Category: शिशु रोग
By: Research & Analysis Team | ☺13 min read
फूड पाइजनिंग (food poisining) के लक्षण, कारण, और घरेलू उपचार। बड़ों की तुलना में बच्चों का पाचन तंत्र कमज़ोर होता है। यही वजह है की बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं। बच्चों में फूड पाइजनिंग (food poisoning) एक आम बात है। इस लेख में हम आपको फूड पाइजनिंग यानि विषाक्त भोजन के लक्षण, कारण, उपचार इलाज के बारे में बताएंगे। बच्चों में फूड पाइजनिंग (food poisoning) का घरेलु इलाज पढ़ें इस लेख में:



इस लेख में हम आपको बताएंगे कि अगर आपके बच्चे को फूड पाइजनिंग (food poisoning) हो गया है तो उसका आप किस तरह घरेलू इलाज कर सकती हैं। लेकिन फूड पाइजनिंग (food poisoning) की कुछ परिस्थितियों में घरेलू इलाज करने की बजाये - आपको अपने शिशु को तुरंत डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए।
छोटे बच्चे शारीरिक रूप से नाजुक होते हैं। समय पर इलाज ना मिलने पर फूड पाइजनिंग (food poisoning) उनके लिए जानलेवा भी हो सकता है।
अगर आपका शिशु फूड पाइजनिंग (food poisoning) की गंभीर परिस्थितियों से गुजर रहा है - जैसे कि उसे खूब उल्टी हो रही है, और लगातार दस्त के कारण उसके शरीर में पानी की कमी हो रही है - तो फौरन अपने बच्चे को लेकर डॉक्टर से मिलें या अस्पताल जाएं।
डिहाइड्रेशन के कारण आपके शिशु की जान भी जा सकती है। अगर आपका बच्चा उल्टी और दस्त की वजह से बहुत ज्यादा कमजोर दिखे, रोने पर भी उसके आंखों से आंसू ना निकले, काफी देर से उसने मूत्र त्याग ना किया हो, तो यह चिंताजनक लक्षण है।
बच्चे में ऐसे लक्षण दिखने से पहले ही आप उसे अस्पताल लेकर जाएं ताकि डॉक्टर उसे ग्लूकोस पानी चढ़ा कर उसके शरीर में पानी की मात्रा को बढ़ाएं।
पढ़ें: शिशु में फ़ूड पोइजन (Food Poison) का घरेलु इलाज

अगर आपके शिशु को कभी फूड पाइजनिंग (food poisoning) हो जाए तो उसकी इलाज से पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि आखिर फूड पाइजनिंग (food poisoning) किस वजह से होती है - तभी आप इसका सही इलाज कर पाएंगे।

बच्चों में फूड पाइजनिंग (food poisoning) तब होता है जब वह कोई ऐसा आहार ग्रहण करते हैं जिसमें पहले से हानिकारक जीवाणु, विषाणु, या विषैले पदार्थ मौजूद हो।
हमारे चारों तरफ के वातावरण में हर तरह के जीवाणु पाए जाते हैं - इसीलिए हल्का फुल्का फूड पाइजनिंग (food poisoning) का होना एक आम बात है।
बड़ों के साथ इस प्रकार की घटनाएं कम होती है लेकिन बच्चों को ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ता है क्योंकि बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ों की तुलना में कम होता है।
इस वजह से उनका शरीर इतना दक्ष नहीं होता है कि वह फूड पाइजनिंग (food poisoning) के कारकों से लड़ सके।
जैसा कि मैंने बताया कि हमारे चारों ओर हर प्रकार के जीवाणु हर समय मौजूद रहते हैं। इनमें से बहुत से जीवाणु ऐसे होते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है लेकिन कुछ ऐसे जीवाणु भी हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते हैं।

यह जीवाणु हमारे चारों ओर के वातावरण में तो मौजूद रहते ही हैं - साथ ये हमारे आहार में भी मौजूद रहते हैं - क्योंकि हमारा आहार निरंतर हमारे चारों ओर के वातावरण के संपर्क में बना रहता है।
जब आहार बहुत लंबे समय तक कमरे के सामान्य तापमान में रखा रहता है तो उसमें मौजूद हानिकारक जीवाणु जो हमें भी मार कर सकते हैं, उनकी संख्या अगर बहुत बढ़ जाए - तो यह हमें यह हमारे बच्चों को बीमार कर सकते हैं।
यही वजह है कि जब हम वासी आहार ग्रहण करते हैं तो उन से फूड पाइजनिंग (food poisoning) होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
बच्चों में फूड पाइजनिंग (food poisoning) के लक्षण कई बार कुछ घंटों में ही उजागर हो जाते हैं, वहीं कभी-कभी इन के लक्षण को दिखने में 1 दिन का भी समय लग सकता है या कई दिन भी लग सकते हैं।

