Category: स्वस्थ शरीर
By: Salan Khalkho | ☺16 min read
बच्चों के रोने के कई वजह हो सकते हैं जैसे की भूख की वजह से, थकन की वजह से, पेट के दर्द या गैस की समस्या की वजह से। जब आप का शिशु रोये तो सबसे पहले आप उसे अपनी गोद में ले लें। शांत ना होने पे आप उसे स्तनपान कराएँ और उसके डायपर को जांचे की कहीं वह गिला तो नहीं है। अगर शिशु फिर भी ना शांत हो तो उसे चुसनी या पैसिफायर से शांत कराने की कोशिश करें, फिर भी ना शांत हो तो उसे सुलाने की कोशिश करने, यह भी देखें की कहीं शिशु को ज्यादा गर्मी या ठण्ड तो नहीं लग रहा है या उसे कहीं मछरों ने तो नहीं कटा है। इन सब के बावजूद अगर आप का शिशु रोये तो आप उसे तुरंत डोक्टर के पास लेके जाएँ।

बच्चों का रोना एक आम समस्या है। बच्चे बोल कर अपनी तकलीफों को बता नहीं सकते हैं और ना ही बोल कर अपनी जरूरतों को जाहिर कर सकते हैं। इसीलिए जब उन्हें कोई तकलीफ होता है, जब वे परेशान होते हैं या फिर जब उन्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो रो कर आप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
ऐसी स्थिति में अगर यह आसानी से पता चल जाए कि बच्चे की रोने की वजह क्या है तो उन्हें तुरंत शांत किया जा सकता है और उनकी तकलीफ को खत्म।
जिन घरों में छोटे बच्चे होते हैं, वहां यह आमतौर पर पाया गया है कि अचानक छोटे बच्चे रोना शुरु कर देते हैं। मां-बाप अपना सारा काम छोड़कर बच्चे को चुप कराने में लग जाते हो। लेकिन बहुत मशक्कत के बाद भी बच्चा शांत नहीं होता है। ऐसे में मां-बाप के लिए परेशान होना लाजमी है। उनके लिए सबसे बड़ी समस्या इस बात को जानने की होती है कि उनका बच्चा क्यों रो रहा है।
आप इस लेख को पढ़ रही है, इसका मतलब है कि आप भी जानना चाहती है कि रोते हुए बच्चे को शांत कराने के क्या क्या उपाय है। इस लेख में हम आपको दो बातों की जानकारी देंगे। पहली बात तो यह कि वह कौन से सारे कारण है जिनकी वजह से बच्चे रोते हैं, और दूसरा यह कि रोते हुए बच्चों को शांत किस तरह कराएँ है।

क्या आपने अखरोट देखा है? इतना छोटा होता है एक नवजात शिशु का पेट। इसीलिए शुरुआती कुछ महीनों में बच्चे स्तनपान के दौरान बहुत थोड़ा सा दूध पिते। नवजात शिशु का पेट छोटा होने की वजह से आहार थोडा ही समता है और हर थोड़ी देर पर उन्हें भूख लगती है।
इसीलिए नवजात शिशु को हर थोड़ी-थोड़ी देर पर दूध पिलाने की आवश्यकता पड़ती है। अगर आपका शिशु रो रहा है तो आप उसे स्तनपान करा कर देखें कि कहीं भूख की वजह से तो आपका शिशु नहीं रो रहा है।
अगर आपके शिशु को वाकई भूख लगी होगी तो स्तनपान के उपरांत वह शांत हो जाएगा। लेकिन अगर स्तनपान के बाद भी आपका शिशु शांत नहीं होता है, तो उसकी परेशानी की और भी वजह हो सकती है।
सभी बच्चों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता है। कुछ बच्चे गंदे और भीगे डायपर में दिन भर रह जाते हैं और इस तरफ एक बार भी उनका ध्यान नहीं जाता है।
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लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो गंदी और भीगे डायपर में 1 मिनट भी रहना पसंद नहीं करते हैं। कई बार बच्चों के रोने की वजह उनका गंदा और भीगा डायपर भी होता है।
अगर दूध पिलाने के बाद भी आप का शिशु शांत नहीं होता है तो आप उसके डायपर को हाथ से टटोलकर देखें कि कहीं वह पूरी तरह भर तो नहीं गया है।
अगर डायपर को बदलने की आवश्यकता है तो उसके डायपर को बदल दे। अगर आपका शिशु इस वजह से रो रहा था कि उसे अपना डायपर बदलवाना था, तो डायपर बदलने के बाद आपका शिशु शांत हो जाएगा।
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अगर आपका शिशु रो रहा है और उसका डायपर भी साफ और सूखा है, तो यह जांच कर देखें कि कहीं उसका डायपर या उसका पेंट बहुत ज्यादा टाइट तो नहीं है।
कई बार डायपर बहुत कसकर बांध देने की वजह से या शिशु के पेंट या लंगोट के बहुत ज्यादा टाइट होने पर शिशु के पेट पर कसाव बढ़ जाता है जिस वजह से बहुत तकलीफ होती है। अगर आपको शिशु का डायपर टाइट लगे तो आप उसे ढीला कर दो।
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चाहे गर्मी का मौसम हो या फिर ठंड का मौसम, ज्यादा समय तक गीली डायपर को पहने रहने से शिशु की त्वचा पर डायपर रशेस (diaper rash) पड़ जाते हैं।
शिशु का डायपर बदलते वक्त यह जांच कर देखें कि कहीं डायपर वाले स्थान पर डायपर रशेस (diaper rash) तो नहीं पड़ गया है। अगर आपका शिशु डायपर रशेस (diaper rash) की वजह से रो रहा था तो आप उसे दिन में कुछ समय तक बिना डायपर के रखे।
उसके शरीर पर डायपर वाले स्थान पर जब हवा लगेगा तो वह त्वचा अपने आप ठीक हो जाएगा।

