Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺3 min read
शिशु के जन्म के तुरन बाद ही उसे कुछ चुने हुए टीके लगा दिए जाते हैं - ताकि उसका शारीर संभावित संक्रमण के खतरों से बचा रह सके। इस लेख में आप पढेंगे की शिशु को जन्म के समय लगाये जाने वाले टीके (Vaccination) कौन कौन से हैं और वे क्योँ जरुरी हैं।
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क्या जरुरी है की शिशु को जन्म होते ही टीके लगा दिए जाएँ?
नवजात बच्चे को कौन सा टीका लगायें?
क्या यही सोच रहें हैं आप?
अगर आप के बच्चे का जन्म अस्पताल में हुआ है तो आप को कोई विशेष चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है - क्योँकि अस्पताल में एक मानक पद्दिती (standard process) को अपनाया जाता है। इस मानक पद्दिती के अंतर्गत हर शिशु को जन्म के कुछ समय बाद ही तीन महत्वपूर्ण टिके लगा दिए जाते हैं।
हम आप को बताएँगे की ये तीन महत्वपूर्ण टिके कौन-कौन से हैं। इन तीन टिके के आलावा आप के शिशु को एक और इंजेक्शन लगाया जायेगा जो टिका नहीं है मगर जरुरी इस लिए है क्योँकि वो टिके आप के शिशु को अंदरूनी रक्त स्राव से बचाता है।
वैसे तो यह कोई टिका नहीं है - परन्तु आप के शिशु के जन्म होते ही यह इंजेक्शन अस्पताल मैं लगा दिया जाता है। आप के शिशु को लगने वाला यह पहला इंजेक्शन होता है। हर अस्पताल में यह एक standard procedure की हर शिशु को जन्म होने के कुछ ही समय के भीतर यह टिका लगा दिया जाये।
Vitamin K की काफी एहमीयत है शिशु को स्वस्थ रखने में। यह शिशु के शरीर में खून के थक्का को बनने से रोकता है। भारत में प्रतियेक 10,000 में से एक बच्चे में जन्म के समय vitamin K की कमी होती है जिस वजह से उस शिशु को बिना वाजिब कारण के अंदरूनी रक्तस्राव (internal haemorrhages) हो जाता है। इस बीमारी को vitamin K deficiency bleeding (VKDB) कहा जाता है। इस बात को सुनिश्चित करने के लिए की शिशु इस बीमारी के प्रति सुरक्षित रहे, - अस्पतालों में शिशु के जन्म के बाद ही उसे Vitamin K का इंजेक्शन लगा दिया जाता है।
यह टिका आप के शिशु को पोलियो के वायरस से बचाते हैं। पोलियो का वायरस शिशु के nervous system पे आक्रमण करता है और शारीर को लकवा ग्रस्त कर देता है। लेकिन जिन बच्चों को मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) दिया जाता है - उन बच्चों में पोलियो के वायरस से लड़ने के लिए एंटीबाडीज (antibodies) पैदा हो जाता है और शिशु पोलियो के वायरस से सुरक्षित हो जाता है। मुँह में दिया जाने वाला पोलियो वैक्सीन (OPV) के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। भारत पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित किया जा चूका है - मगर इसका टिका अभी भी इस लिए दिया जाता है ताकि पोलियो की बीमारी फिर से दुबारा न आ जाये।
BCG वैक्सीन शिशु को टीबी की बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है। बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) शिशु को जन्म से पंद्रह दिनों के भीतर लगाना जरुरी है। यह टिका अधिकांश मामलों में शिशु को अस्पताल में ही लगा दिया जाता है। बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) के शिशु को ओरल पोलियो का (जीरो) डोज भी पिलाया दिया जाता है। बीसीजी का टिका बहुत सस्ता, सुरक्षित और आसानी से मिल जाने वाला टिका है। BCG का पूरा नाम है Bacillus Calmette–Guerin और यह एक तरह का वैक्सीन है तो शिशु को पूरी उम्र भर टीबी की बीमारी से बचाने के लिए दिया जाता है। बीसीजी का टिका (BCG वैक्सीन) के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
