Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
Jaundice in newborn: Causes, Symptoms, and Treatments - जिन बच्चों को पीलिया या जॉन्डिस होता है उनके शरीर, चेहरे और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलिया के कारण बच्चे को केर्निकेटरस नामक बीमारी हो सकती है। यह बीमारी बच्चे के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है।

आज के युग में नवजात बच्चों में पीलिया एक आम बात है। जन्म के समय अधिकांश बच्चों को पीलिये की बीमारी से घिरे देखा गया है।
पीलिया रोग में बच्चे की आँखें और शरीर पिली पड़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योँकि बच्चे का शरीर पूरी तरह विकसित नहीं होता और उसका liver रक्त में मौजूद बिलीरूबिन को छान कर शरीर से बहार नहीं कर पाता है।
इस वजह से बच्चे के रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा अधिक हो जाती है। इस स्थिति को जॉन्डिस (jaundice) कहा जाता है।

साधारणत्या बच्चों में पीलिया रोग (jaundice) का पता 5 दिनों के अंदर चल जाता है। जन्म के बाद अगर बच्चे में जॉन्डिस के लक्षण दीखते हैं तो बच्चे को अस्पताल में ही रोक लिए जाता है ताकि शिशु का सही इलाज समय पे किया का सके।
अस्पताल में बच्चे को शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी में रखा जाता है। अधिकांश बच्चों में पीलिया रोग के लक्षण बहुत ही हलके होते हैं और लगभग दो सप्ताह में स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
अधिकांश बच्चों में पीलिये (जॉन्डिस) खतरनाक स्तर पे नहीं पहुँचता है और उपचार के 2 से 3 सप्ताह में ये पूरी तरह ठीक हो जाता है।
लेकिन अगर ये खतरनाक स्तर तक पहुँच जाये तो बिलीरूबिन की अधिकता बच्चे के मस्तिष्क को हानी पहुंचा सकता है। इस स्थिति को kernicterus कहते हैं।
अगर नवजात बच्चे की समय पे उपचार नहीं किया गया तो यह बच्चे के दिमाग को छतीग्रस्त कर सकता या बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है।
नवजात बच्चे में पीलिये (जॉन्डिस) ठीक होने में जन्म से 3 से 12 सप्ताह का समय लग जाता है। अगर बच्चे को अच्छे से स्तनपान कराया जा रहा है और समय-समय पे बच्चे के रक्त में bilirubin की मात्रा का का निरक्षण किया जा रहा हो तो बच्चे मैं पीलिये की स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है।

What are the signs of jaundice? - जिन बच्चों को पीलिया या जॉन्डिस होता है उनके शरीर, चेहरे और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलिये का यह सबसे आम लक्षण है। मगर इन सबके आलावा और भी कुछ लक्षण बच्चों में देखे जा सकते हैं जैसे की
अगर बच्चों में ये लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
अगर बच्चे में पीलिया रोग के लक्षण दिखे तो इसे बहुत गम्भीरता से लेना चाहिए। जैसा की मैंने पहले बताया है की अधिकांश बच्चों में पीलिया रोग के लक्षण बहुत ही हलके होते हैं, कुछ बच्चों में इनके लक्षण अधिक हो सकते हैं। इसका मतलब बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बहुत अधिक हो चूका है। यह अच्छी स्तिथि नहीं है। ऐसी स्थिति में बच्चे को केर्निकेटरस नामक बीमारी हो सकती है। यह बीमारी बच्चे के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है।
अगर हल्का फुल्का jaundice है तो कुछ दिनों तक दिन में चार बार 15 मिनिट तक धुप दिखाना काफी होता है। किसी इलाज की जरुरत नहीं पड़ती और धुप दिखने भर से पीलिया ठीक हो जाती है। धुप दिखाने के लिए बच्चे को सीधे धुप में न रखें। इसके बदले बच्चे को शीशे की खिड़की के बगल में रखें। खिड़की के शीशे से धुप को छन कर बच्चे पे सीधा पड़ने दें।
बिलीरुबिन पिले रंग का एक पदार्थ है जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है। यह एक साधारण शारीरिक प्रक्रिया है। पिले रंग का पदार्थ बिलीरुबिन शरीर से मल मूत्र के माध्यम से निकाल जाता है।
बहुत ही तीव्र पीलिये (जॉन्डिस) में बिलीरुबिन की मात्र रक्त मैं 25 mg को पर कर जाती है। अगर इसका उपचार समय पे नहीं किया गया तो यह बच्चे को बहरा (deaf) बना सकती है, इससे बच्चे को cerebral palsy भी हो सकता है या और भी कई तरीके से बच्चे के दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है।

