Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺4 min read
शिशु को 14 सप्ताह की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी, रोटावायरस, डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
यह बहुत दुखद बात है की
हालाँकि चिकित्सा विज्ञानं ने बहुत तैराकी की है - पर फिर भी आज लोग बहुत सी गंभीर बीमारियोँ से पीड़ित हैं। ये बीमारियोँ अधिकांश ऐसी हैं जिन्हे टीकाकरण (vaccination) के दुवारा रोका जा सकता था -
पर दुर्भाग्य -
की उनके माता और पिता ने आने बच्चे को सरे टिके नहीं लगवाए।
अब आप का शिशु 14 सप्ताह का हो गया है।
तो यह समय ही की आप अपने डॉक्टर से परामर्श लें और अपने बच्चे को 14 सप्ताह की उम्र में लगाये जाने वाले टीके लगवाएं।
भारत में शिशु मृत्यु दर कई देशों की तुलना मैं बहुत अधिक है।
आप अपनी तरफ से अपने बच्चे के लिए पूरी सावधानी बरतें ताकि आप का शिशु कई प्रकार के गंभीर बीमारियोँ से सुरक्षित रहे।
निचे हम आप को बताने जा रहें हैं उन सरे टिके के बारे में जिसे आप को अपने शिशु को 14 सप्ताह पूरा करने पे लगवाना है।
यह समय ही की आप के शिशु को D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) का तीसरी खुराक दिया जाये। D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) भारत सरकार द्वारा जारी अनिवार्य टीकों की सूचि में समलित है। यह टिका 6 महीने से कम उम्र के शिशु को दिया जाता है। हर साल करीब एक साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चे विकासशील देशों में डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) के संक्रमण के कारण मृत्यु के शिकार होते हैं। ये मुख्यता वो बच्चे हैं जिन्हे D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) या तो नहीं लगाया गया या फिर समय पे नहीं लगाया गया।
14 सप्ताह की उम्र शिशु को पोलियो के ठीके का तीसरी खुराक (IPV3) भी लगना है। पोलियो का संक्रमण फैलता है एक प्रकार के विषाणु (virus) के द्वारा। पोलियो का संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति के संपर्क में आने से में फैलता है। इसका संक्रमण पोलियो के विषाणु (virus) से संक्रमित आहार और दूषित जल का सेवन करने से भी होता है। पोलियो का संक्रमण शिशु को अपाहिज बना सकता है। इसी लिए अपने शिशु को पोलियो के टिके का - तीसरी खुराक (IPV3) देकर उसे पोलियो के प्रति सुरक्षित बनाइये।
शिशु को पोलियो के IPV - 3 खुराख के साथ-ही-साथ उसे पोलियो ड्रॉप्स देने की भी आवश्यकता है। इस उम्र में शिशु को मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन का दूसरा खुराक देने का समय है। मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) टीका शिशु के शारीर में एंटीबाडीज (antibodies) का निर्माण करता है। OPV टीका के द्वारा शिशु के शारीर में पैदा हुए एंटीबाडीज (antibodies), शिशु को पोलियो के वायरस से बचाते हैं। पोलियो का वायरस शिशु के nervous system पे आक्रमण करता है और शारीर को लकवा ग्रस्त कर देता है। लेकिन जिन बच्चों को मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) दिया जाता है - उन बच्चों में पोलियो के वायरस से लड़ने के लिए एंटीबाडीज (antibodies) पैदा हो जाता है और शिशु पोलियो के वायरस से सुरक्षित हो जाता है।
हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) वैक्सीन - शिशु को बहुत ही खतरनाक विषाणु (bacteria) के संक्रमण से बचाता है। इस खतरनाक विषाणु (bacteria) का नाम है - Haemophilus influenzae type b - और इस के संक्रमण से दमागी बुखार, मस्तिष्क को छती, फेफड़ों का इन्फेक्शन (lung infection) , मेरुदण्ड का रोग और गले का गंभीर संक्रमण भी शामिल है।
न्यूमोकोकल (pneumococcal) का संक्रमण एक contagious बीमारी - जिसका मतलब होता है की इस बीमारी को फ़ैलाने के लिए किसी मछर या मक्खी की जरुरत नहीं पड़ती है - बल्कि इसका संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को हवा के द्वारा ही फ़ैल जाता है। न्यूमोकोकल (pneumococcal) काफी गंभीर संक्रमण है और इसके संक्रमण से व्यक्ति को निमोनिया (Pneumonia), रक्त संक्रमण या दिमागी बुखार तक होने का खतरा रहता है।
शिशु को गंभीर दस्त लगने का सबसे आम कारण है रोटावायरस का संक्रमण। छह महीने के बच्चे से लेकर दो साल तक के बच्चे को रोटावायरस के संक्रमण का खतरा बना रहता है। रोटावायरस वैक्सीन (RV) (Rotavirus Vaccine) के आभाव में शिशु को रोटावायरस के संक्रमण से बचा पाना लगभग असंभव है। इससे पहले की शिशु पांच साल (5 years) का हो, हर शिशु को कम से कम एक बार तो रोटावायरस के संक्रमण के कारण दस्त होता ही है।
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