Category: बच्चों का पोषण
By: Admin | ☺15 min read
छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।

बच्चों को भूख न लगना यह उनमें भूख की कमी का होना, एक आम समस्या है जिससे अधिकांश मां बाप परेशान रहते हैं।
अधिकांश मामलों में नवजात शिशु से लेकर 4 साल तक के बच्चों में भूख की समस्या ज्यादा पाई जाती है। बच्चों में भूख की कमी बहुत कारणों से हो सकती है।
सबसे मुख्य कारण है सर्दी खांसी और बुखार। अगर गौर किया जाए तो बच्चे सर्दी खांसी और बुखार से सबसे ज्यादा 3 साल तक की उम्र तक परेशान रहते हैं।
फिर जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं वे बीमार भी कम पड़ते हैं और उनका शरीर बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है।
हल्की बीमारियों से बच्चों का शरीर ठीक तो हो जाता है लेकिन उनके पाचन तंत्र को फिर से दुरुस्त होने में थोड़ा समय लगता है। इस दौरान बच्चों को आहार में स्वाद का पता नहीं चलता है और उन्हें भूख भी कम लगता है।

भूख ना लगने की वजह इन बीमारियों के अलावा और भी कारण है। बच्चों की भूख को किस तरह से बढ़ाया जाए, इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने से पहले यह जानना जरूरी है कि कौन कौन से कारण है जिनकी वजह से बच्चों में भूख की कमी आती है।
अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए तो बच्चों में भूख बढ़ाने के लिए किसी विशेष उपचार को अपनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी - और बच्चों में प्राकृतिक रूप से भूख बढ़ेगा।
हम यहां नीचे बच्चों में भूख ना लगने के कुछ मुख्य कारणों के बारे में चर्चा कर रहे हैं। इनके अलावा भी बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से बच्चों में भूख की कमी होती है।

यह संभव नहीं है कि हम उन सभी विषयों के बारे में इस छोटी सी लेख में चर्चा कर पाए। लेकिन अगर आप इन मुख्य बातों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चे को भूख ना लगने की समस्या से बहुत हद तक बचा सकती हैं।
चलिए देखते हैं बच्चों में भूख ना लगने की कौन-कौन सी वजह है।
भूख पर हुए वैज्ञानिक अध्ययन में यह पाया गया है कि अधिकांश व्यक्ति जिन्हें भूख नहीं लगता है या फिर भूख कम लगता है उनके शरीर में जिंक की कमी भी पाई गई है।
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जिंक (zinc) शरीर में एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम करता है। यह हाइड्रोक्लोरिक एसिड (Hydrocholoric Acid) का निर्माण करता है।
शरीर इस एसिड का इस्तेमाल करता है आहार को ठीक तरह से पचाने के लिए। जब शरीर में जिंक (zinc) का स्तर घटता है, तो शरीर उचित मात्रा में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का निर्माण नहीं कर पाता है - और इस वजह से भूख में कमी आती है।
शिशु को ऐसे आहार प्रदान करने से जो जिंक (zinc) के अच्छे स्रोत हैं, शिशु की भूख को बढ़ाया जा सकता है। वह आहार जो जिंक (zinc) अच्छे स्रोत हैं, वह यह है - गेहूं का चोकर, काजू, कद्दू का बीज और चिकन।
नवजात शिशु 2 साल तक की उम्र तक बहुत तेजी से बढ़ता है। शिशु के जन्म के प्रथम तीन चार महीने ऐसे होते हैं जब शिशु चमत्कारिक रूप से बढ़ाता है।

