Category: बच्चों का पोषण
By: Admin | ☺9 min read
बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में पोषण का बहुत बड़ा योगदान है। बच्चों को हर दिन सही मात्र में पोषण ना मिले तो उन्हें कुपोषण तक हो सकता है। अक्सर माँ-बाप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की क्या उनके बच्चे को सही मात्र में सभी जरुरी पोषक तत्त्व मिल पा रहे हैं या नहीं। इस लेख में आप जानेंगी 10 लक्षणों के बारे मे जो आप को बताएँगे बच्चों में होने वाले पोषक तत्वों की कमी के बारे में।
एक मां बाप की हैसियत से हम सभी अपने बच्चों के लिए वह सब करना चाहते हैं जिससे उन्हें उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए एक उचित माहौल मिल सके।
लेकिन,
तमाम कोशिशों के बाद भी कई बार बच्चों में पोषण की कमी (nutritional deficiencies) हो जाती है।
ऐसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उचित मात्रा में आहार नहीं मिला, बल्कि अधिकांश मामलों में यह इसलिए होता है क्योंकि मां बाप को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि बच्चों के लिए आहारों का चयन किस प्रकार करें जो उनकी शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दें, उनके अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाए, और उनके शरीर को स्वस्थ रहने में मदद करें।
खुशी की बात यह है कि आपको अपने बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए या उनके शरीर को पोषक तत्वों की कमी से दूर रखने के लिए आपको बहुत ज्यादा ना तो मेहनत करने की जरूरत है और ना ही बहुत ज्यादा अध्यन करने की जरूरत है।
केवल, कुछ सरल बातों का ध्यान रखकर आप अपने बच्चों को वह सभी पोषक तत्व प्रदान कर सकती हैं जो उनके शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस तरह से आप अपने बच्चों में पोषक तत्वों की कमी की पहचान कर सकते हैं।
नीचे ऐसे 10 लक्षणों के बारे में हम आपको बताएंगे जिन्हें अगर आप अपने बच्चों में देखें, तो आप आसानी से समझ सकेंगी कि वह कौन से पोषक तत्व है जो आपके शिशु को उसके आहारों से नहीं प्राप्त हो रहे हैं।
इस लेख में आप यह भी जानेंगे कि आप अपने शिशु के डाइट में कौन-कौन से आहारों को सम्मिलित कर सकती हैं जिनसे उनके अंदर हो रहे पोषक तत्व की कमी को पूरा किया जा सके।
आमतौर पर शिशु के डाइट में थोड़ा मोड़ा फेरबदल करके आप उसके आहार को पोशाक और रुचिकर बना सकती है। सोच समझ कर बनाई गई शिशु के लिए डाइट रणनीति उसे वह सभी पोषक तत्वों को प्रदान करेगी जो शिशु के बढ़ते हुए शरीर के लिए जरूरी है।
अगर आप ध्यान दें तो यह तीनो - अवसाद, बेचैनी, और घबराहट, मानसिक स्थितियां हैं। लेकिन ताजुब की बात यह है कि इनकी वजह शिशु में पोषक तत्वों की कमी (nutritional deficiencies) भी हो सकती है।
उदाहरण के लिए, प्रोटीन में अमीनो एसिड होता है। यह अमीनो एसिड शरीर में मांस पेशियों के निर्माण में बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं।
लेकिन शुद्ध शाकाहारी आहारों से शरीर को वह सारे अमीनो एसिड नहीं मिल पाते हैं जिनसे शरीर की मांसपेशियों का निर्माण हो सके।
मांसाहारी आहारों से शरीर को वह सारे अमीनो एसिड मिल जाते हैं जिनसे शरीर बड़ी सरलता से मांसपेशियों का निर्माण कर लेता है। तथा यह अमीनो एसिड शरीर बहुत सहजता से अवशोषित भी कर लेता है।
प्रोटीन (एमिनो एसिड्स) सिर्फ शरीर में मांसपेशियों के निर्माण के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह मस्तिष्क से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण काम भी करते हैं।
हमारा मस्तिष्क अमीनो एसिड का इस्तेमाल करता है न्यूरोट्रांसमीटर्स (neurotransmitters) को बनाने के लिए। आपने Serotonin, Endorphins, Catecholemines, और GABA के बारे में तो सुना ही होगा।
यह सभी न्यूरोट्रांसमीटर्स है। इन्हीं न्यूरोट्रांसमीटर की वजह से हम अनेक प्रकार के मनोभावों से गुजरते हैं।
इनमें से कुछ न्यूरोट्रांसमीटर हमें खुश और शांत रखते हैं। अगर इन न्यूरोट्रांसमीटर्स का निर्माण ना हो पाए तो हमारा मस्तिष्क उदासीन और बेचैन हो जाएगा, तथा अवसाद से ग्रसित हो जाएगा।
शिशु के बढती हुई उम्र में (growing years) ये न्यूरोट्रांसमीटर, उसे क्रियाशील रहने में मदद करते हैं जिससे शिशु नई नई बातें सीखता है और जिंदगी के विभिन्न पहलुओं में तालमेल बनाना सीखता है।
