Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺12 min read
शिशु में ठोस आहार की शुरुआत छेह महीने पूर्ण होने पे आप कर सकती हैं। लेकिन ठोस आहार शुरू करते वक्त कुछ महत्वपूर्ण बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि आप के बच्चे के विकास पे विपरीत प्रभाव ना पड़े। ऐसा इस लिए क्यूंकि दूध से शिशु को विकास के लिए जरुरी सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं - लेकिन ठोस आहार देते वक्त अगर ध्यान ना रखा जाये तो भर पेट आहार के बाद भी शिशु को कुपोषण हो सकता है - जी हाँ - चौंकिए मत - यह सच है!

अन्नप्राशन वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चों में ठोस आहार की शुरुआत की जाती है।
शिशु में ठोस आहार शुरू करने से पहले सबसे महत्वपूर्ण बात जानिए!

छह महीनों से पहले शिशु को स्तनपान के आलावा कोई आहार न दें (एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग) - पानी तक नहीं।
मैं जनता हूँ की यह बात आप को पहले से पता है - लेकिन इसलिए बता रहा हूँ ताकि कुछ माताएं जिन्हे अगर न पता हो तो उन्हें भी इसकी जानकारी हो जाये।

एक बार शिशु जब छह महीने का हो जाता है तब उसका शरीर संक्रमण और कीटाणुओं का सामना बेहतर ढंग से करने में सक्षम हो जाता है।
हालाँकि शिशु को छह महीने से पहले ठोस आहार नहीं देना चाहिए, मगर कई बार शिशु की चिकित्सीय अवस्था देखते हुए डॉक्टर समय से पूर्व भी शिशु को ठोस आहार शुरुर कर देने की सलाह दे देते हैं। ये घटनाएं बहुत ही दुर्लभ घटनाएं हैं।
पढ़िए: बच्चे में ठोस आहार की शुरुआत करते वक्त किन चीजों की आवश्यकता पड़ेगी आपको?
आप अपने शिशु को कभी भी समय से पहले ठोस आहार की शुरुआत न करें। केवल एक डॉक्टर ही शिशु की अवस्थ को देखते हुआ इस बात का निर्णय ले सकता है की शिशु को समय से पहले ठोस आहार देना चाहिए - या - नहीं।

कुछ दुर्लभ घटनाओं में ऐसे शिशु देखे गए हैं जिनका पर्याप्त स्तनपान के बाद भी वजन नहीं बढ़ता है। यह ऐसी स्थिति होती है जब डॉक्टर 17 से 26 सप्ताह के बीच ही नवजात बच्चे को शिशु आहार देने की सलाह दे देते हैं।
यह ऐसी स्थितियां होती हैं जब बच्चे को आहार के प्रति एलेर्जी होने पे भी ठोस आहार दे दिया जाता है। यहां तक की अगर बच्चा प्रीमैच्योर - यानी की समय पूर्व पैदा हुआ है तो भी ठोस आहार दे दिया जाता है।
यह बात सभी बच्चों पे लागु नहीं होती है। किन्ही विशेष परिस्थितियोँ में ही डॉक्टर ऐसा करने की सलाह देते हैं।

आप अपने बच्चे में कुछ संकेत देख सकती हैं जो बहुत ही स्पष्ट तौर पे आप को बताती हैं की आप का बच्चा ठोस आहार ग्रहण करने के लायक हो गया है। इन लक्षणों के दुवारा जाने की आप का शिशु ठोस आहार के लिए त्यार है
छह महीने के शिशु का मुँह इतना विकसित हो जाता है की वो आहार को मुँह में रख सके और चबा सके।

हर बच्चे में दाँत अलग-अलग समय पे निकलता है। कुछ बच्चों में छह महीने पे ही सारे दाँत निकल जाते हैं - वहीँ कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनके दाँत निकलने में 24 महीने लग जाते हैं। कुछ बच्चों में और ज्यादा भी लग सकता है।
ठोस आहार शुरू करते समय जरुरी नहीं की शिशु के दाँत निकले हों। शिशु के जबड़े इतने मजबूत होते हैं की वे शिशु-आहार ग्रहण कर सके। अक्सर देखा गया है की जो बच्चे अंगूठा नहीं चूसते या अपने खिलौनों को कभी मुँह में नहीं डालते, उनके दन्त देर से निकलते हैं।


अगर आप के शिशु का दाँत निकलने में समय लग रहा हो तो आप शिशु को चबाने के लिए रबर के खिलौने दे सकती हैं। आप अपने शिशु को ऊँगली के आकर का कच्चा गाजर भी चबाने के लिए दे सकती हैं।