लेकिन जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसके बढ़ने की दर कम होती जाती है। यानी कि शुरुआती कुछ सालों में जिस प्रकार से शिशु का भूख बढ़ रहा था, जरूरी नहीं कि हमेशा के लिए शिशु की भूख उसी दर से बढ़े।
जब शिशु दो-तीन साल का हो जाता है या इससे बड़ा होता है, तब आप तीन चार महीने ऐसे पाएंगे जब आपको उसके वजन में कोई बढ़ोतरी ना दिखे। यह सामान्य है और आपको इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है।
शिशु के जन्म के प्रथम वर्ष के दौरान अगर उसके भूख में कमी आती है तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है।

लेकिन इतने छोटे बच्चों का घरेलू उपचार करना समझदारी की बात नहीं है। आपको तुरंत डॉक्टर की राय लेने की आवश्यकता है।
अगर शिशु का तुरंत उचित उपचार नहीं किया गया तो उसे कुपोषण हो सकता है। इससे शरीर का विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है और शरीर पर कुछ ऐसे विपरीत प्रभाव भी पड़ते हैं जो फिर जिंदगी भर ठीक नहीं होते हैं।
अगर आपका शिशु 1 साल से छोटा है और हर महीने उचित रूप से उसका वजन नहीं बढ़ रहा है तो भी उपचार के लिए जरूरी कदम उठाने की जरूरत है।
हो सकता है आपका शिशु बीमारी से पीड़ित है या फिर उसे किसी प्रकार का संक्रमण लगा है जिसके लिए इलाज की आवश्यकता है।
दो आहारों के बीच कम से कम 3 से 4 घंटे का समय अंतराल होना चाहिए। 3 घंटे से पहले अगर आप अपने शिशु को दूसरा आहार देने की कोशिश करेंगे तो वह बे मन से खाएगा।

क्योंकि उसका पेट पहले आहार से भरा हुआ है और अभी उसे भूख नहीं लगी है। अगर आप शिशु को जबरदस्ती खिलाने की कोशिश करेंगे तो उसका शरीर आहार को ठीक से पचा नहीं सकेगा और फिर शिशु को बहुत देर तक भूख नहीं लगेगी।
अगर आप ऐसा कई दिन तक करेंगे तो शिशु का मन आहार से उचट जाएगा, फिर भूख लगने पर भी आहार ग्रहण करने की उसकी इच्छा नहीं होगी।
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संपूर्ण आहार (Whole grains) की वजह से भी शिशु को बहुत देर तक भूख नहीं लग सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि संपूर्ण आहार में फाइबर होता है - और फाइबर को पचाने के लिए शरीर को समय लगता है।
आपने जो पढ़ा बिल्कुल सही पढ़ा। गाय का दूध और दूध पाउडर, दोनों, शिशु के भूख को कम कर देते है।

इसीलिए कोशिश करें कि बच्चों को दिन भर में दो से तीन बार से ज्यादा दूध ना दिया जाए। अगर आप का शिशु ठोस आहार ग्रहण करने लगा है, तो ठोस आहार पर ज्यादा ध्यान दें।
यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे आहार, जो आपके शिशु की भूख को बढ़ाने में मदद करेंगे। यह सभी आहार प्राकृतिक हैं, शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं, और उन पर इनका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।
अजवाइन बच्चों का भूख बढ़ाने का जाना-माना दवा है। यह बच्चों के पेट में गैस की समस्या को भी दूर करता है।
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बच्चों के लिए यह इतना सुरक्षित है कि आप इसे 6 महीने के बच्चे को भी दे सकते हैं - लेकिन अजवाइन के पानी के रूप में।
अगर आपका शिशु ठोस आहार ग्रहण करने लगा है तो आहार तैयार करते वक्त, जैसे पराठा बनाते वक्त आप उसमें अजवायन की थोड़ी मात्रा मिला सकती हैं।
अजवाइन शिशु को सर्दी और जुकाम से भी बचाता है।
बच्चों को गैस की समस्या से बचाने का एक कारगर इलाज है। बच्चों के लिए जब भी आप भोजन तैयार करें उसमें हिंग की थोड़ी सी मात्रा मिला दे।