शिशु का पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है। इस वजह से उन्हें अक्सर पेट से संबंधित कुछ न कुछ समस्या लगी रहती है।
अगर आपने शिशु को शांत कराने का हर तरीका अपना के देख लिया है लेकिन फिर भी आपका शिशु शांत नहीं हो रहा है, तो आप अपने शिशु को डॉक्टर के पास ले कर जाएं ताकि शिशु के रोने की सही वजह का पता लग सके।
अगर आपके शिशु के रोने की वजह पेट का दर्द है, तो आपके शिशु का डॉक्टर उसके पेट के दर्द के लिए उपयुक्त दावा देने की राय देगा।
जैसा कि मैंने आपको ऊपर बताया कि छोटे बच्चों का पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है, इसी वजह से उन्हें पेट में गैस की समस्या का भी सामना करना पड़ जाता है।

कई बार शिशु स्तनपान के दौरान हवा भी निगल लेता है। जब भी आप अपने शिशु को स्तनपान कराएं, स्तनपान के उपरांत शिशु को डकार दिलाने की कोशिश करें।
डकार मिलने पर शिशु को पेट में गैस की समस्या से राहत मिलेगा। अगर इस पर भी आपका शिशु शांति ना हो तो आप उसकी नाभि पर दो बूंद पानी में हिंग मिलकर लगा दें। इससे उसके पेट में फंसा हुआ गैस बाहर आ जाएगा और बच्चे को आराम मिलेगा।
शिशु को यह बात सिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है की स्तनपान कैसे करते हैं। स्तनपान किस तरह किया जाता है यह शिशु माता के गर्भ से सीख कर पैदा होता है।

जब शिशु का जन्म होता है तो उसके अंदर किसी भी वस्तु को चूसने की तीव्र इच्छा विद्यमान रहती है। यही वजह है कि जब उसके मुंह में माता का स्तन आता है तो वह उसे ज़ोर से चुसना प्रारंभ कर देता है। यह प्रकृति का एक नियम है।
कई बार बच्चे इस वजह से रोते हैं क्योंकि उनके अंदर चूसने की तीव्र इच्छा प्रबल होती है ( उस वक्त भी जब उन्हें भूख नहीं लगी है और उनका पेट पूरी तरह भरा हुआ है)।
ऐसे में या तो शिशु अपने मुंह में उंगलियों को डालकर चूसना प्रारंभ कर देते हैं, या फिर रोना शुरु कर देते हैं। अगर आपके शिशु के रोने की वजह यही है, तो आप उसे चूसने के लिए एक चूसनी (सूदर या पैसिफायर) दे दीजिए।
इससे आपके शिशु को बहुत राहत मिलेगा। जब शिशु में आराम पाने के लिए चूसने की इच्छा प्रबल होती है तो उस अवस्था को कम्फर्ट सकिंग कहते हैं।
शिशु के जन्म के प्रारंभिक महीनों में कम्फर्ट सकिंग का बहुत महत्व है। यह शिशु के दिल की धड़कन को नियमित करने में मदद करता है, उसके पेट को आराम पहुंचाता है और शिशु को गहरी नींद सोने में मदद करता है।
कई बार बच्चों के रोने की वजह मात्र इतनी सी होती है कि वह आपसे थोड़ा सा दुलार चाहता है। नवजात शिशु को शारीरिक आराम और आश्वासन की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है।