छह महीने तक माँ का दूध पर्याप्त होता है शिशु के शारीरिक विकास की आवश्यकताओं पूरा करने में। लेकिन छह महीने में आप का शिशु इतना बड़ा हो गया है की केवल माँ का दूध उसके लिए पर्याप्त नहीं है। यह ऐसा समय है जब आप का शिशु शारीरिक तौर पे बहुत ही तीव्र गति से विकासशील होता है। ऐसे में शिशु को बहुत पोषण की आवश्यकता होती है। इसीलिए माँ के दूध के साथ-साथ शिशु को ठोस आहार देना शुरू कर देना चाहिए।

शिशु में ठोस आहार की शुरुआत करते वक्त भोजन के तीन दिवसीय नियम का पालन अवशय करें। इससे आप को यह पता चल जायेगा की आप का बच्चा किसी आहार के प्रति एलर्जी है या नहीं।
अगर आप के बच्चे में किसी आहार के प्रति एलेर्जी के लक्षण दिखे तो आप अपने शिशु को वो आहार अगले तीन महीनो तक न दें।
तीन महीने के बाद उस आहार की थोड़ी सी मात्रा अपने बच्चे को फिर से दे के देखने को क्या वो आहार ग्रहण करने लायक हो गया है या नहीं।
अगर शिशु आहार को आसानी बिना परेशानी के ग्रहण कर लेते है तो ठीक है वार्ना फिर से तीन महीने रूक कर कोशिश करें।
छोटे बच्चों में कुछ आहार पे प्रति एलेर्जी इस लिए पैदा हो जाता है क्योँकि उनके पाचन तंत्र पूरी तरह से विकसित नहीं है और जैसे-जैसे उनका पाचन तंत्र पूरी तरह से विकसित हो जायेगा, उसकी आहार से एलर्जी की समस्या भी समाप्त हो जाएगी।

भोजन का तीन दिवसीय नियम इस बात पे आधारित है की जब भी शिशु को आप कोई आहार पहली बार दें तो एक बार में एक ही भोजन दें। तथा तीन दिन तक वही आहार दें और कोई भी अन्य आहार न दें।
छठे या पांचवे दिन से आप शिशु को कुछ आहार दे सकती हैं। इससे यह बात पता चल जायेगा की इन तीन दिनों में जो आहार आप ने शिशु को दिया है उससे शिशु को एलेर्जी हो रही है यह नहीं।

कुछ आहार बच्चीं में एलेर्जी पैदा करने के लिए जाने जाते हैं क्योकि अधिकांश बच्चों को ऐसे आहारों से एलेर्जी का सामना करना पड़ता है।
उदहारण के लिए गेहूं, डेरी उत्पाद तथा अंडा इत्यादि। ये आहार आने बच्चों को तब तक न दें जब तक की आप का शिशु आठ महीने का न हो जाये।

शिशु की स्वाद कोशिकाएं इतनी विकसित नहीं हैं जितनी की आप की। अभी आप का शिशु केवल कुछ ही स्वाद पहचान सकता है।
शिशु के आहार में स्वाद के लिए चीनी और नमक डालने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक बार जब आप का शिशु आठ महीने का हो जाये तो आप बहुत हल्का से चीनी या नमक शिशु के आहार में इस्तेमाल कर सकती हैं।
इनकी थोड़ी सी मात्रा ही आप के शिशु के लिए काफी है। आठ महीने की उम्र में आप अपने शिशु के आहार में हल्का-फुल्का मसलों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।

शिशु के लिए पसंद - न - पसंद जैसी कोई चीज़ नहीं है। शिशु में आहार पे प्रति रूचि पैदा होने में कई दिन लग सकते हैं।
आप अपने शिशु को आहार न पसंद आने पे भी बीस दिनों (20 days) उसे आहार दें।
कुछ दिनों के अंदर आप के शिशु को आहार का स्वाद जाना-पहचाना लगने लगेगा। जिन आहारों को शिशु नहीं जानते उन्हें खाना पसंद नहीं करते हैं।
जब भी आप अपने शिशु को कोई आहार पहली बार दें तो उस आअहार को खाने के बाद शिशु के प्रतिक्रिया को ध्यान से देखें।
अगर आप को शिशु में कुछ खास बदलाव दिखे जैसे की शिशु को खुजली, सूखापन, आंतों मे ऐंठन, या त्वचा पे चकते (यानी रशेस) दिखें तो तुरंत शिशु विशेषज्ञ की रे लें। संभव है शिशु को इस नए आहार से एलेर्जी हो रही है।
इस आहार को शिशु को अगले तीन महीनों तक न खिलाएं। तीन महीने के बाद इस आहार को शुरू करने से पहले डॉक्टर (शिशु रोग विशेषज्ञ) की राय अवशय ले लें।

