Category: बच्चों का पोषण
By: Admin | ☺5 min read
मीठी चीनी किसे पसंद नहीं। बच्चों के मन को तो ये सबसे ज्यादा लुभाता है। इसीलिए रोते बच्चे को चुप कराने के लिए कई बार माँ-बाप उसे एक चम्मच चीनी खिला देते हैं। लेकिन क्या आप को पता है की चीनी आप के बच्चे के विकास को बुरी तरह से प्रभावित कर देते है। बच्चों को चीनी खिलाना बेहद खतरनाक है। इस लेख में आप जानेंगी की किस तरह चीनी शिशु में अनेक प्रकार की बिमारियौं को जन्म देता है।

मीठा स्वाद हर बच्चे को पसंद होता है। इसीलिए कई बार रोते बच्चे को शांत कराने के लिए मां-बाप उसे थोड़ी सी चीनी खिला देते हैं।
चीनी भले ही आपके शिशु को क्षणिक आनंद देता है, लेकिन उसके सेवन से शरीर पर बहुत सारे बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
चीनी की सबसे बड़ी खराबी यह है कि उसमें कैलोरी अत्यधिक मात्रा में होता है लेकिन उसमें किसी भी प्रकार का पोषक तत्व नहीं होता है।
शिशु के शरीर को कैलोरी के साथ-साथ पोषक तत्वों की आवश्यकता सबसे ज्यादा रहती है क्योंकि पोषक तत्व शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

बिना पोषक तत्वों के शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से नहीं हो सकता है।
पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और मिनरल्स, की कमी से शिशु में अनेक प्रकार की बीमारियां भी हो सकती हैं। इनकी कमी कुपोषण का सबसे बड़ा कारण है।
एक निर्धारित मात्रा से ज्यादा चीनी का सेवन बड़ों के लिए जानलेवा है। अत्यधिक चीनी के सेवन से बड़ों में मोटापा और मधुमेह की समस्या हो सकती है।
बच्चों के लिए तो इसके परिणाम और भी ज्यादा गंभीर हो सकते हैं। पोषक तत्वों की कमी और कुपोषण की वजह से छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर जो विपरीत प्रभाव पड़ता है उसकी भरपाई कर पाना बेहद मुश्किल है।

बचपन में अगर शिशु का शरीर पोषक तत्वों की कमी या कुपोषण की वजह से प्रभावित हो जाए तो उसके दुष्प्रभाव व्यस्क होने पर भी उसके शरीर पर देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए अगर कुपोषण की वजह से शिशु का कद ठीक तरह ना बढे तो बड़े होने पे उसका कद-काठी दूसरों की तुलना में छोटा लगेगा।

चीनी के सेवन के दुष्प्रभाव अनेक है लेकिन फिर भी अफसोस इस बात का है की शिशु के दैनिक आवश्यकता का 10% कैलोरी उसे उसके आहार में मौजूद चीनी से मिलता है।
एक अध्ययन में पाया गया कि हर 10 में से एक शिशु को उसकी दैनिक आवश्यकता की कैलोरी का 25% कैलोरी चीनी से मिलता है। यह बहुत ही भयानक और गंभीर बात है।

हम यहां नीचे चर्चा करने जा रहे हैं कि अत्यधिक चीनी के सेवन से आपके शिशु पर क्या-क्या शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।

चीनी के अत्यधिक सेवन से आपका शिशु मोटापे का शिकार हो सकता है। चीनी से आपके शिशु को अत्यधिक मात्रा में ना केवल कैलोरी मिलती है बल्कि इससे उसके शरीर में अनावश्यक रुप से वसा का निर्माण और संग्रह होने लगता है।
शरीर में अत्यधिक वसा की मौजूदगी से शिशु के मस्तिष्क को यह संदेश मिलता है कि उसे भूख लगी है और उसका पेट खाली है।