इससे बच्चों को फायदा ही मिलेगा, और नुकसान कुछ भी नहीं है। आप हिंग को शिशु के खिचड़ी, बटर मिल्क, कडही और रसम में मिला सकते हैं।
तुलसी आहार को पचाने में मदद करता है और बच्चों के भूख को बढ़ाता है। 8 महीने से बड़े उम्र के बच्चे को आप उसके आहार में तुलसी दे सकती हैं।
क्योंकि छोटे बच्चों का पाचन तंत्र विकासशील अवस्था में होता है, तुलसी से शिशु का आहार पचाने में काफी सहायता मिलती है।
दालचीनी सभी उम्र के लोगों के लिए भूख बढ़ाने की अचूक दवा है। 6 महीने से बड़े बच्चों को आप उनके आहार में दालचीनी देना शुरू कर सकती हैं।

दालचीनी में एक विशेष तत्व होता है जिसे ‘hydroxychalcone’ कहते हैं। यही दालचीनी को उसकी भूख बढ़ाने की शक्ति प्रदान करता है। दालचीनी का स्वाद हल्का मीठा होता है।
इसीलिए आप शिशु के लिए खीर, हलुआ, आलू का चोखा, केक, पेस्ट्री और चॉकलेट ड्रिंक में मिलाकर दे सकती हैं।
च्यवनप्राश सदियों से आजमाया हुआ एक बेहतरीन दवा है बच्चों और बड़ों के भूख को बढ़ाने का। यह भूख बढ़ाने के साथ-साथ आहार को पचाने में भी मदद करता है।

6 साल से बड़ी उम्र के बच्चों को आप चमनपरास सुरक्षित रूप से दे सकती हैं। चवनप्राश बच्चों को और बड़ो को अनेक प्रकार की बीमारियों से भी बचाता है।
शिशु के आहार में जैसे खिचड़ी या दाल में हल्दी मिलाकर खिलाने से शिशु को कई प्रकार के फायदे पहुंचते हैं।

यह शिशु के पेट में कीड़ों को पनपने नहीं देता है, अपच की समस्या को खत्म करता है, भूख को बढ़ाता है और शिशु के शारीरिक ताकत को भी बढ़ाता है।
हल्दी को आप शिशु के 6 महीने होते ही देना प्रारंभ कर सकती हैं।
अदरक 2 साल से बड़े बच्चों के लिए भूख बढ़ाने के लिए बहुत कारगर है। बच्चों को आप अदरक कई प्रकार से दे सकती हैं उदाहरण के लिए आप उनके बटरमिल्क में या छाज में मिलाकर दे सकती है।

कोशिश करें कि ऐसे आहार जिनमें आप अदरक मिलाएं शिशु को दोपहर तक दे दें। दोपहर के बाद बनने वाले आहार में अदरक ना मिलाएं।
बच्चों की भूख बढ़ाने के लिए यह भी एक अच्छा मसाला है। बच्चों के लिए अगर आप पिजा तैयार कर रही हैं, डबल रोटी सेक रही हैं, आमलेट बना रही है, या पास्ता तैयार कर रही है, तो आप इन्हें तैयार करते वक्त ऊपर से ओरेगानो(Oregano) छिड़क सकती हैं।
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दक्षिण भारत मैं यह मसालेदार सूप अपने चटपटे स्वार्थ के कारण और सेहत से भरे गुणों के लिए काफी प्रसिद्ध है।
लेकिन स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के अलावा यह आपके बच्चों के भूख को भी बढ़ा सकता है और उनके पाचन तंत्र को भी दुरुस्त कर सकता है।