अगर आप अपने नवजात शिशु को अपनी छाती से लगा कर रखेंगे तो उसे आपके दिल की धड़कन सुनकर दिलासा मिलेगा। 9 महीने आपके गर्भ में आपका शिशु आपके दिल की धड़कन को ही तो सुनता था।
उसे सब कुछ अपनापन जैसा लगेगा और वह शांत हो जाएगा। आप अपने शिशु को अपने सीने के करीब रखने के लिए उसे स्लिंग या करियर की सहायता से अपनी पीठ पर या छाती पर बांध सकती है।
इससे आपका शिशु आपके नजदीक आपकी गोदी में ही रहेगा, और घर के बाकी काम निपटाने के लिए आपके दोनों हाथ भी खाली रहेंगे।
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जब आप अपने बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश करती है, और आप यह पाए की आपका शिशु दूध पीने का इच्छुक नहीं है, तो हो सकता है इसका मतलब यह है कि आपका शिशु आराम करना चाहता है।

ऐसी स्थिति में आप अपने बच्चे को अपने गोद में सुलाने की कोशिश करें। सुलाने के लिए ऐसी कमरे का चयन करें जहां का वातावरण शांत हो और रोशनी कम हो।
आप उसे अपनी गोदी में लेकर उसकी पीठ पर धीरे-धीरे थपकी देकर उसे सुलाने की कोशिश करें। अगर आपका शिशु सोना चाहता है तो उसे थोड़ी ही देर में नींद आ जाएगी।
सोते वक्त अधिकांश शिशु धीरे-धीरे खेलना पसंद करते हैं। इसीलिए अपने शिशु को सुलाने के लिए आप निम्न में से कोई भी तरीका अपना सकती है:

जब बच्चों को किसी बात की तकलीफ होती है तो वे रोते हैं। उदाहरण के लिए अगर उन्हें चोट लग जाए तो। ऐसी स्थिति में आप बच्ची को कोई खिलौना देकर उसके ध्यान को उसकी तकलीफ से हटा सकती है।
आप पाएंगे कि ऐसा करते ही आपका रोता हुआ शिशु तुरंत शांत हो जाएगा। उसके ध्यान को उसकी तकलीफ से भटकाने के लिए आप उसे कोई कहानी भी सुना सकती है।
कई बार बच्चों के रोने की वजह पर आपका कोई नियंत्रण। उदाहरण के लिए मौसम। बड़ों की तुलना में बच्चों का शरीर बदलते मौसम के अनुसार अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होता है।

इसलिए बच्चों को बड़ों की तुलना में ठंडी या गर्मी ज्यादा अनुभव होता है। ठंड के मौसम में बड़ों की तुलना में बच्चों को ठंड से बचाने के लिए ज्यादा कपड़े पहनाने की आवश्यकता है।
इसी तरह गर्मियों के मौसम में बच्चों को अत्यधिक तापमान से बचाने का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। अगर आपका बच्चा रो रहा है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि कमरे का तापमान उसके सहन से बाहर है।
बच्चे को कहीं ज्यादा गर्मी तो नहीं लग रहा है, इस बात का पता आप बच्चे के शरीर को छूकर के लगा सकते हैं। अगर शिशु का शरीर सामान्य से ज्यादा गर्म है तो इसका मतलब उसे ज्यादा गर्म लग रहा है, और अगर इसका शरीर सामान्य से ज्यादा ठंडा है तो इसका मतलब उसे ज्यादा ठंड लग रही है।
शिशु को ऐसे कमरों में रखें यहां का तापमान 22 और 25 डिग्री सेल्सियस के बीच हो।
कई बार नवजात शिशु केवल इसलिए रोते हैं क्योंकि उनके अंदर असुरक्षा की भावना पनप रही है। मां के गर्भ में नवजात शिशु अपने आप को सुरक्षित महसूस करते थे।