अगर आप अपने बच्चे को लगातार कुछ दिनों तक उदास और अवसाद से ग्रसित देखें तो समझ लीजिएगा कि आपके शिशु को निश्चित तौर पर प्रोटीन की समुचित मात्रा नहीं मिल पा रही है जितना कि उसके शरीर को इस समय आवश्यकता है।
शिशु के शरीर में अमीनो एसिड की कमी को पूरा करने के लिए आप उसे दूध और दूध से बने उत्पाद जैसे कि पनीर, दही, मक्खन इत्यादि दे सकते हैं।
अगर आप अपने बच्चे को मांसाहारी भोजन देते हैं तो आप उसके आहार में मीट, चिकन, अंडा भी सम्मिलित कर सकते हैं। अगर इससे आप के शिशु को आराम ना मिले तो आप अपने शिशु के डॉक्टर से राय लें। प्रोटीन की कमी को सप्लीमेंट के द्वारा पूरा किया जा सकता है।
कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो कभी शांत नहीं बैठते हैं। इनका मस्तिष्क बहुत क्रियाशील होता है। आप इन्हें हर समय दौड़ते और कूदते हुए देख सकते हैं।
हालांकि यह स्थिति बहुत हद तक आनुवंशिकी होता है, लेकिन फिर भी आहारों के द्वारा आप शिशु को नियंत्रित कर सकती हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे अत्यधिक क्रियाशीलता (Hyperactivity) से पीड़ित होते हैं उनके पेट में अच्छे बैक्टीरिया की कमी (poor bacterial flora) होती है।
इस वजह से उनका पाचन तंत्र भी कमजोर होता है। पाचन तंत्र के कमजोर होने की वजह से उनका शरीर आहार में से सभी पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाता है।
कुछ शिशु विशेषज्ञ और डॉक्टर इस बात की राय देते हैं कि अगर बच्चा अत्यधिक क्रियाशीलता (Hyperactivity) की समस्या से पीड़ित है तो उसे processed food जैसे कि आलू का चिप्स, समोसे, कचोरी, केक, पेस्ट्री, पेटीस, इत्यादि से दूर रखा जाए।
बच्चों पर हुए शोध में यह पाया गया है कि जब अत्यधिक क्रियाशीलता (Hyperactivity) की समस्या से पीड़ित बच्चों के आहार से सब processed food निकाल दिया जाता है तो उनके स्वभाव में बहुत परिवर्तन आता है।
अगर आपका शिशु अत्यधिक क्रियाशीलता की समस्या से पीड़ित है तो आप उसके आहार में दही को सम्मिलित करें। दही probiotics होता है और यह पेट की पाचन से संबंधित समस्या को दूर करता है।
बच्चों में देर से बोलने की समस्या की मुख्य वजह है विटामिन B12 की कमी। बच्चों को विटामिन B12 की कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट देना उचित नहीं है।
सप्लीमेंट देने से पहले यह जरूरी है कि बच्चों का समुचित जांच किया जाए इस बात को निर्धारित करने के लिए कि शिशु को वाकई विटामिन B12 की कमी है।
सबसे बेहतर यह होगा कि आप शिशु के भोजन में ऐसे आहरों को सम्मिलित करें जिन में प्रचुर मात्रा विटामिन B12 में पाया जाता है। आहार जिसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन B12 पाया जाता है वह है अंडा, मीट, मछली, दूध और दूध से बने उत्पाद जैसे कि पनीर, छास, दही, इत्यादि। शाकाहारी आहारों में विटामिन B12 नहीं पाया जाता है।
सूखी त्वचा और रूखे बालों की एक वजह यह भी है कि शिशु के शरीर में वसा विलय विटामिन (fat soluble vitamins) की कमी हो रही है उदाहरण के लिए Vitamin A, D, E, and K2 इत्यादि।
कई बार ऐसा होता है कि मां-बाप के तमाम कोशिशों के बाद भी बच्चों की त्वचा बहुत रूखी सूखी रहती है बाल भी बहुत रूखे से रहते हैं।
अगर आपका बच्चा इस स्थिति से गुजर रहा है तो हो सकता है उसके अंदर fat soluble vitamins की कमी हो रही है।
आप अपने शिशु के डॉक्टर से या किसी शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें और उसके परामर्श के आधार पर अपने बच्चों को कुछ सप्लीमेंट दें उदाहरण के लिए Fermented Cod Liver oil, जिससे उनके अंदर fat soluble vitamins की कमी को पूरा किया जा सके।
सुनने में थोड़ा अटपटा सा लगे लेकिन सच बात यह है कि अगर आपका शिशु अत्यधिक घने दांत (Crowding of Teeth) की समस्या से पीड़ित है तो हो सकता है उसके अंदर कुछ पोषक तत्वों की कमी (nutritional deficiencies) है।
यह बात बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर हुए अनेक शोध में प्रमाणित हो चुका है। शोध में पाया गया है कि जो बच्चे processed foods खाते हैं, या जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान processed foods का सेवन करती हैं, उनके बच्चों के दांतो की संरचना खराब विकसित होती है।
जो गर्भवती महिलाएं स्वास्थ्य वसायुक्त पारंपरिक आहार का सेवन करती हैं उनके बच्चों के दांतो की संरचना बेहद खूबसूरत होती है।
