Category: शिशु रोग

बच्चों के गले के टॉन्सिल इन्फेक्शन का घरेलु उपचार

By: Admin | 13 min read

बच्चों को या बड़ों को - टॉन्सिल इन्फेक्शन किसी को भी हो सकता है जब शारीर की रोग प्रतिरोधक छमता कमजोर पड़ जाती है। चूँकि बच्चों की रोगप्रतिरोधक छमता बड़ों की तुलना में कम होती है, टॉन्सिल इन्फेक्शन बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। लेकिन कुछ आसन से घरेलु उपचार से इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है।

बच्चों के गले के टॉन्सिल इन्फेक्शन का घरेलु उपचार

बच्चों का रोग प्रतिरोधक तंत्र बड़ों की तुलना में कमजोर होता है इसलिए उन्हें कोई भी बीमारी बड़े आसानी से लग जाती है। यही वजह है कि बड़ों की तुलना में बच्चों को टॉन्सिल की समस्या ज्यादा सताती है। 

गले की प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस का एक  गांठ जैसा होता है।  डॉक्टरी भाषा में  इसे टॉन्सिल कहते हैं।इसमें  जब सूजन  हो जाता है,  तब हम कहते हैं कि टोंसिल हो गया है।  

tonsils become infected is called tonsillitis in children

टॉन्सिल में सूजन होने से गले में बहुत दर्द होता है  विशेषकर जब हम कुछ खाते हैं। टॉन्सिल होने पर आहार का स्वाद भी पता नहीं चलता है।  टॉन्सिल के सूजन होता है उसको टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। 

टॉन्सिल की समस्या मुख्यता ठंडे पदार्थों को खाने से,  चावल, मैदा और खट्टी वस्तुओं के अत्यधिक सेवन के कारण होता है।  

मौसम के अचानक बदलने से, दूषित वातावरण के संपर्क में आने से और कई बार बुखार की वजह से भी टॉन्सिल हो जाता है। टॉन्सिल हो जाने पर शिशु को थूक निगलने में भी परेशानी होती है।

अगर आपके शिशु के गले के दोनों तरफ सूजन जैसा प्रतीत हो।  उसके गले में दोनों तरफ दर्द महसूस हो रहा हो।  तथा दर्द की वजह से अगर उसे बार-बार बुखार भी हो रहा है।  तो इसका मतलब आपके बच्चे को टॉन्सिल की समस्या हो सकती है। 

इस लेख में:


शिशु को टॉन्सिल होने की अवस्था में आपको दो काम तुरंत करना चाहिए

शिशु को टॉन्सिल होने की अवस्था में आपको दो काम तुरंत करना चाहिए:

  1. बच्चे में टॉन्सिल के आम लक्षण दिखने पर आप उसे तुरंत नजदीकी शिशु स्वास्थ्य केंद्र पर लेकर जाए या फिर किसी अच्छे शिशु  रोग विशेषज्ञ  की राय लें। 
  2. इसके बाद अपने बच्चे को टॉन्सिल की समस्या से आराम पहुंचाने के लिए कुछ घरेलू उपचार का मदद लीजिए।

शिशु को टॉन्सिल होने पर यह सावधानियां बरतें

शिशु को टॉन्सिल होने पर यह सावधानियां बरतें

अगर आपके बच्चे को टॉन्सिल हो गया है तो आपको कुछ विशेष  बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता है -  जैसे कि:

  • अपने बच्चे को ना तो कोई ठंडा आहार दें और ना ही उसे कुछ भी ठंडा पीने के लिए दें।
  • बच्चे को दही और मलाई वाला दूध ना दे।  दही खट्टा होता है पर इस वजह से उसके टॉन्सिल की समस्या सबसे पहले तो आप वह सारी सावधानियां बरतनी शुरू कर दीजिए जिनसे आपके शिशु के टॉन्सिल की समस्या बढ़ सकती है।
  • बच्चे को  धुंए, प्रदूषण और  धूल वाली जगह से दूर रखें। 
  • जब तक के बच्चे का टॉपिक पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता,  उसे मसालेदार खाना और तली हुई चीजों से दूर रखें। 

शिशु को टॉन्सिल से तुरंत आराम पहुंचाने के लिए यह करें

हल्के गर्म पानी में एक चम्मच नमक घोल कर शिशु को उससे गार्गल कराएं।  इससे आपके बच्चे को गले की सूजन में बहुत राहत मिलेगा। 

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नमक पानी के गार्गल से बैक्टीरिया को फैलने का मौका नहीं मिलता है इसी के साथ नमक के पानी का गार्गल, गले के दर्द को भी कम करता है। 

दालचीनी को किस करके उसका पाउडर बना लीजिए।  चुटकी भर पाउडर में शहद मिलाकर प्रतिदिन तीन बार अपने  शिशु को दें।  

