Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
शिशु को बहुत छोटी उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात शिशु से ले कर एक साल तक की उम्र के बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता ही वो अपने शरीर का तापमान वयस्कों की तरह नियंत्रित कर सकें। इसलिए यह जाना बेहद जरुरी है की बच्चे को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है।
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आइस क्रीम (ice-cream) दूध का बना होता है - यानी इसमें पोषक तत्वों का भंडार होता है। आइस क्रीम (ice-cream) उतना ही पोषक होता है जितना की शुद्ध देशी घी, पनीर, दूध, और मक्खन। लेकिन शिशु की एक निश्चित उम्र से पहले उसे आइस क्रीम (ice-cream) देना, उसकी सेहत के लिए काफी जोखिम भरा हो सकता है।
माँ-बाप को इस बात का पता होना जरुरी है की शिशु को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है। इसके कई कारण हैं।
जैसे की कुछ बच्चों को गाए/भैंस के दूध से या दूध के बने आहार से एलेर्जी हो सकती है। एक बात और यह है की बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता है की खुद ही शरीर का तापमान नियंत्रित कर सके। आइस क्रीम (ice-cream) का तापमान बहुत कम होता है और इसके सेवन से शिशु के शरीर का अंदरूनी तापमान बहुत गिर सकता है। शिशु को सर्दी भी लग सकती है। यही कारण है की ठण्ड के दिनों में बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं।
अक्सर माँ - बाप यह सोचते हैं की "what is the right time to eat ice cream for your बेबी?"
संछिप्त उत्तर: डेढ़ साल (1.5 years) की उम्र से पहले शिशु को आइस क्रीम (ice-cream) नहीं दिया जाना चाहिए।
Short Answer: A child should not be given ice-cream before he or she turns 1.5 years of age.
तो चलिए इसके बारे में विस्तार से देखते हैं शिशु किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) खा सकता है और क्योँ।
बच्चों को हर वो खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट लगता है जो मीठा हो - जैसे की चॉकलेट, मिठाई और आइस क्रीम (ice-cream)। लेकिन जरुरी नहीं की बच्चे को जो अच्छा लगता है वो बच्चे की सेहत के लिए सही भी हो।
बच्चे होते भी इतने जिद्दी हैं की जो उन्हें चाहिए - वही उन्हें चाहिए। आइस क्रीम (ice-cream) भी बच्चों के उन्ही पसंदीदा आहारों में से एक है। बच्चों को आइस क्रीम (ice-cream) बहुत पसंद आता है।
शिशु को एक या डेढ़ साल से पहले आइस क्रीम (ice-cream) न दें क्योँकि उन शरीर इतना सक्षम नहीं होता है की वो शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर सके।
बड़े बच्चों के लिए यह समस्या नहीं होती हैं क्योँकि उनका शरीर अपने अंदरूनी तापमान को खुद ही आवश्यकता के अनुसार नियंत्रित कर सकता है। लेकिन फिर भी बच्चों को आइस क्रीम (ice-cream) देने से पहले बहुत सी बातों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
अक्सर देखा गया है की बच्चे बड़ों से आइस क्रीम (ice-cream) खाने की जिद करते हैं। और बड़ों को बच्चों की जिद के सामने झुखना ही पड़ता है। लेकिन क्या आप को पता है की शिशु को आइस क्रीम (ice-cream) देने से पहले आप को क्या-क्या सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