यह एक आम धारणा है कि दांतो की सड़न और कैविटीज़ की मुख्य वजह है अत्यधिक मात्रा में चीनी का सेवन, बच्चों का दिन भर चॉकलेट खाना, और दांतो को साफ ना रखना।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों के दांतो की सड़न और कैविटीज़ की एक मुख्य वजह उनके अंदर पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है।
बच्चों पर हुए एक शोध में यह पता लगा की पोषक तत्वों की कमी, विशेषकर वसा विलेय विटामिन (fat soluble vitamins) की कमी कि वजह से भी बच्चों को दांतों की सड़न और कैविटी का सामना करना पड़ता है।
अगर बच्चे को उसके आहार से समुचित मात्रा में फास्फोरस और वसा विलेय विटामिन (fat soluble vitamins) की अच्छी खुराक मिले तो उसके दांत कैविटीज़ और सड़न से सुरक्षित रखते हैं।
अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते हैं जो साल भर जुखाम की समस्या से पीड़ित रहता है तो हो सकता है उसके आहार से उसे वह सभी पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं जो उसके शरीर को स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है।
पोषक तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं और शरीर को अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाते हैं।
जो बच्चे केवल एक ही तरह का आहार ग्रहण करने की बजाये तमाम तरह के आहारों को ग्रहण करते हैं उनका शरीर अंदर से बहुत मजबूत होता है, और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत मजबूत होती है।
यह बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं जो बीमार हैं यह संक्रमित है तो भी बीमार नहीं पड़ते हैं। क्योंकि इनका शरीर सभी प्रकार के संक्रमण से लड़ने में सक्षम है। शरीर को यह क्षमता प्राप्त होती है शिशु के आहार से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों से।
शिशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार स्वस्थ वसा और Omega 3s, शिशु को अच्छे स्वभाव में रखते हैं। अगर शिशु के शरीर को इसकी पर्याप्त मात्रा मिले तो शिशु का मूड बेहतर रहता है।
समुद्री मछलियां जैसे कि wild salmon, sardines, herring, anchovies, और mackerel, Omega 3s के अच्छे स्रोत हैं।
मक्खन और नारियल के तेल से भी शिशु के शरीर को Omega 3s मिलता। गाजर शरीर में मौजूद extra estrogen को अवशोषित कर लेता है।
यह एक प्रकार का हार्मोन है जो शिशु के स्वभाव को irritable and moody बनाता है। गाजर प्राकृतिक तरीके से शिशु के शरीर में हारमोंस के संतुलन को बनाने में मदद करता है।
शिशु में कपाल हड्डियों की बीमारी (cranial bones disease) को भी पोषक तत्वों की कमी से जोड़ कर कुछ अध्ययन में देखा गया है।
यह अध्ययन गर्भवती महिलाओं पर आधारित था। इस अध्ययन में पाया गया कि जो गर्भवती महिलाएं अपने आहार में मांसाहारी आहारों से प्राप्त saturated fats का सेवन करती हैं उनके बच्चों में कपाल हड्डियों की बीमारी (cranial bones disease) नहीं पाई गयी।
गर्भवती महिलाएं अपने आहारों में फल, साग-सब्जियों को सम्मिलित करके भी अपने होने वाले बच्चों को इस बीमारी से बचा सकती हैं।
अगर आप यह सोच रही है कि पोषक तत्वों की कमी से केवल कुपोषण हो सकता है जिसमें बच्चे दुबले पतले होते हैं तो आपको मैं यह बात बता दूं कि पोषण की कमी से मोटापा और अत्यधिक वजन की समस्या भी हो सकती है।
सच बात तो यह है कि मोटापा और अत्यधिक वजन की समस्या कुपोषण से ही संबंधित है। जब शिशु के आहार में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व नहीं होते हैं तो आहार ग्रहण करने के बाद भी शिशु का शरीर भूखा रह जाता है।
इस वजह से शिशु को हर समय भूख लगी रहती है। हर समय भूख लगी रहने की वजह से शिशु आहार तो खूब ग्रहण करता है लेकिन उसके शरीर को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिलते हैं।
जब शिशु को अत्यधिक मात्रा में highly processed foods खाने के लिए मिलता है तभी उसके शरीर को इस समस्या से जूझना पड़ता है।
आप अपने शिशु को ऐसे आहार दें जिसमें पोषक तत्वों की भरमार हो तो आपका शिशु स्वस्थ रहेगा, उसका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छा होगा, और उसके शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बनी रहेगी। कोशिश करें कि अपने शिशु को हर प्रकार का आहार दें जैसे कि मौसम के अनुसार हर प्रकार के फल, हर प्रकार की सब्जियां, तरह-तरह के दलहन और अनाज। शिशु को highly processed foods से भी दूर रखें।
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