Category: प्रेगनेंसी
By: Admin | ☺7 min read
गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बात है। लेकिन प्रेगनेंसी में (बिना सोचे समझे) अपच की की दावा लेना हानिकारक हो सकता है। इस लेख में आप पढ़ेंगी की गर्भावस्था के दौरान अपच क्योँ होता है और आप घरेलु तरीके से अपच की समस्या को कैसे हल कर सकती हैं। आप ये भी पढ़ेंगी की अपच की दावा (antacids) खाते वक्त आप को क्या सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।
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गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बातें है। उल्टी मिचली, शरीर में सूजन, कमजोरी, इन सब के साथ-साथ शरीर के पाचन तंत्र पर भी गर्भावस्था का प्रभाव पड़ता है।
गर्भावस्था के दौरान शरीर में बहुत से बदलाव होते हैं। यह बदलाव बहुत ही तकलीफ दे होते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा परेशान करने वाला साइड इफेक्ट है अपच।
हम इस लेख में आपको बताएंगे कि किस तरह से आप गर्भावस्था के दौरान अपच की समस्या से निजात पा सकती हैं। लेकिन उससे पहले हम लोग यह चर्चा करेंगे की गर्भावस्था के दौरान अपच क्यों होता है और किन लक्षणों से आप यह जान सकती हैं कि अपच गर्भावस्था की वजह से हो रहा है।
गर्भवती महिला में अपच मुख्यता गर्भावस्था के अंतिम दौर में होता है। अपच के दौरान छाती में जलन महसूस होता है।
यह जलन पेट से छाती और छाती से गले की तरफ बढ़ता हुआ महसूस होता है। होने वाली मां के लिए यह एक बहुत ही डरावना अनुभव है क्योंकि इस बात की चिंता बनी रहती है कि क्या गर्भ में पल रहा बच्चा स्वस्थ है? कहीं अपच और छाती में जलन की वजह से शिशु को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचेगा? इन सारी चिंताओं का भी हाल हम इस लेख में जानेंगे।
गर्भावस्था के दौरान अपच (Indigestion or dyspepsia) का अनुभव ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को तब होता है जब वह अपने गर्भ काल के 27 वें सप्ताह को पार कर चुकी होती है।

गर्भावस्था के दौरान 80% महिलाओं को इस अनुभव से गुजरना पड़ता है। प्रेगनेंसी में स्त्री का शरीर कुछ ऐसे हार्मोन का निर्माण करता है जो शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और स्त्री के शरीर को शिशु के बढ़ते आकार के लिए तैयार करते हैं।
इन हार्मोन की वजह से स्त्री का शरीर लचीला बनता है ताकि जैसे-जैसे शिशु आकर में, बढ़े स्त्री का शरीर उस के अनुपात में फैल सके। लेकिन इसका साइड इफेक्ट (side effect) यह होता है कि शरीर की मांसपेशियां जो आहार को पेट से बाहर आने से रोकती है।
वह भी लचीली बन जाती है, और इस वजह से आहार को बाहर आने से रोकने में इतनी सक्षम नहीं होती है। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता है गर्भवती महिला के लिए अपच और उल्टी की समस्या आम बात बन जाती है।
अपच और उल्टी की वजह से कुछ गर्भवती महिलाओं को इस बात की चिंता होती है कि इसका क्या बुरा प्रभाव पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ेगा।

सच बात तो यह है कि अपच और उल्टी की वजह से शारीरिक तकलीफ होती है लेकिन इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।
करीब 10 में से 8 महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कभी ना कभी अपच की समस्या का सामना करना पड़ता है।