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शिशु के जन्म के बाद यानी डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या देखी गई है। हालांकि बाजार में बाल झड़ने को रोकने के लिए बहुत तरह की दवाइयां उपलब्ध है लेकिन जब तक महिलाएं अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही हैं तब तक यह सलाह दी जाती है कि जितना कि जितना ज्यादा हो सके दवाइयों का सेवन कम से कम करें। स्तनपान कराने के दौरान दवाइयों के सेवन से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
अक्सर गर्भवती महिलाएं इस सोच में रहती है की उनके शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी में से क्या बेहतर है। इस लेख में हम आप को दोनों के फायेदे और नुक्सान के बारे में बताएँगे ताकि दोनों में से बेहतर विकल्प का चुनाव कर सकें जो आप के लिए और आप के शिशु के स्वस्थ के लिए सुरक्षित हो।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार चार से छह महीने पे शिशु शिशु का वजन दुगना हो जाना चाहिए। 4 महीने में आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए ये 4 बातों पे निर्भर करता है। शिशु के ग्रोथ चार्ट (Growth charts) की सहायता से आप आसानी से जान सकती हैं की आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए।
यहां दिए गए नवजात शिशु का Infant Growth Percentile कैलकुलेटर की मदद से आप शिशु का परसेंटाइल आसानी से calculate कर सकती हैं।
औसतन एक शिशु को दिन भर में 1000 से 1200 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है। शिशु का वजन बढ़ने के लिए उसे दैनिक आवश्यकता से ज्यादा कैलोरी देनी पड़ेगी और इसमें शुद्ध देशी घी बहुत प्रभावी है। लेकिन शिशु की उम्र के अनुसार उसे कितना देशी घी दिन-भर में देना चाहिए, यह देखिये इस तलिके/chart में।
बच्चों का और 20 वर्ष से छोटे सभी लोगों का BMI गणना केवल फॉर्मूले के आधार पे नहीं किया जाता है। इसके बदले, BMI chart का भी इस्तेमाल किया जाता है। BMI chart के आधार पे जिन बच्चों का BMI 5th percentile से कम होता है उन्हें underweight माना जाता है।
बाजार में उपलब्ध अधिकांश बेबी प्रोडक्ट्स जैसे की बेबी क्रीम, बेबी लोशन, बेबी आयल में आप ने पराबेन (paraben) के इस्तेमाल को देखा होगा। पराबेन (paraben) एक xenoestrogens है। यानी की यह हमारे शारीर के हॉर्मोन production के साथ सीधा-सीधा छेड़-छाड़ करता है। क्या कभी आप ने सोचा की यह आप के शिशु शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सुरक्षित है भी या नहीं?
अगर आप का शिशु जब भी अंडा खाता है तो बीमार पड़ जाता है या उसके शारीर के लाल दाने निकल आते हैं तो इसका मतलब यह है की आप के शिशु को अंडे से एलर्जी है। अगर आप के शिशु को अंडे से एलर्जी की समस्या है तो आप किस तरह अपने शिशु को अंडे की एलर्जी से बचा सकती है और आप को किन बातों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
बच्चों के हिचकी का कारण और निवारण - स्तनपान या बोतल से दूध पिलाने के बाद आप के बच्चे को हिचकी आ सकती है। यह होता है एसिड रिफ्लक्स (acid reflux) की वजह से। नवजात बच्चे का पेट तो छोटा सा होता है। अत्यधिक भूख लगने के कारण शिशु इतना दूध पी लेते है की उसका छोटा सा पेट तन (फ़ैल) जाता है और उसे हिचकी आने लगती है।
