Category: प्रेगनेंसी
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गर्भावस्था के दौरान स्त्रियौं को सुबह के वक्त मिचली और उल्टी क्योँ आती है, ये कितने दिनो तक आएगी और इसपर काबू कैसे पाया जा सकता है और इसका घरेलु उपचार। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं के शारीर में ईस्ट्रोजेन हॉर्मोन का स्तर बहुत बढ़ जाता है जिस वजह से उन्हें मिचली और उल्टी आती है।
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गर्भावस्था के दौरान करीब 80 से 85 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस का सामना करना पड़ता है।
मॉर्निंग सिकनेस का मतलब है गर्भावस्था के दौरान सुबह के वक्त मिचली और उल्टी से है। गर्भावस्था के दौरान विभिन्न चरणों में गर्भवती स्त्री किसी-ना-किसी स्तर पे मिचली और उल्टी महसूस करती है।
हालाँकि इसे "मॉर्निंग सिकनेस" कहा जाता है लेकिन गर्भवती स्त्री को सुबह, दोपहर या रात कभी भी मिचली और उल्टी का सामना करना पड़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान स्त्रियौं को सुबह के वक्त मिचली और उल्टी क्योँ आती है, ये कितने दिनो तक आएगी और इसपर काबू कैसे पाया जा सकता है, इसके बारे में आप इस लेख में पढेंगे।
मोटा मोटी आप इतना समझ लीजिये की गर्भावस्था के दौरान आप के शारीर में हो रहे तमाम बदलाव के कारण महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है।

गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं के शारीर में ईस्ट्रोजेन हॉर्मोन का स्तर बहुत बढ़ जाता है जिस वजह से उनकी
ऊपर दिए चारों लक्षणों को सयुंक्त रूप से मॉर्निंग सिकनेस के नाम से जाना जाता है।
कोई भी दो गर्भावस्थाएं एक जैसे नहीं होती है। पहली बार जब आप गर्भवती हुई हों तो जिन लक्षणों और शारीरिक परेशानियौं का सामना आप को करना पड़ा था, जरुरी नहीं की आप को दूसरी प्रेगनेंसी में उन्ही लक्षणों का सामना करना पड़े।
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इसीलिए ठोस तरीके से इस बात को नहीं कहा जा सकता है की आप को कब तक मिचली और उल्टी (मॉर्निंग सिकनेस) का सामना करना पड़ेगा। ये कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनो तक भी चल सकता है।
कुछ मामलों में गर्भवती महिलाओं को पुरे गर्भावस्था के दौरान मिचली और उल्टी (मॉर्निंग सिकनेस) का सामना करना पड़ सकता है।
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मॉर्निंग सिकनेस से पूरी तरह से बचा तो नहीं जा सकता है, लेकिन आप इसके तीव्रता को कम कर सकती हैं। इससे बहुत हद तक बच भी सकती हैं।

गर्भवती महिलाओं को अक्सर किसी विशेष गंध से ज्यादा परेशानी होती है। ये गंध उनके अन्दर मिचली और उल्टी की भावना को कई गुणा बढ़ा देती है।
उदहारण के लिए आलू, जीरा, भुना हुआ प्याज या लहसून। कुछ महिलाओं को तो पकते हुए चावल से भी मिचली और उल्टी आने लगतीं है।
आप उन सभी कारणों का पता कीजिये जिन से की आप को मिचली और उल्टी आती है और उनसे दूर रहने की कोशिश करें।
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गर्भावस्था के दौरान मिचली और उल्टी (मॉर्निंग सिकनेस) के कारण कई बार ऐसा होता है की बार बार उल्टी की वजह से पेट में खाना नहीं रह पता है।
जबकि गर्भावस्था में खाना बहुत महत्वपूर्ण है क्यूंकि पौष्टिक आहार ग्रहण करने से ही बच्चे को माँ के आहार से पोषण मिलता है।
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कई बार तो मिचली और उल्टी (मॉर्निंग सिकनेस) की वजह से गर्भवती महिलाओं को खाना खाने का मन भी नहीं करता है।
लेकिन अगर गर्भवती महिला समय पे हर दिन पोषक आहार ना खाए तो कई प्रेगनेंसी में कई प्रकार की जटिलताएं भी उत्पन हो सकती हैं जैसे की
इसका बच्चे पे बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। हालाँकि बार बार उल्टी की वजह से इतनी गंभीर स्थिति उत्पन होना बहुत दुर्लभ बात है, लेकिन अगर ऐसा हो तो आप को तुरंत अपने डोक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
जरुरत पड़ी तो आप का डोक्टर आप को कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती भी कर सकता है ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे की अच्छी सेहत सुनिश्चित की जा सके।
जब तक आप पौष्टिक आहार ग्रहण कर रही हैं, गर्भावस्था के दौरान उपवास नहीं रख रही हैं, और उल्टी और मतली के बावजूद भी आप भोजन को पेट में बनाए रखने में समर्थ हैं, आप के बच्चे का विकास अच्छी तरह से होगा। उसकी सेहत को कोई खतरा नहीं है।