जब आप का बच्चा एक साल का हो जाये तो आप अपने बच्चे को सूखी बिस्कुट, फलों का जूस और सब्जियों का शोरबा भी दे सकती हैं। कोशिश करें की शिशु को विभिन्न प्रकार के आहार मिलें।
क्योँकि एक ही प्रकार के आहार से शिशु को सभी प्रकार के पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते हैं। कई तरह के आहार दे कर आप यह सुनिश्चित कर सकती हैं की आप के बच्चे को उसके शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए जरुरी सभी प्रकार के पोषक तत्त्व मिल पा रहे हैं।
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बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
केवल बड़े ही नहीं वरन बच्चों को भी बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के शिकार हो सकते हैं। इस मानसिक अवस्था का जितनी देरी इस इलाज होगा, शिशु को उतना ज्यादा मानसिक रूप से नुक्सान पहुंचेगा। शिशु के प्रारंभिक जीवन काल में उचित इलाज के दुवारा उसे बहुत हद तक पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए जरुरी है की समय रहते शिशु में बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के लक्षणों की पहचान की जा सके।
विज्ञान और तकनिकी विकास के साथ साथ बच्चों के थेड़े-मेढे दातों (crooked teeth) को ठीक करना अब बिना तार के संभव हो गया है। मुस्कुराहट चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाता है। लेकिन अगर दांत थेड़े-मेढे (crooked teeth) तो चेहरे की खूबसूरती को कम कर देते हैं। केवल इतना ही नहीं, थेड़े-मेढे दातों (crooked teeth) आपके बच्चे के आत्मविश्वास को भी कम करते हैं। इसीलिए यह जरूरी है कि अगर आपके बच्चे के दांत थेड़े-मेढे (crooked teeth) हो तो उनका समय पर उपचार किया जाए ताकि आपके शिशु में आत्मविश्वास की कमी ना हो। इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह आप अपने बच्चे के थेड़े-मेढे दातों (crooked teeth) को बिना तार या ब्रेसेस के मदद के ठीक कर सकते हैं।
अन्य बच्चों की तुलना में कुपोषण से ग्रसित बच्चे वजन और ऊंचाई दोनों ही स्तर पर अपनी आयु के हिसाब से कम होते हैं। स्वभाव में यह बच्चे सुस्त और चढ़े होते हैं। इनमें दिमाग का विकास ठीक से नहीं होता है, ध्यान केंद्रित करने में इन्हें समस्या आती है। यह बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। कुछ बच्चों में दांत निकलने में भी काफी समय लगता है। बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि शिशु के भोजन में हर प्रकार के आहार को सम्मिलित किया जाएं।
यूटीआई संक्रमण के लक्षण, यूटीआई संक्रमण से बचाव, इलाज। गर्भावस्था के दौरान क्या सावधानियां बरतें। यूटीआई संक्रमण क्या है? यूटीआई का होने वाले बच्चे पे असर। यूटीआई संक्रमण की मुख्या वजह।
गर्भवती महिला में उल्टी और मतली का आना डोक्टर अच्छा संकेत मानते हैं। इसे मोर्निंग सिकनेस भी कहते हैं और इसकी वजह है स्त्री के शारीर में प्रेगनेंसी हॉर्मोन (hCG) का बनना। जाने क्योँ जरुरी है गर्भावस्था में उल्टी और मतली के लक्षण और इसके ना होने से गर्भावस्था को क्या नुक्सान पहुँच सकता है।
कहानियां सुनने से बच्चों में प्रखर बुद्धि का विकास होता है। लेकिन यह जानना जरुरी है की बच्चों को कौन सी कहानियां सुनाई जाये और कहानियौं को किस तरह से सुनाई जाये की बच्चों के बुद्धि का विकास अच्छी तरह से हो। इस लेख में आप पढ़ेंगी कहानियौं को सुनने से बच्चों को होने वाले सभी फायेदों के बारे में।
Online BMI Calculator - बॉडी मास इन्डेक्स (BMI) का गणना करने के लिए आप को BMI calculator में अपना वजन और अपनी लम्बाई दर्ज करनी है। सब्मिट (submit) दबाते है calculator आप के BMI को दिखा देगा।
