Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺7 min read
हर मां बाप अपने बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करना चाहते हैं जिससे उनके शिशु को कभी भी कुपोषण जैसी गंभीर समस्या का सामना ना करना पड़े और उनके बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास बेहतरीन तरीके से हो सके। अगर आप भी अपने शिशु के पोषण की सभी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले यह समझना पड़ेगा किस शिशु को कुपोषण किस वजह से होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कुपोषण क्या है और यह किस तरह से बच्चों को प्रभावित करता है (What is Malnutrition & How Does it Affect children?)।
भारत में बच्चे मुख्य तीन कारणों से कुपोषण के शिकार होते हैं जो कि इस प्रकार से हैं:
कुपोषण का मतलब यह नहीं होता है कि शिशु को पर्याप्त मात्रा में आहार नहीं मिल रहा है। कुपोषण का मतलब यह है कि बच्चे को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में वह सारे पौष्टिक तत्व नहीं मिल रहे हैं जो शिशु को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं और उसकी शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक है।
अगर आपके शिशु को पर्याप्त मात्रा में सही आहार (right food in enough quantity) नहीं मिल रहा है तो आप का शिशु कुपोषण का शिकार हो सकता है। कई बार जब शिशु को लंबे समय तक गलत आहार (wrong food) दिया जाता है तो भी वह कुपोषण की शिकार हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए अगर आप अपने शिशु को अधिकांश समय बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, फास्ट फूड, चॉकलेट, और अत्यधिक तेल युक्त आहार देते हैं तो आपके शिशु के कुपोषण से प्रभावित होने की पूरी संभावना है। भारत में हर साल लाखों बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं - इसकी मुख्य वजह यह है कि इन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में सही आहार नहीं मिलता है जिसमें वह सारे पोषक तत्व है जो उसे स्वस्थ रखने के लिए और उसके विकास के लिए सहायक है।
शिशु के जन्म के 1 साल तक नवजात मां के दूध पे निर्भर रहता है। हालांकि बच्चे में 6 महीने के बाद से ठोस आहार की शुरुआत कर दी जाती है, लेकिन फिर भी जब तक शिशु 1 साल का ना हो जाए दूध उसका मुख्य आहार बना रहेगा। 1 साल के बाद ही शिशु का ठोस आहार उसका मुख्य आहार बन जाता है और दूध सहायक आहार।
इस दौरान अगर मां पौष्टिक आहार ग्रहण नहीं कर रही है तो जाहिर है कि शिशु को भी अच्छी तरह पोषण नहीं मिल पाएगा। इसीलिए शिशु को पोषण प्रदान करने के लिए मां को पौष्टिक आहार ग्रहण करने की बहुत आवश्यकता है और अपने आपको शारीरिक तौर पर स्वस्थ रखने की भी बहुत ज्यादा जरूरत है।
जो बच्चे जन्म के समय स्वस्थ पैदा होते हैं आगे चलकर उनका स्वास्थ्य भी बहुत बेहतर होता है। लेकिन जो बच्चे जन्म के वक्त कमजोर होते हैं आगे की जिंदगी में भी वे शारीरिक रूप से कमजोर पाए गए हैं। इसीलिए जब एक स्त्री गर्भवती होती है यह जरूरी है कि वह अपने पोषण पर बहुत ज्यादा ध्यान दें। हर प्रकार के पौष्टिक आहार को ग्रहण करें ताकि गर्भ में पलने वाला शिशु शारीरिक और मानसिक रूप से तंदुरुस्त रहे।
जिन गर्भवती महिलाओं को गर्भ काल के दौरान उचित पोषण नहीं मिलता है (malnourished during their pregnancy) उन्हें शिशु के जन्म के दौरान प्रसव से संबंधित कई प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ता (experience complications giving birth)।
अत्यधिक कुपोषण से प्रभावित माताएं अपने नवजात शिशु को ठीक तरह से स्तनपान कराने में भी असमर्थ रहती हैं। यह तो आप जानते ही हैं कि शिशु के प्रथम 6 महीने उसके स्वास्थ्य के लिए कितने आवश्यक है। प्रथम छेह महीने में अगर शिशु को उचित पोषण नहीं मिला तो उसके आगे की जिंदगी भी प्रभावित होगी।
अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा हुए शोध से यह पता चला है गरीबी भी बच्चों में कुपोषण की एक मुख्य वजह है। जो परिवार गरीबी में होते हैं वह अपने बच्चों के लिए ताजे फल और सब्जियां नहीं खरीद पाते हैं। भारत में ऐसे बहुत सारे झुग्गी झोपड़ी और बस्तियां हैं जहां पर लोगों को ताजे फल सब्जियां और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है।
जाहिर है कि यहां पलने वाले बच्चों मैं कुपोषण की संभावना सबसे ज्यादा रहेगी। जब मां-बाप के आहार खरीदने की क्षमता कम होगी तो वे अपने घर परिवार के लिए सस्ते आहार खरीदेंगे जो पोषण की गुणवत्ता में भी कम होंगे। इसीलिए अगर स्वस्थ भारत का निर्माण करना है तो सबसे पहले लोगों के आर्थिक उत्थान पर ध्यान देना पड़ेगा।
आपको सुनकर शायद अफसोस लगेगा कि भारत की गिनती अफ्रीकी देश जैसे कि सूडान, सोमालिया और इथोपिया के साथ की जाती है।
ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट (global nutrition reports) के अनुसार भारत अत्यधिक संख्या में कुपोषण से प्रभावित बच्चों का गढ़ है। इसके अनुसार 5 साल से कम उम्र के 44% बच्चे अपनी औसत वजन से कम हैं और करीब 72 प्रतिशत बच्चों में एनीमिया यानी खून की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार शिशु की वह उम्र जिसमें उसके शरीर का और मस्तिष्क का विकास बहुत तेजी से होता है (critical periods of childhood), उस दौरान शिशु सबसे ज्यादा कुपोषण का शिकार होता है।
कुपोषण शिशु की मानसिक क्षमता को कम करता है, उनके अंदर सीखने से संबंधित योग्यता को प्रभावित करता है और साथ ही उनमें दूसरी बीमारियों को भी जन्म देता है जैसे कि हाइपरटेंशन और डायबिटीज (hypertension and diabetes)। कुपोषण शिशु की लंबाई को भी कम करता है - यानी कुपोषण से प्रभावित बच्चे अपनी पूरी लंबाई प्राप्त नहीं कर पाते हैं।