Category: बच्चों की परवरिश
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
अगर आप भी अपने लाडले को भारत के सबसे बेहतरीन बोडिंग स्कूलो में पढ़ने के लिए भेजने का मन बना रहे हैं तो निचे दिए बोडिंग स्कूलो की सूचि को अवश्य देखें| आपका बच्चा बड़ा हो कर अपनी जिंदगी में ना केवल एक सफल व्यक्ति बनेगा बल्कि उसे शिक्षा के साथ इन बोडिंग स्कूलो से मिलगे ढेरों खुशनुमा यादें|

अगर ध्यान से सोचें तो आपका स्कूल कई मायने में आप के लिए दुनिया के चाहते जगहों में से एक होगा। इसके गलियारे में खेलते कूदते आप ने ना जाने कितने महत्वपूर्ण सीख सीखेंगे होंगे। अपने स्कूल से ये भावुक और अटूट रिश्ता हमे तब समझ आता है जब हम अपनी पढ़ाई ख़त्म कर बहार आते हैं।
यह बात उन लोगों और ज्यादा समझ में आएगी जिन्होंने अपनी पढ़ाई बोडिंग स्कूलो में की है। उनके लिए तो स्कूल मात्र शिक्षा का स्थान ही नहीं वरन उनके रहने का भी स्थान था। यह भी एक कारण हो सकता है भारत में इतने सारे बोडिंग स्कूल हैं।
हर माँ-बाप का सपना होता है की उनके बच्चे की शिक्षा दीक्षा सबसे बेहतरीन वातावरण मैं हो। यही कारण है की आज भारत में इतने सारे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल हैं।
अगर आप भी अपने लाडले को भारत के सबसे बेहतरीन बोडिंग स्कूलो में पढ़ने के लिए भेजने का मन बना रहे हैं तो निचे दिए बोडिंग स्कूलो की सूचि को अवश्य देखें। आपका बच्चा बड़ा हो कर अपनी जिंदगी में ना केवल एक सफल व्यक्ति बनेगा बल्कि उसे शिक्षा के साथ इन बोडिंग स्कूलो से मिलगे ढेरों खुशनुमा यादें।
लेकिन भारत के ये प्रसिद्ध बोडिंग स्कूलो, भारत के सबसे महंगे स्कूलों में शामिल हैं। यहां पढ़ाना सबके बस की बात नहीं। ये हैं Top most expensive schools in इंडिया।
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दून स्कूल भारत के सबसे मशहूर स्कूलों में से एक है। हिमालय की सुन्दर वादियोँ में स्थित, यह स्कूल दिल्ली से पांच घंटे की दुरी पे है। यह स्कूल केवल लड़कों के लिए है और इसकी शुरुआत दून की घाटियों में सन 1929 में हुई थी। तब से ही यहां भारत के सबसे अमीर घरानों के बच्चे पढ़ रहें हैं।
Notable alumni: राहुल गाँधी, राजीव गाँधी, हीरो ग्रुप के सुनील मुंजाल और पवन मुंजाल।
स्कूल का फ़ीस: स्कूल का सालाना फीस है 9,70,000 रूपये और 25,000 टर्म फीस है। साथ ही एडमिशन के दौरान आप को 3,50,000 रूपये का सिक्योरिटी डिपाजिट भी जमा करना पड़ेगा।
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इस स्कूल की शुरुआत सन 1897 में हुई थी। तब इस स्कूल को The Sardars' School के नाम से जाना जाता था। इस स्कूल का निर्माण महान दूरदर्शी HH Maharaja Madhavrao Scindia I के संरक्षण में Gwalior Fort के नजदीक किया गया।
Notable alumni: मुकेश अम्बानी, सलमान खान, और अनुराग कश्यप
स्कूल का फ़ीस: इस स्कूल की सालाना फ़ीस 7,70,800 रुपये है।
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मुंबई में स्तिथ, यह स्कूल भारत का सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय स्कूल है। ये स्कूल डिप्लोडमा प्रोग्राम (DP), IB प्राइमरी ईयर्स प्रोग्राम (PYP) और मिडल ईयर्स प्रोग्राम (MYP) के लिए बनाया गया है। यह स्कूल मुंबई के जुहू में Gulmohur Cross रोड पे स्तिथ है और इसे International Baccalaureate (IB) school का दर्जा प्राप्त है।
स्कूल का फ़ीस: इस स्कूल की सालाना फ़ीस 10,90,000 रुपये है।
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यह बेहद विशाल स्कूल है जो करीब 30 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इस स्कूल में कई बड़े नेताओं के पिता ने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है। इस स्कूल की शुरुआत 1937 में Welham Preparatory School के तौर पे हुआ था। उस समय इस स्कूल में अपनी पूंजी लगा कर Ms. Oliphant ने इस स्कूल को एक किराये के माकन से शुरू किया था।
Notable alumni: वरुण गाँधी के पिता संजय गाँधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर, ओडि़शा के सीएम नवीन पटनायक, विक्रम सेठ, Capt. अमरिंदर सिंह।
स्कूल का फ़ीस: इस स्कूल की सालाना फ़ीस 5,70,000 रुपये है। ट्यूशन और अन्य फेसिलिटी के लिए आपको अलग से 1 लाख रूपये देने होंगे।
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मसूरी की छोटी से खूबसूरत पहाड़ी लंढौर में स्थित यह एक को-एड बोर्डिंग स्कूल है। इस स्कूल के कैंपस से दून की घाटियों का बड़ा ही मनमोहक दृश्य दीखता है। वुडस्टॉक स्कूल एशिया के सबसे पुराने रेसीडेंशियल स्कूलों में से एक है।