कभी-कभी पेट में हो रही तकलीफ की वजह से यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि यह तकलीफ अपच की वजह से हो रही है - या - किसी और वजह से।
क्या शिशु सुरक्षित तो है? गर्भावस्था के दौरान पेट में इस प्रकार की तकलीफ की मुख्य वजह पक्षी होती है इसीलिए बेवजह आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आपका शिशु सुरक्षित है।
आज की वजह से हार पेट में थोड़ी देर से पकता है। लेकिन यह अच्छी बात की है। आहार के धीरे धीरे पचने से शिशु को प्लेसेंटा के जरिए पोषण मिलने के लिए ज्यादा समय या अवसर मिल जाता है।

अपच की स्थिति एक प्रकार से शिशु के हित में ही है। अपच से आप यह भी निष्कर्ष निकाल सकती हैं कि आपकी शिशु का विकास ठीक तरह से हो रहा है।
जब समय के साथ शिशु का आकार सही अनुपात में बढ़ता है तभी आपको अपच की समस्या का सामना भी करना पड़ता है।
इसका मतलब अपच इस बात को दर्शाता है कि शिशु गर्भ में अपने आकार में समय के साथ सही अनुपात में बढ़ रहा है जो की अच्छी बात है।
अपच को डॉक्टरी भाषा में दिस्पेसिया (dyspepsia) कहते हैं। गर्भावस्था के दौरान अपच की समस्या मुख्यता स्त्री के शरीर में हारमोनल बदलाव के कारण होता है।

प्रेगनेंसी में आपका अपच को पूरी तरह से रोक तो नहीं सकती हैं लेकिन इसके प्रभाव को कम कर सकती हैं। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे सुझाव जिन्हें अगर आप ध्यान में रखेंगे तो आपको अपच की समस्या का उतना ज्यादा सामना नहीं करना पड़ेगा।

भोजन के बाद अपने आप को सीधे स्थिति में रखें
आहार ग्रहण करने के बाद कम से कम 1 घंटे तक सोए नहीं। अपने आप को सीधी स्थिति में रखें और ऐसी स्थिति में रहे जिससे आपके पेट पर दबाव ना पड़े।
उदाहरण के लिए कुछ उठाने के लिए नीचे ना झुके। अगर झुकने की आवश्यकता पड़े तो अपने घुटनों के बल झुके।
थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करें
दिन में तीन बार बड़ा-बड़ा आहार ग्रहण करने की बजाएं दिन भर थोड़ा थोड़ा कुछ खाते रहे। इससे दिन भर आपको भूख भी नहीं लगेगा और आपका पेट बहुत ज्यादा भरा भी नहीं रहेगा।
बस इस बात का ध्यान रखें कि आप जो भी खाए वह पौष्टिक हो और इतना खाएं ताकि आपकी शारीरिक आवश्यकता तथा शिशु के विकास के लिए भी जरूरी पोषण मिल सके।
एक बात और गर्भावस्था के दौरान आपको दो लोगों के बराबर आहार करने की आवश्यकता नहीं है। गर्भ में बढ़ते हुए शिशु के लिए थोड़ा सा आहार ही बहुत है।
आप जितना आहार ग्रहण करती हैं उतना ही आहार ग्रहण करना जारी रखें। गर्भावस्था के दौरान डाइटिंग बिल्कुल ना करें। आपका आहार ऐसा हो जिसे शिशु के विकास के लिए सभी जरूरी पोषण मिल सके।
उन आहारों से दूर रहें जिन से होता है अपार
अपने अनुभव किया होगा कि आहारों से आपको अपच (dyspepsia) की समस्या ज्यादा होती है। गर्भावस्था के दौरान ऐसे आहारों से दूर रहने में ही समझदारी है।
गर्भावस्था के दौरान जब भी आपको अपच की समस्या हो इस बात पर ध्यान दें कि आपने कौन से आहार ग्रहण की है और किन आहारों से अपच होने की संभावना है।
आप ऐसे सभी आहारों की एक लिस्ट तैयार कर सकती हैं। ताकि ऐसे आहारों से आप सावधान रह सकें। कुछ आहार गर्भावस्था के दौरान अपच के लिए प्रसिद्ध हैं जैसे कि तले हुए आहार, चॉकलेट, साइट्रस फ्रूट जैसे संतरा इत्यादि।
भोजन के दौरान पानी कम पिए
जब आप भोजन ग्रहण कर रही हो तो बहुत ज्यादा पानी ना पिएं। भोजन के द्वारा पानी पीने से छाती में जलन का अनुभव बढ़ सकता है। भोजन करने से 1 घंटे पहले पानी पी लें। भोजन के दौरान अगर पानी पीना ही पड़े तो थोड़ा सा पिए।
