Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺9 min read
जुकाम के घरेलू उपाय जिनकी सहायता से आप अपने छोटे से बच्चे को बंद नाक की समस्या से छुटकारा दिला सकती हैं। शिशु का नाक बंद (nasal congestion) तब होता है जब नाक के छेद में मौजूद रक्त वाहिका और ऊतक में बहुत ज्यादा तरल इकट्ठा हो जाता है। बच्चों में बंद नाक की समस्या को बिना दावा के ठीक किया जा सकता है।

जब आप के शिशु की नाक बंद हो तो क्या करें?
तीन साल से कम उम्र के बच्चों के लिए नाक-बंद-होने-की समस्या बहुत ही चुनौतीपूर्ण है।
जो पहली बार माँ-या-बाप बने हैं उनको अक्सर यह पता नहीं होता है की बच्चे की नाक किस वजह से बंद हो रही है।
घबराएँ नहीं, जुकाम के घरेलू उपाय आप के शिशु के बंद नाक को खोलने में सहायता करेंगे।
सच तो यह है की नवजात बच्चे और छोटे बच्चे (toddlers) को सर्दी, जुकाम और बुखार होना भी एक तरीका जिसके जरिये बच्चे के शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र (immune system) अपने आप को विषाणुओं से लड़ने में सक्षम बनता है।
यूँ कहें तो जन्म के समय शिशु की रोग प्रतिरोधक तंत्र (immune system) बहुत कमजोर होती है - या - नहीं के बराबर होती है। इसीलिए शिशु हलके से भी संक्रमण के संपर्क में आने से बीमार हो जाता है।
लेकिन हर बार जब शिशु का शरीर संक्रमण से लड़ कर फिर से ठीक होता है तो उसकी रोग प्रतिरोधक तंत्र (immune system) पहले से कहीं जयादा ताकतवर, मजबूत और सक्षम होती है।
लेकिन
शिशु के बंद नाक (nose congestion) की समस्या का कारण जरीर नहीं की सर्दी, खांसी और जुकाम ही हो।
कई कारण है जिनकी वजह से शिशु को बंद नाक (nose congestion) का सामना करना पड़ सकता है।
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मगर अफ़सोस की छोटे बच्चों को बीमारी से राहत पहुँचाने के लिए बहुत से उपचार विधि उपलब्ध नहीं है। उदाहरण के तौर पे - बड़ों को सर्दी और जुकाम लगते है उन्हें जुकाम की दवा दी जा सकती है, मगर बच्चों को नहीं। सर्दी और जुकाम की दवा नवजात बच्चे और छोटे बच्चे (toddlers) के लिए हानिकारक हो सकती है।
सौभाग्य से भारतवर्ष में बहुत से घरेलु उपचार विधि उपलब्ध है जिनकी सहायता से आप अपने छोटे से बच्चे को सर्दी और जुकाम में राहत पहुंचा सकती है।

जब आप का बच्चा नाक बंद होने की समस्या से परेशान हो तो सबसे पहले आप को यह सुनिश्चित करना होगा की आप के बच्चे की नाक किस वजह से बंद हो रही है। नाक बंद होने की वजह से जब आप बच्चे को डॉक्टर के पास लेके जाती हैं तो वो भी पहला काम यही करेगा - नाक बंद होने की वजह को पता करना।
शिशु का नाक बंद (nasal congestion) तब होता है जब नाक के छेद में मौजूद रक्त वाहिका और ऊतक में बहुत ज्यादा तरल इकट्ठा हो जाता है।
इसके वजह से शिशु को सोने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है, और साथ ही यह दुसरे समस्यों को भी जन्म देता है जैसे की साइनस संक्रमण (sinus infection)।
नाक बंद होने की स्थिति मैं शिशु को आहार ग्रहण करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
कुछ मूलभूत लक्षण (telltale signs) हैं जिनकी सहायता से आप शिशु का नाक बंद होने की स्थिति में यह पता लगा सकती हैं की यह किस वजह से हो रहा है - विषाणु की वजह से - या - फिर जीवाणुओं की वजह से।
उदहारण के लिए - अगर आप के शिशु की नाक बह रही (runny nose) है तो जो बलगम (discharge) बह के नकल रहा है वो भी महत्वपूर्ण संकेत देता है की शिशु को संक्रमण किस वजह से है।

अगर शिशु की नाक विषाणु के संक्रमण की वजह से बह रही है तो शुरुआती दौर में नाक से निकलने वाला द्रव (तरल) दिखने में साफ़ पानी की तरह होगा। लेकिन धीरे - धीरे ये तरल (mucus) हरे रंग का दिखने लगेगा और फिर इसके बाद पिले रंग का और इसके बाद अंत में यह फिर से साफ रंग का हो जायेगा।

शिशु के नाक का बहना एलेर्जी के कारण भी हो सकता है। अगर शिशु की नाक अलेर्जी की वजह से बह रही है तो आप को अपने शिशु को डॉक्टर के पास लेके जाने की आवशकता पड़ेगी। डॉक्टर शिशु के लिए एलेर्जी से सम्बंधित कुछ जाँच-परिक्षण कराने की राय दे सकते हैं।

