Category: शिशु रोग
By: Miss Vandana | ☺7 min read
ADHD से प्रभावित बच्चे को ध्यान केन्द्रित करने या नियमों का पालन करने में समस्या होती है। उन्हें डांटे नहीं। ये अपने असहज सवभाव को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं जैसे की एक कमरे से दुसरे कमरे में बिना वजह दौड़ना, वार्तालाप के दौरान बीच-बीच में बात काटना, आदि। लेकिन थोड़े समझ के साथ आप एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चों को व्याहारिक तौर पे बेहतर बना सकती हैं।

एडीएचडी (ADHD) शिशु के लिए समस्या भी है और वरदान भी। एडीएचडी (ADHD) बच्चे में उर्जा का भंडार होता है। यही वजह है की वे अपनी उर्जा को किसी एक दिशा में केन्द्रित नहीं कर पाते हैं।
मगर, सही मार्गदर्शन में एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चा अपने जीवन में बहुत अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
आप को ताजुब होगा यह जान कर के की बहुत से ख्याति प्राप्त और अत्याधिक सफल उधमी कभी बचपन में एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित थे।
अपने बच्चे को आप एडीएचडी (ADHD) की वजह से उसके असजः सवभाव के लिए डांटे नहीं। धर्य से और कुछ TIPS की सहायता से आप अपने बच्चे में सुधर ला सकती हैं। इन टिप्स को पढने के लिए आप को इस लेख को अंत तक पढना पड़ेगा।

यह पता लगा पाना की बच्चे को एडीएचडी (ADHD) है, आसन काम नहीं है।
ऐसा इसलिए क्यूंकि अधिकांश बच्चों में इसके लक्षण देखे जा सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं की सबको एडीएचडी (ADHD) हो।
उदाहरण के लिए बचपन में सभी बच्चे चंचल होते हैं और उन्हें ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कत होती है।
लेकिन तीन साल की उम्र पार करने के बाद भी अगर आप के बच्चे को आप की बात पे ध्यान देने में दिक्कत हो, तो, ये एडीएचडी (ADHD) के लक्षण हो सकते हैं। लेकिन बिना डोक्टर से संपर्क किये आप इस नतीजे पे नहीं पहुँच सकती हैं। क्यूंकि अक्सर बच्चों का सवभाव ही ऐसा होता है।
इस लेख में हम आप को बताएँगे की आप अपने बच्चे में एडीएचडी (ADHD) के लक्षणों को कैसे पहचान सकती हैं और अगर आप के बच्चे को एडीएचडी (ADHD) है तो आप अपने बच्चे के लिए क्या कर सकती हैं ताकि वो पढाई और सामाजिक क्षेत्र में दुसरे बच्चों के साथ मुकाबला कर सके।
एडीएचडी (ADHD) सवभाव या व्यहार से सम्बंधित विकारों का समूह है। इसे हम विकारों का समूह इस लिए कहते हैं क्यूंकि इसमें बच्चे को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे की बच्चे को ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कत आती है - inattentiveness, बहुत ज्यादा क्रियाशील रहता है - hyperactive और उसमे आवेग में आ कर काम करने के गुण होते हैं - impulsiveness।
बच्चे में एडीएचडी (ADHD) के लक्षण छोटे उम्र से ही दिखने लगते हैं। लेकिन जैसे - जैसे बच्चा बड़ा होता है उसमे ये लक्षण और ज्यादा उभर कर सामने आते हैं। उदहारण के लिए आप बच्चे में एडीएचडी (ADHD) के लक्षणों को ज्यादा बेहतर तरीके से तब पहचान सकती हैं जब वो स्कूल जाना शुरू करता है।
शिशु में एडीएचडी (ADHD) के अधिकांश मामले 6 से 12 साल के उम्र में सामने आते हैं।