शिशु को दालचीनी का पाउडर शहद के साथ, दिन में तीन बार कब तक देते रहें जब तक कि उसका टॉन्सिल पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता है। 

दालचीनी के स्थान पर आप तुलसी की मंजरी का भी इस्तेमाल कर सकते। 

घर के सभी लोगों के लिए जो भोजन तैयार किया गया है उसमें अगर कोई ऐसा आहार है जिसमें मसाला यह खटाई ज्यादा है,  तो उसे शिशु को ना दें।  

उदाहरण के लिए अगर घर में इटली और सांभर बना है,  तो अपने शिशु को केवल सादा इटली खाने के लिए दे।  टॉन्सिल की स्थिति में सांभर के मसाले शिशु को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवायन उबाल कर उस पानी से शिशु को गार्गल और कुल्ला करने को कहें।  इससे शिशु को  टॉन्सिल में आराम मिलेगा। 

बच्चों के लिए टॉन्सिल का घरेलू उपचार

बच्चों के लिए टॉन्सिल का घरेलू उपचार

ऊपर बताई गई विधि को अगर आप अपनाएं, तो आपके बच्चे को टॉन्सिल में तुरंत आराम मिलेगा।  इसके अलावा हमने जो ऊपर सावधानियां बताई हैं, अगर आप शिशु के टॉन्सिल में इन सावधानियों को बरतती है तो भी आप के शिशु का टॉन्सिल जल्द से जल्द ठीक होने में मदद मिलेगा।   

इसके अलावा कुछ और घरेलू तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने शिशु के टॉन्सिल में उसको आराम पहुंचा सकती है। बच्चों के गले के टॉन्सिल इन्फेक्शन का घरेलु उपचार इस प्रकार से हैं:

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नींबू और शहद 

शहद में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं।  इसके साथ इसमें anti inflamation  गुड़ भी होते हैं जिसकी वजह से यह टॉन्सिल की सूजन को कम करने में बहुत कारगर है।  

शिशु को एक चम्मच शहद में दो से तीन बूंद  नींबू का जूस मिलाकर बच्चे को दिन में तीन बार सेवन कराएं।  इसका सेवन करने से शिशु को गले के दर्द से राहत मिलेगा। 

अदरक टॉन्सिल में फायदेमंद है ginger is beneficial in tonsils

अदरक टॉन्सिल में फायदेमंद है

अदरक एक प्राकृतिक औषधि है। इसका इस्तेमाल कई प्रकार की दवाओं को बनाने में होता है। अदरक को शहद के साथ मिलाकर चूसने  से टॉन्सिल में तुरंत आराम मिलता है। 

इसके अलावा एक ग्लास पानी में नींबू का रस और ताजा अदरक पीसकर मिलाकर उस पानी से हर आधे घंटे में गार्गल करने से भी टॉन्सिल में आराम मिलता है। 

feed children hot food in tonsils शिशु को गर्म आहार खिलाएं

शिशु को गर्म आहार खिलाएं

शिशु को टॉन्सिल के दौरान केवल गरम आहार खिलाएं।  गरम आहार से शिशु को आराम मिलेगा।  आहार में शिशु को मुलायम चीज खाने के लिए दे जिससे वह आसानी से चला सके और निकल सके - उदाहरण के लिए चावल।  

उबला हुआ चावल मुलायम होता है और इसे शिशु सरलता से निकल सकता है। चावल में किसी प्रकार का मसाला ना मिलाएं।  

आप शिशु को उबला हुआ पालक और भाप में पके हुई सब्जियां भी खाने के लिए दे सकती हैं।  इससे शिशु के इंफेक्शन को ठीक करने में मदद मिलेगा। 

garlic is effective in tonsils लहसुन टॉन्सिल के दर्द को कम करें

लहसुन टॉन्सिल के दर्द को कम करें

उबलते हुए पानी में 4 से 5 माह के लहसुन के उबालिए।  जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो पानी को छानकर अलग कर लीजिए।  

टॉन्सिल के  संक्रमण के दौरान मुंह से बदबू की शिकायत रहती है। लहसुन के पानी से गार्गल करने से टॉन्सिल का दर्द ठीक होगा तथा मुंह से बदबू  भी कम होगा। 

हल्दी कई रोगों की दवा है

हल्दी कई प्रकार की बीमारियों के लिए सर्वश्रेष्ठ औषधि है।  यह टॉन्सिल के संक्रमण में भी आराम पहुंचाता है।  हल्दी वाले पानी से कुल्ले करवाने से टॉन्सिल का संक्रमण कम होता है।  

turmeric is beneficial in tonsils हल्दी कई रोगों की दवा है

गले के बाहरी हिस्से पर हल्दी के पाउडर का लेप करने से भी आराम मिलता है।  हल्दी को शहद के साथ मिलाकर चाटने से भी टॉन्सिल की समस्या से आराम मिलता है।  