इसकी वजह से शिशु को दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा भूख लग सकती है और अत्यधिक भोजन ग्रहण करने के बाद भी भूख जल्दी शांत नहीं होती है।
बचपन में जो बच्चे मोटापा या अत्यधिक वजन के शिकार होते हैं बड़े होने पर भी वे मोटापे के शिकार पाए गए हैं।
आहार जिनसे शिशु को सबसे अधिक चीनी मिलता है वह है - जलेबी, केक, पेस्ट्री, कुकीज, आइसक्रीम, लड्डू, मिठाई, सेवई, इत्यादि।
चीनी से लैस आहार शिशु में हृदय संबंधी समस्याओं को भी जन्म दे सकते हैं। यह समस्याएं मोटापे की समस्या से भी गंभीर है।
चीनी की वजह से हृदय संबंधी समस्या का होना मोटापे पर निर्भर नहीं करता है। इसका मतलब अगर आपका शिशु अनावश्यक रुप से मोटा नहीं है तो भी अत्यधिक चीनी का सेवन उसके हृदय को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकता है।

अमेरिका में 2014 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिन लोगों को उनके दिनभर के कैलोरी का 25% चीनी से मिलता है उनमें हृदय संबंधी समस्याओं से मौत का खतरा उन लोगों से 2 गुना ज्यादा रहता है जिन्हें चीनी से केवल 10% कैलोरी मिलता है।
अब तक हुए अध्ययन में इस बात का पता नहीं चल सका है कि वह क्या कारण है जिनकी वजह से चीनी से हृदय संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं।
लेकिन विश्व भर के विशेषज्ञों की आम धारणा यह है की अत्यधिक चीनी वाले आहार उच्च रक्तचाप को बढ़ावा देते हैं और इसकी वजह से जिगर (liver) तथा रक्त में वसा का संग्रहण बढ़ता है।
अत्यधिक चीनी का सेवन करने वाले बच्चों मैं दातों की समस्या आम पाई गई है जैसे कि दांतो की सड़न, दांतों में कैविटी, दांत का दर्द, इत्यादि।
चीन वाले खाद्य पदार्थ खाने से मुंह में हर वक्त जीवाणुओं की मौजूदगी बनी रहती है। यह जीवाणु दांतो को सड़ाने और उन्हें खोखला करने का काम करते हैं।

मुंह में मौजूद आहार को जब जीवाणु खाते हैं तो इस प्रक्रिया में अम्लीय पदार्थ (acidic) का निर्माण होता है। यह अम्लीय पदार्थ दातों पर तेजाब का काम करता है जिसे दांतो का अपक्षरण (erode) होता है।
चीनी से दातों का खराब होना इस बात पर निर्भर नहीं करता है किस शिशु ने कितना चीनी खाया - बल्कि - इस बात पर निर्भर करता है कि चीनी और चीनी से बने खाद्य पदार्थों का सेवन किस तरह किया गया।
जितनी लंबे समय तक चीनी बच्चे के मुंह में मौजूद रहेगा उतना ज्यादा बच्चों के दांतों को नुकसान पहुंचने की संभावना है।

