Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺9 min read
छोटे बच्चों में और नवजात बच्चे में हिचकी आना एक आम बात है। जानिए की किन-किन वजहों से छोटे बच्चों को हिचकी आ सकती है और आप कैसे उनका सफल निवारण कर सकती हैं। नवजात बच्चे में हिचकी मुख्यता 7 कारणों से होता है। शिशु के हिचकी को ख़त्म करने के घरेलु नुस्खे।

चिंतित होना स्वभाविक है,
बच्चे की हर छोटे बड़े तकलीफ से माँ-बाप का परेशान हो जाना लाजमी है। अगर दूध पीते ही आप का बच्चा हिचकी लेने लगे तो चिन्ता न करें।
आप सोच रही होंगी की अगर बच्चे को हिचकी से परेशानी हो रही है तो एक माँ होने के नाते आप चिन्ता क्योँ ना करें। आप का सोचना जायज है। मगर परेशान होना भी तो कोई हल तो नहीं।
चलिए हम आप को बताते हैं की अगर आप के बच्चे को कभी हिचकी आये तो आप क्या कर सकती हैं ताकि आप के कलेजे-के-टुकड़े को तुरंत राहत मिल सके।
मगर इससे पहले हम आपको यह बताते हैं की नवजात बच्चे को हिचकी क्योँ आती है।
नवजात शिशुओं में हिचकी आने के सात कारण

छोटे बच्चों में और नवजात बच्चे में हिचकी आना एक आम बात है। नवजात बच्चे में हिचकी की समस्या इतनी आम है की शायद आप के बच्चे ने पहली बार हिचकी आप के गर्भ में ही ले लिए होगा।
शिशु में हिचकी की समस्या तब से शुरू हो जाती है जब से आप अपने pregnancy के second trimester में पहुँचती हैं।
हालाँकि उस समय आप का बच्चा इस लिए हिचकी ले रहा होगा क्यूंकि उसने गर्भ में amniotic fluids घोट लिया होगा।
मगर अब उसे हिचकी इसलिए आती है क्यूंकि वो दूध के साथ हवा (वायु) भी गटक जाता है। शिशु के डॉयाफ्राम में संकुचन की वजह से हिचकी होती है। इसका सबसे बड़ा कारण है बेबी का तेजी से दूध पीना।

नवजात बच्चे में हिचकी मुख्यता 7 कारणों से होता है। चलिए विस्तार से देखते हैं इस सात कारणों के बारे मैं।
एसिड रिफ्लक्स जिसे अंग्रेज़ी में Gastroesophageal reflux कहते हैं एक ऐसी अवस्था है जिसमे पेट का आहार esophagus तक पहुँच जाता है। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात बच्चे के शरीर का वो हिस्सा जो पेट को esophagus से अलग करता है और पेट की वास्तु को esophagus में वापस पहुँचने रोकता है, जिसे lower esophageal sphincter कहते हैं - पूरी तरह विकसित नहीं होता है। ऐसा होने पे nerve cells उत्तजित हो जाते हैं और diaphragm में फड़फड़ाहट पैदा करते हैं जिस वजह से बच्चे को हिचकियाँ आने लगती हैं।
नवजात बच्चे का पेट बहुत छोटा होता है। इसमें बहुत जायदा आहार नहीं समाता है। इसी वजह से शिशु को जल्दी जल्दी भूख लगती है। शिशु को हर दो घंटे पे स्तनपान करने आवश्यकता पड़ती है। आहार मिलने में थोड़ा विलम्ब होने पे बच्चे को अत्यधिक भूख लगने लगती है। इसी अत्यधिक भूख के कारण शिशु इतना स्तनपान कर लेते है की उसका पेट फ़ैल जाता है। पेट के इस तरह एकाएक फैलने के कारण बच्चे का abdominal cavity उसके diaphragm को तान देता है। ऐसा होने पे बच्चे को हिचकियाँ आने लगती हैं। बड़े भी जब अत्यधिक भोजन कर लेते हैं तो कभी कभी उन्हें हिचकी आने लगती है।

स्तनपान के दौरान या जब बच्चे बोतल से दूध पीते हैं तो वे आहार के साथ हवा भी गटक लेते हैं। पेट में हवा भर जाने के कारण भी बच्चे में वही लक्षण दिखते हैं जो शिशु के ज्यादा आहार ग्रहण कर लेने के कारण दिखते हैं। नवजात बच्चों में और छोटे बच्चों में हिचकी का ये मुख्या कारण है। दूध पिलाने के बाद बच्चे को खड़े स्थिति में गोद में ले कर थपकी देने से इस प्रकार के हिचकियोँ से बच्चे को निजात दिलाया जा सकता है।