एडीएचडी (ADHD) के लक्षणों में उम्र से साथ सुधर होता जाता है। लेकिन फिर भी जिन बच्चों में बचपन में एडीएचडी (ADHD) ले लक्षण सामने आते हैं, उनमें व्यस्क होने पे भी एडीएचडी (ADHD) के लक्षणों का कुछ प्रभाव देखा जा सकता है। यानी की उम्र के साथ एडीएचडी (ADHD) के लक्षणों में सुधार तो होता है लेकिन यह पूरी तरह से समाप्त नहीं होता।
जिन व्यक्तियौं में एडीएचडी (ADHD) के लक्षण होते हैं, उनमे और दुसरे भी जटिलताएं देखने को मिल सकती है। जैसे की ऐसे व्यक्तियौं को सोने में परिशानी होती है, और ये anxiety के भी शिकार पाए जाते हैं।
एडीएचडी (ADHD) बच्चों में होने वाला एक बहुत ही सामान्य विकार है , जो किशोर अवस्था से लेकर वयस्का अवस्था तक भी लगातार बना रह सकता है। ऐसे बच्चे किसी विषय पर देर तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पते हैं, जल्द आवेग में आ जाते हैं, और इनमें अति क्रिया शीलता के लक्षण पाए जाते हैं।
वर्तमान समय में एडीएचडी की पहचान एक ऐसे विकार के रूप में हुई है , जो बच्चे के व्यवहारात्मक ,संवेगात्मक, शैक्षणिक और संज्ञानात्मक पक्षों को प्रभावित करता है।
साधारण भाषा में इसका मतलब इतना हुआ की अगर आप का बच्चा एडीएचडी (ADHD) की समस्या से पीड़ित है तो उसे स्कूल में पढाई के वक्त ध्यान केन्द्रित करने में मुश्किलें आएगी। यह समस्या उसके व्यहार को भी प्रभावित करेगी। उदहारण के तौर पे उसे कहीं एक जगह बैठ के काम करने में दिकेतें होंगी। किसी काम को शुरू करते ही बोर हो जायेगा।

ऐसे बच्चे बहुत क्रियाशील होते हैं। माँ-बाप अगर चाहें तो थोड़ी सी सूझ-बूझ के साथ आप अपने बच्चे की इस असीमित उर्जा को सही दिशा दे सकती हैं।
एडीएचडी (ADHD) से प्रभावित बच्चों को आप निचे दिए लक्षणों से पहचान सकते हैं। इन लक्षणों के बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंगे।
जिन बच्चों को एडीएचडी (ADHD) होता है, उनमें आप ऊपर दिए कोई भी लक्षण देख सकते हैं। कुछ बच्चों में तो आप को ऊपर दिए सभी लक्षण देखने को मिल सकते हैं।
शिशु में यह लक्षण आप तब तक नहीं देख पाएंगे जब तक की आप का बच्चा स्कूल ना जाने लगे। बड़े बच्चों में एडीएचडी (ADHD) के इस लक्षण को आसानी से पहचाना जा सकता है। विशेष कर सामाजिक परिस्थितियौं में।
बच्चा बहुत शिथिलता से बर्ताव कर सकता है, जैसे की वो अपने होमवर्क या दुसरे कामो को नहीं करता, या एक काम को बीच में छोड़ कर दुसरे काम में हाथ डाल देता है और फिर उसे भी बीच में छोड़ कर किसी दुसरे काम में हाथ डाल देता है।

शिशु में यह लक्षण आप उसके स्कूल जाने से पहले ही देख सकेंगे। ऐसे बच्चे बहुत नटखट होते हैं। आप इन्हें एक जगह पे शांति से कभी बैठा नहीं पाएंगे। देखने पे ऐसा प्रतीत होता है जैसे की इनमें उर्जा का भंडार है। ये बच्चे जैसे ही बोलना सीखते हैं, खूब बोलते हैं। इनकी बातों को सुन कर बड़े-बड़े ताजुब करते हैं। ये बच्चे हर वक्त कूदते, दौड़ते रहते हैं। इन बच्चों को चोट भी इसी वजह से खूब लगता है। इन बच्चों में अतिक्रिया शीलता (Hyperactivity) से सम्बंधित सभी लक्षण निचे दिए गए हैं। इन लक्षणों को देख कर आप आसानी से एडीएचडी (ADHD) से प्रभावित बच्चों को पहचान सकेंगी।