गर्भावस्था के दौरान कॉफी और मदिरा का सेवन ना करें
कॉफी और अल्कोहल दोनों ही अपच और खट्टी डकार के लिए जाने जाते हैं। लेकिन सावधान, क्योंकि इनकी वजह से मिसकैरेज (miscarriage) की भी संभावना होने का डर रहता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, कुछ शिशु रोग विशेषज्ञ बर्थ डिफेक्ट (birth defects) की वजह गर्भावस्था के दौरान कॉफी और अल्कोहल के सेवन को भी मानते हैं।
ध्रुमपान छोड़ दे
अगर आप ध्रुमपान करती हैं, तो गर्भधारण करने से कई महीने पहले से ही ध्रुमपान पूर्ण रुप से छोड़ दें। अपच और खट्टी डकार आना आम बात है।
लेकिन गर्भ में पल रहे शिशु पर इसका बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव भी पड़ता है। शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए, ऑक्सीजन बहुत जरूरी है।
अगर ऑक्सीजन की कमी खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है जो कि शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है।
ध्रुमपान में मौजूद निकोटीन से शिशु में बर्थ डिफेक्ट (birth defects) की संभावना भी बढ़ जाती है। ध्रुमपान करने वाली महिलाओं के शिशु में Sudden Infant Death Syndrome (SIDS) एक आम बात है।
रात्रि में अपच
अगर आपको अपच (dyspepsia) की समस्या का सामना रात्रि आहार के बाद ज्यादा करना पड़ता है तो कोशिश यह करें कि आप रात का भोजन सोने से 3 घंटा पहले ही ग्रहण कर ले।
3 घंटे का समय पर्याप्त है आपके पाचन तंत्र के लिए। इतने समय के अंदर में आपका पाचन तंत्र भोजन को पचा कर small intestine की तरफ बढ़ा देगा।
करवट लेकर सोने
कुछ गर्भवती महिलाएं जिन्हें अपच (dyspepsia) इस समस्या का सामना करना पड़ता है, अगर करवट लेकर सोने तो उन्हें अपच और खट्टी डकार की समस्या से आराम मिलता है।
इसीलिए अगर आप अपच और खट्टी डकार से परेशान हैं तो सोते वक्त करवट लेकर सोए। इससे आपको आराम मिल सकता है।
सोते वक्त कोशिश करें कि आपकी सर की स्थिति आपके पैर की स्थिति से थोड़ी ऊंची रहे जरूरत पड़े तो अपने बिस्तर को सर की तरफ से थोड़ा ऊंचा करते हैं। इससे गुरुत्वाकर्षण के कारण आपके पेट मैं पड़ा आहार ऊपर की तरफ नहीं चढ़ेगा।
ढीले ढाले कपड़े पहने
गर्भावस्था के दौरान ढीले-ढाले और आरामदायक कपड़े पहने। आप पेट के पास आवश्यक रूप से ढीले होने चाहिए ताकि आपके पेट पर इनका दबाव ना पड़े।
अपच की समस्या के समाधान के लिए दवा की दुकानों पर कई प्रकार की दवाएं उपलब्ध हैं। लेकिन गर्भावस्था के दौरान आपको इन दवाओं को ग्रहण करते वक्त बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है।

अपच के लिए जो दवा आप ग्रहण करने जा रही हैं, जरूरी नहीं कि वह आपके पेट में पल रहे शिशु के लिए सुरक्षित हो। इसलिए किसी भी दवा का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर की राय अवश्य ले ले।
गर्भावस्था के दौरान आपको दवा की मात्रा का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। कुछ दवाएं गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित होती हैं, लेकिन एक निर्धारित मात्रा से ज्यादा होने पर वह हानि भी पहुंचा सकती हैं।
दवाओं को लेने से पहले उनकी मात्रा सुनिश्चित अवश्य कर लें, ताकि कहीं अनजाने में आप गलती से निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेवन ना कर लें।
