Category: शिशु रोग
By: Admin | ☺17 min read
शिशु की तिरछी आंखों (Squint eyes) को एक सीध में किस तरह लाया जाये और बच्चे को भैंगापन से बचने के तरीकों के बारे में जाने इस लेख में। अधिकांश मामलों में भेंगेपन को ठीक करने के लिए किसी विशेष इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है। समय के साथ यह स्वतः ही ठीक हो जाता है - लेकिन शिशु के तीन से चार महीने होने के बाद भी अगर यह ठीक ना हो तो तुरंत शिशु नेत्र विशेषज्ञ की राय लें।
कुछ नवजात शिशु और छोटे बच्चों में आपने देखा होगा कि उनकी आंखें तिरछी या भेंगी (तिर्यकदृष्टि) - (Crossed Eyes (Strabismus) होती है।
मगर ऐसा क्यों?
क्या आप यह सूच रही हैं की शिशु की तिरछी आंखों (Squint eyes) को एक सीध में कैसे लाया जाए या फिर अपने बच्चे को भैंगापन से बचने के तरीके क्या ? तो चिंता ना। इस लेख में हम आप के लिए समाधान लेकर आयें हैं।
इस लेख में आप जानेंगे कि कुछ नवजात शिशु और छोटे बच्चों की आंखें क्यों तिरछी या भेंगी (तिर्यकदृष्टि) होती है।
यह भी पढ़ें: शिशु टीकाकरण चार्ट - 2018 Updated
इनका इलाज क्या है इसके बारे में हम आपको इस लेख में बताएंगे।
जन्म के बाद कुछ समय तक शिशु अपनी आंखों को किसी एक वस्तु पर केंद्रित करने में असमर्थ होता है क्योंकि उसकी आंखें पूरी तरह विकसित नहीं होती है। लेकिन दो से तीन महीनों के अंदर उसकी आंखे इतनी विकसित हो जाती है कि वह एक ही दिशा में या एक ही वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होने हो जाती हैं।
इसीलिए आप आएंगे कि बिना किसी इलाज के भी शिशु की आंखों का तिरछी या भेंगी (तिर्यकदृष्टि) (Crossed Eyes) होना स्वतः ही ठीक हो जाता है। भेंगेपन को ठीक करने के लिए किसी को किसी विशेष इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है।
यह बभी पढ़ें: गर्भ में लड़का होने के क्या लक्षण हैं?
जन्म के कुछ समय बाद तक शिशु किसी वस्तु पर या किसी एक दिशा में या किसी गतिमान चीज पर नजर बनाए रखने में असमर्थ होता है। 4 माह का होते-होते शिशु छोटी-छोटी वस्तुओं पर अपनी दोनों आंखों को पिक आने में सक्षम होने लगता है।
छेह माह का होने पर शिशु की आंखों में इतना सामर्थ्य आ जाना चाहिए कि वह दूर की चीजों पर लगातार और पास की चीजों पर कुछ समय तक अपनी आंखों को केंद्रित कर सके।
यह भी पढ़ें: शिशु की आंखों में काजल या सुरमा हो सकता है खतरनाक
लेकिन अगर आप शिशु के चेहरे के बहुत करीब किसी वस्तु को लेकर जाएं तो उसे देखते हुए शिशु की आंखें थोड़ी समय के लिए भेंगी/तिरछी पड़ सकती है।
जन्म के शुरुआती कुछ महीनों के बाद भी अगर शिशु किसी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ होता है और उसके आंखों का तिरछी या भेंगी (तिर्यकदृष्टि) दूर नहीं होती है तो हो सकता है किसी को आंखों से संबंधित कोई समस्या है। ऐसी दशा में आपको अपने शिशु को शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए।
यह भी पढ़ें: नवजात शिशु के बैठना सिखाने के आसन तरीके
Newborn has crossed eyes - यह आंखों की एक ऐसी स्थिति है जब दोनों आंखें एक दूसरे से अलग दिशा में देखती हुई प्रतीत होती है या फिर किसी एक ही चीज पर अपनी नजरों को केंद्रित नहीं कर पा रही है। इस दशा में दोनों आंखें तिरछी लग सकती है।
यह भी पढ़ें: शिशु के उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट
देखने वालों को ऐसा लगता है कि एक आंख अंदर की तरफ और दूसरी आंख बाहर की तरफ देख रही है। कुछ बच्चों में यह थोड़े थोड़े समय पर या किसी निश्चित दिशा में देखने पर उनकी आंखे तिरछी दिखाई देती है। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखें आपको पूरे समय देखने पर भेंगी लग सकती हैं।
यह भी पढ़ें: 6 माह के बच्चे का baby food chart और Recipe
जिन बच्चों में भेंगापन की समस्या पाई जाती है (Visual dysfunctions and ocular disorders) उनमें यह स्थिति जन्म से ही होती है। कुछ विशेषज्ञ इसे वंशानुगत मानते हैं।
यह भी पढ़ें: बच्चों की त्वचा को गोरा करने का घरेलू तरीका
लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों की राय इसके विपरीत है क्योंकि कई बार ऐसे बच्चों में भी आंखों का भेंगापन देखने को मिलता है जिनके परिवार में कभी भेंगापन का इतिहास नहीं रहा।
अगर शिशु में भेंगापन की समस्या दिखे तो कुछ महीने इंतजार करिए। लेकिन शिशु के जन्म के कुछ महीने पश्चात भी शिशु की आंखों का भेंगापन स्वतः समाप्त नहीं होता है तो आप तुरंत किसी योग्य शिशु विशेषज्ञ (eye doctor) की राय लें। क्योंकि बच्चों की आंखों का भेंगापन कई बार आंखों से जुड़ी अधिक गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकता है।
शिशु की आंखों का भेंगापन उसकी आंखों के विकास से जुड़ा हुआ है। जन्म के समय शिशु के शरीर के बहुत से अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं और उनकी आंखें भी इन्हीं अंकों में से एक है। लेकिन आने वाले कुछ दिनों और महीनों में बच्चे के शरीर के जरूरी अंग तेजी से विकसित होना शुरू करते हैं।
यह भी पढ़ें: नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के तरीके
इस प्रक्रिया में शिशु की आंखें भी तेजी से विकसित होती है और उनमें इतना सामर्थ्य आने लगता है कि वह किसी एक दिशा में किसी या किसी एक वस्तु पर अपनी नजरों को केंद्रित कर सके बिना किसी परेशानी के।
शिशु जब तक 3 महीने का होता है तब तक उसकी आंखों से संबंधित अधिकांश समस्याएं समाप्त होने लगती है। लेकिन अगर उसकी आंखों का भेंगापन समाप्त होता नजर ना आए तो इसका मतलब यह है कि आपकी शिशु की आंखों को उपचार की आवश्यकता है।
यह भी पढ़ें: सिजेरियन डिलीवरी के बाद माँ को क्या खाना चाहिए
ऐसी अवस्था में जब शिशु की आंखों का भेंगापन कुछ महीने गुजर जाने के बाद भी ठीक नहीं हो रहा है तो शिशु रोग विशेषज्ञ निम्न परीक्षणों की राय देती है:
यह भी पढ़ें: 6 से 12 वर्ष के शिशु को क्या खिलाएं
किसी की आंखों में या आंखों के आसपास चोट लगने की वजह से अगर उनमें भेंगापन उत्पन्न हो। उदाहरण के लिए अगर बच्चे की दोनों आंखें आपस में तालमेल नहीं बना पा रही है यानी कि दोनों आंखें या तो अलग दिशा में देख रही है या दोनों आंखें अंदर की ओर देखती है या ऊपर नीचे देखती है तो अधिकांश मामलों में यह अपने आप ठीक हो जाएंगी।
यह भी पढ़ें: 10 सबसे बेहतरीन तेल बच्चों के मसाज के लिए
जैसे-जैसे घाव भरेगा शिशु की आंखों का भेंगापन (Cross-Eyed Baby) भी ठीक होने लगेगा। लेकिन चोट की वजह से अगर शिशु की आंखों में भेंगापन उत्पन्न हुआ है तो आप चोट के ठीक होने का इंतजार मत करिए।
आप अपने शिशु को तुरंत किसी शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाएं ताकि आंखों की संभावित गंभीर समस्या का समय रहते शिशु की आंखों को उचित उपचार प्रदान किया जा सके।
भेंगापन का इलाज बचपन में जितनी सरलता से हो सकता है इतनी सरलता से व्यस्क होने पर संभव नहीं है। तथा इसका इलाज और सफल तरीके से संभव है जब इलाज चोट लगने के तुरंत बाद प्रदान किया जाए।
यह भी पढ़ें: टीके के बाद बुखार क्यों आता है बच्चों को?