हेपेटाइटिस बी एक ऐसी बीमारी है जो रक्त, थूक आदि के माध्यम से इसका संक्रमण फैलता है। हेपेटाइटिस बी के बारे में कहा जाता है की इसमें उपचार से बेहतर बचाव है इस रोग से बचने के लिए छह महीने के अंदर तीन टीके लगवाएं जाते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन का कहना है की दुनिया भर में ढाई करोड़ लोगों को लिवर की गंभीर बीमारी है। हेपेटाइटिस बी से हर साल अत्यधिक मृत्यु होती है, परंतु इस का टीका लगवाने से यह खतरा 95 % तक कम हो जाता है। अपने शिशु को जन्म के कुछ ही समय के अंदर बच्चे को यह टिका लगवाएं। हेपेटाइटिस ‘बी’ वैक्सीन (Hepatitis B vaccine) के टिके के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें।

शिशु के जन्म के चरण बाद या दुसरे दिन तक ये ठीके दिए जाने पे शिशु में कोई भी ठीके का side effects देखने को नहीं मिला है।
बीसीजी का टिका (BCG vaccine) से शिशु के शरीर पे निशान पड़ जाता है जिस जगह पे त्वचा पे टिका दिया जाता है। यह निशान (scar) तुरंत तो पता नहीं चलता है मगर समय के साथ जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, यह निशान (scar) आपको दिखाई देगा। हालाँकि कुछ बच्चों में कोई भी निशान (scar) नहीं पड़ता है।
शिशु को टीकाकरण से बहुत तकलीफ होती है। यही कारण है की शिशु को टिका लगने के बाद वो बहुत रो सकता है। शिशु को टीकाकरण के बाद आराम पहुचने के बहुत से तरीका हैं और उनमे से एक सबसे सरल तरीका है की आप शिशु को स्तनपान कराएँ। स्तनपान (breastfeeding) कराने से उसे दर्द में आराम मिलता है। अगर आप किसी कारणवश अपने शिशु को स्तनपान नहीं करा प् रहे हैं तो आप को दुखी होने की आवशकता नहीं है। आप अपने शिशु को अपने छाती से सटा के रखिये - इससे भी शिशु को दर्द मैं बहुत रहत मिलेगा।
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गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक मात्रा में विटामिन सी लेना, गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक हो सकता है। कुछ शोध में इस प्रकार के संभावनाओं का पता लगा है कि गर्भावस्था के दौरान सप्लीमेंट के रूप में विटामिन सी का आवश्यकता से ज्यादा सेवन समय पूर्व प्रसव (preterm birth) को बढ़ावा दे सकता है।
UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
अक्सर गर्भवती महिलाएं इस सोच में रहती है की उनके शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी में से क्या बेहतर है। इस लेख में हम आप को दोनों के फायेदे और नुक्सान के बारे में बताएँगे ताकि दोनों में से बेहतर विकल्प का चुनाव कर सकें जो आप के लिए और आप के शिशु के स्वस्थ के लिए सुरक्षित हो।
कुछ बातों का ख्याल रख आप अपने बच्चों की बोर्ड एग्जाम की तयारी में सहायता कर सकती हैं। बोर्ड एग्जाम के दौरान बच्चों पे पढाई का अतिरिक्त बोझ होता है और वे तनाव से भी गुजर रहे होते हैं। ऐसे में आप का support उन्हें आत्मविश्वास और उर्जा प्रदान करेगा। साथ ही घर पे उपयुक्त माहौल तयार कर आप अपने बच्चों की सफलता सुनिश्चित कर सकती हैं।
ADHD शिशु के पेरेंट्स के लिए बच्चे को अनुशाशन सिखाना, सही-गलत में भेद करना सिखाना बहुत चौनातिपूर्ण कार्य है। अधिकांश ADHD बच्चे अपने माँ-बाप की बातों को अनसुना कर देते हैं। जब आप का मन इनपे चिल्लाने को या डांटने को करे तो बस इस बात को सोचियेगा की ये बच्चे अंदर से बहुत नाजुक, कोमल और भावुक हैं। आप के डांटने से ये नहीं सीखेंगे। क्यूंकि यह स्वाभाव इनके नियंत्रण से बहार है। तो क्या आप अपने बच्चे को उसके उस सवभाव के लिए डांटना चाहती हैं जो उसके नियंत्रण में ही नहीं है।
शिशु का वजन जन्म के 48 घंटों के भीतर 8 से 10 प्रतिशत तक घटता है। यह एक नार्मल से बात है और सभी नवजात शिशु के साथ होता है। जन्म के समय शिशु के शरीर में अतिरिक्त द्रव (extra fluid) होता है - जो शिशु के जन्म के कुछ दिनों के अंदर तेज़ी से बहार आता है और शिशु का वजन कम हो जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों के अंदर फिर से शिशु का वजन अपने जन्म के वजन के बराबर हो जायेगा और फिर बढ़ता ही जायेगा।