कभी कभार कुछ बच्चे formula milk (मिल्क पाउडर) में पाए जाने वाले एक खास किस्म के प्रोटीन के प्रति एलर्जी विकसित कर लेते हैं। एलर्जी के कारण बच्चे के esophagus में inflammation पैदा होता है और इसी कारण जब-जब शिशु आहार ग्रहण करता है उसे हिचकी आने लगती है। कभी कभी माँ के दूध के बदले हुए composition के कारण भी बच्चे को एलर्जी के कारण हिचकी आ सकती है। ऐसा तब होता है जब माँ ने कोई ऐसा विशेष आहार ग्रहण किया हो जिससे बच्चा को एलर्जी हो।
नवजात बच्चे में, समय से पहले जन्मे बच्चे में और प्री-मैच्योर बेबी में lungs पूरी तरह विकसित नहीं होता है। इस वजह से बच्चे को अस्थमा या दमे का सामना करना पड़ता है। बच्चे के lungs की bronchial tubes में inflammation हो जाता है इस वजह से साँस लेने में अवरोध पैदा होता है और बच्चे को हिचकी आने लगती है।

बच्चों का श्वसन तंत्र (respiratory system) बहुत संवेदनशील होता है। वायु में उपस्थित कुछ तत्त्व जैसे की पोलन, धुआँ, और इत्र की वजह से बच्चे को लगातार खांसी हो सकता है। इससे बच्चे के diaphragm पे दबाव पड़ता है और बच्चे को हिचकी आने लगती है।
कभी कभार वातावरण में तापमान के गिरने से बच्चे का muscles (मांसपेशियों) में संकुचन होता है। इस वजह से भी बच्चे के diaphragm पे दबाव पड़ता है और शिशु को हिचकी आ जाती है।
शिशु में हिचकी के निवारण के लिए हम यहां कुछ घरेलू नस्खे बता रहे हैं जिन्हे सदियों से भारत देश में आजमाया गया है और जो काफी कारगर भी हैं।

अगर आप का बच्चा इतना बड़ा है की वो अब ठोस आहार ग्रहण करता है तो आप उसके जीभ के निचे कुछ चीनी के दाने रख सकती हैं। अगर बच्चा बहुत छोटा है तो आप उसके चुसनी को चीनी के चासनी में डुबो के उसको दे सकती हैं। या फिर आप अपनी ऊँगली को ही चीनी के चासनी में डुबो के उसको चूसने के लिए दे सकती हैं। बस ध्यान इस बात का रहे की आप की ऊँगली या चुसनी साफ़ हों। चीनी की चासनी शिशु के diaphragm को आराम पहुंचाएगा और हिचकी को शांत करेगा। यह घरेलु नुस्खा छह महीने से बड़े बच्चों पे ही आजमाएं। छह महीने से छोटे बच्चे को माँ के दूध के आलावा कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए।

यह एक बहुत ही सीधा तरीका है बच्चे के हिचकी को शांत करने का। बच्चे को छाती से लगा कर गोद में खड़े स्थिति मैं पकडे और उसके पीठ पे गोलाकार स्थिति मैं मालिश करें। आप बच्चे को किसी आरामदायक जगह पे जैसे की बिस्तर पे ये अपने जांघ पे (lap) पे शिशु को पेट के बल लिटा के भी इस तरह से मालिश कर सकती हैं। जो भी करें, आराम से करें। इस बात का ख्याल रखें की बच्चे के पेट पे बहुत ज्यादा बल ना पड़े। इस तरह की मालिश से बच्चे के diaphragm में जो तनाव पैदा हुआ है वो शांत हो जायेगा और बच्चे को हिचकी से शांति मिलेगी।
बच्चे को आहार देने के बाद या उसे दूध पिलाने के बाद कम से कम पंद्रह मिनट तक खड़े स्थिति में ही रखें। ऐसे खड़े स्थिति में रखने से बच्चे का diaphragm अपने प्राकृतिक स्थिति में रहता है और उसपे दबाव कम पड़ता है। आप चाहें तो बच्चे के पीठ को हौले से थप-थपा सकती हैं ताकि बच्चे को डकार आ जाये। दूध पीते वक्त बच्चे ने जो हवा गटक ली है वो डकार से बहार आप जाएगी और बच्चे के पेट में थोड़ी जगह बनेगी। बच्चे को डकार दिलाने से बच्चे में हिचकी की सम्भावना बहुत कम हो जाती है।
कभी कभार बच्चे के साथ लूका-छिप्पी (peek-a-boo) खेलने से भी हिचकी समाप्त हो जाती है। जब भी बच्चे को हिचकी आये उसके ध्यान को भटकने के लिए उसके साथ कोई खेल खलेने लगें। या फिर आप उसके किसी पसन्दीदा खिलौने से उसके सामने खेलें। Muscle spasms के वजह से nerve impulses उत्तेजित हो जाते हैं और हिचकी आती है। Nerve stimuli के बदलाव मैं जैसे की मसाज से या पसंद का खिलौना देखने से बच्चे की हिचकी भले ही पूरी तरह न शांत हो, मगर कम जरूर हो जाती है।