नवजात बच्चों में पीलिये तीन मुख्या कारणों से होता है।

जब बच्चे में ऊपर दिए गए लक्षण दिखे तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें। डॉक्टर शिशु के खून की जाँच के लिए recommend करेगा ताकि रक्त में मौजूद बिलिरुबीन की मात्रा का पता लगाया जा सके। डॉक्टर से आप निम्न कारणों पर भी तुरंत संपर्क कर सकते हैं।
अधिकांश बच्चों को पीलिया रोग के लक्षणों में इलाज की जरुरत नहीं पड़ती है। हलके-फुल्के पीलिये रोग के लक्षण एक से दो सप्ताह के अंदर अपने आप समाप्त हो जाते हैं। बच्चे का शरीर कुछ ही दिनों मैं इतना विकसित हो जाता है की वो खुद ही शरीर से अतरिक्त बिलिरुबिन को निकाल सके।
पीलिया में बच्चे को लगातार स्तनपान कराते रहना चाहिए या formula milk देते रहना चाहिए। इससे मल मूत्र के जरिये शरीर से बिलीरुबिन निकाल जायेगा।
जिन बच्चों में पीलिया रोग के लक्षण बहुत ज्यादा (उच्च स्तर) होते हैं उन बच्चों का इलाज फोटोथैरेपी के द्वारा किया जाता है। फोटोथैरेपी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नवजात बच्चे के शरीर को फ्लोरोसेंट रोशनी में एक्सपोज़ किया जाता है। फ्लोरोसेंट रोशनी में शरीर में मौजूद बिलिरुबिन टूटने लगते हैं।

कुछ दुर्लभ स्थितियों में बिलिरुबिन का स्तर शरीर में खतरनाक उच्च स्तर तक पहुँच जाता है। ऐसे स्थिति मैं बच्चे को अतिरिक्त खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है। लेकिन अगर आप थोड़ा सा सतर्कता बरतें तो अपने बच्चे को ऐसे स्थिति से बचा सकते हैं।
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गर्भावस्था के बाद तंदरुस्ती बनाये रखना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है। लेकिन कुछ छोटी-मोती बातों का अगर ख्याल रखा जाये तो आप अपनी पहली जैसी शारीरिक रौनक बार्कर रख पाएंगी। उदहारण के तौर पे हर-बार स्तनपान कराने से करीब 500 600 कैलोरी का क्षय होता है। इतनी कैलोरी का क्षय करने के लिए आपको GYM मैं बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
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बच्चों का नाख़ून चबाना एक बेहद आम समस्या है। व्यस्क जब तनाव में होते हैं तो अपने नाखुनो को चबाते हैं - लेकिंग बच्चे बिना किसी वजह के भी आदतन अपने नाखुनो को चबा सकते हैं। बच्चों का नाखून चबाना किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा नहीं करता है। लेकिन यह जरुरी है की बच्चे के नाखून चबाने की इस आदत को छुड़ाया जाये नहीं तो उनके दातों का shape बिगड़ सकता है। नाखुनो में कई प्रकार के बीमारियां अपना घर बनाती हैं। नाख़ून चबाने से बच्चों को कई प्रकार के बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है, पेट के कीड़े की समस्या तथा पेट दर्द भी कई बार इसकी वजह होती है।
सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।
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भारत सरकार टीकाकरण अभियान के अंतर्गत मुख्या और अनिवार्य टीकाकरण सूची / newborn baby vaccination chart 2022-23 - कौन सा टीका क्यों, कब और कितनी बार बच्चे को लगवाना चाहिए - पूरी जानकारी। टीकाकरण न केवल आप के बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाता है वरन बिमारियों को दूसरे बच्चों में फ़ैलाने से भी रोकते हैं।