Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺12 min read
विटामिन डी की कमी से शिशु के शरीर में हड्डियों से संबंधित अनेक प्रकार की विकार पैदा होने लगते हैं। विटामिन डी की कमी को उचित आहार के द्वारा पूरा किया जा सकता। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आप अपने शिशु को कौन कौन से आहार खिलाए जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन डी पाया जाता है। ये आहार आपके शिशु को शरीर से स्वस्थ बनाएंगे और उसकी शारीरिक विकास को गति प्रदान करेंगे।

बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए और उनकी हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए विटामिन डी बहुत महत्वपूर्ण है। शिशु के लिए विटामिन डी इतना महत्वपूर्ण है कि अगर इसकी कमी हो जाए शरीर में तो यह जानलेवा भी हो सकता है।
शिशु के लिए जन्म से पहले कुछ साल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान शिशु का शारीर बहुत तेजी से विकास करता है। इस दौरान शिशु की हड्डियां, रीड की हड्डी और शरीर के अन्य तंत्रों कभी विकास होता है जिसके लिए विटामिन डी बहुत आवश्यक है।
इस दौरान अगर विटामिन डी की कमी हो जाए तो शिशु के शरीर में हड्डियों का निर्माण अच्छी तरह नहीं होता है और अन्य बच्चों की मुकाबले उनकी हड्डियां उतनी मजबूत नहीं होती है। कुछ बच्चों में विटामिन डी की कमी की वजह से रिकेट्स नामक बीमारी होती है।
यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की मांसपेशियों में ऐंठन होना शुरू होता है जिसकी वजह से पैरों का आकार धनुष जैसा हो जाता है। शिशु के शरीर में विटामिन डी की कमी को बहारों के द्वारा पूरा किया जा सकता है।

रिकेट्स बच्चों में हड्डियों से संबंधित एक प्रकार का विकार है जिससे शरीर की हड्डियां बहुत नाजुक हो जाती है। और नाजुक होने की वजह से ये शरीर के भार को सहन नहीं कर पाती है और इसमें व्कृति आना प्रारंभ हो जाता है।
रिकेट्स वजह से फ्रैक्चर का खतरा भी बढ़ जाता है।विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में यह बीमारी बहुत दुर्लभ है। लेकिन कई विकासशील देशों में यह एक सामान्य बीमारी मानी जाती है जिसकी मुख्य वजह है विटामिन डी की कमी।
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जैसा कि हमने पहले बताया कि रिकेट्स की मुख्य वजह है शरीर में विटामिन डी की कमी। यह तब होता है जब शिशु को पर्याप्त मात्रा में उसके आहार से विटामिन डी नहीं मिल पाता है।
शिशु के प्रथम की कुछ वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन वर्षों में यह आवश्यक है कि आप अपने शिशु को हर प्रकार के आहार प्रदान करें जिससे शिशु के शरीर को हर प्रकार का पोषण मिल सके। अगर आप किसी को एक ही प्रकार का आहार खिलाएंगे तो शिशु को केवल एक ही प्रकार का पोषण मिलेगा।

लेकिन शिशु के विकास के लिए विशेषकर प्रथम के कुछ वर्षों में हर प्रकार के पोषण की आवश्यकता होती है। इसीलिए अपने शिशु को मौसम के अनुसार फल और सब्जियां खिलाएं जिससे उसे हर वह पोषक तत्व मिल सके जिसकी उसके शरीर को आवश्यक।
शिशु को जब उसके आहार के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी और कैल्शियम नहीं मिल पाता है तब उसे रिकेट्स बीमारी का सामना करना पड़ता है। अभी कुछ ही दिनों पहले कोई शोध में यह भी सामने आया है कि जिन बच्चों में विटामिन डी की कमी होती है उनमें अस्थमा का खतरा भी बहुत बढ़ जाता है।
अगर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में विटामिन डी की कमी हो तो होने वाले शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी बहुत ज्यादा असर पड़ता है। इसीलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि विटामिन डी गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए बहुत आवश्यक है।
अगर आपका शिशु पूरी तरह से स्तनपान पर निर्भर है तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आप अपने आहार में ऐसे फल सब्जियों को सम्मिलित करें जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन डी पाया जाता है ताकि स्तनपान के जरिए आपके शिशु को विटामिन डी मिल सके।

