Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
नवजात बच्चे से सम्बंधित बहुत सी जानकारी ऐसी है जो कुछ पेरेंट्स नहीं जानते। उन्ही जानकारियोँ में से एक है की बच्चों को 6 month से पहले पानी नहीं पिलाना चाहिए। इस लेख में आप पढेंगे की बच्चों को किस उम्र से पानी पिलाना तीख रहता है। क्या मैं अपनी ५ महीने की बच्ची को वाटर पानी दे सकती हु?

बिलकुल नहीं! जब तक की बच्चा ६ महीने का ना हो जाये, उसे पानी या कोई भी और तरल ना दें। नवजात शिशु के लिए माँ का दूध पर्याप्त है। दूसरी बात यह है की पानी में अनेक तरह के संक्रमण होते है जिनसे आप के शारीर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है क्यूंकि आप के शारीर की रोग प्रतिरोधक छमता बहुत मजबूत होती है और हर प्रकार के संक्रमण से लड़ने में सक्षम होती है। मगर नवजात शिशु में रोगप्रतिरोधक छमता बहुत कम होती है जिस वजह से उन्हें पिने वाले पानी से भी संक्रमण लग सकता है।
माँ बनना अपने में एक बेहद सुखद अनुभव है। यह ईश्वर का ऐसा आशीर्वाद है जो सबको नसीब नहीं होता। मगर माँ बनने का दूसरा पहलु भी है। माँ बनते ही मनो जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट पड़ता है।
एक नवजात बच्चे की देखभाल दुनिया के सबसे कठिन कामों में से एक है। बच्चे के जन्म से लेकर पहले 6 month बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान बच्चे को ज्यादा देख रेख की जरुरत होती है।
कई बार कुछ महिलाएं जो पहली बार माँ बनती हैं नहीं जानती की बच्चे को 6 month से पहले पानी नहीं पिलाना चाहिए। इस लेख में आप जानेंगी की किस उम्र में बच्चों को पानी पिलाना उचित रहता है और क्योँ।
माँ के दूध में 80 प्रतिशत पानी होता है जो बच्चे में पानी की हर आवशकता को पूरा कर सकता है।
ठोस आहार की तरह बच्चे को पानी भी 6 month के बाद ही देना चहिये। इससे पहले आपके बच्चे को पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। या यूँ कहलें की बच्चे की पानी की जरुरत माँ के दूध के द्वारा पूरी हो जाती है। 6 month से पहले पानी देना बच्चे के स्वस्थ के साथ खेलवाड़ करने जैसा है। मगर जैसे जैसे बच्चे बड़ा होने लगता है, माँ का दूध बनना कम हो जाता है। बच्चा जब 6 महीने का होता है तो ठोस आहार की शुरआत करनी चाहिए। जब ठोस आहार की शुरआत होती है तो बच्चे को पानी देना भी शुरू करना चाहिए। पानी मदद करता है ठोस खाने को पचाने में। जब आप बच्चे को ठोस खाना देते है तो पानी भी दीजिये ताकि बच्चा खाने को पचा सके। आप अपने बच्चे को दिन में 4 से 5 बार दो से तीन चम्मच पानी दे सकते हैं।
बच्चे को सीधे नल का पानी न पिलायें। बच्चे में संक्रमण से लड़ने की छमता नहीं होती। ऐसी में नल का पानी बच्चे को बीमार कर सकता है। बच्चे को पिलाने वाला पानी तैयार करने के लिए डेकची में पानी ले लीजिये और उसे 2 मिनट तक उबाल लीजिये। पानी को ठंडा होने के लिए छोड़ दीजिये। जब पानी ठंडा हो जाये तो उसे ढक कर रख दीजिये। इसी पानी का इस्तेमाल करें अपने बच्चे को पिलाने के लिए। अपने बच्चे को 24 घंटे से ज्यादा पुराना पानी न पिलायें। हर दिन नया पानी त्यार करें।