अगर आप मॉर्निंग सिकनेस का सामना कर रही हैं तो इस बात का अंदाजा आप को लग गया होगा की आप किन आहारों को आसानी से पचा लेती हैं और किन आहारों से आप को परेशानी होती है। जिन आहारों से आप को उलटी की संकेत मिलते हैं, उन आहारों को खाने से बचे।
आप थोडा-थोडा दिन में कई बार भी खा सकती हैं ताकि आहार आप के पेट में टिके और आप उलटी से बच सके।
आप अपने भोजन के लिए ऐसे आहारों का सेवन करें जिसमे आप के बच्चे के विकास के लिए सभी जरुरी पोषक तत्व जैसे की विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्र में हों।
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गर्भावस्था में मॉर्निंग सिकनेस से बचने का सबसे आसन तरीका है की आप ऐसे भोजन और गंधों से दूर रहें जो आप को उलटी के लिए प्रेरित करते हैं। इसके आलावा निचे दिए तरीकों को भी अपनाएं:


अगर आप नौकरी करती हैं तो गर्भावस्था के दौरान आप की सबसे बड़ी चुनौती ये हो सकती है की आप दफ्तर में अपना ख्याल कैसे रखें और उलटी और मिचली आने पे क्या करें।

निचे हम आप के लिए कुछ सुझाव दे रहे हैं।
प्रेगनेंसी में महिलाओं के शारीर में बहुत तेज़ी से बहुत से बदलाव होते हैं। ये बदलाव गर्भवती महिला के शारीर को शिशु के उचित विकास के लिए तयार करता है।
महिला के शारीर में होने वाले बदलाव प्रेग्नेंसी से लेकर, प्रसव और उसके कुछ समय बाद तक होते ही रहते हैं। इन बदलावों में सबसे प्रमुख बदलाव है महिलाओं के शारीर में प्रेग्नेंसी हार्मोन का बनना।