Notable alumni: एक्टइर टॉम अल्टँर और राइटर नयनतारा सहगल
स्कूल का फ़ीस: इस स्कूल में कक्षा 12 की फीस 15,90,000 रुपये है। एडमिशन के समय 4,00,000 देना होता है जो की non-refundable फीस है।

UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
घरों में इस्तेमाल होने वाले गेहूं से भी बच्चे बीमार पड़ सकते हैं! उसकी वजह है गेहूं में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का प्रोटीन जिसे ग्लूटेन कहते हैं। इसी प्रोटीन की मौजूदगी की वजह से गेहूं रबर या प्लास्टिक की तरह लचीला बनता है। ग्लूटेन प्रोटीन प्राकृतिक रूप से सभी नस्ल के गेहूं में मिलता है। कुछ लोगों का पाचन तंत्र गेहुम में मिलने वाले ग्लूटेन को पचा नहीं पता है और इस वजह से उन्हें ग्लूटेन एलर्जी का सामना करना पड़ता है। अगर आप के शिशु को ग्लूटेन एलर्जी है तो आप उसे रोटी और पराठे तथा गेहूं से बन्ने वाले आहारों को कुछ महीनो के लिए उसे देना बंद कर दें। समय के साथ जैसे जैसे बच्चे का पाचन तंत्र विकसित होगा, उसे गेहूं से बने आहार को पचाने में कोई समस्या नहीं होगी।
नवजात शिशु में कब्ज की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन कुछ घरेलु टिप्स के जरिये आप अपने शिशु के कब्ज की समस्या को पल भर में दूर कर सकेंगी। जरुरी नहीं की शिशु के कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए दावा का सहारा लिया जाये। नवजात शिशु के साथ-साथ इस लेख में आप यह भी जानेंगी की किस तरह से आप बड़े बच्चों में भी कब्ज की समस्या को दूर कर सकती हैं।
गर्भावस्था में महिलाओं को पेट के साथ साथ स्तनों के पास वाली त्वचा में खुजली का सामना करना पड़ता है। यह इस लिए होता है क्यूंकि गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक हार्मोनल परिवर्तन और त्वचा के खिचाव की वजह से महिलाओं की त्वचा अत्यंत संवेदनशील हो जाती है जिस वजह से उन्हें खुजली या अन्य त्वचा सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गर्भवती स्त्री के गर्भ में जैसे जैसे शिशु का विकास होता है और वो आकर में बढता है, पेट की त्वचा बहुत स्ट्रेच हो जाती है। पेट पे रक्त संचार भी बढ़ जाता है। पेट की त्वचा के स्ट्रेच होने और रक्त संचार के बढ़ने - दोनों - की वजह से भी पेट में तीव्र खुजली का सामना करना पड़ जाता है। इस लेख में हम आप को विस्तार से बताएँगे की खुजली की समस्या को गर्भावस्था के दौरान किस तरह से कम किया जा सकता है और इनके क्या क्या मुख्या वजह है।
ये पांच विटामिन आप के बच्चे की लंबाई को बढ़ने में मदद करेगी। बच्चों की लंबाई को लेकर बहुत से मां-बाप परेशान रहते हैं। हर कोई यही चाहता है कि उसके बच्चे की लंबाई अन्य बच्चों के बराबर हो या थोड़ा ज्यादा हो। अगर शिशु को सही आहार प्राप्त हो जिससे उसे सभी प्रकार के पोषक तत्व मिल सके जो उसके शारीरिक विकास में सहायक हों तो उसकी लंबाई सही तरह से बढ़ेगी।
गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर का उतार चढाव, माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। हाई ब्लड प्रेशर में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। सादा और सरल भोजन करना चाहिए। पानी और तरल का अत्याधिक सेवन करना चाहिए। नमक का सेवन सिमित मात्र में करना चाहिए। लौकी का रस खाली पेट पिने से प्रेगनेंसी में बीपी की समस्या को कण्ट्रोल किया जा सकता है।
शिशु के जन्म के तुरंत बाद आपके शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे स्तनपान माताओं के लिए बेस्ट आहार। ये आहार ऐसे हैं जो डिलीवरी के बाद आपके शरीर को रिकवर (recover) करने में मदद करेंगे, शारीरिक ऊर्जा प्रदान करेंगे तथा आपके शिशु को उसकी विकास के लिए सभी पोषक तत्व भी प्रदान करेंगे।
शिशु में ठोस आहार की शुरुआत छेह महीने पूर्ण होने पे आप कर सकती हैं। लेकिन ठोस आहार शुरू करते वक्त कुछ महत्वपूर्ण बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि आप के बच्चे के विकास पे विपरीत प्रभाव ना पड़े। ऐसा इस लिए क्यूंकि दूध से शिशु को विकास के लिए जरुरी सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं - लेकिन ठोस आहार देते वक्त अगर ध्यान ना रखा जाये तो भर पेट आहार के बाद भी शिशु को कुपोषण हो सकता है - जी हाँ - चौंकिए मत - यह सच है!
