Category: बच्चों की परवरिश
By: Salan Khalkho | ☺3 min read
10वीं में या 12वीं की बोर्ड परीक्षा में ज्यादा अंक लाना उतना मुश्किल भी नहीं अगर बच्चा सही और नियमित ढंग से अपनी तयारी (पढ़ाई) करे। शुरू से ही अगर बच्चा अपनी तयारी प्रारम्भ कर दे तो बोर्ड एग्जाम को लेकर उतनी चिंता और तनाव का माहौल नहीं रहेगा।

बोर्ड की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों में अगर आप का बच्चा भी है तो आप इस बात को लेकर जरूर परेशान होंगे की आप का बच्चा कैसा perform करेगा और उसको कितने marks मिलेंगे। बोर्ड एक्साम्स का डर न केवल बच्चों में बल्कि पुरे परिवार में दीखता है।
10वीं में या 12वीं की बोर्ड परीक्षा में ज्यादा अंक लाना उतना मुश्किल भी नहीं अगर बच्चा सही और नियमित ढंग से अपनी तयारी (पढ़ाई) करे। शुरू से ही अगर बच्चा अपनी तयारी प्रारम्भ कर दे तो बोर्ड एग्जाम को लेकर उतनी चिंता और तनाव का माहौल नहीं रहेगा।
बोर्ड एग्जाम की तयारी के लिए माँ-बाप क्या करें
एक बार आप का बच्चा जैसे ही 10वीं में या 12वीं में पहुंचे उसे परीक्षा के बारे में गम्भीरता से बात करें। उससे बातें करें की उसे बोर्ड एग्जाम की तयारी में किस तरह की मदद की आवश्यकता पड़ेगी। उससे कहें की वो पहले दिन से ही अपने बोर्ड एग्जाम की तयारी में जुट जाये।
बच्चों को शुरू से ही यह बताये की मार्क्स की बजाय वो अपनी पढ़ाई में अपना ध्यान केंद्रित करें। बच्चों को यह समझना जरुरी है की केवल मार्क्स ही महत्व पूर्ण नहीं है वरन मार्क्स के साथ साथ विषय की अछि समझ भी जरुरी है।
योजनाबद्ध तरीके से board exam की तयारी करवाएं
योजनाबद्ध तरीके से board exam की तयारी में अपने बच्चे को session के शुरुआत से ही करने के लिए प्रोत्साहित करें। पुरे घर में इस दौरान पढ़ाई का माहौल बने रहने दें। बच्चे exam के दौरान अक्सर तनाव मैं आ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योँकि exam की तयारी ही बच्चे board exam के शुरू होने के कुछ दिन पहले से ही शुरुर करते हैं। ऐसे में बच्चों का तनावग्रस्त होना लाजमी है।
5 Tips - Board Exam की बेहतर तयारी के लिए
- अपने बच्चे को exam के तयारी के लिए एक रूटीन का पालन करने में मदद करें। जितना जल्दी आप के बच्चे का रूटीन (routine) स्थापित हो जायेगा उतना जल्दी आप के बच्चे की अच्छी तयारी भी शुरू हो जाएगी। रूटीन (routine) को स्थापित करने के लिए बच्चे को कहें की वो अपनी दिनचर्या के अनुसार पढ़ाई का time table बनाये। ये कहना ज्यादा उचित रहेगा की बच्चे को अपनी दिनचर्या के अनुसार नहीं वरन हो सके तो पढ़ाई के अनुसार अपने दिनचर्या को ढाल ले। इससे पढ़ाई के लिए बेहतर time table.
