Category: शिशु रोग
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8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।

बड़ों की तुलना में बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) के लक्षणों को पता करना बहुत मुश्किल काम है।
ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों का बहुत सा स्वभाव बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से मिलता-जुलता है।
उदाहरण के लिए सभी बच्चों का मिजाज पल-पल बदलता है। एक पल में आप उन्हें रोते हुए पाएंगे तो दूसरे ही पल आप उन्हें हंसता और खेलता हुआ पाएंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी बच्चे बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित है।
यही वजह है कि किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है, गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
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लेकिन यह भी जरूरी है कि अगर बच्चा बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से ग्रस्त है तो उसकी पहचान जल्द से जल्द हो सके ताकि समय पर उचित चिकित्सा प्रदान की जा सके।
बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित बच्चों को चिकित्सीय मदद ना मिलने की वजह से उनका मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) का इलाज जितना प्रभावी तरीके से किया जा सकता है उतना प्रभावी तरीके से व्यस्क में इसका इलाज नहीं किया जा सकता है।
हम आपको बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) के 8 लक्षणों के बारे में बताएंगे जिनके द्वारा आप आसानी से इसकी पहचान कर सकते हैं।

अगर बच्चे का कुछ स्वभाव उन्माद भरा हो, मसलन अत्यधिक घमंडी या अभिमानी या फिर इस तरह से बर्ताव करना कि वह अपने दोस्तों से ज्यादा बेहतर है।
तथा शारीरिक रूप से ऊर्जा से भरे रहना, कई कई दिनों तक कम मात्रा में सोने के बावजूद भी पूरी तरह से स्वस्थ देखना, तुरंत सोचना और तुरंत किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना, जल्दी-जल्दी बातें करना और जोखिम भरे कार्य करना।
इन्हीं बच्चों में अगर आपको कुछ समय (या दिनों) पश्चात अवसाद भरा बर्ताव दिखे जैसे कि शारीरिक ऊर्जा में कमी, किसी भी कार्य में मन ना लगना, थकान, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ, भूख में कमी और शारीरिक रूप से बीमार महसूस होना जैसे कि पेट में दर्द, सिरदर्द और मन में बुरे-बुरे ख्याल आना जैसे आत्महत्या इत्यादि।
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सभी बच्चों को कभी ना कभी गुस्सा आता है। लेकिन जो बच्चे बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से ग्रसित हैं उन्हें बहुत ही अत्यधिक तीव्रता वाला गुस्सा आता है।

इन्हें गुस्सा इतना ज्यादा आता है कि ये हिंसात्मक हो जाते हैं। हो सकता है कई बार यह अपने गुस्से को संभाल ना पाए और साथ खेल रहे दूसरे बच्चों पर आक्रमण कर दें या खिलौनों को तोड़ना शुरू करने।
ऐसा इसलिए क्योंकि बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से ग्रसित बच्चे अपने गुस्से को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं। इनका गुस्सा क्रोध में बदल सकता है जो कई घंटो तक रह सकता है।
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यूं तो हर बच्चे का मिजाज पल-पल बदलता है। लेकिन बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) पीड़ित बच्चों का मिजाज बार बार बदलता है और जल्दी-जल्दी बदलता है।

हो सकता है एक पल में यह अत्यधिक नाराज हो और गुस्से में हो और कुछ घंटों बाद यह अत्यधिक खुशमिजाज में हों। दिन भर के दौरान आप इनकी शारीरिक ऊर्जा में कई बार उतार चढ़ाव देख सकते हैं और कई बार इनके मिजाज में बदलाव भी देख सकते हैं।
इनके मिजाज में अप्रत्याशित बदलाव की वजह से दोस्तों के साथ तथा घर में अन्य लोगों के साथ इन्हें तालमेल बैठाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
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हलाकि बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) के कई लक्षण बच्चों में उतना आम नहीं है जितना कि उनमें गुस्सा और क्रोध (Anger and Rage) का लक्षण।

लेकिन फिर भी अगर सुबह उठने के बाद और रात में सोने से पहले अगर आपका बच्चा आप से अत्यधिक अपेक्षाएं रखें, जैसे कि बहुत देर तक गोदी में पड़े रहना चाहे, या चाहे कि आप बहुत देर तक उसे प्यार करें जैसे कि उसके सिर को सहलाने उसके पैर को मालिश करें इत्यादि, तो यह भी बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) के लक्षण हो सकते हैं।
लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि सभी बच्चे इस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं - बस अंतर इतना है कि आम बच्चे इस प्रकार का व्यवहार थोड़ा कम प्रदर्शित करते हैं लेकिन बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से प्रभावित बच्चे इस प्रकार का व्यवहार थोड़ा ज्यादा प्रदर्शित करते हैं।
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बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से प्रभावित अधिकांश बच्चों के परिवारिक इतिहास में इस मिजाज संबंधित डिसऑर्डर को पाया गया है।