फूड पाइजनिंग (food poisoning) के लक्षणों से यह पता लगाना मुश्किल है कि आपके शिशु को फूड पाइजनिंग (food poisoning) हुआ है या यह किसी और बीमारी के संकेत है।
इसीलिए अगर आपको अपने शिशु में फूड पाइजनिंग (food poisoning) के लक्षण दिखे तो तुरंत अपने बच्चे के डॉक्टर से मिले और राय लें।
डॉक्टर अपनी जांच के द्वारा यह ठीक ठीक पता लगा पाएगा कि आपकी शिशु मैं यह लक्षण फूड पाइजनिंग (food poisoning) की वजह से है या किसी अन्य बीमारी की वजह से है।

हर प्रकार के आहार में किसी न किसी प्रकार के जीवाणु होते हैं। लेकिन जिन आधारों से सबसे ज्यादा फूड पाइजनिंग (food poisoning) हो संभावना वह आहार इस प्रकार से हैं - मीट, चिकन, अंडा, दूध, और झींगा मछली। जो जीवाणु बच्चों में फूड पाइजनिंग (food poisoning) के अधिकांश मामलों में जिम्मेदार होते हैं वह इस प्रकार से हैं:
अगर आप अपने बच्चे को फूड पाइजनिंग (food poisoning) कि किसी भी संभावनाओं से बचाना चाहते हैं तो आप अपने शिशु के लिए अच्छी तरह पका कर आहार तैयार करें।

अगर आप पकाए हुए आहार को अपने शिशु को थोड़ी देर के बाद खिलाएंगे तो उसे इस तरह रखिए कि उसमें जीवाणु आसानी से पनप नहीं सके या उनकी संख्या बड़े नहीं। उदाहरण के लिए आप अपने शिशु के आहार को फ्रिज में रख सकती हैं।
आहार तैयार करने के बाद औसतन 6 घंटों तक ही छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित रहता है। जैसे जैसे समय बीतता है उसमें हानिकारक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती जाती है और एक समय यह आता है कि उनकी तादाद इतनी ज्यादा हो जाती है की जब कोई उस आहार को ग्रहण करें तो उसका बीमार पड़ना निश्चित हो जाता है।
इसीलिए आप हर संभव प्रयास करें कि आपका शिशु ताजा व तुरंत का बना आहार ग्रहण करें और बासी खाने से दूर रहे। बड़ों के शरीर पर बांसी आहार का प्रभाव इतना गंभीर नहीं होता है जितना कि छोटे बच्चों के शरीर पर क्योंकि छोटे बच्चों का पाचन तंत्र बहुत कमजोर होता है।

अगर सारी सावधानियों के बावजूद भी आपके शिशु को फूड पाइजनिंग (food poisoning) हो जाये तो डॉक्टर इलाज शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित करने का कोशिश करेगा कि आपके शिशु की तकलीफ फूड पाइजनिंग (food poisoning) की वजह से ही है या यह किसी अन्य बीमारी के संकेत है।

