहीं कि उन दवाइयों का प्रभाव बच्चों पर भी उतना ही अच्छा हो। या यूं कह लें की बड़ों के लिए बनाई गई दवाइयां बच्चों के लिए हानिकारक भी हो सकती है।
इसीलिए अगर आपका शिशु माइग्रेन की समस्या से पीड़ित है तो आप उसे बिना डॉक्टरी सलाह के कोई दवाइयां बाजार से खरीद कर नहीं दे।
अपने बच्चे को किसी शिशु रोग विशेषज्ञ के पास लेकर जाएं और उसके द्वारा बताई गई दवाइयों को ही नियमित रूप से हर दिन समय पर अपने बच्चे को दें। बिना डॉक्टरी सलाह के बच्चों को दवाई देना उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
मौसम में अप्रत्याशित बदलाव की वजह से भी बच्चों में माइग्रेन की समस्या देखने को मिलती है। अत्यंत गर्म मौसम में बच्चों में सर दर्द और माइग्रेन की समस्या आम बात है।
जब मौसम में अप्रत्याशित रूप से बदलाव हो - उदाहरण के लिए मौसम का ठंड से गर्म हो जाना, तो ऐसे समय में अपने बच्चों की हिफाजत करें।
गर्मियों में दिन के वक्त घर से बाहर निकलते समय अपने बच्चों को छाते की मदद से सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में आने से बचाएं।
जो बच्चे माइग्रेन की समस्या से पीड़ित रहते हैं उन्हें पर्याप्त नींद लेने की आवश्यकता है। ऐसे बच्चों की आंखों को और शरीर को जब पर्याप्त मात्रा में आराम मिलता है तो उन्हें माइग्रेन की समस्या से भी आराम मिलता है।
माइग्रेन की एक वजह अत्यधिक मात्रा में शरीर की थकावट और आंखों की थकावट भी है।अपने बच्चों में स्वस्थ दिनचर्या की गुणों को बढ़ावा दें।
बच्चों को समय पर सोने के लिए और सुबह समय पर उठने के लिए प्रेरित करें। सुबह सुबह उन्हें व्यायाम योग और मेडिटेशन के लिए भी प्रेरित करें।
आप चाहें तो हर दिन अपने बच्चों के साथ मॉर्निंग वॉक के लिए भी जा सकती है। इससे बच्चों के साथ-साथ आपको भी फायदा मिलेगा।
सुबह के वक्त वातावरण शांत रहता है और शरीर को ताजी हवा मिलती है। स्वस्थ दिमाग स्वस्थ शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है।
अब आपको यहां पर माइग्रेन से बचाव के लिए कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे। अगर आपके उपायों को आजमाएंगे तो आप अपने बच्चों को माइग्रेन के दर्द से दूर रख सकेंगे।
इन घरेलू उपायों के अलावा अंत में हम आपको कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में भी बताएंगे जिनके इस्तेमाल से माइग्रेन के दर्द को कम किया जा सकता है, उदाहरण के लिए आहार बनाते वक्त अदरक का इस्तेमाल। घरेलू उपायों के अलावा अंत में हम घरेलू नुस्खों के बारे में भी चर्चा करेंगे।
कोरोना महामारी के इस दौर से गुजरने के बाद अब तक करीब दर्जन भर मास्क आपके कमरे के दरवाजे पर टांगने होंगे। कह दीजिए कि यह बात सही नहीं है। और एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कम से कम एक बार आपके मन में यह सवाल तो जरूर आया होगा कि क्या कपड़े के बने यह मास्क आपको कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमनी क्रोम से बचा सकता है?
जब शिशु हानिकारक जीवाणुओं या विषाणु से संक्रमित आहार ग्रहण करते हैं तो संक्रमण शिशु के पेट में पहुंचकर तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और शिशु को बीमार कर देते हैं। ठीक समय पर इलाज ना मिल पाने की वजह से हर साल भारतवर्ष में हजारों बच्चे फूड प्वाइजनिंग की वजह से मौत के शिकार होते हैं। अगर समय पर फूड प्वाइजनिंग की पहचान हो जाए और शिशु का समय पर सही उपचार मिले तो शिशु 1 से 2 दिन में ही ठीक हो जाता है।
आसन घरेलु तरीके से पता कीजिये की गर्भ में लड़का है या लड़की (garbh me ladka ya ladki)। इस लेख में आप पढेंगी गर्भ में लड़का होने के लक्षण इन हिंदी (garbh me ladka hone ke lakshan/nishani in hindi)। सम्पूर्ण जनकरी आप को मिलेगी Pregnancy tips in hindi for baby boy से सम्बंधित। लड़का होने की दवा (ladka hone ki dawa) की भी जानकारी लेख के आंत में दी जाएगी।
जिस शिशु का BMI 85 से 94 परसेंटाइल (percentile) के बीच होता है, उसका वजन अधिक माना जाता है। या तो शिशु में body fat ज्यादा है या lean body mass ज्यादा है। स्वस्थ के दृष्टि से शिशु का BMI अगर 5 से 85 परसेंटाइल (percentile) के बीच हो तो ठीक माना जाता है। शिशु का BMI अगर 5 परसेंटाइल (percentile) या कम हो तो इसका मतलब शिशु का वजन कम है।
सर्दी और जुकाम की वजह से अगर आप के शिशु को बुखार हो गया है तो थोड़ी सावधानी बारत कर आप अपने शिशु को स्वस्थ के बेहतर वातावरण तयार कर सकते हैं। शिशु को अगर बुखार है तो इसका मतलब शिशु को जीवाणुओं और विषाणुओं का संक्रमण लगा है।