अगर शिशु के मां बाप में से किसी में भी बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) की समस्या है ( या बचपन में रही) तो हो सकता है शिशु को भी इस समस्या का सामना करना पड़े।
लेकिन बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) केवल आनुवंशिकी की वजह से ही नहीं होता है - या और भी कई कारणों से हो सकता है।
जिस परिवार में बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) का कोई इतिहास ना हो, उस परिवार के बच्चे में भी बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) पाया जा सकता है।
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स्कूल का माहौल बच्चे के लिए कैसा है, यह भी बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करता है। स्कूल में अगर बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है, अपनापन मिलता है तो उसका व्यवहार स्कूल में बेहतर होगा।
जो बच्चे अपने अध्यापकों के चहेते होते हैं स्कूल के कार्यों में और पढ़ाई में उनका प्रदर्शन भी बेहतर होता है। लेकिन जिन बच्चों को स्कूल में अक्सर अध्यापक डांटते रहते हैं, उन बच्चों का व्यवहार दूसरे बच्चों की तुलना में थोड़ा उग्र होता है।ऐसे बच्चों के मन में हीन भावना पनपने लगती है।

यह बच्चे पढ़ाई में कमजोर पड़ने लगते हैं, स्कूल के खेलकूद कार्यक्रम में भाग नहीं लेना चाहते हैं, और किसी भी कार्य को करने में इनका मन नहीं लगता है।
अगर स्कूल की टीचर आपके बच्चे में इस प्रकार के व्यवहार की चर्चा करें तो हो सकता हैआपका शिशु बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) की समस्या से परेशान है।
ऐसे में आप अपने शिशु के टीचर से बात कर सकती हैं कि ऐसे में शिशु को स्कूल में कैसे उपयुक्त माहौल प्रदान किया जाए।
आप चाहें तो शिशु के लिए किसी दूसरे स्कूल के विकल्प के लिए भी सोच सकती हैं। हो सकता है बच्चे की स्कूल को बदलने से उसके लिए माहौल में बदलाव आए।
तथा इस बदले माहौल में आपके बच्चे का प्रदर्शन बेहतर बने, और आपका बच्चा बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) की समस्या से बाहर निकल पाए।
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बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से मिलती-जुलती दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए ADD। जो बच्चे ADD से प्रभावित होते हैं उन्हें कई बार नींद ना आने की समस्या से जूझना पड़ता है।