इन बच्चों का सवभाव बहुत आवेग भरा होता है। इनमें सब्र और इंतज़ार का कोई भी गुण नहीं होता है। इनसे अगर आप कोई सवाल पूछे, तो ये आप की बात ख़त्म होने से पहले ही उत्तर दे देते हैं। कई बार तो ये सवाल पूरा सुनने से पहले ही जवाब दे देते हैं। इन बच्चों में धर्य की बहुत कमी रहती है। आप इन में निचे दिए गुण देख सकते हैं:
एडीएचडी (ADHD) बच्चा अपने जीवन में बहुत अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए उनकी उचित तरीके से पहचान और उपचार करना बहुत जरुरी हैं अन्यथा बड़े होने पे उनमें निम्नलिखित दुष्परिणाम देखने को मिलते है -
एडीएचडी (ADHD) बच्चों के भविष्य की सफलता और खुशहाली के लिए माता - पिता, यानी की आपको निम्नलिखित बातों को समझना बहुत ज़रूरी है।

मुख्यता दस कारणों से मिसकैरेज (गर्भपात) होता है। अगर इनसे बच गए तो मिसकैरेज नहीं होगा। जाने की मिसकैरेज से बचाव के लिए आप को क्या करना और क्या खाना चाहिए। यह भी जाने की मिसकैरेज के बाद फिर से सुरक्षित गर्भधारण करने के लिए आप को क्या करना चाहिए और मिसकैरेज के बाद गर्भधारण कितना सुरक्षित है?
आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटने के बल चलने का कोई फायदा है? पैरों पर चलने से पहले बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक का एक नियम है क्योंकि इससे शिशु के शारीर को अनेक प्रकार के स्वस्थ लाभ मिलते हैं जो उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में पोषण का बहुत बड़ा योगदान है। बच्चों को हर दिन सही मात्र में पोषण ना मिले तो उन्हें कुपोषण तक हो सकता है। अक्सर माँ-बाप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की क्या उनके बच्चे को सही मात्र में सभी जरुरी पोषक तत्त्व मिल पा रहे हैं या नहीं। इस लेख में आप जानेंगी 10 लक्षणों के बारे मे जो आप को बताएँगे बच्चों में होने वाले पोषक तत्वों की कमी के बारे में।
शिशु का जन्म पूरे घर को खुशियों से भर देता है। मां के लिए तो यह एक जादुई अनुभव होता है क्योंकि 9 महीने बाद मां पहली बार अपने गर्भ में पल रहे शिशु को अपनी आंखों से देखती है।
शिशु में जुखाम और फ्लू का कारण है विषाणु (virus) का संक्रमण। इसका मतलब शिशु को एंटीबायोटिक देने का कोई फायदा नहीं है। शिशु में सर्दी, जुखाम और फ्लू के लक्षणों में आप अपने बच्चे का इलाज घर पे ही कर सकती हैं। सर्दी, जुखाम और फ्लू के इन लक्षणों में अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं।
कॉलरा वैक्सीन (Cholera Vaccine in Hindi) - हिंदी, - कॉलरा का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
अल्बिनो (albinism) से प्रभावित बच्चों की त्वचा का रंग हल्का या बदरंग होता है। ऐसे बच्चों को धुप से बचा के रखने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बच्चे को दृष्टि से भी सम्बंधित समस्या हो सकती है। जानिए की अगर आप के शिशु को अल्बिनो (albinism) है तो किन-किन चीजों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।
एलर्जी से कई बार शिशु में अस्थमा का कारण भी बनती है। क्या आप के शिशु को हर २० से २५ दिनों पे सर्दी जुखाम हो जाता है? हो सकता है की यह एलर्जी की वजह से हो। जानिए की किस तरह से आप अपने शिशु को अस्थमा और एलर्जी से बचा सकते हैं।