स्थापित करने में मदद मिलेगी।
आपने बच्चों के स्कूल टीचर से नियमित रूप से संपर्क में रहें। अगर आप का बच्चा किसी विषय में परेशानी महसूस कर रहा है तो उसके टीचर से बात करें, टीचर की बातून को गम्भीरता से सुने और बच्चे की समस्या को हल करने का विकल्प ढूंढे।
बच्चा अगर किसी विषय में कमजोर है तो उसके लिए घर पर ही टूशन का इंतेज़ाम कर सकते हैं या आप उसे शहर के बढ़िया coaching center में भी भेज सकते हैं। ऐसा करने पे बच्चे का फोकस उस subject में बढ़ेगा।
10वीं में या 12वीं की बोर्ड परीक्षा के दौरान बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट से दूर रखें। बोर्ड परीक्षा के दौरान बच्चों पे बहुत ज्यादा दबाव न बनायें। उन्हें प्यार से समझएं की मोबाइल-इंटरनेट के कारन उनका ध्यान भटक सकता है और exam की तयारी करने में focus कम हो सकता है। आप चाहें तो अपने बच्चे को दिन में आधा घंटे के लिए internet इस्तेमाल करने के लिए इजाजत दे सकते हैं।
हर संभव कोशिश करें की आप के बच्चे के exam के तयारी के लिए घर पे पढ़ाई का उचित माहौल बना रहे - जैसे की जब बच्चे पढ़ रहें हों तो TV बंद रहे और मेहमानो का उस समय के दौरान आना कम रहे।
10वीं में या 12वीं की बोर्ड परीक्षा के दौरान छुट्टियों में कहीं जाने का प्लान कैंसल क्र दें। Vacation का समय बच्चों की तयारी के लिए एक बढ़िया अवसर यही। एक बार जब परीक्षा समाप्त हो जाये तो पूरी फैमिली के साथ घूमने जाएँ।
बच्चों को थोड़ी देर के लिए घर से बहार अपने दोस्तों से मिलने के लिए जाने दें। मगर उन्हें समय पे घर आने के लिए जरुरी हिदायत जरूर दें।
बोर्ड एग्जाम के तयारी के दौरान सोना बहुत जरुरी है। अगर बच्चे की नींद पूरी हो रही है तो बच्चा पढ़ाई में ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पायेगा। नींद पूरी नहीं होने पे अपच, अनिंद्रा, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द जैसी परेशानी भी बच्चे को झेलनी पढ़ सकती है।
इस दौरान बच्चे के आहार के पौष्टिकता के बारे में ध्यान रखें। बच्चे को घर का बना पौष्टिक खाना, दूध, फल, ड्राइफूट्स दें।अगर आप इन बातों का ख्याल रखेंगे तो आप का बच्चा बोर्ड एग्जाम के दौरान टेंशन में नहीं रहेगा और बेहतर तयारी कर पायेगा।
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10 ऐसे आसान तरीके जिनकी सहायता से आप अपने नवजात शिशु में कब्ज की समस्या का तुरंत समाधान कर पाएंगी। शिशु के जन्म के शुरुआती दिनों में कब्ज की समस्या का होना बहुत ही आम बात है। अपने बच्चे को कब्ज की समस्या से होने वाले तकलीफ से गुजरते हुए देखना किसी भी मां-बाप के लिए आसान नहीं होता है।
जो बच्चे सिर्फ स्तनपान पर निर्भर रहते हैं उन्हें हर दिन मल त्याग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मां के दूध में उपलब्ध सभी पोषक तत्व शिशु का शरीर ग्रहण कर लेता है। यह बहुत ही आम बात है। प्रायर यह भी देखा गया है कि जो बच्चे पूरी तरह से स्तनपान पर निर्भर रहते हैं उनमें कब्ज की समस्या भी बहुत कम होती है या नहीं के बराबर होती है।
जो बच्चे फार्मूला दूध पर निर्भर रहते हैं उन्हें प्रायः देखा गया है कि वे दिन में तीन से चार बार मल त्याग करते हैं - या फिर कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जिन्हें अगर फार्मूला दूध दिया जाए तो वह हर कुछ कुछ दिन रुक कर मल त्याग करते हैं।
नवजात शिशु में कब्ज की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन कुछ घरेलु टिप्स के जरिये आप अपने शिशु के कब्ज की समस्या को पल भर में दूर कर सकेंगी। जरुरी नहीं की शिशु के कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए दावा का सहारा लिया जाये। नवजात शिशु के साथ-साथ इस लेख में आप यह भी जानेंगी की किस तरह से आप बड़े बच्चों में भी कब्ज की समस्या को दूर कर सकती हैं।
बच्चों की आंखों में काजल लगाने से उनकी खूबसूरती बहुत बढ़ जाती है। लेकिन शिशु की आंखों में काजल लगाने के बहुत से नुकसान भी है। इस लेख में आप शिशु की आँखों में काजल लगाने के सभी नुकसानों के बारे में भी जानेंगी।
जानिए की आप अपनी त्वचा की देखभाल किस तरह कर सकती हैं की उन पर झुर्रियां आसानी से ना पड़े। अगर ये घरेलु नुस्खे आप हर दिन आजमाएंगी तो आप की त्वचा आने वाले समय में अपने उम्र से काफी ज्यादा कम लगेंगे।
सभी बचों का विकास दर एक सामान नहीं होता है। यही वजह है की जहाँ कुछ बच्चे ढाई साल का होते होते बहुत बोलना शुरू कर देते हैं, वहीँ कुछ बच्चे बोलने मैं बहुत समय लेते हैं। इसका मतलब ये नहीं है की जो बच्चे बोलने में ज्यादा समय लेते हैं वो दिमागी रूप से कमजोर हैं, बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है की उन्हें शारीरिक रूप से तयार होने में थोड़े और समय की जरूरत है और फिर आप का भी बच्चा दुसरे बच्चों की तरह हर प्रकार की छमता में सामान्य हो जायेगा।आप शिशु के बोलने की प्रक्रिया को आसन घरेलु उपचार के दुवारा तेज़ कर सकती हैं।
हर माँ-बाप को कभी-ना-कभी अपने बच्चों के जिद्दी स्वाभाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अधिकांश माँ-बाप जुन्झुला जाते है और गुस्से में आकर अपने बच्चों को डांटे देते हैं या फिर मार भी देते हैं। लेकिन इससे स्थितियां केवल बिगडती ही हैं। तीन आसान टिप्स का अगर आप पालन करें तो आप अपने बच्चे को जिद्दी स्वाभाव का बन्ने से रोक सकती हैं।
इसमें हानिकारक carcinogenic तत्त्व पाया जाता है। यह त्वचा को moisturize नहीं करता है - यानी की - यह त्वचा को नमी प्रदान नहीं करता है। लेकिन त्वचा में पहले से मौजूद नमी को खोने से रोक देता है। शिशु के ऐसे बेबी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जिनमे पेट्रोलियम जैली/ Vaseline की बजाये प्राकृतिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया हो जैसे की नारियल का तेल, जैतून का तेल...