आज के बदलते परिवेश में जो माँ-बाप समय निकल कर अपने बच्चों के साथ बातचीत करते हैं, उसका बेहद अच्छा और सकारात्मक प्रभाव उनके बच्चों पे पड़ रहा है। बच्चों की अच्छी परवरिश करने के लिए सिर्फ पैसों की ही नहीं वरन समय की भी जरुरत पड़ती है। बच्चे माँ-बाप के साथ जो क्वालिटी समय बिताते हैं, वो आप खरीद नहीं सकते हैं। बच्चों को जितनी अच्छे से उनके माँ-बाप समझ सकते हैं, कोई और नहीं।
शिशु के जन्म के पहले वर्ष में पारिवारिक परिवेश बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चे के पहले साल में ही घर के माहौल से इस बात का निर्धारण हो जाता है की बच्चा किस तरह भावनात्मक रूप से विकसित होगा। शिशु के सकारात्मक मानसिक विकास में पारिवारिक माहौल का महत्वपूर्ण योगदान है।
बच्चे बरसात के मौसम का आनंद खूब उठाते हैं। वे जानबूझकर पानी में खेलना और कूदना चाहते हैं। Barsat के ऐसे मौसम में आप की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति काफी बढ़ जाती हैं क्योकि बच्चा इस barish में भीगने का परिणाम नहीं जानता। इस स्थिति में आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
अनुपयोगी वस्तुओं से हेण्डी क्राफ्ट बनाना एक रीसाइक्लिंग प्रोसेस है। जिसमें बच्चे अनुपयोगी वास्तु को एक नया रूप देना सीखते हैं और वायु प्रदुषण और जल प्रदुषण जैसे गंभीर समस्याओं से लड़ने के लिए सोच विकसित करते हैं।
पोलियो वैक्सीन - IPV1, IPV2, IPV3 वैक्सीन (Polio vaccine IPV in Hindi) - हिंदी, - पोलियो का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
बच्चों का नाख़ून चबाना एक बेहद आम समस्या है। व्यस्क जब तनाव में होते हैं तो अपने नाखुनो को चबाते हैं - लेकिंग बच्चे बिना किसी वजह के भी आदतन अपने नाखुनो को चबा सकते हैं। बच्चों का नाखून चबाना किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा नहीं करता है। लेकिन यह जरुरी है की बच्चे के नाखून चबाने की इस आदत को छुड़ाया जाये नहीं तो उनके दातों का shape बिगड़ सकता है। नाखुनो में कई प्रकार के बीमारियां अपना घर बनाती हैं। नाख़ून चबाने से बच्चों को कई प्रकार के बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है, पेट के कीड़े की समस्या तथा पेट दर्द भी कई बार इसकी वजह होती है।
सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।
बच्चो में कुपोषण का मतलब भूख से नहीं है। हालाँकि कई बार दोनों साथ साथ होता है। गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को उसकी बढ़ने के लिए जरुरी पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते। बच्चों को कुपोषण से बचने के लिए हर संभव प्रयास जरुरी हैं क्योंकि एक बार अगर बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाये तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता।
मसाज तथा मसाज में इस्तेमाल तेल के कई फायदे हैं बच्चों को। मालिश शिशु को आरामदायक नींद देता है। इसके साथ मसाज के और भी कई गुण हैं जैसे की मसाज बच्चे के वजन बढ़ने में मदद करा है, हड़ियों को मजबूत करता है, भोजन को पचने में मदद करता है और रक्त के प्रवाह में सुधार लता है।
जानिये स्किन रैशेस से छुटकारे के घरेलू उपाय। बच्चों में स्किन रैश शीतपित्त आम तौर पर पाचन तंत्र की गड़बड़ी और खून में गर्मी बढ़ जाने के कारण होता है। तेल, मिर्च, बाजार में बिकने वाले फ़ास्ट फ़ूड, व चाइनीज़ खाना खाने से बच्चों में इस रोग के होने का खतरा रहता है। वातावरण में उपस्थित कई तरह के एलर्जी कारक भी इसके कारण होते हैं