बहुत से माँ बाप 6 महीना फूटते ही अपने बच्चे को पानी देना शुरू कर देते हैं। ये गलत है। ऐसा तभी करें जब डॉक्टर ऐसा करने की सलाह दे। अक्सर जब शिशु को अतिरिक्त दूध की पूर्ति नहीं हो पाती है तब ऐसी नौबत आती है। 6 महीना से पहले बच्चे को पानी पिलाने से बच्चे में कुपोषण होने की सम्भावना बाद जाती है। माँ के दूध से ही बच्चे में पानी की पूर्ति हो जाती है। हाँ यह बात सही है की बच्चे को आपको दिन में कई बार दूध पिलाना पड़ेगा। मगर क्या आप भी दिन में कई बार भोजन नहीं करती। बच्चे का पेट छोटा होता है। इसी लिए उसे हर थोड़ी देर पे दिन में कई बार दूध पिलाने की आवशकता है।
बहुत गर्मी पड़ने पे क्या बच्चे को पानी दिया जा सकता है
बिलकुल नहीं - 6 महीना से पहले पानी पिलाने से कुपोषण की सम्भावना बढ़ जाती है। बहुत गर्मी पड़ने पे बच्चे की प्यास भुजाने के लिए उसे हर थोड़ी देर पे दूध पीला सकती है। माँ के दूध से बच्चे की पियास बुझ जाती है और पानी की जरुरत पूरी होती है।
माँ का दूध सामान्यतः शिशु के लिए पर्याप्त होता है। बच्चे के जन्म के बढ़ माँ के स्तन से कोलोस्ट्रम (गाढ़ा दूध) निकलता है। ये दूध न केवल बच्चे को हाइड्रेट रखता है बल्कि बच्चे को हर तरह के बीमारी से भी बचता है। माँ के लिए गौर करने वाली बात यह है की जो माँ जितना ज्यादा दूध अपने बच्चे को पिलाती है उसके स्तन में उतना ज्यादा दूध बनने लगता है। इसका मतलब आप बार बार थोड़े अंतराल पे अपने बच्चे को दूध पीला कर उसके शरीर में पानी की कमी को पूरा कर सकते हैं।
जिन बच्चों को 6 महीने से पहले दूध पिलाया जाता है उनमें ओरल वाटर इंटोक्सिकेशन की समस्या पायी जाती है। यह इन्फेक्शन बच्चे के दिमाग पे बुरा असर डालता है। 6 महीने से पहले पानी पिलाना बच्चे के पाचन तंत्र को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसा करने पे बच्चे कुपोषण के शिकार भी हो सकते हैं।
शिशु का शरीर बड़ों के शरीर की तरह नहीं होता। शिशु का शरीर विकसित हो रहा होता है। गर्मी के मौसम में पानी की जरूरत शिशु को भी उतनी ही होती है जितनी की बड़ों को। बड़े तो पानी पी कर अपनी पानी की जरुरत को पूरी कर लेते हैं। मगर 6 महीने से छोटे शिशु पानी नहीं पी सकते क्योँकि से उनके स्वस्थ के लिए नुकसानदेह है। ऐसी में उनके पानी की कमी को दूध के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। गर्मी के मौसम में थोड़े थोड़े समयांतराल पे शिशु को स्तनपान कराती रहें।
6 माह पूर्ण होने पे आप को अपने बच्चे को पानी पिलाना शुरू करना चाहिए। शुरुआत में ज्यादा पानी न पिलाएं। शिशु के पेट का आकार बहुत छोटा होता है जरा सा दूध उसके लिए काफी होता है। बहुत ज्यादा पानी पिलाने पे बच्चे को दूध व बेबी फीड का पोषण ठीक तरह नहीं मिलेगा।
शुरुआत के 6 महीने आपको अपने बच्चे को अपना दूध ही पिलाना एकमात्र विकल्प है और ये एक बेहतर विकल भी है।
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जानिए कीवी फल खाने से शरीर को क्या क्या फायदे होते है (Health Benefits Of Kiwi) कीवी में अनेक प्रकार के पोषक तत्वों का भंडार होता है। जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने में सक्षम होते हैं। कीवी एक ऐसा फल में ऐसे अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को बैक्टीरिया और कीटाणुओं से भी लड़ने में मदद करते। यह देखने में बहुत छोटा सा फल होता है जिस पर बाहरी तरफ ढेर सारे रोए होते हैं। कीवी से शरीर को अनेक प्रकार के स्वास्थ लाभ मिलते हैं। इसमें विटामिन सी, फोलेट, पोटेशियम, विटामिन के, और विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। कीवी में ढेर सारे छोटे काले बीज होते हैं जो खाने योग्य हैं और उन्हें खाने से एक अलग ही प्रकार का आनंद आता है। नियमित रूप से कीवी का फल खाने से यह आपके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है यानी कि यह शरीर की इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