कम सोने की वजह से ये बच्चे दूसरे दिन थका हुआ महसूस करते हैं। लेकिन जिन बच्चों को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) की वजह से नींद ना आने की समस्या का सामना करना पड़ता है, वह बच्चे नहीं सोने के बावजूद दूसरे दिन थका हुआ महसूस नहीं करते हैं।
आप इन्हें उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ पाएंगे। लेकिन ADD से प्रभावित बच्चों में इसी का ठीक उल्टा लक्षण दिखता है मतलब वे अत्यधिक थकान में दिखेंगे।
ऊपर दिए गए कोई भी लक्षण अगर आपको अपने बच्चे में दिखे तो इसका मतलब जरूरी नहीं है कि आपका बच्चा बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित है।
लेकिन एक बार आप अपने शिशु को किसी विशेषज्ञ को अवश्य दिखाएं ताकि यह पूरी तरह से निश्चित हो सके कि आपका बच्चा बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से प्रभावित है या नहीं।
क्योंकि बचपन में सही इलाज मिलने पर बच्चा पूरी तरह से इस डिसऑर्डर से उभर सकता है। बड़े होने पर उसके व्यवहार में बदलाव लाना बहुत मुश्किल काम होगा।
बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित बच्चे और बड़ों को अपने व्यवहार के कारण समाज में और अपने कार्य क्षेत्र में कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
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अस्थमा होने की स्थिति में शिशु को तुरंत आराम पहुचने के घरेलु उपाय। अपने बच्चे को अस्थमा के तकलीफ से गुजरते देखना किस माँ-बाप के लिए आसान होता है? सही जानकारी के आभाव में शिशु का जान तक जा सकता है। घर पे प्रतियेक व्यक्ति को अस्थमा के प्राथमिक उपचार के बारे में पता होना चाहिए ताकि आपातकालीन स्थिति में शिशु को जीवन रक्षक दवाइयां प्रदान की जा सकें।
4 से 6 सप्ताह के अंदर अंदर आपके पीरियड फिर से शुरू हो सकते हैं अगर आप अपने शिशु को स्तनपान नहीं कराती हैं तो। लेकिन अगर आप अपने शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग करवा रही हैं तो इस स्थिति में आप का महावारी चक्र फिर से शुरू होने में 6 महीने तक का समय लग सकता है। यह भी हो सकता है कि जब तक आप शिशु को स्तनपान कराना जारी रखें तब तक आप पर महावारी चक्र फिर से शुरू ना हो।
गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर का उतार चढाव, माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। हाई ब्लड प्रेशर में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। सादा और सरल भोजन करना चाहिए। पानी और तरल का अत्याधिक सेवन करना चाहिए। नमक का सेवन सिमित मात्र में करना चाहिए। लौकी का रस खाली पेट पिने से प्रेगनेंसी में बीपी की समस्या को कण्ट्रोल किया जा सकता है।
गर्भावस्था में उलटी आम बात है, लेकिन अगर दिन में थोड़े-थोड़े समय में ही तीन बार से ज्यादा उलटी हो जाये तो इसका बच्चे पे और माँ के स्वस्थ पे बुरा असर पड़ता है। कुछ आसान बातों का ध्यान रख कर आप इस खतरनाक स्थिति से खुद को और अपने होने वाले बच्चे को बचा सकती हैं। यह मोर्निंग सिकनेस की खतरनाक स्थिति है जिसे hyperemesis gravidarum कहते हैं।
सर्दी और जुकाम की वजह से अगर आप के शिशु को बुखार हो गया है तो थोड़ी सावधानी बारत कर आप अपने शिशु को स्वस्थ के बेहतर वातावरण तयार कर सकते हैं। शिशु को अगर बुखार है तो इसका मतलब शिशु को जीवाणुओं और विषाणुओं का संक्रमण लगा है।
घर पे करें तयार झट से शिशु आहार - इसे बनाना है आसन और शिशु खाए चाव से। फ्राइड राइस में मौसम के अनुसार ढेरों सब्जियां पड़ती हैं। सब्जियौं में कैलोरी तो भले कम हो, पौष्टिक तत्त्व बहुत ज्यादा होते हैं। शिशु के मानसिक और शारीरक विकास में पौष्टिक तत्वों का बहुत बड़ा यौग्दन है।
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कोलोस्ट्रम माँ का वह पहला दूध है जो रोगप्रतिकारकों से भरपूर है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है जो नवजात शिशु के मांसपेशियोँ को बनाने में मदद करती है और नवजात की रोग प्रतिरक्षण शक्ति विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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बच्चों का नाख़ून चबाना एक बेहद आम समस्या है। व्यस्क जब तनाव में होते हैं तो अपने नाखुनो को चबाते हैं - लेकिंग बच्चे बिना किसी वजह के भी आदतन अपने नाखुनो को चबा सकते हैं। बच्चों का नाखून चबाना किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा नहीं करता है। लेकिन यह जरुरी है की बच्चे के नाखून चबाने की इस आदत को छुड़ाया जाये नहीं तो उनके दातों का shape बिगड़ सकता है। नाखुनो में कई प्रकार के बीमारियां अपना घर बनाती हैं। नाख़ून चबाने से बच्चों को कई प्रकार के बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है, पेट के कीड़े की समस्या तथा पेट दर्द भी कई बार इसकी वजह होती है।
चावल का पानी (Rice Soup, or Chawal ka Pani) शिशु के लिए एक बेहतरीन आहार है। पचाने में बहुत ही हल्का, पेट के लिए आरामदायक लेकिन पोषक तत्वों के मामले में यह एक बेहतरीन विकल्प है।
सेब और चावल के पौष्टिक गुणों से भर पूर यह शिशु आहार बच्चों को बहुत पसंद आता है। सेब में वो अधिकांश पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो आप के शिशु के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसे स्वस्थ रहने में सहायक हैं।
मसाज तथा मसाज में इस्तेमाल तेल के कई फायदे हैं बच्चों को। मालिश शिशु को आरामदायक नींद देता है। इसके साथ मसाज के और भी कई गुण हैं जैसे की मसाज बच्चे के वजन बढ़ने में मदद करा है, हड़ियों को मजबूत करता है, भोजन को पचने में मदद करता है और रक्त के प्रवाह में सुधार लता है।
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छोटे बच्चों की प्रतिरोधक छमता बड़ों की तरह पूरी तरह developed नहीं होती। इस वजह से यदि उनको बिमारियों से नहीं बचाया जाये तो उनका शरीर आसानी से किसी भी बीमारी से ग्रसित हो सकता है। लकिन भारतीय सभ्यता में बहुत प्रकार के घरेलू नुस्खें हैं जिनका इस्तेमाल कर के बच्चों को बिमारियों से बचाया जा सकता है, विशेष करके बदलते मौसम में होने वाले बिमारियों से, जैसे की सर्दी।
भारत सरकार टीकाकरण अभियान के अंतर्गत मुख्या और अनिवार्य टीकाकरण सूची / newborn baby vaccination chart 2022-23 - कौन सा टीका क्यों, कब और कितनी बार बच्चे को लगवाना चाहिए - पूरी जानकारी। टीकाकरण न केवल आप के बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाता है वरन बिमारियों को दूसरे बच्चों में फ़ैलाने से भी रोकते हैं।