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वैज्ञानिक तौर पे ग्राइप वाटर (gripe water) को अभी तक प्रमाणित नहीं किया जा सका है की यह किस तरह से बच्चों को और नवजात शिशु के gastrointestinal तकलीफ में आराम पहुंचता है। मगर एक बात तो तय है की यह नवजात शिशु के पेट के गैस को शांत करने में बहुत कारगर है। ये हम नहीं कहते हैं - लोग कहते हैं - जिन्हो ने इसे आजमाया है। ग्राइप वाटर (gripe water) देने से बच्चे को हिचकी में भी आराम मिल सकता है। अपने बच्चे को ग्राइप वाटर (gripe water) देने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह अवश्य ले लें।
हिचकी के निवारण के लिए कुछ घरेलु नुस्खे ऐसे हैं जो केवल बड़ों के लिए ही उचित हैं। इसे कभी भी बच्चों पे ना आजमाएं। बच्चों पे इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
बच्चे की हिचकी को दूर करने के लिए उसे डराने या अचंभित करने की कोशिश ना करें। जैसे की प्लास्टिक बैग को फोड़ कर जोरदार आवाज करना। बड़ों के लिए तो यह कारगर हो सकता है मगर बच्चों के कान के परदे बहुत नाजुक हैं और उनके आसानी से फटने की सम्भावना रहती है। दुसरी बात यह की इससे बच्चे बेहद डर सकते हैं। इतना डर सकते हैं की वे colic trauma की स्थिति तक पहुँच सकते हैं। आप अवश्य नहीं चाहेंगे की आप के बच्चे के साथ ऐसा हो।
खट्टी हलवाई जैसे की खट्टी कैंडी तो बड़ों के लिए कारगर है मगर यह बच्चों के लिए नहीं बनी है। अगर आप का बच्चा एक साल से बड़ा हो गया है तो भी आप उसे हिचकी आने पे यह ना दें। अधिकांश खट्टी कैंडी में powdered edible acid होता है। यह बच्चे के सेहत पे बुरा प्रभाव डाल सकता है।
यह अक्सर देखा गया है की लोग हिचकी आने पे अपने बच्चे के पीट को थपकियाँ देते हैं। ये थपकियाँ आराम से - हौले से दें। बच्चे के पीट की हड्डियां और मासपेशियां बहुत नाजुक होती है। जोर जोर से थपकी देने से उन्हें नुकसान पहुँच सकता है।
शिशु की आखें अभी भी विकासशील अवस्था में होती हैं। ऐसे स्थिति में अगर शिशु की आखों को दबाया गया तो वे अपनी जगह पे वापस नहीं लौट पायेंगी। शिशु की नाजुक आखों को हलके से भी दबाने पे बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बड़ों पे आजमाए जाने वाले नुस्खे भूल कर भी बच्चों पे न आजमाएं।
जैसे की मैंने पहले बताया है की शिशु का शरीर बहुत नाजुक होता है और अभी भी विकासशील स्थिति में है, कोई ऐसा काम न करें जिससे शिशु को जिंदगी भर के लिए तकलीफ का सामना करना पड़े। बच्चे की हड्डियां और जोड़ दोनों ही बहुत नाजुक और कमजोर होती हैं। बच्चे के हिचकी को रूकने के लिए उसके जीभ को या उसके हाथ को न घींचे।
बच्चे में हिचकी कुछ समय के लिए ही रहता है। कुछ भी न किया जाये तो भी यह स्वतः समाप्त हो जाता है। अगर बच्चे को हर कुछ देर पे हिचकी आती है या बार बार हिचकी आती है तो आप अपने बच्चे को शिशु/बाल रोग विशेषज्ञ (child specialist doctor) को दिखा सकते हैं।
अगर बच्चे को एसिड रिफ्लक्स जिसे अंग्रेज़ी में Gastroesophageal reflux, के कारण हिचकी आती है और हर बार हिचकी में वो आहार बहार निकल (उलटी कर) देता है तो आप को डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है। शिशु में Gastroesophageal reflux के और भी कई लक्षण हो सकते हैं। जैसे की पीट को पीछे की तरफ मोड़ के रोना, स्तनपान या दूध पिने के कुछ ही देर बाद रोने लगना, चिड़चिड़ाहट इतियादी।