सामान्य तौर पर हमारी आंखें किसी भी चीजों को तब दिखती हैं जब देखने की प्रक्रिया के दौरान वस्तु से आने वाला प्रकाश आंखों के लेंस से छनकर आँख के पर्दे (रेटिना) पर उस वस्तु की छवि बनाती है।हमारी आंखें स्पष्ट रूप से किसी वस्तु को देख पाए इसके लिए यह जरूरी है की आंखों तक पहुंचने वाली रवि प्रकाश आँख के पर्दे (रेटिना) एक ही बिंदु पर पड़े।
यह भी पढ़ें: घर का बना सेरेलक बच्चों के लिए
लेकिन जब आंखों का लेंस पूरी तरह विकसित नहीं होता है या फिर आंखें पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती है या फिर आंखों से संबंधित कोई और समस्या होती है तो आँख के पर्दे (रेटिना) पर पड़ने वाली प्रकाश एक ही बिंदु पर केंद्रित होने की बजाय बिखर जाती है।
जिस वजह से वस्तु ठीक तरह से दिखाई नहीं देती है। वस्तु को ठीक तरह से देखने की कोशिश में आंखों की मांसपेशियां आंखों के लेंस पर अनावश्यक दबाव बनाती है जिसकी वजह से आंखें अलग दिशा में देखती हुई प्रतीत होती है।
जब आंखों के पर्दे (रेटिना) पर पड़ने वाली प्रकाश एक ही बिंदु पर केंद्रित तो हमें वस्तु स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। और हमें वस्तु की गहराई व दूरी का उचित एहसास होता है।
भेंगापन (Low Vision for Kids) का इलाज नहीं होने पर शिशु को किसी वस्तु को ठीक तरह से देखने के लिए बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा तथा उसे ठीक तरह से वस्तु की दूरी और गहराई का अंदाजा भी नहीं मिलेगा।
यह भी पढ़ें: शिशु के दांतों में संक्रमण के 7 लक्षण
विशेषज्ञ शिशु के आंखों के भेंगापन का इलाज करते वक्त दो मुख्य बिंदुओं पर जोर देते हैं
क्योंकि दोनों आंखों में परस्पर तालमेल स्थापित होना बहुत ज्यादा जरूरी है क्योंकि इसी वजह से शिशु को दूरी और गहराई का एहसास होगा।
यह भी पढ़ें: बच्चों को ड्राइफ्रूट्स खिलाने के फायदे
शिशु रोग विशेषज्ञ बच्चों की तिरछी आंखों का इलाज करने के लिए चश्में, पट्टी, आँख की ड्रॉप्स, शल्य चकित्सा और आँखों के व्यायाम का इस्तेमाल करते हैं।
आपके शिशु का डॉक्टर इन में से किस विधि का इस्तेमाल करता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके शिशु की आंखों का भेंगापन किस प्रकार का है और किस कारण से।
यह भी पढ़ें: नवजात बच्चे के चेहरे से बाल कैसे हटाएँ
कई बार शिशु की दूर-दृष्टि, निकट-दृष्टि या वक्र-दृष्टि (एस्टग्मेटिज्म) का इलाज चश्मे की मदद से भी कर दिया जाता है। इस प्रकार का इलाज 1 साल से बड़े बच्चों में किया जाता है जहां आंखों की समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हो।
बच्चों के तिरछी आंखों के कुछ मामलों में डॉक्टर पट्टी की सहायता से भी आंखों के भेंगापन को ठीक करने की कोशिश करते हैं।
इस प्रक्रिया में आंखों के विशेषज्ञ शिशु की स्वस्थ आंखों पर कुछ अवधि के लिए एक पट्टी लगा देते हैं। यह अवधि 1 सप्ताह से लेकर 1 साल लंबी तक हो सकती है।
यह भी पढ़ें: प्रेग्नेंसी में उल्टी और मतली अच्छा संकेत है - जानिए क्योँ?