वेरिसेला वैक्सीन (Chickenpox Varicella Vaccine in Hindi) - हिंदी, - वेरिसेला का टीका - दवा, ड्रग, उसे, Chickenpox Varicella Vaccine जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, चिकन पॉक्स दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
एलर्जी से कई बार शिशु में अस्थमा का कारण भी बनती है। क्या आप के शिशु को हर २० से २५ दिनों पे सर्दी जुखाम हो जाता है? हो सकता है की यह एलर्जी की वजह से हो। जानिए की किस तरह से आप अपने शिशु को अस्थमा और एलर्जी से बचा सकते हैं।
क्या आप का शिशु potty (Pooping) करते वक्त रोता है। मल त्याग करते वक्त शिशु के रोने के कई कारण हो सकते हैं। अगर आप को इन कारणों का पता होगा तो आप अपने शिशु को potty करते वक्त होने वाले दर्द और तकलीफ से बचा सकती है। अगर potty करते वक्त आप के शिशु को दर्द नहीं होगा तो वो रोयेगा भी नहीं।
शिशु में हिचकी आना कितना आम बात है तो - सच तो यह है की एक साल से कम उम्र के बच्चों में हिचकी का आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हिचकी आने पे डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हिचकी को हटाने के बहुत से घरेलू नुस्खे हैं। अगर हिचकी आने पे कुछ भी न किया जाये तो भी यह कुछ समय बाद अपने आप ही चली जाती है।
शिशुओं और बच्चों के लिए उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट डाउनलोड करें (Baby Growth Chart)
अगर किसी भी कारणवश बच्चे के वजन में बढ़ोतरी नहीं हो रही है तो यह एक गंभीर मसला है। वजन न बढने के बहुत से कारण हो सकते हैं। सही कारण का पता चल चलने पे सही दिशा में कदम उठाया जा सकता है।
बच्चे के पांच महीने पुरे करने पर उसकी शारीरिक जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में जानकारी जरुरी है की बच्चे के अच्छी देख-रेख की कैसे जाये। पांचवे महीने में शिशु की देखभाल में होने वाले बदलाव के बारे में पढ़िए इस लेख में।
बहुत लम्बे समय तक जब बच्चा गिला डायपर पहने रहता है तो डायपर वाली जगह पर रैशेस पैदा हो जाते हैं। डायपर रैशेस के लक्षण अगर दिखें तो डायपर रैशेस वाली जगह को तुरंत साफ कर मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम लगा दें। डायपर रैशेज होता है बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से और मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम में एंटी बैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो नैपी रैशिज को ठीक करते हैं।
आप के बच्चे के लिए सही सनस्क्रीन का चुनाव तब तक संभव नहीं है जब तक की आप को यह न पता हो की आप के बच्चे की त्वचा किस प्रकार की है और कितने प्रकार के सनस्क्रीन बाजार में उपलब्ध हैं।
शांतिपूर्ण माहौल में ही बच्चा कुछ सोच - समझ सकता है, पढ़ाई कर सकता है, अधयाय को याद कर सकता है। और अपने school में perform कर सकता है। माता-पिता होने के नाते आपको ही देना है अपने बच्चे को यह माहौल।
मेनिंगोकोकल वैक्सीन (Meningococcal Vaccination in Hindi) - हिंदी, - मेनिंगोकोकल का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
सब्जियौं में ढेरों पोषक तत्त्व होते हैं जो बच्चे के अच्छे मानसिक और शारीर विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब शिशु छेह महीने का हो जाये तो आप उसे सब्जियों की प्यूरी बना के देना प्रारंभ कर सकती हैं। सब्जियों की प्यूरी हलकी होती है और आसानी से पच जाती है।
टीकाकरण बच्चो को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।अपने बच्चे को टीकाकरण चार्ट के अनुसार टीके लगवाना काफी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के जरिये आपके बच्चे के शरीर का सामना इन्फेक्शन (संक्रमण) से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।