विटामिन डी शरीर में पाए जाने वाला पोषक तत्व है जो शरीर को स्वस्थ रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका निर्माण शरीर में सेवन हाइड्रक्सी कोलेस्ट्रॉल और अल्ट्रावायलेट किरणों की मदद से होता है।
ठंड के दिनों में अपने शिशु को कुछ समय के लिए सूरज की किरणों में निकालें ताकि उसकी शरीर में अल्ट्रावॉयलेट किरणों की मदद से विटामिन डी का निर्माण हो सके। विटामिन डी मां के दूध में भी पाया जाता है इसीलिए स्तनपान के जरिए भी शिशु को विटामिन डी मिलता है।
अगर आप का शिशु आपके दूध पर निर्भर है तो अपने शरीर में विटामिन डी की कमी होने ना दीजिए। हमारे शरीर में कोलिकल कैसिरॉल नामक एक रसायन पाया जाता है, यह भी विटामिन डी की निर्माण में मदद करता है।

हमारे शरीर में विटामिन डी का मुख्य काम है कैल्शियम का निर्माण करना। जो कैल्शियम युक्त आहार हम ग्रहण करते हैं, उसमें से कैल्शियम को अवशोषित करने के लिए विटामिन डी मुख्य भूमिका निभाता है। विटामिन डी हमारी आंखों से कैल्शियम को अवशोषित कर के हड्डियों तक पहुंचाता है।
इतना ही नहीं, बल्किंग विटामिन डी हड्डियों में कैल्शियम को संचित करके रखने में भी मदद करता है। अगर शारीर में कैल्शियम की कमी होने लगे तो मांसपेशियों में दर्द भी होना शुरू होता है।

जैसा कि मैंने आपको पहले बताया कि शिशु के जन्म के प्रथम कुछ वर्षों में उसका शरीर बहुत तेजी से विकसित होता है। जब शरीर विकसित होता है तो शरीर के बहुत सारे अंगों को विकसित होने के लिए प्रचुर मात्रा में कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है - उदाहरण के लिए बच्चे की दातों को, उसकी हड्डियों को इत्यादि। विटामिन डी बच्चों को निम्न तरीकों से स्वस्थ रखता है