अपच के इलाज के लिए antacids एक बहुत ही कारगर दवा है। लेकिन सावधान, antacids गर्भावस्था के दौरान ली जा रही दवाइयों के अवशोषण में अवरुद्ध पैदा कर सकता है। इसका आपके शरीर पर और आपके गर्भ में पल रहे शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान अपच और छाती में जलन चिंता का विषय हो सकता है विशेषकर अगर आप ने ऐसा अनुभव गर्भावस्था के पहले नहीं किया है तो। लेकिन अधिकांश मामलों में अपच की समस्या मामूली और कुछ समय के लिए ही रहती है।

लेकिन कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान अपच और खट्टी डकार की समस्या गंभीर रूप भी ले सकती है। कुछ हालातों में आपको डॉक्टर की राय लेनी भी पढ़ सकती है। अगर आपको नीचे दिए लक्षण दिखे तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें:
अगर इनमें से कोई भी लक्षण आपको दिखे तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर से बात करते वक्त बिना संकोच सभी लक्षण अपने डॉक्टर को बताएं ताकि आपका डॉक्टर समय पर उनका सही इलाज कर सके।
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UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
UHT Milk एक विशेष प्रकार का दूध है जिसमें किसी प्रकार के जीवाणु या विषाणु नहीं पाए जाते हैं - इसी वजह से इन्हें इस्तेमाल करने से पहले उबालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दूध में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले दूध के सभी पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। यानी कि UHT Milk दूध पीने से आपको उतना ही फायदा प्राप्त होता है जितना कि गाय के ताजे दूध को पीने से। यह दूध जिस डब्बे में पैक करके आता है - आप इसे सीधा उस डब्बे से ही पी सकते हैं।
मुख्यता दस कारणों से मिसकैरेज (गर्भपात) होता है। अगर इनसे बच गए तो मिसकैरेज नहीं होगा। जाने की मिसकैरेज से बचाव के लिए आप को क्या करना और क्या खाना चाहिए। यह भी जाने की मिसकैरेज के बाद फिर से सुरक्षित गर्भधारण करने के लिए आप को क्या करना चाहिए और मिसकैरेज के बाद गर्भधारण कितना सुरक्षित है?
अस्थमा होने की स्थिति में शिशु को तुरंत आराम पहुचने के घरेलु उपाय। अपने बच्चे को अस्थमा के तकलीफ से गुजरते देखना किस माँ-बाप के लिए आसान होता है? सही जानकारी के आभाव में शिशु का जान तक जा सकता है। घर पे प्रतियेक व्यक्ति को अस्थमा के प्राथमिक उपचार के बारे में पता होना चाहिए ताकि आपातकालीन स्थिति में शिशु को जीवन रक्षक दवाइयां प्रदान की जा सकें।
बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में पोषण का बहुत बड़ा योगदान है। बच्चों को हर दिन सही मात्र में पोषण ना मिले तो उन्हें कुपोषण तक हो सकता है। अक्सर माँ-बाप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की क्या उनके बच्चे को सही मात्र में सभी जरुरी पोषक तत्त्व मिल पा रहे हैं या नहीं। इस लेख में आप जानेंगी 10 लक्षणों के बारे मे जो आप को बताएँगे बच्चों में होने वाले पोषक तत्वों की कमी के बारे में।
विटामिन डी की कमी से शिशु के शरीर में हड्डियों से संबंधित अनेक प्रकार की विकार पैदा होने लगते हैं। विटामिन डी की कमी को उचित आहार के द्वारा पूरा किया जा सकता। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आप अपने शिशु को कौन कौन से आहार खिलाए जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन डी पाया जाता है। ये आहार आपके शिशु को शरीर से स्वस्थ बनाएंगे और उसकी शारीरिक विकास को गति प्रदान करेंगे।