इस हॉर्मोन की वजह से महलाओं के शरीर में भीतरी और बाहरी दोनों तरफ बदलाव होते हैं। गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव की वजह से ही महिलाओं को उलटी और मितली का सामना भी करना पड़ता है।
जैसे ही स्त्री गर्भवती होती है। उसके शारीर में प्रेग्नेंसी हार्मोन (hCG) का निर्माण होना शुरू हो जाता है। जिस स्त्री के शारीर में जितना ज्यादा इस हॉर्मोन का निर्माण होता है उस स्त्री को उतना ज्यादा उल्टी और मतली की समस्या का सामना भी करना पड़ता है।
जिन महिलाओं को गर्भकाल के दौरान उल्टी और मतली की समस्या नहीं होती है, इसका मतलब है की उनके शारीर में पर्याप्त मात्र में प्रेग्नेंसी हार्मोन का निर्माण नहीं हो रहा है। इसका मतलब यह भी हो सकता है की शारीर में कोई ना कोई और समस्या जरुर है।
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एक्जिमा एक प्रकार का त्वचा विकार है जिसमें बच्चे के पुरे शारीर पे लाल चकते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली बहुत हती है। एक्जिमा बड़ों में भी पाया जाता है, लेकिन यह बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। एक्जिमा की वजह से इतनी तीव्र खुजली होती है की बच्चे खुजलाते-खुजलाते वहां से खून निकल देते हैं लेकिन फिर भी आराम नहीं मिलता। हम आप को यहाँ जो जानकारी बताने जा रहे हैं उससे आप अपने शिशु के शारीर पे निकले एक्जिमा का उपचार आसानी से कर सकेंगे।
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बचपन में अधिकांश बच्चे तुतलाते हैं। लेकिन पांच वर्ष के बाद भी अगर आप का बच्चा तुतलाता है तो बच्चे को घरेलु उपचार और स्पीच थेरापिस्ट (speech therapist) के दुवारा इलाज की जरुरत है नहीं तो बड़े होने पे भी तुतलाहट की समस्या बनी रहने की सम्भावना है। इस लेख में आप पढेंगे की किस तरह से आप अपने बच्चे की साफ़ साफ़ बोलने में मदद कर सकती हैं। तथा उन तमाम घरेलु नुस्खों के बारे में भी हम बताएँगे जिन की सहायता से बच्चे तुतलाहट को कम किया जा सकता है।
नौ महीने पुरे कर समय पे जन्म लेने वाले नवजात शिशु का आदर्श वजन 2.7 kg - से लेकर - 4.1 kg तक होना चाहिए। तथा शिशु का औसतन शिशु का वजन 3.5 kg होता है। यह इस बात पे निर्भर करता है की शिशु के माँ-बाप की लम्बाई और कद-काठी क्या है।
A perfect sling or carrier is designed with a purpose to keep your baby safe and close to you, your your little one can enjoy the love, warmth and closeness. Its actually even better if you also have a toddler in a pram.
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं शिशु की खांसी, सर्दी, जुकाम और बंद नाक का इलाज किस तरह से आप घर के रसोई (kitchen) में आसानी से मिल जाने वाली सामग्रियों से कर सकती हैं - जैसे की अजवाइन, अदरक, शहद वगैरह।
शिशु को 1 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कॉलरा, जापानीज इन्सेफेलाइटिस, छोटी माता, वेरिसेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
चावल उन आहारों में से एक है जिसे शिशु को ठोस आहार शुरू करते वक्त दिया जाता है क्योँकि चावल से किसी भी प्रकार का एलेर्जी नहीं होता है और ये आसानी से पच भी जाता है| इसे पचाने के लिए पेट को बहुत ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है| यह एक शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है|
9 महीने के बच्चों की आहार सारणी (9 month Indian baby food chart) - 9 महीने के अधिकतर बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं की वो पिसे हुए आहार (puree) को बंद कर mashed (मसला हुआ) आहार ग्रहण कर सके। नौ माह का बच्चा आसानी से कई प्रकार के आहार आराम से ग्रहण कर सकता है। इसके साथ ही अब वो दिन में तीन आहार ग्रहण करने लायक भी हो गया है। संतुलित आहार चार्ट
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अकॉर्डियन पेपर फोल्डिंग तकनीक से बनाइये घर पे खूबसूरत सा मोमबत्ती स्टैंड| बनाने में आसान और झट पट तैयार, यह मोमबत्ती स्टैंड आप के बच्चो को भी बेहद पसंद आएगा और इसे स्कूल प्रोजेक्ट की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है|
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अगर आप का शिशु 6 महिने का हो गया है और आप सोच रही हैं की अपने शिशु को क्या दें खाने मैं तो - सूजी का खीर सबसे बढ़िया विकल्प है। शरीर के लिए बेहद पौष्टिक, यह तुरंत बन के त्यार हो जाता है, शिशु को इसका स्वाद बहुत पसंद आता है और इसे बनाने में कोई विशेष तयारी भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।
हैजा (कॉलरा) वैक्सीन के द्वारा आप अपने बच्चे को पूरी तरह हैजा/कॉलरा (Cholera) से बचा सकते हैं। हैजा एक संक्रमक (infectious) रोग हैं जो आँतों (gut) को प्रभावित करती हैं। जिसमें बच्चे को पतला दस्त (lose motion) होने लगता हैं, जिससे उसके शरीर में पानी की कमी (dehydration) हो जाती हैं जो जानलेवा (fatal) भी साबित होती हैं।
अंडे से एलर्जी होने पर बच्चों के त्वचा में सूजन आ जाना , पूरे शरीर में कहीं भी चकत्ता पड़ सकता है ,खाने के बाद तुरंत उलटी होना , पेट में दर्द और दस्त होना , पूरे शरीर में ऐंठन होना , पाचन की समस्या होना, बार-बार मिचली आना, साँस की तकलीफ होना , नाक बहना, लगातार खाँसी आना , गले में घरघराहट होना , बार- बार छीकना और तबियत अनमनी होना |