नवजात शिशु को डायपर के रैशेस से बचने का सरल और प्रभावी घरेलु तरीका। बच्चों में सर्दियौं में डायपर के रैशेस की समस्या बहुत ही आम है। डायपर रैशेस होने से शिशु बहुत रोता है और रात को ठीक से सो भी नहीं पता है। लेकिन इसका इलाज भी बहुत सरल है और शिशु तुरंत ठीक भी हो जाता है। - पढ़िए डायपर के रैशेस हटाने के घरेलू नुस्खे।
शिशु के जन्म के तुरंत बाद कौन कौन से टीके उसे आवश्यक रूप से लगा देने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी येहाँ प्राप्त करें - complete guide।
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जब मछरों का आतंक छाता है तो मनुष्यों में दहशत फ़ैल जाता है। क्योँ की मछरों से कई तरह की बीमारी फैलती है जैसे की डेंगू। डेंगू की बीमारी फ़ैलतु है एक विशेष प्रकार में मछरों के द्वारा जिन्हे कहते हैं - ‘Aedes aegypti mosquito’। डेंगू एक जानलेवा बीमारी है और यह इतनी दर्दनाक बीमारी है की इसका पीड़ित जिंदगीभर इसके दुष्प्रभावों को झेलता है। जानिए की बच्चों को किस तरह डेंगू से बचाएं।
बचपन में शिशु का शारीर बहुत तीव्र गति से विकसित होता है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में कैल्शियम एहम भूमिका निभाता है। बच्चों के active growth years में अगर उन्हें उनके आहार से कैल्शियम न मिले तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है।
गर्भवती महिलाएं जो भी प्रेगनेंसी के दौरान खाती है, उसकी आदत बच्चों को भी पड़ जाती है| भारत में तो सदियोँ से ही गर्भवती महिलायों को यह नसीहत दी जाती है की वे चिंता मुक्त रहें, धार्मिक पुस्तकें पढ़ें क्योँकि इसका असर बच्चे पे पड़ता है| ऐसा नहीं करने पे बच्चे पे बुरा असर पड़ता है|
बच्चे को छूने और उसे निहारने से उसके दिमाग के विकास को गति मिलती है। आप पाएंगे की आप का बच्चा प्रतिक्रिया करता है जिसे Babinski reflex कहते हैं। नवजात बच्चे के विकास में रंगों का महत्व, बच्चे से बातें करना उसे छाती से लगाना (cuddle) से बच्चे के brain development मैं सहायता मिलती है।
माँ-बाप सजग हों जाएँ तो बहुत हद तक वे आपने बच्चों को यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं। भारत में बाल यौन शोषण से सम्बंधित बहुत कम घटनाएं ही दर्ज किये जाते हैं क्योँकि इससे परिवार की बदनामी होने का डर रहता है। हमारे भारत में एक आम कहावत है - 'ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।'
बचपन के समय का खान - पान और पोषण तथा व्यायाम आगे चल कर हड्डियों की सेहत निर्धारित करते हैं।
आइये अब हम आपको कुछ ऐसे आहार से परिचित कराते है , जिससे आपके बच्चे को कैल्शियम और आयरन से भरपूर पोषक तत्व मिले।
माँ का दूध बच्चे की भूख मिटाता है, उसके शरीर की पानी की आवश्यकता को पूरी करता है, हर प्रकार के बीमारी से बचाता है, और वो सारे पोषक तत्त्व प्रदान करता है जो बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए और अच्छे शारारिक विकास के लिए जरुरी है। माँ का दूध बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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टीकाकरण बच्चो को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।अपने बच्चे को टीकाकरण चार्ट के अनुसार टीके लगवाना काफी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के जरिये आपके बच्चे के शरीर का सामना इन्फेक्शन (संक्रमण) से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
बच्चे के जन्म के समय लगने वाले टीके के प्रभाव को बढ़ाने के लिए बूस्टर खुराकें दी जाती हैं। समय बीतने के पश्चात, एंटीबॉडीज का असर भी कम होने लगता है। फल स्वरूप बच्चे के शरीर में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। बूस्टर खुराक बच्चे के शरीर में एंटीबॉडीज का जरुरी लेवल बनाए रखती है।बूस्टर खुराकें आपके बच्चे को रोगों से सुरक्षित व संरक्षित रखती हैं।