सरसों का तेल लगभग सभी भारतीय घरों में पाया जाता है क्योंकि इसके फायदे हैं कई। कोई इसे खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करता है तो कोई इसे शरीर की मालिश करने के लिए इस्तेमाल करता है। लेकिन यह तेल सभी घरों में लगभग हर दिन इस्तेमाल होने वाला एक विशेष सामग्री है।
अगर आप के बच्चे को दूध पिलाने के बाद हिचकी आता है तो यह कोई गंभीर बात नहीं है। कुछ आसान घरेलू नुस्खे हैं जिनकी मदद से आप अपने बच्चे को हिचकी से निजात दिला सकती हैं।
बच्चों के साथ यात्रा करते वक्त बहुत सी बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि बच्चे पुरे सफ़र दौरान स्वस्थ रहें - सुरक्षित रहें| इन आवश्यक टिप्स का अगर आप पालन करेंगे तो आप भी बहुत से मुश्किलों से अपने आप को सुरक्षित पाएंगे|
अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों के बच्चे में व्यवहारिक होने की छमता भिन भिन होती है| जिन सांस्कृतिक समूहों में बड़े ज्यादा सतर्क होते हैं उन समूहों के बच्चे भी व्याहारिक होने में सतर्कता बरतते हैं और यह व्यहार उनमे आक्रामक व्यवहार पैदा करती है।
शिशु के जन्म के पहले वर्ष में पारिवारिक परिवेश बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चे के पहले साल में ही घर के माहौल से इस बात का निर्धारण हो जाता है की बच्चा किस तरह भावनात्मक रूप से विकसित होगा। शिशु के सकारात्मक मानसिक विकास में पारिवारिक माहौल का महत्वपूर्ण योगदान है।
रागी का हलुवा, 6 से 12 महीने के बच्चों के लिए बहुत ही पौष्टिक baby food है। 6 से 12 महीने के दौरान बच्चों मे बहुत तीव्र गति से हाड़ियाँ और मासपेशियां विकसित होती हैं और इसलिए शरीर को इस अवस्था मे calcium और protein की अवश्यकता पड़ती है। रागी मे कैल्शियम और प्रोटीन दोनों ही बहुत प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता है।
दो साल के बच्चे के लिए शाकाहारी आहार सारणी (vegetarian Indian food chart) जिसे आप आसानी से घर पर बना सकती हैं। अगर आप सोच रही हैं की दो साल के बच्चे को baby food में क्या vegetarian Indian food, तो समझिये की यह लेख आप के लिए ही है। संतुलित आहार चार्ट
चूँकि इस उम्र मे बच्चे अपने आप को पलटना सीख लेते हैं और ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, आप को इनका ज्यादा ख्याल रखना पड़ेगा ताकि ये कहीं अपने आप को चोट न लगा लें या बिस्तर से निचे न गिर जाएँ।
6 से 7 महीने के बच्चे में जरुरी नहीं की सारे दांत आये। ऐसे मैं बच्चों को ऐसी आहार दिए जाते हैं जो वो बिना दांत के ही आपने जबड़े से ही खा लें। 7 महीने के baby को ठोस आहार के साथ-साथ स्तनपान करना जारी रखें। अगर आप बच्चे को formula-milk दे रहें हैं तो देना जारी रखें। संतुलित आहार चार्ट
अपने बच्चे को किसी भी प्रकार की चोट लगने पर बिना घबराए, पहले यह देखे की उसे किस प्रकार की चोट लगी हैं यह समझते हुए उसका प्राथमिक ईलाज करे और अपने बच्चे को राहत दिलाये। उनका यदि तुरंत ही नहीं ईलाज किया गया तो ये चोट गंभीर घाव का रूप ले लेते हैं और आगे चलकर परेशानी का कारण बन जाति हैं। बच्चे ज्यादातर खेलते - कूदते समय चोट लगा लेते हैं।
कौन नहीं चाहता की उनका शिशु गोरा हो! अगर आप भी यही चाहते हैं तो कुछ घरेलु नुस्खे हैं जिनकी सहायता से आप के शिशु की त्वचा गोरी और निखरी बन सकती है। जानिए की आप सांवले बच्चे को कैसे बनाएं गोरा