आप का बच्चा शायद दूध पिने के बाद या स्तनपान के बाद हिचकी लेता है या कभी कभार हिचकी से साथ थोड़ सा आहार भी बहार निकल देता है। यह एसिड रिफ्लक्स की वजह से होता है। और कोई विशेष चिंता की बात नहीं है। कुछ लोग कहते हैं की हिचकी तब आती है जब कोई बच्चे को याद कर रहा होता है। कुछ कहते हैं की इसका मतलब बच्चे को गैस या colic हो गया है। वहीँ कुछ लोग यह कहते है की बच्चे का आंत बढ़ रहा है। जितनी मुँह उतनी बात।
इस यौजना का मुख्या उद्देश्य है की इधर-उधर फेंके गए बच्चों की मृत्यु को रोकना| समाज में हर बच्चे को जीने का अधिकार है| ऐसे में शिशु पालना केंद्र इधर-उधर फेंके गए बच्चों को सुरख्षा प्रदान करेगा|
बचपन में शिशु का शारीर बहुत तीव्र गति से विकसित होता है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में कैल्शियम एहम भूमिका निभाता है। बच्चों के active growth years में अगर उन्हें उनके आहार से कैल्शियम न मिले तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है।
जब बच्चे इस तरह के खेल खेलते हैं तो उनके हड्डीयौं पे दबाव पड़ता है - जिसकी वजह से चौड़ी और घनिष्ट हो जाती हैं। इसका नतीजा यह होता है की इन बच्चों की हड्डियाँ दुसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा मजूब हो जाती है।
शिशु के जन्म के पहले वर्ष में पारिवारिक परिवेश बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चे के पहले साल में ही घर के माहौल से इस बात का निर्धारण हो जाता है की बच्चा किस तरह भावनात्मक रूप से विकसित होगा। शिशु के सकारात्मक मानसिक विकास में पारिवारिक माहौल का महत्वपूर्ण योगदान है।
पालन और याम से बना ये शिशु आहार बच्चे को पालन और याम दोनों के स्वाद का परिचय देगा। दोनों ही आहार पौष्टिक तत्वों से भरपूर हैं और बढ़ते बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। रागी का खिचड़ी - शिशु आहार - बेबी फ़ूड baby food बनाने की विधि| पढ़िए आसान step-by-step निर्देश पालक और याम से बने शिशु आहार को बनाने की विधि (baby food) - शिशु आहार| For Babies Between 7 to 12 Months
Beta carotene से भरपूर गाजर छोटे शिशु के लिए बहुत पौष्टिक है। बच्चे में ठोस आहार शुरू करते वक्त, गाजर का प्यूरी भी एक व्यंजन है जिसे आप इस्तेमाल कर सकते हैं। पढ़िए आसान step-by-step निर्देश जिनके मदद से आप घर पे बना सकते हैं बच्चों के लिए गाजर की प्यूरी - शिशु आहार। For Babies Between 4-6 Months
छोटे बच्चों को कैलोरी से ज्यादा पोषण (nutrients) की अवश्यकता होती है| क्योँकि उनका शरीर बहुत तीव्र गति से विकसित हो रहा होता है और विकास के लिए बहुत प्रकार के पोषण (nutrients) की आवश्यकता होती है|
आठ महीने की उम्र तक कुछ बच्चे दिन में दो बार तो कुछ बच्चे दिन में तीन बार आहार ग्रहण करने लगते हैं। अगर आप का बच्चा दिन में तीन बार आहार ग्रहण नहीं करना चाहता तो जबरदस्ती ना करें। जब तक की बच्चा एक साल का नहीं हो जाता उसका मुख्या आहार माँ का दूध यानि स्तनपान ही होना चाहिए। संतुलित आहार चार्ट
आज के दौर के बच्चे बहुत egocentric हो गए हैं। आज आप बच्चों को डांट के कुछ भी नहीं करा सकते हैं। उन्हें आपको प्यार से ही समझाना पड़ेगा। माता-पिता को एक अच्छे गुरु की तरह अपने सभी कर्तव्योँ का निर्वाह करना चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी उन्ही कर्तव्योँ में से एक है।
अगर आप यह चाहते है की आप का बच्चा भी बड़ा होकर एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बने तो इसके लिए आपको अपने बच्चे के खान - पान और रहन - सहन का ध्यान रखना होगा।
कुछ बातों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चे के बुद्धिस्तर को बढ़ा सकते हैं और बच्चे में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं। जैसे ही उसके अंदर आत्मविश्वास आएगा उसकी खुद की पढ़ने की भावना बलवती होगी और आपका बच्चा पढ़ाई में मन लगाने लगेगा ,वह कमज़ोर से तेज़ दिमागवाला बन जाएगा। परीक्षा में अच्छे अंक लाएगा और एक साधारण विद्यार्थी से खास विद्यार्थी बन जाएगा।
हर प्रकार के मिनरल्स और विटामिन्स से भरपूर, बच्चों के लिए ड्राई फ्रूट्स बहुत पौष्टिक हैं| ये विविध प्रकार के नुट्रिशन बच्चों को प्रदान करते हैं| साथ ही साथ यह स्वादिष्ट इतने हैं की बच्चे आप से इसे इसे मांग मांग कर खयेंगे|
टीकाकरण बच्चो को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।अपने बच्चे को टीकाकरण चार्ट के अनुसार टीके लगवाना काफी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के जरिये आपके बच्चे के शरीर का सामना इन्फेक्शन (संक्रमण) से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
वायरल संक्रमण हर उम्र के लोगों में एक आम बात है। मगर बच्चों में यह जायद देखने को मिलता है। हालाँकि बच्चों में पाए जाने वाले अधिकतर संक्रामक बीमारियां चिंताजनक नहीं हैं मगर कुछ गंभीर संक्रामक बीमारियां भी हैं जो चिंता का विषय है।