अगर हिचकी बच्चे को बहुत परेशान कर रही है। जैसे की आप का बच्चा रात को सो नहीं पा रहा है, या खेल नहीं पा रहा है या फिर हिचकी के कारण आहार नहीं ग्रहण कर पा रहा है तो ऐसी स्थिति में बच्चे को तुरंत डॉक्टर के पास लेके जाएँ। हो सकता है की हिचकी के पीछे तकलीफ का कोई और भी कारण हो और बच्चे को डॉक्टरी जाँच की आवश्यकता है।
थोड़े से धैर्य के साथ और थोड़ा समय के साथ आप सीख जाएँगी की हिचकी आने पे आप अपने बच्चे की देखभाल किस तरह कर सकें। बच्चों की हिचकी को दूर करने के बहुत सारे घरेलु नुस्खे हैं। बस इस बात को हमेशा याद रखियेगा की हिचकी कभी भी आप के बच्चे को कोई हानी नहीं पहुचायेगी। इसीलिए शिशु को हिचकी आने पे बहुत ज्यादा घबराने या चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
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गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक मात्रा में विटामिन सी लेना, गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक हो सकता है। कुछ शोध में इस प्रकार के संभावनाओं का पता लगा है कि गर्भावस्था के दौरान सप्लीमेंट के रूप में विटामिन सी का आवश्यकता से ज्यादा सेवन समय पूर्व प्रसव (preterm birth) को बढ़ावा दे सकता है।
बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
नारियल का पानी गर्भवती महिला के लिए पहली तिमाही में विशेषकर फायदेमंद है अगर इसका सेवन नियमित रूप से सुबह के समय किया जाए तो। इसके नियमित सेवन से गर्भअवस्था से संबंधित आम परेशानी जैसे कि जी मिचलाना, कब्ज और थकान की समस्या में आराम मिलता है। साथी या गर्भवती स्त्री के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, शिशु को कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है और गर्भवती महिला के शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है।
ये पांच विटामिन आप के बच्चे की लंबाई को बढ़ने में मदद करेगी। बच्चों की लंबाई को लेकर बहुत से मां-बाप परेशान रहते हैं। हर कोई यही चाहता है कि उसके बच्चे की लंबाई अन्य बच्चों के बराबर हो या थोड़ा ज्यादा हो। अगर शिशु को सही आहार प्राप्त हो जिससे उसे सभी प्रकार के पोषक तत्व मिल सके जो उसके शारीरिक विकास में सहायक हों तो उसकी लंबाई सही तरह से बढ़ेगी।
गर्भावस्था के दौरान बालों का झड़ना एक बेहद आम समस्या है। प्रेगनेंसी में स्त्री के शरीर में अनेक तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं जिनकी वजह से बालों की जड़ कमजोर हो जाते हैं। इस परिस्थिति में नहाते वक्त और बालों में कंघी करते समय ढेरों बाल टूट कर गिर जाते हैं। सर से बालों का टूटना थोड़ी सी सावधानी बरतकर रोकी जा सकती है। कुछ घरेलू औषधियां भी हैं जिनके माध्यम से बाल की जड़ों को फिर से मजबूत किया जा सकता है ताकि बालों का टूटना रुक सके।
अगर आप अपने बच्चे के व्यहार को लेकर के परेशान हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है। बच्चों को डांटना और मरना विकल्प नहीं है। बच्चे जैसे - जैसे उम्र और कद काठी में बड़े होते हैं, उनके व्यहार में अनेक तरह के परिवेर्तन आते हैं। इनमें कुछ अच्छे तो कुछ बुरे हो सकते हैं। लेकिन आप अपनी सूझ बूझ के से अपने बच्चे में अच्छा व्यहार (Good Behavior) को विकसित कर सकती हैं। इस लेख में पढ़िए की किस तरह से आप अपने बच्चे में अच्छा परिवर्तन ला सकती हैं।
गर्भपात बाँझपन नहीं है और इसीलिए आप को गर्भपात के बाद गर्भधारण करने के लिए डरने की आवश्यकता नहीं है। कुछ विशेष सावधानियां बारात कर आप आप दुबारा से गर्भवती हो सकती हैं और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। इसके लिए आप को लम्बे समय तक इन्तेजार करने की भी आवश्यकता नहीं है।