शिशु की नाक बंद (nose congestion) इस वजह से भी हो सकती है जब उसके नाक में कुछ चला गया हो, जैसे की आहार या कोई दूसरी वस्तु। कभी-कभी बच्चे खेल-खेल में अपने नाक में कुछ डाल लेते हैं जो उनके नाक में फस जाती है। अगर इस वजह से आप के शिशु की नाक बंद हो गयी है तो आप को अपने शिशु को तुरंत डॉक्टर के पास लेके जाने की आवशकता है। आप शिशु की नाक से खुद कुछ निकलने की कोशिश न करें।

कभी-कभी शिशु की नाक बंद (nose congestion) होना गंभीर समस्या के संकेत भी हो सकते हैं। सर्दी और जुकाम की वजह से बंद नाक को नेसल ड्राप (nasal drop/saline drops) की सहायता से ठीक किया जा सकता है। अगर शिशु में बंद नाक (nasal congestion) के साथ ही साथ और दुसरे भी लक्षण हैं जैसे की विशेषकर बुखार, गाहड़ा पीला बलगम (thick yellow mucus), तो आप को अपने शिशु को बाल रोग विशेषज्ञ को दिखने की आवशकता है।
नवजात बच्चे और छोटे शिशु के बंद नाक को खोलने का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है की नेसल ड्राप (nasal drop/saline drops) का इस्तेमाल किया जाये। नेसल ड्राप (nasal drop/saline drops) को आप दवा की दूकान से बिना डॉक्टरी सलाह के (prescription letter) के भी खरीद सकती हैं।
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छोटे बच्चों की नाक बंद होने की स्थिति में आप उनके नाक की दोनों छिद्रों में दो-दो बून्द नेसल ड्राप (nasal drop/saline drops) की डाल दें। इसके बाद सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) की सहायता से इसे बहार खिंच के निकल दें। इससे शिशु की नाक से नेसल ड्राप के साथ-साथ बलगम भी ढीला हो के निकल जायेगा। शिशु की नाक में नेसल ड्राप डालते वक्त उसके सर को थोड़ा पीछे की तरफ झुका दें ताकि नेसल ड्राप आसानी से शिशु की नाक में अंदर तक पहुँच सके।
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शिशु की नाक में सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) डालने से पहले उसे निचोड़ दें ताकि उसकी हवा बहार निकल जाये। शिशु के नाक में डालने के बाद उसे ना निचोड़ें। नाक के अंदर निचोड़ने से सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) से निकलने वाली हवा नाक में मैजूद बलगम को और अंदर तक धकेल देगी। लेकिन आप का मकसद ये हैं की आप सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) की सहायता से शिशु की नाक में भरे हुए बलगम (mucus) को चूस के बहार निकल सके।
शिशु की नाक में जब आप सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) को डालें तो निचोड़े हुए स्थित में ही डालें। ताकि नाक में सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) के जाने के बाद जब आप इसे छोडे (release) तो यह तुरंत नाक में मौजूद सरे बलगम को चूस के बहार कर दे - और शिशु की नाक साफ़ हो जाये।
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यह प्रक्रिया आप शिशु के सोने से पहले या आहार ग्रहण करने से पहले करें ताकि शिशु आसानी से साँस लेने लायक हो सके। हर बार इस्तेमाल करने के बाद सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) को अच्छी तरह धो लें ताकि यह अगले बार के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध रहे और इसमें किसी प्रकार के संक्रमण के पनपने की भी गुंजाईश ना रहे।
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ठण्ड के दिनों में कमरे में हीटर और ब्लोअर के इस्तेमाल से हवा बहुत शुष्क हो जाती है। इनका इस्तेमाल अगर ना भी किया जाये तो भी ठण्ड के दिनों में कमरे में नमी का स्तर बहुत घट जाता है। वापोरीज़ेर या हुमिडिफिएर (vaporizer or humidifier) कमरे में पानी के भाप छोड़ता है जिस वजह से कमरे में नमी का स्टार बढ़ जाता है। कमरे में नमी का स्तर बढ़ने से शिशु को साँस लेने में आसानी हो जाता है, और शिशु अच्छी नींद सो पाता है।
अगर आप वापोरीज़ेर या हुमिडिफिएर (vaporizer or humidifier) को इस्तेमाल करने का विचार कर रहे हैं तो आप को इसके दैनिक रख-रखाव के बारे में भी सोचने की आवशकता पड़गी।
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वापोरीज़ेर या हुमिडिफिएर (vaporizer or humidifier) के होने से बहुत सहूलियत हो जाती है कमरे में नमी के स्तर को नियंत्रित करने में और बच्चे को भाप देने में। लेकिन अगर आप के पास वापोरीज़ेर या हुमिडिफिएर (vaporizer or humidifier) नहीं है तो भो आप को चिंता करने की कोई आवशकता नहीं है। आप को इसे खरीदने की भी आवशकता नहीं है।