केवल इतना ही नहीं यह बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में सक्षम है। 7 महीने से बड़े बच्चों को रसम सुरक्षित रूप से दे सकती है।
बड़ों के लिए तैयार रसम में थोड़ा और पानी मिलाकर आप बच्चों को देने से पहले इसे पतला कर सकती हैं।
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बच्चों की भूख बढ़ाने के लिएअजवायन के फूल (Thyme) भी बहुत कारगर। आप बच्चों के चावल दाल तैयार करते वक़्त उसमे मिला सकती हैं।
मूंगफली में जिंक होता है। ऊपर इस विषय में हम चर्चा कर चुके हैं कि जिंक किस तरह से आहार को पचाने में और भूख बढ़ाने में मदद करता है।

लेकिन 1 साल से छोटे बच्चों को मूंगफली खाने के लिए नहीं दें। मूंगफली में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो 1 साल से छोटे बच्चों में एलर्जी की प्रतिक्रिया शुरू कर सकते हैं।
बच्चों को जब आप पहली बार मूंगफली दें तो तीन दिवसीय नियम का पालन अवश्य करें जिससे यह पता चल सके कि आपके बच्चे को मूंगफली से एलर्जी है या फिर नहीं।
मूंगफली बच्चों को आप कई तरह से दे सकते हैं। उदाहरण के लिए आप बच्चों को मूंगफली का चटनी बनाकर दे सकती हैं, भुनी हुई मूंगफली नाश्ते के रूप में दे सकती हैं, मूंगफली की चिक्की या पीनट बटर भी बच्चों को दे सकती हैं।
छोटे बच्चों के लिए गाजर बहुत फायदेमंद है। 3 महीने के बच्चों को या उससे बड़े बच्चों को गाजर के छोटे-छोटे टुकड़े चबाने के लिए दे सकती हैं।

इससे बच्चों के दांत निकलने में मदद मिलता है। लेकिन केवल यही एक वजह नहीं है कि मैं गाजर का जिक्र यहां कर रहा हूं। सच बात तो यह है की गाजर बच्चों के भूख को जगाने में और बढ़ानी में बहुत प्रभावी है।
खाने से आधा घंटा पहले बच्चों को आधा कप गाजर का जूस देने से उनका भूख जाग जाता है। या नुस्खा केवल बच्चों के लिए ही नहीं वरन बड़ों के लिए भी कारगर है।
दही के अत्यधिक सेवन से बच्चों का भूख खत्म हो सकता है। लेकिन उन्हें इसकी थोड़ी मात्रा देने से उनके भूख में बढ़ोतरी होती है।

अगर आप बच्चों को दही दे रही हैं तो उन्हें कुछ घंटों के लिए दूध ना दे। दही 8 से 9 महीने से बड़े बच्चों को देना सुरक्षित है।
अपने बच्चे के डॉक्टर से जरूर मिले, अगर आपका शिशु कई महीने से भूख ना लगने की समस्या से परेशान है तो।

साथ ही साथ हमने ऊपर जितने भी घरेलू तरीके बताए हैं बच्चों के भूख को बढ़ाने के लिए, उन्हें इस्तेमाल करने से पहले अपने बच्चे के डॉक्टर से राय जरूर ले लें।
किसी भी प्रकार की आयुर्वेदिक दवा शुरू करने से पहले शिशु के डॉक्टर से उसकी सही मात्रा और समय की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। हर उम्र के बच्चों के लिए आयुर्वेदिक दवाएं सुरक्षित नहीं होती हैं।
अगर आपका शिशु हर प्रकार का आहार आनंद के साथ खाता था लेकिन धीरे-धीरे उसके भूख में कमी आ गई है।

आपने कई तरह के आहार अपने शिशु को देने की कोशिश की है लेकिन फिर भी उसमें खाने की इच्छा नहीं होती है तो शायद कुछ तो कारण है।
चलिए जानते हैं कि वह कौन कौन से कारण है जिनकी वजह से आपके बच्चे की भूख में कमी आ सकती है। वैसे बच्चों की भूख में कमी आना एक आम बात है और अधिकांश बच्चों को कभी ना कभी इस समस्या से गुजरना पड़ता है। कुछ मुख्य कारण यह है:
बच्चे हर उम्र में एक समान विकास दर से नहीं बढ़ाते हैं। जन्म के प्रथम कुछ महीने और कुछ साल में बच्चे बहुत तेजी से बढ़ते हैं।