जिस शिशु का BMI 85 से 94 परसेंटाइल (percentile) के बीच होता है, उसका वजन अधिक माना जाता है। या तो शिशु में body fat ज्यादा है या lean body mass ज्यादा है। स्वस्थ के दृष्टि से शिशु का BMI अगर 5 से 85 परसेंटाइल (percentile) के बीच हो तो ठीक माना जाता है। शिशु का BMI अगर 5 परसेंटाइल (percentile) या कम हो तो इसका मतलब शिशु का वजन कम है।
इसमें हानिकारक carcinogenic तत्त्व पाया जाता है। यह त्वचा को moisturize नहीं करता है - यानी की - यह त्वचा को नमी प्रदान नहीं करता है। लेकिन त्वचा में पहले से मौजूद नमी को खोने से रोक देता है। शिशु के ऐसे बेबी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जिनमे पेट्रोलियम जैली/ Vaseline की बजाये प्राकृतिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया हो जैसे की नारियल का तेल, जैतून का तेल...
आप का बच्चा शायद दूध पिने के बाद या स्तनपान के बाद हिचकी लेता है या कभी कभार हिचकी से साथ थोड़ सा आहार भी बहार निकल देता है। यह एसिड रिफ्लक्स की वजह से होता है। और कोई विशेष चिंता की बात नहीं है। कुछ लोग कहते हैं की हिचकी तब आती है जब कोई बच्चे को याद कर रहा होता है। कुछ कहते हैं की इसका मतलब बच्चे को गैस या colic हो गया है। वहीँ कुछ लोग यह कहते है की बच्चे का आंत बढ़ रहा है। जितनी मुँह उतनी बात।
शिक्षक वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ माना जाता है। शिक्षक ही एक अबोध तथा बाल - सुलभ मन मस्तिष्क को उच्च शिक्षा व आचरण द्वारा श्रेष्ठ, प्रबुद्ध व आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के माध्यम आश्रम व गुरुकुल हुआ करते थे। वहां गुरु जन बच्चों के आदर्श चरित के निर्माण में सहायता करते थे।
बच्चे को सुलाने के नायब तरीके - अपने बच्चे को सुलाने के लिए आप ने तरत तरह की कोशिशें की होंगी। जैसे की बच्चे को सुलाने के लिए उसको कार में कई चक्कर घुमाया होगा, या फिर शुन्य चैनल पे टीवी को स्टार्ट कर दिया होगा ताकि उसकी आवाज से बच्चा सो जाये। बच्चे को सुलाने का हर तरीका सही है - बशर्ते की वो तरीका सुरक्षित हो।
12 महीने या 1 साल के बच्चे को अब आप गाए का दूध देना प्रारम्भ कर सकते हैं और साथ ही उसके ठोस आहार में बहुत से व्यंजन और जोड़ सकते हैं। बढ़ते बच्चों के माँ-बाप को अक्सर यह चिंता रहती है की उनके बच्चे को सम्पूर्ण पोषक तत्त्व मिल पा रहा है की नहीं? इसीलिए 12 माह के बच्चे का baby food chart (Indian Baby Food Recipe) बच्चों के आहार सारणी की जानकारी दी जा रही है। संतुलित आहार चार्ट
सब्जियों की puree एक बहुत ही आसान तरीका है झटपट baby food त्यार करने का| बच्चे को हरी सब्जियां खिलाइये, मगर बाजार से baby food खरीद कर नहीं बल्कि ताज़ा घर में बना कर| घर में बने बच्चे के आहार में आप को पता रहेगा की आप के बच्चे के भोजन में क्या-क्या है| बाजार का बना बेबी फ़ूड महंगा भी बहुत होता है| घर पे आप इसे बहुत ही कम कीमत में बना लेंगे|
इन्फ्लुएंजा वैक्सीन (Influenza Vaccine in Hindi) - हिंदी, - इन्फ्लुएंजा का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
एक साल से ले कर नौ साल (9 years) तक के बच्चों का डाइट प्लान (Diet Plan) जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में सकारात्मक योगदान दे। शिशु का डाइट प्लान (Diet Plan) सुनिश्चित करता है की शिशु को सभी पोषक तत्त्व सही अनुपात में मिले ताकि शिशु के विकास में कोई रूकावट ना आये।
टीकाकरण बच्चो को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।अपने बच्चे को टीकाकरण चार्ट के अनुसार टीके लगवाना काफी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के जरिये आपके बच्चे के शरीर का सामना इन्फेक्शन (संक्रमण) से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
ठोस आहार के शुरुवाती दिनों में बच्चे को एक बार में एक ही नई चीज़ दें। नया कोई भी भोजन पांचवे दिन ही बच्चे को दें। इस तरह से, अगर किसी भी भोजन से बच्चे को एलर्जी हो जाये तो उसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।