रात में  सोने से पहले शिशु को गर्म दूध में थोड़ा सा हल्दी मिलाकर पीने को दें।  इससे टॉन्सिल के दर्द से राहत मिलेगा।

तुलसी के पत्ते और शहद भी टॉन्सिल में कारगर

 तुलसी का पेड़ लगभग सभी भारत के घरों में आसानी से मिल जाता है।  इसके पत्तों का इस्तेमाल कई प्रकार के   भारतीय व्यंजनों में होता है।  

tulsi effective treatment for tonsils तुलसी के पत्ते और शहद भी टॉन्सिल में कारगर

तथा इसे औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।  तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर,  टॉन्सिल के संक्रमण से पीड़ित शिशु को खिलाने से आराम मिलता है।  तुलसी की मंजरी के पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। 

चलिए यह तो बातें हुई कि  टॉन्सिल में आप अपने शिशु को  कैसे तुरंत आराम पहुंचा सकती हैं।  इसके अलावा आपने यह भी जाना कि  शिशु को टॉन्सिल के दौरान कौन कौन सी सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।  

आप ने अब तक यह भी देखा कि टॉन्सिल के लिए कौन कौन से घरेलू उपचार है जो एक शिशु के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।  

अब आगे हम लोग विस्तार से यह जानने की कोशिश करेंगे कि टॉन्सिल आखिर है क्या और इसकी क्या क्या लक्षण है।  हम लोग यह भी जानेंगे कि यह किस वजह से होता है।

टॉन्सिल क्या है

अगर आप अपने शिशु के मुंह के अंदर देखेंगे तो आप पाएंगे कि उसके गले  के भीतरी द्वार पर दोनों तरफ बादाम के आकार के अंग है।  इन्हें टॉन्सिल कहते हैं।  

What Is Tonsillitis And How To Cure It टॉन्सिल क्या है और उपचार

यह शिशु को बाहरी संक्रमण से बचाते हैं। इनकम मुख्य काम है कि बाहर से आने वाली किसी भी बीमारी को शरीर में घुसने से रोके। 

जब तक यह टॉन्सिल मजबूत रहता है  यह शरीर को बीमारी से बचाता है और खुद भी संक्रमण के चपेट में आने से बचता है।   लेकिन जब टॉन्सिल कमजोर हो जाता है तो बीमारी को शरीर में जाने से रोक पाने में सक्षम नहीं रहता है और खुद भी संक्रमण के चपेट में आ जाता है।  

संक्रमण के चपेट में आने पर टॉन्सिल में सूजन आ जाता है और यह दिखने में लाल रंग का हो जाता है।  इसमें दर्द भी काफी होता है जिस वजह से बार-बार बुखार भी चाहता है।  

क्योंकि टॉन्सिल गले की भीतरी द्वार के दोनों तरफ स्थित होता है इसीलिए  टॉन्सिल में सूजन होने पर शिशु को खाना या पानी निगलने में बहुत तकलीफ होती है। 

what is tonsillitis and remedy टॉन्सिलाइटस क्या है और घरेलु उपचार

टॉन्सिलाइटस क्या है

टॉन्सिल के इंफेक्शन को टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। अगर शिशु में टॉन्सिलाइटिस की समस्या लगातार बनी रहे तो इसे क्रानिक कहा जाता है। यह स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं है।

 क्रानिक टॉन्सिलाइटिस की स्थिति में शिशु को हर महीने 2 महीने में टॉन्सिल के संक्रमण की समस्या रहती है। लेकिन अगर शिशु को दूसरी बार टांसिल 6 महीने के बाद हो तो उस स्थिति को क्रानिक नहीं कहा जाता है। या सामान्य स्थिति है। 

टॉन्सिलाइटिस किस प्रकार के संक्रमण की वजह से होता है

टॉन्सिलाइटिस किस प्रकार के संक्रमण की वजह से होता है

टॉन्सिलाइटिस दो प्रकार के संक्रमण की वजह से होता है:

  • बैक्टीरियल इन्फेक्शन  (जीवाणुओं के द्वारा होने वाला संक्रमण)
  • वायरल इन्फेक्शन ( विषाणुओं के द्वारा होने वाला संक्रमण)

tonsils due to bacterial infection बैक्टीरियल इन्फेक्शन

बैक्टीरियल इन्फेक्शन

टॉन्सिलाइटिस का यह इंफेक्शन जीवाणुओं के द्वारा होने वाले संक्रमण के कारण होता है।  इसके लिए निम्न जीवाणु जिम्मेदार है:

