Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺6 min read
शिशु का वजन जन्म के 48 घंटों के भीतर 8 से 10 प्रतिशत तक घटता है। यह एक नार्मल से बात है और सभी नवजात शिशु के साथ होता है। जन्म के समय शिशु के शरीर में अतिरिक्त द्रव (extra fluid) होता है - जो शिशु के जन्म के कुछ दिनों के अंदर तेज़ी से बहार आता है और शिशु का वजन कम हो जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों के अंदर फिर से शिशु का वजन अपने जन्म के वजन के बराबर हो जायेगा और फिर बढ़ता ही जायेगा।

क्या आप आप इस बात को लेकर परेशान हैं की आप के नवजात बच्चे का वजन जन्म के कुछ दिनों के अंदर घट गया?
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
नवजात शिशु का वजन जन्म के कुछ दिनों के अंदर घटता है।
यह बिलकुल ही सामान्य बात है।
नौ महीने शिशु गर्भ में amniotic fluid जिसे "भ्रूण अवरण द्रव" कहते हैं, उसमे कैद रहा होता है। इससे शिशु के शरीर में द्रव की मात्रा ज्यादा होती है। यह सामान्य बात है और भ्रूण अवस्था में उसके विकास के लिए सहायक भी।
लेकिन जन्म के बाद शरीर में मौजूद अतिरिक्त द्रव (extra fluid) की आवशकता समाप्त हो जाती है। इसीलिए जन्म के कुछ दिनों के भीतर ही शरीर इस अतिरिक्त द्रव से छुटकारा पा लेता है।
शिशु के शरीर में इस अतिरिक्त द्रव के कमी के कारण उसके शरीर का वजन बहुत तेज़ी से कम होता है।
नोट: क्या आप जानना चाहती है की आप के नवजात शिशु का आदर्श वजन क्या होना चाहिए? तो पढ़िए ये आर्टिकल।

जन्म के बाद 48 घंटे के अंदर शिशु का वजन 7 - से - 10 प्रतिशत तक कम हो जाता है। लेकिन चूँकि शिशु के जन्म के बाद के कुछ सप्ताह ऐसे होता हैं जब उसके शारीरिक विकास की दर बहुत तेज़ होती है, इसलिए शिशु अपना खोया हुआ वजन लगभग दो सप्ताह के अंदर वापस पा लेता है।
शिशु के वजन में यह वृद्धि उसके शरीर में मौजूद द्रव के कारण नहीं बल्कि ठोस मासपेशियोँ और हड्डियोँ के विकास के कारण होता है - जो की अच्छी बात है।

अगर आप के नवजात शिशु का वजन जन्म के बाद 10 प्रतिशत से ज्यादा कम हो जाता है तो यह चिंता की बात है और आप को अपने शिशु के डॉक्टर से तुरंत इस विषय पे परामर्श करना चाहिए। शिशु का वजन 10 प्रतिशत से ज्यादा दो वजह से होता है।

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इसके बारे में हम पहले ही ऊपर जिक्र कर चुके हैं। प्रेगनेंसी के दौरान स्त्रियोँ का वजन बढ़ जाता है। इस दौरान स्त्रियोँ के शरीर में इस तरह का हार्मोनल बदलाव आता है, जिस वजह से स्त्रियोँ के शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है।
यह हॉर्मोन शिशु के शरीर को भी प्रभावित करता है और शिशु का भ्रूण जो पहले से ही amniotic fluid या "भ्रूण अवरण द्रव" में तैर रहा होता है, इस हॉर्मोन के प्रभाव से पानी शिशु के शरीर में इकठ्ठा हो जाता है। यह गर्भ में शिशु के विकास के लिए आवश्यक भी है।
लेकिन जन्म के तुरंत बाद ही इस द्रव की आवशकता ख़त्म हो जाती है और यह तुरंत बहार निकलना शुरू कर देते है। माँ के शरीर से बहार आने के बाद हॉर्मोन का प्रभाव भी ख़त्म होना शुरू हो जाता है।

वासा का इस्तेमाल शरीर ऊर्जा के रूप में करता है। शिशु जब गर्भ में होता है तो उसके शरीर में रिजर्व फैट होता है ताकि जरुरत पड़ने पे शरीर उसका इस्तेमाल कर सके।
शिशु के जन्म के बाद शिशु का शरीर अगले तीन दिनों तक इस वासा का इस्तेमाल कर सकता है। शिशु के जन्म के अगले तीन दिनों तक माँ के दूध में वसा वाले न्यूट्रियंट नहीं होते हैं।
इस दौरान माँ के स्तन से पिले रंग का द्रव आता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। यह भी शिशु के विकास के पहले कुछ दिन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कोलोस्ट्रम शिशु के शरीर को ऊर्जा के साथ साथ उसे संक्रमण से लड़ने का समर्थ भी देता है। यह पोषण से भरपूर होता है।
लेकिन यह दो दिन ऐसे भी होते हैं जब शिशु अपने शरीर में इकत्रित वासा का प्रयोग करता है। शरीर में इकत्रित वासा का इस्तेमाल होने से शिशु का वजन कम हो जाता है।

कई बार अज्ञानता के कारण शिशु को उचित मात्रा में माँ का दूध नहीं मिल पता है। यह भी एक वजह है शिशु के वजन के घटने का।
शिशु का सामान्यतः 10 प्रतिशत तक वजन जन्म के कुछ दिनों के अंदर घटता है। लेकिन अगर शिशु का वजन इसे ज्यादा कम हो गया है तो इसका मतलब यह भी हो सकता है की उसे ठीक मात्रा में दूध नहीं मिल पा रहा है।
अगर आप के शिशु का वजन इस वजह से कम हो रहा है तो आप को शिशु रोग विशिषज्ञा से परामर्श करने की आवशकता है।
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