Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
कोलोस्ट्रम माँ का वह पहला दूध है जो रोगप्रतिकारकों से भरपूर है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है जो नवजात शिशु के मांसपेशियोँ को बनाने में मदद करती है और नवजात की रोग प्रतिरक्षण शक्ति विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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नवजात शिशु के जन्म के बाद माँ के स्तनों से आने वाला पहला दूध गाढ़ा पिले रंग का होता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। यह गर्भावस्थ के दौरान माँ के स्तनों में बनता है।
अधिकतर माताओं को इसके बारे में तब पता चलता है जब उनके स्तनों से रिसाव शुरू होता है। गर्भावस्था के दौरान ही माँ के स्तनों से थोड़ा थोड़ा दूध रिसना शुरू कर देते है।
कोलोस्ट्रम का निर्णाम माँ के स्तनों में गर्भावस्था के लगभग तीसरे से चौथे महीने से शुरू हो जाता है।
कोलोस्ट्रम शिशु को बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध होता है। मगर उतना ही काफी है शिशु के लिए। इसमें बहुत ताकत होता है और यही वजह है की कुछ लोग तो इसे तरल सोना भी कहते हैं।

यह रोगप्रतिकारकों से भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन भी बहुत होता है। प्रोटीन की सहायता से ही शरीर मांसपेशियोँ का निर्माण करता है।
लेकिन कोलोस्ट्रम में कार्बोहाइडे्रटस और वसा की मात्रा बहुत कम होती है जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है।
कोलोस्ट्रम में मृदुविरेचक (aperient) जैसे गुण भी होते हैं, जिसकी वजह से शरीर शुरुआती काल मल जिसे मिकोनियम भी कहते हैं, शरीर से बहार निकलने में सहयता करता है।
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कोलोस्ट्रम कुछ महिलाओं में पारदर्शी द्रव्य की तरह और दूसरी कुछ महिलाओं में गहरा-पीला रंग के द्रव की तरह दीखता है। कोलोस्ट्रम चाहे दिखने में जैसा भी हो, एक नवजात शिशु के लिए यह बेहद पौष्टिक होता है और अमृत तुल्य है।

शिशु के जन्म के बाद कुछ दिनों तक माँ का शरीर कोलोस्ट्रम बनता है। जन्म से तीन दिनों तक शिशु के शरीर में मौजूद रिजर्व फैट, शिशु के ऊर्जा की आवशकता को पूरा करता है।
इस दौरान शिशु को तुलनात्मक रूप से कम ऊर्जा की आवशकता पड़ती है, जिसके लिए कोलोस्ट्रम एक दम उपयुक्त है।

गर्भवती महिलायों पे हुए शोध में यह बात जानने को मिला है की जन्म के पहले 48 से 72 घंटों में गर्भवती महिला करीब 50 मि. ली. कोलोस्ट्रम का उत्पादन करती है।
यह मात्रा हर दृष्टि से नवजात शिशु के लिए उपयुक्त है। नवजात शिशु का पेट एक अखरोड (walnut) जितना बड़ा होता है।
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लेकिन कुछ ही दिनों में माँ के स्तनों में कोलोस्ट्रम की जगह दूध बनना शुरू हो जाता है। इस दौरान शिशु की भूख भी बढ़ती है और और माँ के स्तनों में दूध का सप्लाई भी।
कोलोस्ट्रम प्रकृति का एक करिश्मा है। शिशु को कोलोस्ट्रम पिलाना उसका टीकाकरण करने जैसा है। कोलोस्ट्रम में माँ के शरीर में मौजूद बहुत से रोगप्रतिकारक होते हैं। इसकी वजह से शिशु का शरीर अनेक प्रकार के संक्रमण से लड़ने में सक्षम बनता है।

कोलोस्ट्रम में मौजूद रोगप्रतिकारक, नवजात शिशु की श्वसन संबंधी संक्रमणों जैसे निमोनिया, फ्लू, श्वासशोथ (ब्रोंकाइटिस) और पेट और कान के संक्रमणों से रक्षा करता है।
कोलोस्ट्रम शिशु के शरीर में एक और महत्वपूर्ण काम करता है। यह शिशु के शरीर से बिलीरुबिन को बाहर निकलने में योगदान देता है। बिलीरुबिन का शरीर में अत्यधिक मात्रा में इक्कठा हो जाने से शिशु में पीलिया (jaundice) होने की सम्भावना रहती है।
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जिस नवजात शिशु को जन्म के पहले कुछ दिन कोलोस्ट्रम मिलता है, उसमे पीलिया (jaundice) होने की सम्भावना बहुत कम रहती है।
कोलोस्ट्रम पे हुए अनेक शोध में यह पाया गया है की कोलोस्ट्रम शिशु के पाचन तंत्र के विकास में सहयोग करता है ताकि शिशु का पाचन तंत्र आसानी से परिपक्व दूध पचा सके। आने वाले कुछ ही दिनों के अंदर शिशु को माँ के स्तनों से कोलोस्ट्रम की जगह परिपक्व दूध मिलना शुरू हो जायेगा।

जन्म के समय शिशु का पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है। लेकिन आने वाले कुछ दिनों के अंदर इतना विकसित हो जायेगा की स्तनपान के जरिये मिलने वाले परिपक्व दूध को आसानी से पचा सके। कोलोस्ट्रम शिशु के लिए ऐसा आहार है जो नवजात शिशु आसानी से पचा लेते है।

स्तनपान के जरिये मिलने वाले कोलोस्ट्रम में ल्यूकोसाइट्स की उच्च मात्रा पायी जाती है। ल्यूकोसाइट्स वो सफेद रक्त कोशिकाएं हैं जो शरीर की रक्षा करती हैं। ल्यूकोसाइट्स शिशु की जीवाणुजनित और विषाणुजनित संक्रमणों से रक्षा करती है।

कुछ समय बाद शिशु का शरीर स्वयं रोगप्रतिकारक बनाने में सक्षम हो जाता है और तब उसे कोलोस्ट्रम से मिलने वाले रोगप्रतिकारक की जरुरत नहीं पड़ती है।

कोलोस्ट्रम में शिशु के बेहतर स्वस्थ के लिए जरुरत के बहुत से पोषक तत्त्व मौजूद हैं। उदहारण के लिए इसमें जिंक, कैल्शियम और विटामनों A, B6, B12 और K होता है। ये सभी शिशु के विकास के लिए जरुरी होता है।
कोलोस्ट्रम में बहुत उच्च मात्रा में कॉलेस्ट्राल होता है। शिशु को इतने उच्च स्तर के कॉलेस्ट्राल तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए जरुरत होती है।
कोलोस्ट्रम से शिशु को थोड़ी मात्रा में शर्करा भी मिलता है। इस शिशु की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करता है।
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