बढ़ते बच्चों के लिए विटामिन और मिनिरल आवश्यक तत्त्व है। इसके आभाव में शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है। अगर आप अपने बच्चों के खान-पान में कुछ आहारों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चों के शारीर में विटामिन और मिनिरल की कमी होने से बचा सकती हैं।
अन्य बच्चों की तुलना में कुपोषण से ग्रसित बच्चे वजन और ऊंचाई दोनों ही स्तर पर अपनी आयु के हिसाब से कम होते हैं। स्वभाव में यह बच्चे सुस्त और चढ़े होते हैं। इनमें दिमाग का विकास ठीक से नहीं होता है, ध्यान केंद्रित करने में इन्हें समस्या आती है। यह बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। कुछ बच्चों में दांत निकलने में भी काफी समय लगता है। बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि शिशु के भोजन में हर प्रकार के आहार को सम्मिलित किया जाएं।
मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। यह अधिकांश बदलाव शरीर में हो रहे हार्मोनअल (hormonal) परिवर्तन की वजह से होते हैं। और अगले कुछ दिनों में जब फिर से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य हो जाता है तो यह समस्याएं भी खत्म होनी शुरू हो जाती है। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो एक मां को अक्सर बहुत परेशान कर देती है। इन्हीं में से एक बदलाव है बार बार यूरिन होना। अगर आपने कुछ दिनों पहले अपने शिशु को जन्म दिया है तो हो सकता है आप भी बार-बार पेशाब आने की समस्या से पीड़ित हो।
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।
औसतन एक शिशु को दिन भर में 1000 से 1200 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है। शिशु का वजन बढ़ने के लिए उसे दैनिक आवश्यकता से ज्यादा कैलोरी देनी पड़ेगी और इसमें शुद्ध देशी घी बहुत प्रभावी है। लेकिन शिशु की उम्र के अनुसार उसे कितना देशी घी दिन-भर में देना चाहिए, यह देखिये इस तलिके/chart में।
6 महीने के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। जबकि 6 महीने की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
बच्चों को सर्दी जुकाम बुखार, और इसके चाहे जो भी लक्षण हो, जुकाम के घरेलू नुस्खे बच्चों को तुरंत राहत पहुंचाएंगे। सबसे अच्छी बात यह ही की सर्दी बुखार की दवा की तरह इनके कोई side effects नहीं हैं। क्योँकि जुकाम के ये घरेलू नुस्खे पूरी तरह से प्राकृतिक हैं।
शिशु को 1 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कॉलरा, जापानीज इन्सेफेलाइटिस, छोटी माता, वेरिसेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
अल्बिनो (albinism) से प्रभावित बच्चों की त्वचा का रंग हल्का या बदरंग होता है। ऐसे बच्चों को धुप से बचा के रखने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बच्चे को दृष्टि से भी सम्बंधित समस्या हो सकती है। जानिए की अगर आप के शिशु को अल्बिनो (albinism) है तो किन-किन चीजों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