गर्भावस्था के दौरान बालों का झड़ना एक बेहद आम समस्या है। प्रेगनेंसी में स्त्री के शरीर में अनेक तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं जिनकी वजह से बालों की जड़ कमजोर हो जाते हैं। इस परिस्थिति में नहाते वक्त और बालों में कंघी करते समय ढेरों बाल टूट कर गिर जाते हैं। सर से बालों का टूटना थोड़ी सी सावधानी बरतकर रोकी जा सकती है। कुछ घरेलू औषधियां भी हैं जिनके माध्यम से बाल की जड़ों को फिर से मजबूत किया जा सकता है ताकि बालों का टूटना रुक सके।
1 साल के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। जबकि 1 साल की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं शिशु की खांसी, सर्दी, जुकाम और बंद नाक का इलाज किस तरह से आप घर के रसोई (kitchen) में आसानी से मिल जाने वाली सामग्रियों से कर सकती हैं - जैसे की अजवाइन, अदरक, शहद वगैरह।
बच्चों को सर्दी और जुकाम मैं बुखार होना आम बात है। ऐसा बच्चों में हरारत (exertion) के कारण हो जाता है। कुछ साधारण से घरेलु उपचार के दुवारा आप बच्च्चों में सर्दी और जुकाम के कारण हुए बुखार का इलाज घर पे ही कर सकती हैं। (bukhar ki dawa, खांसी की अचूक दवा)
शिशु को 10 सप्ताह (ढाई माह) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
एक नवजात बच्चे को जब हिचकी आता है तो माँ-बाप का परेशान होना स्वाभाविक है। हालाँकि बच्चों में हिचकी कोई गंभीर समस्या नहीं है। छोटे बच्चों का हिचकियाँ लेने इतना स्वाभाविक है की आप का बच्चा तब से हिचकियाँ ले रहा है जब वो आप के गर्भ में ही था। चलिए देखते हैं की आप किस तरह आपने बच्चे की हिचकियोँ को दूर कर सकती हैं।
अगर आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगाता है, होमवर्क करने से कतराता है और हर वक्त खेलना चाहता है तो इन 12 आसान तरीकों से आप अपने बच्चे को पढाई के लिए अनुशाषित कर सकते हैं।
अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों के बच्चे में व्यवहारिक होने की छमता भिन भिन होती है| जिन सांस्कृतिक समूहों में बड़े ज्यादा सतर्क होते हैं उन समूहों के बच्चे भी व्याहारिक होने में सतर्कता बरतते हैं और यह व्यहार उनमे आक्रामक व्यवहार पैदा करती है।
पपीते में मौजूद enzymes पाचन के लिए बहुत अच्छा है। अगर आप के बच्चे को कब्ज या पेट से सम्बंधित परेशानी है तो पपीते का प्यूरी सबसे बढ़िया विकल्प है। Baby Food, 7 से 8 माह के बच्चों के लिए शिशु आहार
कुछ बातों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चे के बुद्धिस्तर को बढ़ा सकते हैं और बच्चे में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं। जैसे ही उसके अंदर आत्मविश्वास आएगा उसकी खुद की पढ़ने की भावना बलवती होगी और आपका बच्चा पढ़ाई में मन लगाने लगेगा ,वह कमज़ोर से तेज़ दिमागवाला बन जाएगा। परीक्षा में अच्छे अंक लाएगा और एक साधारण विद्यार्थी से खास विद्यार्थी बन जाएगा।
दांत का निकलना एक बच्चे के जिंदगी का एहम पड़ाव है जो बेहद मुश्किलों भरा होता है। इस दौरान तकलीफ की वजह से बच्चे काफी परेशान करते हैं, रोते हैं, दूध नहीं पीते। कुछ बच्चों को तो उलटी, दस्त और बुखार जैसे गंभीर लक्षण भी देखने पड़ते हैं। आइये जाने कैसे करें इस मुश्किल दौर का सामना।