लेकिन जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं उनकी विकास दर में कमी आती है। उदाहरण के लिए 6 महीने में शिशु का वजन दुगना हो जाता है।
1 साल तक होते होते शिशु अपने जन्म के वजन का 3 गुना हो जाता है। लेकिन 1 से 3 साल की उम्र तक बच्चे उतनी तेजी से नहीं बढ़ते हैं इस वजह से उनकी ऊर्जा की आवश्यकता कम हो जाती है।
यह एक बहुत ही सामान्य और साधारण शारीरिक प्रक्रिया है। हालांकि 1 से 3 साल की उम्र में बच्चे बहुत क्रियाशील दिख सकते हैं।
यह सोचकर ताजुब भी लगेगा कि उनके अंदर इतनी उर्जा आती कहां से है। लेकिन सच बात तो यह है कि इस उम्र में वो जो आहार ग्रहण कर रहे हैं, वो उनके लिए पर्याप्त है।
डेढ़ साल तक के बच्चे लगभग हर काम के लिए आप पर निर्भर रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन जैसे जैसे वे बड़े होते हैं वे बहुत सारे काम खुद करने की इक्षा रखते हैं।

उनकी इच्छा होती है कि वह हर काम खुद कर सकें और अपनी इच्छा से कर सके। इस दौरान बच्चे अपनी क्षमता को भी परखते हैं।
इसीलिए इस दौरान बच्चों को कुछ भी करने के लिए दबाव ना बनाएं। जबरदस्ती करने पर बच्चे उस कार्य से दूर भागने की कोशिश करेंगे।
अगर आप बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाएंगे तो उनमें आहार के प्रति अनिच्छा उत्पन्न होगी। फिर वे अपने मन से आहार खाया नहीं करेंगे और उन्हें खाना खिलाने के लिए आपको बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी।
बच्चों को तरह-तरह के आहार आजमाने में बहुत आनंद आता है। बच्चों में आहार के प्रति रुचि पैदा करने का सबसे आसान तरीका है कि उनके लिए आहार को रोचक बना दिया जाए।

बच्चों के लिए आहार को रोचक बनाने के लिए आपको बहुत मशक्कत करने की जरूरत नहीं है। आहार को दिखने (presentation) में थोड़ा अलग तरीके से बना दीजिए।
उदाहरण के लिए रोटी को तरह-तरह के रोचक आकारों में काट के बनाएं जैसे कि चंदा, तारे, फूल, तितली। ऐसा करने पर संभावना बढ़ जाती की बच्ची भोजन को आजमाएं।
बच्चों के अंदर क्रियाशीलता का स्तर बहुत ज्यादा होता है। इस दौरान यह आसंभव (impossible) है कि वह एक स्थान पर बैठकर भोजन ग्रहण करें।

होगा यह कि भोजन के समय वह दौड़ भाग रहे होंगे, उछल कूद कर रहे होंगे, और उनके पीछे पीछे आप, हाथों में खाना लिए दौड़ रही होंगी।
अब बच्चों के पीछे दौड़ दौड़ कर उन्हें खाना खिलाना, कहां तक सही है, या कहां तक गलत है, इस बारे में हम फिर कभी चर्चा करेंगे। सच तो यह है कि इस उम्र में बच्चों को भोजन कराना आसान काम नहीं है।
अगर आपका शिशु बीमार है, या सर्दी खांसी और जुकाम से पीड़ित है, तो यह उम्मीद मत करिए कि वह सामान्य तौर पर आहार ग्रहण करेगा।