जन्म के बाद अब स्थिति उनके लिए वैसी नहीं है। इसलिए आप की गोद में लिपटना और सुरक्षित महसूस करना पसंद करते हैं। जब शिशु आपकी गोद में होता है, तो वह आपके धड़कनों को महसूस कर सकता है।
यह वही धड़कन है जिन्हें आप का शिशु पिछले 9 महीनों से सुनते आ रहा है। आपके गोद में शिशु अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है।

ऊपर जितनी बातें हमने बताई है उन सब का सारांश हम आपकी सुविधा के लिए नीचे दे रहे हैं। इन बातों को अगर आप ध्यान में रखेंगे तो आप अपने रोते हुए शिशु को तुरंत शांत करा पाएंगे।

यदि आप ने ऊपर बताए सभी तरीकों को आजमा कर देख चुकी है लेकिन फिर भी आपका शिशु नहीं शांत हो रहा है तो यह चिंताजनक बात हो सकती है। ऐसी स्थिति में हो सकता है कि आप के शिशु की तबीयत ठीक नहीं है।
क्योंकि छोटे बच्चे बोल कर अपनी तकलीफ को नहीं बता सकते इसीलिए आपको अविलंब अपने शिशु को डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए। इससे अगर आप के शिशु को किसी प्रकार का कोई तकलीफ है तो तुरंत उसका पता चल जाएगा और समय पे उसका इलाज किया जा सकता है।
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विटामिन शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह से मदद करते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं, शरीर के जख्मों को ठीक करते हैं, आंखों की दृष्टि को मजबूत बनाते हैं और शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करते हैं। लेकिन गर्भावस्था के द्वारा विटामिन आपके लिए और की आवश्यक हो जाता है। इस लेख में हम आपको 6 ऐसे महत्वपूर्ण विटामिन के बारे में बताएंगे जो अगर गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर को आहार के माध्यम से ना मिले तो यह आपके लिए तथा आपके गर्भ में पल रहे शिशु दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
नवजात शिशु में कब्ज की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन कुछ घरेलु टिप्स के जरिये आप अपने शिशु के कब्ज की समस्या को पल भर में दूर कर सकेंगी। जरुरी नहीं की शिशु के कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए दावा का सहारा लिया जाये। नवजात शिशु के साथ-साथ इस लेख में आप यह भी जानेंगी की किस तरह से आप बड़े बच्चों में भी कब्ज की समस्या को दूर कर सकती हैं।
बढ़ते बच्चों के लिए विटामिन और मिनिरल आवश्यक तत्त्व है। इसके आभाव में शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है। अगर आप अपने बच्चों के खान-पान में कुछ आहारों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चों के शारीर में विटामिन और मिनिरल की कमी होने से बचा सकती हैं।
दांतों का दर्द बच्चों को बहुत परेशान कर देने वाला होता है। इसमें ना तो बच्चे ठीक से कुछ खा पाते हैं और ना ही किसी अन्य शारीरिक क्रिया में उनका मन लगता है। दांतों में दर्द की वजह से कभी कभी उनके चेहरे भी सूख जाते हैं। अगर शिशु के शरीर किसी अन्य हिस्से पर कोई चोट लगे तो आप उस पर मरहम लगा सकती हैं लेकिन दातों का दर्द ऐसा है कि जिसके लिए आप शिशु को न तो कोई दवाई दे सकती हैं और ना ही किसी स्प्रे का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसी वजह से बच्चों के दातों का इलाज करना बहुत ही चुनौती भरा काम है।
शिशु के जन्म के पश्चात मां को अपनी खान पान (Diet Chart) का बहुत ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय पौष्टिक आहार मां की सेहत तथा बच्चे के स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी है। अगर आपके शिशु का जन्म सी सेक्शन के द्वारा हुआ है तब तो आपको अपनी सेहत का और भी ज्यादा ध्यान रखने की आवश्यकता। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद कौन सा भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर है।
बच्चे या तो रो कर या गुस्से के रूप में अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन बच्चे अगर हर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगे तो आगे चलकर यह बड़ों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। मां बाप के लिए आवश्यक है कि वह समय रहते बच्चे के गुस्से को पहचाने और उसका उपाय करें।
गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बात है। लेकिन प्रेगनेंसी में (बिना सोचे समझे) अपच की की दावा लेना हानिकारक हो सकता है। इस लेख में आप पढ़ेंगी की गर्भावस्था के दौरान अपच क्योँ होता है और आप घरेलु तरीके से अपच की समस्या को कैसे हल कर सकती हैं। आप ये भी पढ़ेंगी की अपच की दावा (antacids) खाते वक्त आप को क्या सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।
बदलते मौसम में शिशु को जुकाम और बंद नाक की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन अच्छी बात यह है की कुछ बहुत ही सरल तरीकों से आप अपने बच्चों की तकलीफों को कम कर सकती हैं और उन्हें आराम पहुंचा सकती हैं।
शिशु को 2 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मेनिंगोकोकल के खतरनाक बीमारी से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
गर्भावस्था के बाद तंदरुस्ती बनाये रखना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है। लेकिन कुछ छोटी-मोती बातों का अगर ख्याल रखा जाये तो आप अपनी पहली जैसी शारीरिक रौनक बार्कर रख पाएंगी। उदहारण के तौर पे हर-बार स्तनपान कराने से करीब 500 600 कैलोरी का क्षय होता है। इतनी कैलोरी का क्षय करने के लिए आपको GYM मैं बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
दूध वाली सेवई की इस recipe को 6 से 12 महीने के बच्चों को ध्यान मे रख कर बनाया गया है| सेवई की यह recipe है छोटे बच्चों के लिए सेहत से भरपूर| अब नहीं सोचना की 6 से 12 महीने के बच्चों को खाने मे क्या दें|
सूजी का हलवा protein का अच्छा स्रोत है और यह बच्चों की immune system को सुदृण करने में योगदान देता है। बनाने में यह बेहद आसान और पोषण (nutrition) के मामले में इसका कोई बराबरी नहीं।
माँ-बाप सजग हों जाएँ तो बहुत हद तक वे आपने बच्चों को यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं। भारत में बाल यौन शोषण से सम्बंधित बहुत कम घटनाएं ही दर्ज किये जाते हैं क्योँकि इससे परिवार की बदनामी होने का डर रहता है। हमारे भारत में एक आम कहावत है - 'ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।'
बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए बचपन से ही उन्हें अच्छे और बुरे में अंतर करना सिखाएं। यह भी जानिए की बच्चों को बुरी संगत से कैसे बचाएं। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दीजिये।
हर मां बाप अपने बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करना चाहते हैं जिससे उनके शिशु को कभी भी कुपोषण जैसी गंभीर समस्या का सामना ना करना पड़े और उनके बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास बेहतरीन तरीके से हो सके। अगर आप भी अपने शिशु के पोषण की सभी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले यह समझना पड़ेगा किस शिशु को कुपोषण किस वजह से होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कुपोषण क्या है और यह किस तरह से बच्चों को प्रभावित करता है (What is Malnutrition & How Does it Affect children?)।
दांत का निकलना एक बच्चे के जिंदगी का एहम पड़ाव है जो बेहद मुश्किलों भरा होता है। इस दौरान तकलीफ की वजह से बच्चे काफी परेशान करते हैं, रोते हैं, दूध नहीं पीते। कुछ बच्चों को तो उलटी, दस्त और बुखार जैसे गंभीर लक्षण भी देखने पड़ते हैं। आइये जाने कैसे करें इस मुश्किल दौर का सामना।
अगर आप का शिशु भी रात को सोने के समय बहुत नटखट करता है और बिलकुल भी सोना नहीं चाहता है तो जानिए अपने शिशु की सुलाने का आसन तरीका। लेकिन बताये गए तरीकों को आप को दिनचर्या ताकि आप के शिशु को रात को एक निश्चित समय पे सोने की आदत पड़ जाये।
छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।
छोटे बच्चों के लिए शहद के कई गुण हैं। शहद बच्चों को लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शदह मैं पाए जाने वाले विटामिन और मिनिरल जखम को जल्द भरने में मदद करते है, लिवर की रक्षा करते हैं और सर्दियों से बचते हैं।
दूध से होने वाली एलर्जी को ग्लाक्टोसेमिया या अतिदुग्धशर्करा कहा जाता है। कभी-कभी आप का बच्चा उस दूध में मौजूद लैक्टोज़ शुगर को पचा नहीं पाता है और लैक्टोज़ इंटॉलेन्स का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से उसे उलटी , दस्त व गैस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बच्चों में दूध में मौजूद दूध से एलर्जी होती है जिसे हम और आप पहचान नहीं पाते हैं और त्वचा में इसके रिएक्शन होने लगता है।