आप अपने स्नानघर (bathroom) को भाप घर (steam room) में कुछ देर के लिए तब्दील कर सकती हैं। इसके लिए जब आप को अपने बच्चे को भाप दिलाना हो तो स्नानघर (bathroom) में गरम पानी चला के कुछ देर के लिए छोड़ दें। नल से गरम पानी गिरते वक्त पूरा स्नानघर (bathroom) पानी के भाप से भर जायेगा। आप आप अपने शिशु को स्नानघर (bathroom) में गोदी में ले के पंद्रह मिनट के लिए बैठ जाएँ। इससे शिशु को जुकाम और बंद नाक की समस्या मैं बहुत आराम मिलना चाहिए। कमरे में भाप की वजह से शिशु के नाक में और छाती में जमा कफ/बलगम (mucus) ढीला होके नाक के रास्ते बहार आ जायेगा। इसे आप सक्शन बल्ब/ड्रॉपर (suction bulb) की सहायता से बहार खिंच लें।

बंद नाक की वजह से शिशु को सबसे ज्यादा परेशानी साते समय होती है। अगर आप शिशु के सर को तकिये की सहायता से ऊँचा कर के सुलाएं तो उसे साँस लेने में आसानी होगी। सर सोते समय ऊँचा रखने से नाक में मौजूद बलगम (mucus) साइनस में से बहार आ जायेगा। यह विधि दो साल से बड़े बच्चों के लिए उपयुक्त है। लेकिन अगर आप का शिशु अभी नवजात शिशु है और पलने में सोता है तो यह विधि न अपनाएं। शिशु के आसपास तकिया या कोई भी और वस्तु न रखें - अन्यथा शिशु में SIDS (sudden infant death syndrome) की सम्भावना बढ़ जाती है।

अपने बच्चे को ढेर सारा पानी पिने के लिए प्रोत्साहित करें। इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है की किस तरह ज्यादा पानी पिने से जुखाम में और बंद नाक ठीक होता है - मगर विदेशों में हुए अनेक शोध में यह बात साबित हो गयी है की बंद नाक और जुकाम में पानी पीना बहुत फायदा पहुंचता है। अगर आप का शिशु पानी पीना नहीं चाहता है तो उसे जबस्दस्ती पानी न पिलयें। अगर वो दिन भर में थोड़ा-थोड़ा ही पानी पिता है तो भी उसे फायदा मिलेगा। आप अपने शिशु को ऐसे आहार दे सकती हैं जिस में प्रचुर मात्रा में पानी होता है - जैसे की सूप (soup)।

दिन भर में कई बार नाक को छिनकने से नाक और छाती में मौजूद बलगम (कफ - mucus) ख़त्म होता है। शिशु को आप नाक को छिनकना सिखाएं ताकि जब भी उसकी नाक भर जाये वो उसे आसानी से छिनक के साफ़ कर सके।
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हर मां बाप अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते हैं कि अपने बच्चों को वह सभी आहार प्रदान करें जिससे उनके बच्चे के शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व मिल सके। पोषण से भरपूर आहार शिशु को सेहतमंद रखते हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि भारत में शिशु के भरपेट आहार करने के बावजूद भी वे पोषित रह जाते हैं। इसीलिए अगर आप अपने शिशु को भरपेट भोजन कराते हैं तो भी पता लगाने की आवश्यकता है कि आपके बच्चे को उसके आहार से सभी पोषक तत्व मिल पा रहे हैं या नहीं। अगर इस बात का पता चल जाए तो मुझे विश्वास है कि आप अपने शिशु को पोषक तत्वों से युक्त आहार देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर (बीपी) ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए आप नमक का कम से कम सेवन करें। इसके साथ आप लैटरल पोजीशन (lateral position) मैं आराम करने की कोशिश करें। नियमित रूप से अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाते रहें और ब्लड प्रेशर (बीपी) से संबंधित सभी दवाइयां ( बिना भूले) सही समय पर ले।
बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
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हैरत में पड़ जायेंगे जब आप जानेंगे किवी फल के फायेदे बच्चों के लिए। यह शिशु के रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ता है, त्वचा को सुन्दर और लचीला बनता है, पेट से सम्बंधित तमाम तरह की समस्याओं को ख़तम करता है, अच्छी नींद सोने में मदद करता है, सर्दी और जुखाम से बचाता है, अस्थमा में लाभ पहुंचता है, आँखों की रौशनी बढ़ता है।
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गर्भावस्था के दौरान बालों पे हेयर डाई लगाने का आप के गर्भ में पल रहे शिशु के विकास पे बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही इसका बुरा प्रभाव आप के शारीर पे भी पड़ता है जिसे आप एलर्जी के रूप में देख सकती हैं। लेकिन आप कुछ सावधानियां बरत के इन दुष्प्रभावों से बच सकती हैं।
बहुत आसन घरेलु तरीकों से आप अपने शिशु का वजन बढ़ा सकती हैं। शिशु के पहले पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये ऐसा समय है जब शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास अपने चरम पे होता है। इस समय शिशु के विकास के रफ़्तार को ब्रेक लग जाये तो यह क्षति फिर जीवन मैं कभी पूरी नहीं हो पायेगी।
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