पट्टी के द्वारा तिरछी आंखों का इलाज छोटी उम्र में ज्यादा कारगर होता है। आंखों पर तब तक डॉक्टर पट्टी लगाकर रखते हैं जब तक तिरछी आंख पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाए यानी की पूरी तरह तू भी ना हो जाए।
अगर शिशु 6 माह का है तो मात्र एक से 2 सप्ताह के अंदर ही उसकी तिरछी आंखों की समस्या ठीक हो जाती है। बड़े बच्चों में पट्टी द्वारा तिरछी आंखों को ठीक करने में ज्यादा समय लगता है। 7 साल तक के बड़े बच्चों में लगभग 1 साल तक पट्टी लगाई रखनी पड़ती है।
इसीलिए जब शिशु छोटा होता है उसी समय अगर उसकी आंखों की समस्या की पहचान हो सके और समय पर इलाज शुरू किया जा सके तो उसके आंखों को स्वस्थ होने में ज्यादा समय नहीं लगता है।
लेकिन जितना देरी से किसी की आंखो का इलाज किया जाएगा उतना ज्यादा उपचार में समय लगेगा। जब शिशु की स्वस्थ आंखों पर पट्टी बांधी जाती है तो देखने के लिए शिशु को दूसरी आंखों पर जोर देना पड़ता है।
इससे तिरछी आंख सक्रिय होने लगती है। कई बार दिल की आंखों से पीड़ित बच्चों की दोनों आंखें एक ही वस्तु की दो अलग-अलग छपिया बनाती है।
इस स्थिति से निपटने के लिए भी नेत्र विशेषज्ञ पट्टी का इस्तेमाल करते हैं। ऐसी स्थिति में कई बार चश्मे की भी जरूरत पड़ती है जिसमें पट्टी के ऊपर ही चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है।
आंखों के भेंगापन का इलाज आई ड्रॉप्स के द्वारा भी किया जाता है। भीगी पलकों दूर करने के लिए इस्तेमाल होने वाला आई ड्रॉप एक विशेष प्रकार का मल्हम होता है।
यह आई ड्राप आंखों की दृष्टि को अस्थाई रूप से धुंधला बना देती है। इसका इस्तेमाल स्वस्थ आंखों पर होता है।
जब स्वस्थ आंखें धुंधलेपन की वजह से ठीक तरह से नहीं देख पाती हैं तो कमजोर आंख को सक्रिय होने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
ऊपर बताए के उपचार की सहायता से अधिकांश मामलों में शिशु के तिरछी आंखों की समस्या का उपचार हो जाता है। लेकिन फिर भी अगर आंखों का भेंगापन ख़त्म ना हो तो फिर नेत्र विशेषज्ञ शल्य चिकित्सा का भी सहारा लेते हैं।
शल्य चिकित्सा में नेत्र विशेषज्ञ शिशु की आंखों की मांसपेशियों को ठीक करने की कोशिश करते हैं। आम तौर पर यह ऑपरेशन बहुत मामूली सा ही होता है।
ऑपरेशन के जरिए नेत्र विशेषज्ञ आंखों की मांसपेशियों को इस तरह पुनः व्यवस्थित करने की कोशिश करते हैं ताकि आंखे ठीक जगह पर स्थित हो जाएं।
ऑपरेशन के जरिए बड़े उम्र के लोगों के भी आंखों के तिरछापन या भेंगापन की समस्या को दूर किया जा सकता है।
आंखों के व्यायाम द्वारा दी आंखों के भेंगापन को दूर करने की कोशिश की जाती है। आंखों से संबंधित यह व्यायाम नेत्र विशेषज्ञ की सलाह से आंखों के ऑपरेशन से पहले या बाद में किया जा सकता है। लेकिन मात्र आंखों के व्यायाम के द्वारा आंखों के भेंगापन को दूर नहीं किया जा सकता है।
यह एक विचित्र स्थिति होती है जिसमें दिमाग एक आंख से पहुंचने वाली दृष्टि का इस्तेमाल करना बंद कर देती है। यह अवस्था तब आती है जब शिशु की दोनों आंखें एक दिशा में नहीं होने की वजह से दो प्रतिबिंब बनाती है और दिमाग को वस्तुओं को ठीक से देखने में परेशानी होती है।
ताकि दिमाग वस्तुओं को ठीक से देख सके, यह एक आंख में दृष्टि को बंद कर देता है। कई बार शिशु की पास की या दूर की नजर कमजोर होने के कारण भी यह स्थिति पैदा होती है।
अगर आपका शिशु 3 से 4 महीने का हो गया है लेकिन फिर भी उसकी आंखों का भेंगापन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है तो आपको किसी शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह लेने की आवश्यकता है।
आपके बच्चों का डॉक्टर आपके बच्चे की आंखों की जांच के लिए आपको आंखों के डॉक्टर (आप्थमॉलजिस्ट) के पास जाने की सलाह दे सकता है। आंखों के डॉक्टर उचित जांच के द्वारा सही उपचार की सलाह दे सकते हैं।
Important Note: यहाँ दी गयी जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है । यहाँ सभी सामग्री केवल पाठकों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दी गई है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि यहाँ दिए गए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। आपका चिकित्सक आपकी सेहत के बारे में बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्प नहीं है। अगर यहाँ दिए गए किसी उपाय के इस्तेमाल से आपको कोई स्वास्थ्य हानि या किसी भी प्रकार का नुकसान होता है तो kidhealthcenter.com की कोई भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है।