इसीलिए जब आप अपने शिशु के साथ उसके डॉक्टर से मिलेंगे तो डॉक्टर तमाम तरह के सवाल पूछेंगे - जैसे कि आपके शिशु को कैसा लग रहा है, उसकी तबीयत कैसी है, क्या घर में कोई और व्यक्ति है जिसे यही तकलीफ है तथा डॉक्टर पिछले कुछ दिनों के आहार के बारे में भी पूछ सकते हैं।
डॉक्टर आपके शिशु के मल और मूत्र के जाँच के बारे में भी निर्देश दे सकते हैं। इन जांच के द्वारा यह सटीक तरीके से निर्धारित किया जा सकता है कि आपके शिशु को फूड पाइजनिंग (food poisoning) हुआ है या नहीं।
अगर आपके शिशु में यह लक्षण फूड पाइजनिंग (food poisoning) की वजह से है, तो आमतौर पर किसी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन फिर भी आपके शिशु का डॉक्टर आवश्यकता अनुसार कुछ सहायक दवाई दे सकते हैं उदाहरण के तौर पर एंटीबायोटिक, बुखार कम करने की दवा, उल्टी रोकने की दवा, इत्यादि।
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UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
घरों में इस्तेमाल होने वाले गेहूं से भी बच्चे बीमार पड़ सकते हैं! उसकी वजह है गेहूं में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का प्रोटीन जिसे ग्लूटेन कहते हैं। इसी प्रोटीन की मौजूदगी की वजह से गेहूं रबर या प्लास्टिक की तरह लचीला बनता है। ग्लूटेन प्रोटीन प्राकृतिक रूप से सभी नस्ल के गेहूं में मिलता है। कुछ लोगों का पाचन तंत्र गेहुम में मिलने वाले ग्लूटेन को पचा नहीं पता है और इस वजह से उन्हें ग्लूटेन एलर्जी का सामना करना पड़ता है। अगर आप के शिशु को ग्लूटेन एलर्जी है तो आप उसे रोटी और पराठे तथा गेहूं से बन्ने वाले आहारों को कुछ महीनो के लिए उसे देना बंद कर दें। समय के साथ जैसे जैसे बच्चे का पाचन तंत्र विकसित होगा, उसे गेहूं से बने आहार को पचाने में कोई समस्या नहीं होगी।
जानिए कीवी फल खाने से शरीर को क्या क्या फायदे होते है (Health Benefits Of Kiwi) कीवी में अनेक प्रकार के पोषक तत्वों का भंडार होता है। जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने में सक्षम होते हैं। कीवी एक ऐसा फल में ऐसे अनेक प्रकार के पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को बैक्टीरिया और कीटाणुओं से भी लड़ने में मदद करते। यह देखने में बहुत छोटा सा फल होता है जिस पर बाहरी तरफ ढेर सारे रोए होते हैं। कीवी से शरीर को अनेक प्रकार के स्वास्थ लाभ मिलते हैं। इसमें विटामिन सी, फोलेट, पोटेशियम, विटामिन के, और विटामिन ई जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। कीवी में ढेर सारे छोटे काले बीज होते हैं जो खाने योग्य हैं और उन्हें खाने से एक अलग ही प्रकार का आनंद आता है। नियमित रूप से कीवी का फल खाने से यह आपके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है यानी कि यह शरीर की इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
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नवजात बच्चे चार से पांच महीने में ही बिना किसी सहारे के बैठने लायक हो जाते हैं। लेकिन अगर आप अपने बच्चे को थोड़ी सी एक्सरसाइज कराएँ तो वे कुछ दिनों पहले ही बैठने लायक हो जाते हैं और उनकी मस्पेशियाँ भी सुदृण बनती हैं। इस तरह अगर आप अपने शिशु की सहायता करें तो वो समय से पहले ही बिना सहारे के बैठना और चलना सिख लेगा।
कुछ बातों का ख्याल अगर रखा जाये तो शिशु को SIDS की वजह से होने वाली मौत से बचाया जा सकता है। अकस्मात शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) की वजह शिशु के दिमाग के उस हिस्से के कारण हो सकता है जो बच्चे के श्वसन तंत्र (साँस), दिल की धड़कन और उनके चलने-फिरने को नियंत्रित करता है।
अगर जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 kg से कम वजन का होता है तो इसका मतलब शिशु कमजोर है और उसे देखभाल की आवश्यकता है। जानिए की नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के लिए आप को क्या क्या करना पड़ेगा।
पीट दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए| आज के दौर में सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चों को भी पीठ दर्द का सामना करना पद रहा है| नाजुक सी नन्ही उम्र से ही बच्चों को अपने वजन से ज्यादा भारी बैग उठा के स्कूल जाना पड़ता है|
विटामिन सी, या एस्कॉर्बिक एसिड, सबसे प्रभावी और सबसे सुरक्षित पोषक तत्वों में से एक है यह पानी में घुलनशील विटामिन है यह कोलेजन के संश्लेषण के लिए एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जिससे रक्त वाहिकाओं और शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। मानव शरीर में विटामिन सी पैदा करने की क्षमता नहीं है। इसलिए, इसे भोजन और अन्य पूरक आहार के माध्यम से प्राप्त करने की आवश्यकता है।
बच्चे को सुलाने के नायब तरीके - अपने बच्चे को सुलाने के लिए आप ने तरत तरह की कोशिशें की होंगी। जैसे की बच्चे को सुलाने के लिए उसको कार में कई चक्कर घुमाया होगा, या फिर शुन्य चैनल पे टीवी को स्टार्ट कर दिया होगा ताकि उसकी आवाज से बच्चा सो जाये। बच्चे को सुलाने का हर तरीका सही है - बशर्ते की वो तरीका सुरक्षित हो।
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बहुत लम्बे समय तक जब बच्चा गिला डायपर पहने रहता है तो डायपर वाली जगह पर रैशेस पैदा हो जाते हैं। डायपर रैशेस के लक्षण अगर दिखें तो डायपर रैशेस वाली जगह को तुरंत साफ कर मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम लगा दें। डायपर रैशेज होता है बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से और मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम में एंटी बैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो नैपी रैशिज को ठीक करते हैं।
अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|
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बच्चो में कुपोषण का मतलब भूख से नहीं है। हालाँकि कई बार दोनों साथ साथ होता है। गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को उसकी बढ़ने के लिए जरुरी पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते। बच्चों को कुपोषण से बचने के लिए हर संभव प्रयास जरुरी हैं क्योंकि एक बार अगर बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाये तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता।
डेंगू महामारी एक ऐसी बीमारी है जो पहले तो सामान्य ज्वर की तरह ही लगता है अगर इसका इलाज सही तरह से नहीं किया गया तो इसका प्रभाव शरीर पर बहुत भयानक रूप से पड़ता है यहाँ तक की यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। डेंगू का विषाणु मादा टाइगर मच्छर के काटने से फैलता है। जहां अधिकांश मच्छर रात के समय सक्रिय होते हैं, वहीं डेंगू के मच्छर दिन के समय काटते हैं।