जो महिलाएं मोटापे से या ओबीसी थी से ग्रसित हैं उनकी शरीर में विटामिन डी का स्तर बहुत कम होता है।विटामिन डी की कमी से महिलाओं में निम्न प्रकार की शारीरिक समस्याओं होने की संभावना रहती है।
यह लेख बच्चों के स्वस्थ से सम्बंधित है लकिन यहाँ पे हमने महिलाओं के स्वस्थ से सम्बंधित जानकारी इस लिए दे रहर हूँ क्यूंकि विटामिन जितना जरुरी बच्चों के लिए है उतना ही जरुरी महिलाओं के लिए भी है।
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विटामिन डी (Vitamin D) एक ऐसा विटामिन है जिसके लिए डॉक्टर की परामर्श की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसे कोई भी आसानी से बिना मेडिकल प्रिसक्रिप्शन के दवा की दुकान से खरीद सकता है। विटामिन डी शरीर के कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से कार्य करने में कई तरह से मदद करता है। उदाहरण के लिए यह शरीर को कैल्शियम को अवशोषित करने में सहायता करता है। मजबूत और सेहतमंद हड्डियों के निर्माण में सहायता करता है। तथा यह विटामिन शरीर को कई प्रकार के संक्रमण से भी सुरक्षा प्रदान करता है। लेकिन अगर आप गर्भवती हैं या फिर गर्भ धारण करने का प्रयास कर रही है तो विटामिन डी (Vitamin D) के इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य परामर्श कर ले।
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सभी बचों का विकास दर एक सामान नहीं होता है। यही वजह है की जहाँ कुछ बच्चे ढाई साल का होते होते बहुत बोलना शुरू कर देते हैं, वहीँ कुछ बच्चे बोलने मैं बहुत समय लेते हैं। इसका मतलब ये नहीं है की जो बच्चे बोलने में ज्यादा समय लेते हैं वो दिमागी रूप से कमजोर हैं, बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है की उन्हें शारीरिक रूप से तयार होने में थोड़े और समय की जरूरत है और फिर आप का भी बच्चा दुसरे बच्चों की तरह हर प्रकार की छमता में सामान्य हो जायेगा।आप शिशु के बोलने की प्रक्रिया को आसन घरेलु उपचार के दुवारा तेज़ कर सकती हैं।
सभी बच्चे नटखट होते हैं। लेकिन बच्चों पे चलाना ही एक मात्र समस्या का हल नहीं है। सच तो ये है की आप के चिल्लाने के बाद बच्चे ना तो आप की बात सुनना चाहेंगे और ना ही समझना चाहेंगे। बच्चों को समझाने के प्रभावी तरीके अपनाएं। इस लेख में हम आप को बताएँगे की बच्चों पे चिल्लाने के क्या - क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
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नौ महीने पुरे कर समय पे जन्म लेने वाले नवजात शिशु का आदर्श वजन 2.7 kg - से लेकर - 4.1 kg तक होना चाहिए। तथा शिशु का औसतन शिशु का वजन 3.5 kg होता है। यह इस बात पे निर्भर करता है की शिशु के माँ-बाप की लम्बाई और कद-काठी क्या है।
शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र विटामिन डी का इस्तेमाल सूक्ष्मजीवीरोधी शक्ति (antibody) बनाने के लिए करता है। ये एंटीबाडी शिशु को संक्रमण से बचते हैं। जब शिशु के शरीर पे विषाणु और जीवाणु का आक्रमण होता है तो शिशु के शरीर में मौजूद एंटीबाडी विषाणु और जीवाणु से लड़ते हैं और उनके संक्रमण को रोकते हैं।
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एक्जिमा (eczema) एक ऐसी स्थिति है जिसमे बच्चे के शरीर की त्वचा पे चकते पड़ जाते हैं। त्वचा बहुत शुष्क हो जाती है। त्वचा पे लाली पड़ जाती है और त्वचा पे बहुत खुजली होती है। घरेलु इलाज से आप अपने शिशु के एक्जिमा (eczema) को ख़त्म कर सकती हैं।
घरेलु नुस्खे जिनकी सहायता से आप अपने बच्चे के पेट में पल रहे परजीवी (parasite) बिना किसी दवा के ही समाप्त कर सकेंगे। पेट के कीड़ों का इलाज का घरेलु उपाए (stomach worm home remedies in hindi). शिशु के पेट के कीड़े मारें प्राकृतिक तरीके से (घरेलु नुस्खे)
बच्चों के नाजुक पाचन तंत्र में लौकी का प्यूरी आसानी से पच जाता है| इसमें प्रचुर मात्रा में मिनरल्स पाए जाते हैं जैसे की कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन A, C. जो बच्चे के पोषण के लिए अच्छा है।
हर बच्चे को कम से कम शुरू के 6 महीने तक माँ का दूध पिलाना चाहिए| इसके बाद अगर आप चाहें तो धीरे-धीरे कर के अपना दूध पिलाना बंद कर सकती हैं| एक बार जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसे ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए| जब आप ऐसा करते हैं तो धीरे धीरे कर अपना दूध पिलाना बंद करें।
माँ का दूध बच्चे की भूख मिटाता है, उसके शरीर की पानी की आवश्यकता को पूरी करता है, हर प्रकार के बीमारी से बचाता है, और वो सारे पोषक तत्त्व प्रदान करता है जो बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए और अच्छे शारारिक विकास के लिए जरुरी है। माँ का दूध बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चावल का पानी (Rice Soup, or Chawal ka Pani) शिशु के लिए एक बेहतरीन आहार है। पचाने में बहुत ही हल्का, पेट के लिए आरामदायक लेकिन पोषक तत्वों के मामले में यह एक बेहतरीन विकल्प है।
सेब और चावल के पौष्टिक गुणों से भर पूर यह शिशु आहार बच्चों को बहुत पसंद आता है। सेब में वो अधिकांश पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो आप के शिशु के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसे स्वस्थ रहने में सहायक हैं।
कौन नहीं चाहता की उनका शिशु गोरा हो! अगर आप भी यही चाहते हैं तो कुछ घरेलु नुस्खे हैं जिनकी सहायता से आप के शिशु की त्वचा गोरी और निखरी बन सकती है। जानिए की आप सांवले बच्चे को कैसे बनाएं गोरा
दिमागी बुखार (मेनिन्जइटिस) की वजह से दिमाग को नुकसान और मौत हो सकती है। पहले, बहुत अधिक बच्चों में यह बीमारियां पाई जाती थी, लेकिन टीकों के इस्तेमाल से इस पर काबू पाया गया है। हर माँ बाप को अपने बच्चों को यह टिका अवश्य लगवाना चाहिए।
अंडे से एलर्जी होने पर बच्चों के त्वचा में सूजन आ जाना , पूरे शरीर में कहीं भी चकत्ता पड़ सकता है ,खाने के बाद तुरंत उलटी होना , पेट में दर्द और दस्त होना , पूरे शरीर में ऐंठन होना , पाचन की समस्या होना, बार-बार मिचली आना, साँस की तकलीफ होना , नाक बहना, लगातार खाँसी आना , गले में घरघराहट होना , बार- बार छीकना और तबियत अनमनी होना |