रागी को Nachni और finger millet भी कहा जाता है। इसमें पोषक तत्वों का भंडार है। कैल्शियम, पोटैशियम और आयरन तो इसमें प्रचुर मात्रा में होता है। रागी का खिचड़ी - शिशु आहार - बेबी फ़ूड baby food बनाने की विधि
छोटे बच्चों को कैलोरी से ज्यादा पोषण (nutrients) की अवश्यकता होती है| क्योँकि उनका शरीर बहुत तीव्र गति से विकसित हो रहा होता है और विकास के लिए बहुत प्रकार के पोषण (nutrients) की आवश्यकता होती है|
बच्चे बरसात के मौसम का आनंद खूब उठाते हैं। वे जानबूझकर पानी में खेलना और कूदना चाहते हैं। Barsat के ऐसे मौसम में आप की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति काफी बढ़ जाती हैं क्योकि बच्चा इस barish में भीगने का परिणाम नहीं जानता। इस स्थिति में आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
कुछ सॉफ्टवेयर हैं जो पेरेंट्स की मदद करते हैं बच्चों को इंटरनेट की जोखिमों से बचाने में। इन्हे पैरेंटल कन्ट्रो एप्स (parental control apps) के नाम से जाना जाता है। हम आपको कुछ बेहतरीन (parental control apps) के बारे में बताएँगे जो आपके बच्चों की सुरक्षा करेगा जब आपके बच्चे ऑनलाइन होते हैं।
अधिकांश बच्चे जो पैदा होते हैं उनका पूरा शरीर बाल से ढका होता है। नवजात बच्चे के इस त्वचा को lanugo कहते हैं। बच्चे के पुरे शरीर पे बाल कोई चिंता का विषय नहीं है। ये बाल कुछ समय बाद स्वतः ही चले जायेंगे।
प्राथमिक उपचार के द्वारा बहते रक्त को रोका जा सकता है| खून का तेज़ बहाव एक गंभीर समस्या है। अगर इसे समय पर नहीं रोका गया तो ये आप के बच्चे को जिंदगी भर के लिए नुकसान पहुंचा सकता है जिसे शौक (shock) कहा जाता है। अगर चोट बड़ा हो तो डॉक्टर स्टीच का भी सहारा ले सकता है खून के प्रवाह को रोकने के लिए।
इन्फ्लुएंजा वैक्सीन (Influenza Vaccine in Hindi) - हिंदी, - इन्फ्लुएंजा का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
6 माह से 1 साल तक के शिशु को आहार के रूप में दाल का पानी,चावल का पानी,चावल,सूजी के हलवा,चावल व मूंग की खिचड़ी,गूदेदार, पके फल, खीर, सेरलेक्स,पिसे हुए मेवे, उबले हुए चुकंदर,सप्ताह में 3 से 4 अच्छे से उबले हुए अंडे,हड्डीरहित मांस, भोजन के बाद एक-दो चम्मच पानी भी शिशु को पिलाएं।
बच्चों को बुद्धिमान बनाने के लिए जरुरी है की उनके साथ खूब इंटरेक्शन (बातें करें, कहानियां सुनाये) किया जाये और ऐसे खेलों को खेला जाएँ जो उनके बुद्धि का विकास करे। साथ ही यह भी जरुरी है की बच्चों पर्याप्त मात्रा में सोएं ताकि उनके मस्तिष्क को पूरा आराम मिल सके। इस लेख में आप पढेंगी हर उस पहलु के बारे में जो शिशु के दिमागी विकास के लिए बहुत जरुरी है।
यह तो हर माँ-बाप चाहते हैं की उनका शिशु स्वस्थ और सेहत पूर्ण हो। और अगर ऐसे स्थिति में उनके शिशु का वजन उसके उम्र और लम्बाई (कद-काठी) के अनुरूप नहीं बढ़ रहा है तो चिंता करना स्वाभाविक है। कुछ आहार से सम्बंधित diet chart का अगर आप ख्याल रखें तो आप का शिशु कुछ ही महीनों कें आवश्यकता के अनुसार वजन बना लेगा।
छोटे बच्चों की प्रतिरोधक छमता बड़ों की तरह पूरी तरह developed नहीं होती। इस वजह से यदि उनको बिमारियों से नहीं बचाया जाये तो उनका शरीर आसानी से किसी भी बीमारी से ग्रसित हो सकता है। लकिन भारतीय सभ्यता में बहुत प्रकार के घरेलू नुस्खें हैं जिनका इस्तेमाल कर के बच्चों को बिमारियों से बचाया जा सकता है, विशेष करके बदलते मौसम में होने वाले बिमारियों से, जैसे की सर्दी।