शिशु में भूख की कमी का होना सामान्य बात है, हालांकि या कुछ समय तक के लिए ही रहेगा। जैसे ही आपका बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ होगा वह फिर से समान रूप से आहार ग्रहण करने लगेगा।
सच बात तो यह है कि शिशु चंगा होने के बाद, बीमारी के दौरान अपनी खोई हुई ऊर्जा को फिर से बहुत ही कम समय में वापस पा लेगा।
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जी हाँ! अंगूठा चूसने से बच्चों के दांत ख़राब हो जाते हैं और नया निकलने वाला स्थयी दांत भी ख़राब निकलता है। मगर थोड़ी सावधानी और थोड़ी सूझ-बूझ के साथ आप अपने बच्चे की अंगूठा चूसने की आदत को ख़त्म कर सकती हैं। इस लेख में जानिए की अंगूठा चूसने के आप के बच्चों की दातों पे क्या-क्या बुरा प्रभाव पडेग और आप अपने बच्चे के दांत चूसने की आदत को किस तरह से समाप्त कर सकती हैं। अंगूठा चूसने की आदत छुड़ाने के बताये गए सभी तरीके आसन और घरेलु तरीके हैं।
हैरत में पड़ जायेंगे जब आप जानेंगे किवी फल के फायेदे बच्चों के लिए। यह शिशु के रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ता है, त्वचा को सुन्दर और लचीला बनता है, पेट से सम्बंधित तमाम तरह की समस्याओं को ख़तम करता है, अच्छी नींद सोने में मदद करता है, सर्दी और जुखाम से बचाता है, अस्थमा में लाभ पहुंचता है, आँखों की रौशनी बढ़ता है।
जब शिशु हानिकारक जीवाणुओं या विषाणु से संक्रमित आहार ग्रहण करते हैं तो संक्रमण शिशु के पेट में पहुंचकर तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और शिशु को बीमार कर देते हैं। ठीक समय पर इलाज ना मिल पाने की वजह से हर साल भारतवर्ष में हजारों बच्चे फूड प्वाइजनिंग की वजह से मौत के शिकार होते हैं। अगर समय पर फूड प्वाइजनिंग की पहचान हो जाए और शिशु का समय पर सही उपचार मिले तो शिशु 1 से 2 दिन में ही ठीक हो जाता है।
4 से 6 सप्ताह के अंदर अंदर आपके पीरियड फिर से शुरू हो सकते हैं अगर आप अपने शिशु को स्तनपान नहीं कराती हैं तो। लेकिन अगर आप अपने शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग करवा रही हैं तो इस स्थिति में आप का महावारी चक्र फिर से शुरू होने में 6 महीने तक का समय लग सकता है। यह भी हो सकता है कि जब तक आप शिशु को स्तनपान कराना जारी रखें तब तक आप पर महावारी चक्र फिर से शुरू ना हो।
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।
बच्चे की ADHD या ADD की समस्या को दुश्मन बनाइये - बच्चे को नहीं। कुछ आसन नियमों के दुवारा आप अपने बच्चे के मुश्किल स्वाभाव को नियंत्रित कर सकती हैं। ADHD या ADD बच्चों की परवरिश के लिए माँ-बाप को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
नवजात शिशु को डायपर के रैशेस से बचने का सरल और प्रभावी घरेलु तरीका। बच्चों में सर्दियौं में डायपर के रैशेस की समस्या बहुत ही आम है। डायपर रैशेस होने से शिशु बहुत रोता है और रात को ठीक से सो भी नहीं पता है। लेकिन इसका इलाज भी बहुत सरल है और शिशु तुरंत ठीक भी हो जाता है। - पढ़िए डायपर के रैशेस हटाने के घरेलू नुस्खे।
शिशु को 10 सप्ताह (ढाई माह) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
सुबह उठकर भीगे बादाम खाने के फायेदे तो सबको पता हैं - लेकिन क्या आप को पता है की भीगे चने खाने के फायेदे बादाम से भी ज्यादा है। अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है तो इस लेख को जरूर पढिये - आप का भ्रम टूटेगा।