अक्सर गर्भवती महिलाएं इस सोच में रहती है की उनके शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी में से क्या बेहतर है। इस लेख में हम आप को दोनों के फायेदे और नुक्सान के बारे में बताएँगे ताकि दोनों में से बेहतर विकल्प का चुनाव कर सकें जो आप के लिए और आप के शिशु के स्वस्थ के लिए सुरक्षित हो।
यूटीआई संक्रमण के लक्षण, यूटीआई संक्रमण से बचाव, इलाज। गर्भावस्था के दौरान क्या सावधानियां बरतें। यूटीआई संक्रमण क्या है? यूटीआई का होने वाले बच्चे पे असर। यूटीआई संक्रमण की मुख्या वजह।
बच्चों को सर्दी और जुकाम मैं बुखार होना आम बात है। ऐसा बच्चों में हरारत (exertion) के कारण हो जाता है। कुछ साधारण से घरेलु उपचार के दुवारा आप बच्च्चों में सर्दी और जुकाम के कारण हुए बुखार का इलाज घर पे ही कर सकती हैं। (bukhar ki dawa, खांसी की अचूक दवा)
छोटे बच्चों को पेट दर्द कई कारणों से हो सकता है। शिशु के पेट दर्द का कारण मात्र कब्ज है नहीं है। बच्चे के पेट दर्द का सही कारण पता होने पे बच्चे का सही इलाज किया जा सकता है।
आप के शिशु को अगर किसी विशेष आहार से एलर्जी है तो आप को कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ेगा ताकि आप का शिशु स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मगर कभी medical इमरजेंसी हो जाये तो आप को क्या करना चाहिए?
Ambroxol Hydrochloride - सर्दी में शिशु को दिया जाने वाला एक आम दावा है। मगर इस दावा के कुछ घम्भीर (side effects) भी हैं। जानिए की कब Ambroxol Hydrochloride को देना हो सकता है खतरनाक।
बच्चों के हिचकी का कारण और निवारण - स्तनपान या बोतल से दूध पिलाने के बाद आप के बच्चे को हिचकी आ सकती है। यह होता है एसिड रिफ्लक्स (acid reflux) की वजह से। नवजात बच्चे का पेट तो छोटा सा होता है। अत्यधिक भूख लगने के कारण शिशु इतना दूध पी लेते है की उसका छोटा सा पेट तन (फ़ैल) जाता है और उसे हिचकी आने लगती है।
अगर आप के बच्चे को बुखार है और बुखार में तेज़ दर्द भी हो रहा है तो तुरंत अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएँ। बुखार में तेज़ दर्द में अगर समय रहते सही इलाज होने पे बच्चा पूरी तरह ठीक हो सकता है। मगर सही इलाज के आभाव में बच्चे की हड्डियां तक विकृत हो सकती हैं।
सोते समय शरीर अपनी मरमत (repair) करता है, नई उत्तकों और कोशिकाओं का निर्माण करता है, दिमाग में नई brain synapses का निर्माण करता है - जिससे बच्चे का दिमाग प्रखर बनता है।
चावल का खीर मुख्यता दूध में बनता है तो इसमें दूध के सारे पौष्टिक गुण होते हैं| खीर उन चुनिन्दा आहारों में से एक है जो बच्चे को वो सारे पोषक तत्त्व देता है जो उसके बढते शारीर के अच्छे विकास के लिए जरुरी है|
बच्चों के लिए आवश्यक विटामिन सी की मात्रा बड़ों जितनी नहीं होती है। दो और तीन साल की उम्र के बच्चों को एक दिन में 15 मिलीग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है। चार से आठ साल के बच्चों को दिन में 25 मिलीग्राम की आवश्यकता होती है और 9 से 13 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रति दिन 45 मिलीग्राम की आवश्यकता होती है।
टाइफाइड जिसे मियादी बुखार भी कहा जाता है, जो एक निश्चित समय के लिए होता है यह किसी संक्रमित व्यक्ति के मल के माध्यम से दूषित वायु और जल से होता है। टाइफाइड से पीड़ित बच्चे में प्रतिदिन बुखार होता है, जो हर दिन कम होने की बजाय बढ़ता रहता है। बच्चो में टाइफाइड बुखार संक्रमित खाद्य पदार्थ और संक्रमित पानी से होता है।