जी हाँ! अंगूठा चूसने से बच्चों के दांत ख़राब हो जाते हैं और नया निकलने वाला स्थयी दांत भी ख़राब निकलता है। मगर थोड़ी सावधानी और थोड़ी सूझ-बूझ के साथ आप अपने बच्चे की अंगूठा चूसने की आदत को ख़त्म कर सकती हैं। इस लेख में जानिए की अंगूठा चूसने के आप के बच्चों की दातों पे क्या-क्या बुरा प्रभाव पडेग और आप अपने बच्चे के दांत चूसने की आदत को किस तरह से समाप्त कर सकती हैं। अंगूठा चूसने की आदत छुड़ाने के बताये गए सभी तरीके आसन और घरेलु तरीके हैं।
विटामिन ई - बच्चों में सीखने की क्षमता को बढ़ता है। उनके अंदर एनालिटिकल (analytical) दृष्टिकोण पैदा करता है, जानने की उक्सुकता पैदा करता है और मानसिक कौशल संबंधी छमता को बढ़ता है। डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को ऐसे आहार लेने की सलाह देते हैं जिसमें विटामिन इ (vitamin E) प्रचुर मात्रा में होता है। कई बार अगर गर्भवती महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई नहीं मिल रहा है तो विटामिन ई का सप्लीमेंट भी लेने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि विटामिन ई की कमी से बच्चों में मानसिक कौशल संबंधी विकार पैदा होने की संभावनाएं पड़ती हैं। प्रेग्नेंट महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई अगर मिले तो उसकी गर्भ में पल रहे शिशु का तांत्रिका तंत्र संबंधी विकार बेहतर तरीके से होता है।
ये पांच विटामिन आप के बच्चे की लंबाई को बढ़ने में मदद करेगी। बच्चों की लंबाई को लेकर बहुत से मां-बाप परेशान रहते हैं। हर कोई यही चाहता है कि उसके बच्चे की लंबाई अन्य बच्चों के बराबर हो या थोड़ा ज्यादा हो। अगर शिशु को सही आहार प्राप्त हो जिससे उसे सभी प्रकार के पोषक तत्व मिल सके जो उसके शारीरिक विकास में सहायक हों तो उसकी लंबाई सही तरह से बढ़ेगी।
शिशु के जन्म के बाद यानी डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या देखी गई है। हालांकि बाजार में बाल झड़ने को रोकने के लिए बहुत तरह की दवाइयां उपलब्ध है लेकिन जब तक महिलाएं अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही हैं तब तक यह सलाह दी जाती है कि जितना कि जितना ज्यादा हो सके दवाइयों का सेवन कम से कम करें। स्तनपान कराने के दौरान दवाइयों के सेवन से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए विटामिंस बहुत आवश्यक होते हैं। लेकिन इनकी अत्यधिक मात्रा गर्भ में पल रहे शिशु तथा मां दोनों की सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने से बचें। डॉक्टरों से संपर्क करें और उनके द्वारा बताए गए निश्चित मात्रा में ही विटामिन का सेवन करें। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने के कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं।
बच्चों को या बड़ों को - टॉन्सिल इन्फेक्शन किसी को भी हो सकता है जब शारीर की रोग प्रतिरोधक छमता कमजोर पड़ जाती है। चूँकि बच्चों की रोगप्रतिरोधक छमता बड़ों की तुलना में कम होती है, टॉन्सिल इन्फेक्शन बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। लेकिन कुछ आसन से घरेलु उपचार से इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है।
गणतंत्र दिवस एक खुबसूरत अवसर है जिसका लाभ उठाकर सिखाएं बच्चों को आजादी का महत्व और उनमें जगाएं देश के संविधान के प्रति सम्मान। तभी देश का हर बच्चा बड़ा होने बनेगा एक जिमेदार और सच्चा नागरिक।
ADHD शिशु के पेरेंट्स के लिए बच्चे को अनुशाशन सिखाना, सही-गलत में भेद करना सिखाना बहुत चौनातिपूर्ण कार्य है। अधिकांश ADHD बच्चे अपने माँ-बाप की बातों को अनसुना कर देते हैं। जब आप का मन इनपे चिल्लाने को या डांटने को करे तो बस इस बात को सोचियेगा की ये बच्चे अंदर से बहुत नाजुक, कोमल और भावुक हैं। आप के डांटने से ये नहीं सीखेंगे। क्यूंकि यह स्वाभाव इनके नियंत्रण से बहार है। तो क्या आप अपने बच्चे को उसके उस सवभाव के लिए डांटना चाहती हैं जो उसके नियंत्रण में ही नहीं है।
स्तनपान या बोतल से दूध पिने के दौरान शिशु बहुत से कारणों से रो सकता है। माँ होने के नाते यह आप की जिमेदारी हे की आप अपने बच्चे की तकलीफ को समझे और दूर करें। जानिए शिशु के रोने के पांच कारण और उन्हें दूर करने के तरीके।
