Category: शिशु रोग
By: Admin | ☺12 min read
हर 100 में से एक शिशु बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) विकार से प्रभावित होता है। बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित शिशु में आप दो प्रकार का व्यवहार पाएंगे एक अत्यधिक आत्मविश्वासी वाला और दूसरा अत्यधिक हताश की स्थिति वाला।
कहीं आपका शिशु भी बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित तो नहीं
बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) एक प्रकार का मानसिक विकार है जिससे प्रभावित शिशु गंभीर मिजाज का होता है। इस प्रकार के शिशु के व्यवहार में पल पल में बदलाव आता है। तथा इन पर बाइपोलर डिसऑर्डर का प्रभाव कई दिनों से लेकर कई महीनों तक बना रह सकता है।
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अगर आकड़ों की माने तो हर 100 में से एक शिशु इस विकार से प्रभावित होता है। बाइपोलर का मतलब होता है दो तरह का व्यवहार।
इस मानसिक विकार को इसलिए बाइपोलर कहते हैं क्योंकि इसमें शिशु के व्यक्तित्व में दो प्रकार का व्यवहार देखने को मिलता।
पहले व्यवहार में आप शिशु को अत्यधिक ऊर्जा से भरा हुआ और बहुत ही कॉन्फिडेंट पाएंगे और दूसरे व्यहार में आप उसे बहुत ही हताश उदास और उलझा हुआ पाएंगे।
बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित शिशु में आप दो प्रकार का व्यवहार पाएंगे एक अत्यधिक आत्मविश्वासी वाला और दूसरा अत्यधिक हताश की स्थिति वाला।
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इसके प्रभाव में शिशु में निम्न लक्षण देखने को मिल सकते हैं
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बाइपोलर डिसऑर्डर से मिलते-जुलते गुण आप लगभग सभी बच्चों में देख सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी बच्चे बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित है।
आप बच्चों को एक पल में अत्यंत उत्साहित पाएंगे और दूसरे ही पल उन्हें उदास और रोता हुआ पाएंगे। यह बच्चों का सामान्य व्यक्तित्व है जोकि बाइपोलर डिसऑर्डर से बहुत मिलता-जुलता है लकिन है नहीं।
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छोटे बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर का होना बहुत ही दुर्लभ घटना माना जाता है। इसकी एक वजह यह है कि बच्चों में इसके लक्षणों का पता आसानी से नहीं चल सकता है।
लेकिन बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं और समझदार होते हैं, उनमें बाइपोलर डिसऑर्डर से मिलते-जुलते स्वभाव कम होने लगते हैं। और यह बच्चे ज्यादा सहज रूप से बर्ताव करना शुरू करते हैं।
बड़े बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर को आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि उनसे बच्चों जैसे बर्ताव की उपेक्षा नहीं की जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार बाइपोलर डिसऑर्डर आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान शुरू होता है यह उसके बाद के वर्षों में शुरू होता है। चाहे पुरुष हो या महिला, बाइपोलर डिसऑर्डर की समस्या दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है।
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बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों का मूड पल पल बदलता है। आप इनमे ऐसे स्वभाव देख सकते हैं जिसमें यह बहुत ज्यादा डिप्रेशन के अधीन होंगे तो कुछ समय बाद आप इनमे ऐसे स्वभाव पाएंगे जिसमें यह व्यक्ति बहुत ज्यादा ऊर्जावान होते हैं और किसी भी कार्य को पूरा करने की क्षमता रखते हैं।
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हलाकि ऐसे बच्चे ऊर्जा के भंडार होते हैं लेकिन इनमें अत्यधिक कल्पनाशीलता भी होती है। जिस वजह से कार्य के पूरा होने से पहले ही उनका मन भर जाता है। और फिर उस कार्य में उनका मन नहीं लगता है। जिस वजह से वह कार्य को बीच में ही अधूरा छोड़ देते हैं।
इसीलिए अधिकांश मामलों में यह बच्चे किसी कार्य को पूरा करने में काफी कठिनाई का सामना करते हैं। यह बच्चे बहुत देर तक एक ही जगह बैठकर पढ़ाई करने में असमर्थ होते हैं या किसी कार्य को करने में असमर्थ होते हैं।
एक ही प्रकार के खेल में भी इनकी रूचि बहुत देर तक बनी हुई नहीं रहती है। इनका ध्यान आसानी से भटक जाता है।
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बाइपोलर डिसऑर्डर का एक रूप ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति बहुत उदास और हताश होता है। ऐसी स्थिति में बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित शिशु डिप्रेशन में भी जा सकता है।
बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित शिशु में डिप्रेशन के लक्षण आम डिप्रेशन की तरह ही होते हैं लेकिन इनमें एक मूलभूत अंतर होता है।
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बाइपोलर डिसऑर्डर की वजह से डिप्रेशन को दवाइयों के द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के डिप्रेशन बहुत दिनों तक बने रहते हैं और आसानी से ठीक नहीं होते हैं।
जो दवाइयां आमतौर पर डिप्रेशन को ठीक कर देती है, वह दवाइयां बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चे की स्थिति को और गंभीर कर सकती है।
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ऐसी स्थिति में बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चा मनिअक में भी जा सकता है। इसीलिए अगर आप अपने शिशु में बाइपोलर डिसऑर्डर की वजह से डिप्रेशन से प्रभावित देखें तो उसे आम एंटीडिप्रेसेंट की दवा देने की बजाये किसी विशेषज्ञ की राय।
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बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चा डिप्रेशन की स्थिति में काफी चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है। उचित समय पर अगर इनका इलाज नहीं किया गया तो ये बच्चे पागलपन के भी शिकार हो सकते हैं।
इस अवस्था में बच्चे पागलपन और डिप्रेशन दोनों की शिकार एक साथ हो जाते हैं। यह स्थिति की वजह से इनका व्यवहार उनके करीबी लोगों से बिगड़ जाता है।
जल्दी-जल्दी बातें करना, जब दूसरे बोल रहे हो तो बीच में ही उनकी बातों को काटना काफी हाजिरजवाब होना - बाइपोलर डिसऑर्डर का लक्षण है।
डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों से बातें करते वक्त ऐसा लगता है जैसे बातचीत एक तरफा ही है। यह बच्चे बहुत जल्दी-जल्दी बोलते हैं और सामने वाले की बात पूरी करने नहीं देते हैं। यह बच्चे स्वभाव से बहुत बातूनी भी होते हैं।
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यह बच्चे किसी भी कार्य को ठीक तरह से पूरा कर पाने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं। जल्दी-जल्दी काम को करने के चक्कर में आपको इनके काम में कई प्रकार की गड़बड़ी भी मिलेगी।
उदाहरण के लिए अगर यह बच्चे कोई लेख लिख रहे हैं तो आपको इनके लेख में अनगिनत स्पेलिंग मिस्टेक मिलेगी। साथ ही आप यह भी पाएंगे की यह अचानक से किसी बात को बीच में छोड़कर दूसरे टॉपिक पर बात करना शुरू कर देते हैं।
इस प्रकार का स्वभाव इनके काम पर बहुत बुरा असर डालता है। इन्हें दूसरों से बात करने में भी काफी परेशानी होती है जिसकी वजह से अंदर से यह बहुत चिड़चिड़ा पन महसूस करते हैं।
आगे चलकर व्यस्क होने पर बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चे शराब या दूसरी नशीली दवाओं की शिकार भी आसानी से हो जाते हैं।
विश्वव्यापी स्तर पर हुए शोध में यह पता लगा कि बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित 50% से अधिक व्यक्तियों में शराब या अन्य नशीली दवाओं का लत रहता है।
आमतौर पर ऐसे व्यस्क शराब और नशीली दवाओं का सहारा इसलिए लेते हैं ताकि वो अपने आपको डिप्रेशन से बाहर रख सके तथा कुछ लोग इनका सेवन इसलिए करते हैं ताकि वह अपने दिमाग को शांत रख सके।
बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित व्यक्तियों के लिए उनका आत्म सम्मान उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसी वजह से अपने आत्म सम्मान के लिए वह कुछ भी करने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं।
अत्यधिक ऊर्जा से भरे होने की वजह से या अत्यधिक डिप्रेशन की स्थिति होने पर - दोनों ही स्थिति ऐसी है जिसमें नींद आसानी से नहीं आती है।
इसी वजह से बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों को आप डिप्रेशन की स्थिति में बहुत ही ज्यादा थका हुआ और घंटो-घंटो सोते हुए पाएंगे।
लेकिन बाइपोलर डिसऑर्डर की दूसरी अवस्था में जिसमें यह बहुत ही ज्यादा आत्मविश्वास और ऊर्जा से भरे होते हैं, कई कई दिनों तक बहुत कम सोने के बावजूद भी आप इन्हें थका हुआ नहीं पाएंगे।
सच बात तो यह है कि कुछ घंटों के सोने के बाद ही यह अपने आप को पूरी तरह तरोताजा महसूस करते हैं।
अत्यधिक कल्पनाशील होने के कारण ये हकीकत और कल्पना में पहचान नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चों को आप अधिकांश समय अपने ही ख्यालों में खोया हुआ पाएंगे। ऐसे बच्चों के दिमाग में एक ही वक्त में हजारों बातें दौड़ रही होती है जिस वजह से इन पर अपना काबू नहीं रहता।
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