  • Staphylococcus aureus
  • U Streptococcus pyogenes
  • Haemophilus influenzae

tonsils due to viral infection वायरल इन्फेक्शन

वायरल इन्फेक्शन

टॉन्सिलाइटिस चाहिए इन्फेक्शन विषाणुओं के द्वारा होने वाले संक्रमण के कारण होता है।  इसके लिए निम्न विषयों जिम्मेदार हैं:

  • Reovirus
  • Adenovirus
  • Influenza virus

इंसेफेलाइटिस का संक्रमण चाहे जीवाणुओं के द्वारा हो या विषाणुओं के द्वारा,  यह तब होता है जब शिशु के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिस वजह से शिशु का शरीर बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं रहता है।  

शिशु  के शरीर की रोग प्रतिरोधक तंत्र विकासशील अवस्था में रहती है।  यानी कि यह बड़ों की तरफ पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई है।  

यही वजह है कि बच्चों को तरह-तरह के संक्रमण आसानी से लग जाते हैं और उन्हें बीमारियों से बचाने के लिए विशेष सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है। 

किस मौसम में टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है

किस मौसम में टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है

टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का खतरा पूरे साल भर बना रहता है।  लेकिन इसके संक्रमण की गुंजाइश सबसे ज्यादा बदलते मौसम  के दौरान रहती है।  

उदाहरण के लिए मार्च 8 सितंबर अक्टूबर के दौरान इन के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा बना रहता है।  इन महीनों में  बच्चों को संक्रमण से बचाने  कि लिए विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता है।  

इन मौसम में शिशु को बहुत ज्यादा ठंडा गर्म और तीखा खाना ना खिलाए।

किस उम्र में टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है

किस उम्र में टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है

टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है।  लेकिन इस के संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा 14 साल से कम उम्र के बच्चों में रहता है। 

टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण की वजह

टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण की वजह

  • बहुत गर्म खाना खाने से
  • बहुत ठंडा खाना खाने या पीने से
  • आइसक्रीम कोल्ड ड्रिंक खाने पीने से
  • मिर्च मसाले और तीखे आहारों से
  • तले और  भुने आहारों से
  • शरीर में टॉन्सिल की कमजोर होने पर
  • प्रदूषण धूल गंदगी के संपर्क में आने से
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर पड़ने पर
  • पेट खराब होने पर

symptoms of tonsils टॉन्सिलाइटिस के लक्षण

टॉन्सिलाइटिस के लक्षण

टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण की स्थिति में गले के प्रवेश द्वार पर स्थित टॉन्सिल में सूजन हो जाता है और यह आकर में भी बढ़ जाता है।

  • टॉन्सिल के सूजन की वजह से गले के बाहर भी सूजन हो जाता है
  • सूजन की वजह से गले में दर्द भी रहता है
  • शिशु को आहार खाने या निगलने में बहुत तकलीफ होता है
  • टॉन्सिल और गले का रंग लाल पड़ जाता है
  • टॉन्सिल के दर्द की वजह से बच्चे को बार बार बुखार चढ़ता है
  • शिशु को बहुत थकान रहता है
  • इसकी वजह से कान में भी दर्द होता है
  • आप के शिशु के आवाज में भारीपन और बदलाव देख सकती हैं 
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बच्चों में भूख बढ़ने के आसन घरेलु तरीके
बच्चों-में-भूख-बढ़ने छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।
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बच्चों के रोने की वजह और उन्हें संभालने के उपाय
बच्चे-क्यों-रोते बच्चा रो कर ही अपनी बात माँ के सामने रखता हैं। आपका छोटा सा बच्चा खुद अपने आप कुछ नहीं कर सकता हैं। बच्चा अपने हर छोटी-बढ़ी जरूरत के लिए माँ पर आश्रित रहता हैं और रो कर ही अपनी जरूरतों को बताता है।
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बच्चों में यूरिन कम या बार-बार होना
बच्चों-में-यूरिन मूत्राशय के संक्रमण के कारण बच्चों में यूरिन कम या बार-बार होना होने लगता है जो की एक गंभीर समस्या है। मगर सही समय पर सजग हो जाने से आप अपने बच्चे को इस बीमारी से और इस की समस्या को बढ़ने से रोक सकती हैं।
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बच्चों में अंजनहारी - क्या सावधानियां बरतनी चाहिए
बच्चों-में-अंजनहारी अंजनहारी को आम तौर पर गुहेरी या बिलनी भी कहते हैं। यह रोग अक्सर बच्चो की आँखों के ऊपरी या निचली परत पर लाल रंग के दाने के रूप में उभर कर सामने आते हैं। अंजनहारी जैसे रोग संक्रमण की वजह से फैलते हैं
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