संगती का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| बच्चे दोस्ती करना सीखते हैं, दोस्तों के साथ व्यहार करना सीखते हैं, क्या बात करना चाहिए और क्या नहीं ये सीखते हैं, आत्मसम्मान, अस्वीकार की स्थिति, स्कूल में किस तरह adjust करना और अपने भावनाओं पे कैसे काबू पाना है ये सीखते हैं| Peer relationships, peer interaction, children's development, Peer Influence the Behavior, Children's Socialization, Negative Effects, Social Skill Development, Cognitive Development, Child Behavior
Beta carotene से भरपूर गाजर छोटे शिशु के लिए बहुत पौष्टिक है। बच्चे में ठोस आहार शुरू करते वक्त, गाजर का प्यूरी भी एक व्यंजन है जिसे आप इस्तेमाल कर सकते हैं। पढ़िए आसान step-by-step निर्देश जिनके मदद से आप घर पे बना सकते हैं बच्चों के लिए गाजर की प्यूरी - शिशु आहार। For Babies Between 4-6 Months
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
टीकाकरण के बाद बुखार होना आम बात है क्यूंकि टिके के जरिये बच्चे की शरीर का सामना संक्रमण से कराया जाता है। जानिए की आप किस तरह टीकाकरण के दुष्प्रभाव को कम कर सकती हैं।
आठ महीने की उम्र तक कुछ बच्चे दिन में दो बार तो कुछ बच्चे दिन में तीन बार आहार ग्रहण करने लगते हैं। अगर आप का बच्चा दिन में तीन बार आहार ग्रहण नहीं करना चाहता तो जबरदस्ती ना करें। जब तक की बच्चा एक साल का नहीं हो जाता उसका मुख्या आहार माँ का दूध यानि स्तनपान ही होना चाहिए। संतुलित आहार चार्ट
माँ के दूध से मिलने वाले होर्मोनेस और एंटीबाडीज बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है| ये बच्चे के शरीर को viruses और bacteria से मुकाबला करने में सक्षम बनता है| स्तनपान वाले बच्चों में कान का infection, साँस की बीमारी और diarrhea कम होता है| उन बच्चों को डॉक्टर को भी कम दिखाना पड़ता है|
हर मां बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में तेज निकले। लेकिन शिशु की बौद्धिक क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है जिस में से एक है शिशु का पोषण।अगर एक शोध की मानें तो फल और सब्जियां प्राकृतिक रूप से जितनी रंगीन होती हैं वे उतना ही ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। रंग बिरंगी फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में बीटा-कैरोटीन, वीटामिन-बी, विटामिन-सी के साथ साथ और भी कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं।
बच्चे के जन्म के समय लगने वाले टीके के प्रभाव को बढ़ाने के लिए बूस्टर खुराकें दी जाती हैं। समय बीतने के पश्चात, एंटीबॉडीज का असर भी कम होने लगता है। फल स्वरूप बच्चे के शरीर में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। बूस्टर खुराक बच्चे के शरीर में एंटीबॉडीज का जरुरी लेवल बनाए रखती है।बूस्टर खुराकें आपके बच्चे को रोगों से सुरक्षित व संरक्षित रखती हैं।
छोटे बच्चों के लिए शहद के कई गुण हैं। शहद बच्चों को लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शदह मैं पाए जाने वाले विटामिन और मिनिरल जखम को जल्द भरने में मदद करते है, लिवर की रक्षा करते हैं और सर्दियों से बचते हैं।
ज़्यादातर 1 से 10 साल की उम्र के बीच के बच्चे चिकन पॉक्स से ग्रसित होते है| चिकन पॉक्स से संक्रमित बच्चे के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित होती हैं। यह दिखने में खसरे की बीमारी की तरह लगती है। बच्चे को इस बीमारी में खुजली करने का बहुत मन करता है, चिकन पॉक्स में खांसी और बहती नाक के लक्षण भी दिखाई देते हैं। यह एक छूत की बीमारी होती है इसीलिए संक्रमित बच्चों को घर में ही रखना चाहिए जबतक की पूरी तरह ठीक न हो जाये|