सरसों का तेल लगभग सभी भारतीय घरों में पाया जाता है क्योंकि इसके फायदे हैं कई। कोई इसे खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करता है तो कोई इसे शरीर की मालिश करने के लिए इस्तेमाल करता है। लेकिन यह तेल सभी घरों में लगभग हर दिन इस्तेमाल होने वाला एक विशेष सामग्री है।
ठण्ड के दिनों में बच्चों का अगर उचित ख्याल न रखा जाये तो वे तुरंत बीमार पड़ सकते हैं। कुछ विशेष स्वधानियाँ अगर आप बरतें तो आप का शिशु ठण्ड के दिनों में स्वस्थ और सुरक्षित रह सकता है। जानिए इस लेख में ठंड में बच्चों को गर्म रखने के उपाय।
Ambroxol Hydrochloride - सर्दी में शिशु को दिया जाने वाला एक आम दावा है। मगर इस दावा के कुछ घम्भीर (side effects) भी हैं। जानिए की कब Ambroxol Hydrochloride को देना हो सकता है खतरनाक।
बचपन में शिशु का शारीर बहुत तीव्र गति से विकसित होता है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में कैल्शियम एहम भूमिका निभाता है। बच्चों के active growth years में अगर उन्हें उनके आहार से कैल्शियम न मिले तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है।
रागी का हलुवा, 6 से 12 महीने के बच्चों के लिए बहुत ही पौष्टिक baby food है। 6 से 12 महीने के दौरान बच्चों मे बहुत तीव्र गति से हाड़ियाँ और मासपेशियां विकसित होती हैं और इसलिए शरीर को इस अवस्था मे calcium और protein की अवश्यकता पड़ती है। रागी मे कैल्शियम और प्रोटीन दोनों ही बहुत प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता है।
गर्मियों की आम बीमारियां जैसे की बुखार, खांसी, घमोरी और जुखाम अक्सर बच्चो को पीड़ित कर देती हैं। साधारण लगने वाली ये मौसमी बीमारियां जान लेवा भी हो सकती हैं। जैसे की डिहाइड्रेशन, अगर समय रहते बच्चे का उपचार नहीं किया गया तो देखते देखते बच्चे की जान तक जा सकती है।
टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) वैक्सीन vaccine - Td (tetanus, diphtheria) vaccine in hindi) का वैक्सीन मदद करता है आप के बच्चे को एक गंभीर बीमारी से बचने में जो टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) के वायरस द्वारा होता है। - टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) वैक्सीन का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
हर प्रकार के आहार शिशु के स्वस्थ और उनके विकास के लिए ठीक नहीं होता हैं। जिस तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए सही तो उसी तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए बुरे भी होते हैं। बच्चों के आहार को ले कर हर माँ-बाप परेशान रहते हैं।क्योंकि बच्चे खाना खाने में बहुत नखड़ा करते हैं। ऐसे मैं अगर बच्चे किसी आहार में विशेष रुचि लेते हैं तो माँ-बाप अपने बच्चे को उसे खाने देते हैं, फिर चाहे वो आहार शिशु के स्वस्थ के लिए भले ही अच्छा ना हो। उनका तर्क ये रहता है की कम से कम बच्चा कुछ तो खा रहा है। लेकिन सावधान, इस लेख को पढने के बाद आप अपने शिशु को कुछ भी खिलने से पहले दो बार जरूर सोचेंगी। और यही इस लेख का उद्देश्य है।
बच्चे के जन्म के समय लगने वाले टीके के प्रभाव को बढ़ाने के लिए बूस्टर खुराकें दी जाती हैं। समय बीतने के पश्चात, एंटीबॉडीज का असर भी कम होने लगता है। फल स्वरूप बच्चे के शरीर में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। बूस्टर खुराक बच्चे के शरीर में एंटीबॉडीज का जरुरी लेवल बनाए रखती है।बूस्टर खुराकें आपके बच्चे को रोगों से सुरक्षित व संरक्षित रखती हैं।
सबसे ज्यादा बच्चे गर्मियों के मौसम में बीमार पड़ते हैं और जल्दी ठीक भी नहीं होते| गर्मी लगने से जहां एक और कमजोरी बढ़ जाती है वहीं दूसरी और बीमार होने का खतरा भी उतना ही अधिक बढ़ जाता है। बच्चों को हम खेलने से तो नहीं रोक सकते हैं पर हम कुछ सावधानियां अपनाकर उनको गर्मी से होने वाली बीमारियों से जरूर बचा सकते हैं |
दस्त के दौरान बच्चा ठीक तरह से भोजन पचा नहीं पाता है और कमज़ोर होता जाता है। दस्त बैक्टीरियल संक्रमण बीमारी है। इस बीमारी के दौरान उसको दिया गया ८०% आहार दस्त की वजह से समाप्त हो जाता है। इसी बैलेंस को बनाये रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण आहार हैं जिससे दस्त के दौरान आपके बच्चे का पेट भरा रहेगा।