बच्चों की मन जितना चंचल होता है, उनकी शरारतें उतनी ही मन को मंत्रमुग्ध करने वाली होती हैं। अगर बच्चों की शरारतों का ध्यान ना रखा जाये तो उनकी ये शरारतें उनके लिए बीमारी का कारण भी बन सकती हैं।
29 रोचक और पौष्टिक शिशु आहार बनाने की विधि जिसे आप का लाडला बड़े चाव से खायेगा। ये सारे शिशु आहार को बनाना बहुत ही आसान है, इस्तेमाल की गयी सामग्री किफायती है और तैयार शिशु आहार बच्चों के लिए बहुत पौष्टिक है। Ragi Khichdi baby food शिशु आहार
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
Jaundice in newborn: Causes, Symptoms, and Treatments - जिन बच्चों को पीलिया या जॉन्डिस होता है उनके शरीर, चेहरे और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलिया के कारण बच्चे को केर्निकेटरस नामक बीमारी हो सकती है। यह बीमारी बच्चे के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है।
जुड़वाँ बच्चे पैदा होना इस गावं में आम बात है और इस गावं की खासियत भी| इसी कारण इस गावं में जुड़वाँ बच्चों की संख्या हर साल बढ़ रही है|
दो साल के बच्चे के लिए मांसाहारी आहार सारणी (non-vegetarian Indian food chart) जिसे आप आसानी से घर पर बना सकती हैं। अगर आप सोच रहे हैं की दो साल के बच्चे को baby food में क्या non-vegetarian Indian food, तो समझिये की यह लेख आप के लिए ही है।
गर्मियों में नाजुक सी जान का ख्याल रखना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मगर थोड़ी से समझ बुझ से काम लें तो आप अपने नवजात शिशु को गर्मियों के मौसम में स्वस्थ और खुशमिजाज रख पाएंगी।
हर मां बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में तेज निकले। लेकिन शिशु की बौद्धिक क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है जिस में से एक है शिशु का पोषण।अगर एक शोध की मानें तो फल और सब्जियां प्राकृतिक रूप से जितनी रंगीन होती हैं वे उतना ही ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। रंग बिरंगी फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में बीटा-कैरोटीन, वीटामिन-बी, विटामिन-सी के साथ साथ और भी कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं।
येलो फीवर मछर के एक विशेष प्रजाति द्वारा अपना संक्रमण फैलता है| भारत से जब आप विदेश जाते हैं तो कुछ ऐसे देश हैं जैसे की अफ्रीका और साउथ अमेरिका, जहाँ जाने से पहले आपको इसका वैक्सीन लगवाना जरुरी है क्योँकि ऐसे देशों में येलो फीवर का काफी प्रकोप है और वहां यत्र करते वक्त आपको संक्रमण लग सकता है|
न्यूमोनिया फेफड़ो पर असर करने वाला एक ऐसा संक्रमण है जिसकी वजह से फेफड़ो में सूजन होती है और उसमें एक प्रकार का गीला पन आ जाता है, जिससे श्वास नली अवरुद्ध हो जाती है और बच्चे को खाँसी आने लगती है। यह बीमारी सर्दी जुकाम का बिगड़ा हुआ रूप है जो आगे चल कर जानलेवा भी साबित हो सकती है। यह बीमारी जाड़े के मौसम में अधिकतर होती है।
भारत सरकार टीकाकरण अभियान के अंतर्गत मुख्या और अनिवार्य टीकाकरण सूची / newborn baby vaccination chart 2022-23 - कौन सा टीका क्यों, कब और कितनी बार बच्चे को लगवाना चाहिए - पूरी जानकारी। टीकाकरण न केवल आप के बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाता है वरन बिमारियों को दूसरे बच्चों में फ़ैलाने से भी रोकते हैं।