Category: प्रेगनेंसी
By: Editorial team | ☺5 min read
नॉर्मल डिलीवरी से शिशु के जन्म में कई प्रकार के खतरे होते हैं और इसमें मौत का जोखिम भी होता है - लेकिन इससे जुड़ी कुछ बातें हैं जो आपके लिए जानना जरूरी है। शिशु का जन्म एक साधारण प्रक्रिया है जिसके लिए प्राकृतिक ने शरीर की रचना किस तरह से की है। यानी सदियों से शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी के पद्धति से ही होता आया है।
अधिकांश मामलों में जहां बहुत ज्यादा प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं किया गया है, नॉर्मल डिलीवरी शिशु के जन्म के लिए बहुत सुरक्षित रहा है और, इसमें खतरे भी सबसे कम रहे हैं और यह सदियों से शिशु को जन्म देने का एक बेहतर तरीका माना गया है।
गर्भधारण और शिशु का जन्म दोनों ही एक प्राकृतिक प्रक्रिया है लेकिन फिर भी इसके अपने कुछ खतरे हैं। सभी बातों की जानकारी होने से खतरों से बचा जा सकता है और मां के स्वास्थ्य के अनुसार शिशु के जन्म के लिए सही प्रक्रिया का चुनाव किया जा सकता है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि नॉर्मल डिलीवरी में जोखिम होता है लेकिन फिर भी बहुत स्थितियां ऐसी होती हैं जहां पर नॉर्मल डिलीवरी में कोई खतरा नहीं होता है लेकिन वही सिजेरियन डिलीवरी में खतरा रहता है जोकि अपने आप में एक बहुत ही बड़ा ऑपरेशन है।
सी सेक्शन डिलीवरी यानी सिजेरियन प्रक्रिया को इमरजेंसी में अपनाया जाता है ताकि मां और बच्चे दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
यहां हम आपको नॉर्मल डिलीवरी के 6 खतरों के बारे में बताएंगे। इसकी जानकारी होने से सही सावधानी बरतकर खतरों से बची रह सकती है। शिशु के जन्म के समय ऐसी बहुत सारी जटिलताएं हो सकती हैं जो बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उदाहरण के लिए गर्भ में बच्चे का उल्टा हो जाना या फिर समय से पहले प्रसव ऐसी कुछ परिस्थितियां है जिनसे एक गर्भवती महिला को शिशु के जन्म के समय जूझना पड़ सकता है। आइए चलिए विस्तार से देखते हैं इन्हीं कुछ जटिलताओं के बारे में:
गर्भनाल को शिशु की जीवन रेखा कहा जाता है क्योंकि इसी के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे को ऑक्सीजन मिलता है तथा मां के शरीर से पोषक तत्व भी शिशु को गर्भनाल की जरिए ही पहुंचता है। लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में कई बार गर्भाशय ग्रीवा से गर्भनाल निकल जाता है। या फिर गर्भनाल योनि के माध्यम से बाहर आता है इससे भ्रूण के लिए अप्रोच पैदा हो जाता है। यह ऐसी परिस्थिति है जो मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत खतरनाक है और ऐसी परिस्थिति में तुरंत चिकित्सीय सहायता लेनी चाहिए।
बच्चे के जन्म के समय उसके पैर सबसे पहले बाहर आते हैं तो इस परिस्थिति में शिशु के सर के पास जाने का खतरा बढ़ जाता है। शिशु के जन्म के समय अगर यह परिस्थिति पैदा हो जाए तो तुरंत शल्यक्रिया की आवश्यकता पड़ती है।
गर्भनाल शिशु की जीवन रेखा होती है लेकिन अगर यह जीवन रेखा टूट जाए तो शिशु और मां दोनों के लिए गंभीर परिस्थिति पैदा हो सकती है। गर्भनाल के टूट जाने पर गर्भ में पल रहे बच्चे को आक्सीजन और पोषक तत्वों मिलना बंद हो जाता है। इस स्थिति को नाल झड़ना कहते हैं। यह स्थिति अस्थाई होता है इसीलिए ऐसी परिस्थिति अगर उत्पन्न हो तो गर्भवती महिला को पूरी तरह से आराम करने को कहा जाता है। लेकिन अगर गर्भनाल पूरी तरह से अलग हो गया है तो प्रसव की तुरंत आवश्यकता पड़ती है नहीं तो बच्चे के जान का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भधारण के 10 से 12% ऐसे मामले होते हैं जहां पर शिशु का जन्म समय से पहले हो जाता है। लेकिन सामान्य और स्वस्थ गर्भावस्था के लिए यह आवश्यक है कि गर्भ में पल रहे शिशु को 39-40 सप्ताह का समय मिले। लेकिन कई बार शिशु का जन्म 35 सप्ताह से पहले हो जाता है। समय से पहले जन्मे बच्चे में कई प्रकार की विकास से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। उनमें बहुत सारे अंग ऐसे होते हैं जो अब परिपक्व होते हैं और सांसारिक परिस्थितियों के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होते हैं। ऐसे बच्चों को कुछ समय के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है जब तक की उनकी महत्वपूर्ण अंग पूरी तरह से विकसित ना हो जाए। घर जाने पर भी इन बच्चों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे बच्चों में पाचन संबंधी तथा संक्रमण से संबंधित परेशानियों खतरा बना रहता है।
कई बार गर्भावस्था के दौरान 9 महीने पूरे हो जाने के बाद भी गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह नहीं खुल पाता है। ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे को ठीक तरह से जन्म देने में परेशानी हो सकती है। तथा इस परिस्थिति में असामान्य रूप से बड़ी सिर के बच्चे को भी जन्म देने में परेशानी हो सकती है। अगर गर्भवती महिला में लंबे समय तक प्रसव की संभावना बनती है तो उसे शल्यक्रिया द्वारा ही शिशु को जन्म देना चाहिए।
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