Category: बच्चों की परवरिश
By: Admin | ☺13 min read
सभी बच्चे नटखट होते हैं। लेकिन बच्चों पे चलाना ही एक मात्र समस्या का हल नहीं है। सच तो ये है की आप के चिल्लाने के बाद बच्चे ना तो आप की बात सुनना चाहेंगे और ना ही समझना चाहेंगे। बच्चों को समझाने के प्रभावी तरीके अपनाएं। इस लेख में हम आप को बताएँगे की बच्चों पे चिल्लाने के क्या - क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
"अच्छे बच्चे" नाम की कोई चीज़ इस संसार में नहीं होती है।
आप भी कभी बच्चे थे और जरुरी नहीं की आप भी हर समय परफेक्ट हों।
ये बच्चों की आम आदत होती है की वे काम से भागते हैं, हर समय खेलना चाहते हैं, और अपने दुसरे भाई बहनों से लड़ते हैं।
ऐसी प्रिस्थितियौं में चाहे माँ-बाप में कितना भी धर्य क्योँ ना हो, एक बार तो वे अपने धर्य खो कर बच्चों पे चिल्ला ही देते हैं। लेकिन इसका बच्चों के दिमागी विकास पे दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
माँ-बाप का चिल्लाना बच्चों को विस्मित (confuse) कर देता है। साथ ही उन्हें खतरे का एहसास दिलाता है। ऐसी स्थिति में वे मानसिक रूप से बचाव की स्थति में आ जाते हैं।
आप की बात को सुनने और समझने की बजाएं उनका दिमाग इस बात पे ज्यादा जोर देता है की क्या तर्क दिया जाये की बचाव हो सके।
इसका नतीजा ये होता है की जिस वजह से आप उनपे चिल्लाये, उसका कोई असर उनपे नहीं हुआ।
तो बच्चों पे चिल्लाने का क्या फायेदा!
पिट्सबर्ग विश्वविधालय (University of Pittsburgh) में हुए शोध में यह बात सामने आयी है की जो बच्चे ऐसे माहौल में रहते हैं जहाँ उनपर लगातार चिल्लाया जाता है, उनका बौद्धिक विकास (cerebral development) ठीक तरह से नहीं हो पता है।
ऐसे बच्चे दिखने में साधारण दीखते हैं, लेकिन उन्हें वो काम करने में बहुत कठिनाई आती है जहाँ ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पड़ती है - जैसे की पढाई करना या पहेली बुझाना।
ऐसे बच्चों का व्यक्तित्व भी बिगड़ जाता है। ये बच्चे उग्र मानसिकता के हो जाते हैं। दुसरे बच्चों के साथ आसानी से झगड़ने लगते हैं और बड़ों की बातों को अनसुना कर देते हैं।
शोध में यह बात भी सामने आयी की अगर माँ-बाप जो बच्चों पे बहुत चिल्लाते हैं, अगर वे बच्चों से बहुत प्यार भी जतायें तो भी चिल्लाने से हुए नुकसान की भरपाई नहीं होती है।
इसी से मिलता जुलता शोध Harvard Medical School में भी हुआ। वहां के शोध के निष्कर्षों में एक और चौकाने वाली बात सम्मन आयी।
जिन बच्चों को लगातार चिल्लाने का सामना करना पड़ता है उनके मस्तिष्क की संरचना स्थाई रूप से बदल जाती है। इसका मतलब ऐसे बच्चों का व्यक्तित्व स्थाई रूप से बदल जाता है।
शोध में पाया गया की मस्तिष्क का वो हिस्सा जो भावनाओं और रिश्तों को नियंत्रित करता है उसकी कार्योँ (activities) में स्थायी रूप से कमी आ गयी है।
यानि ये बच्चे बड़े हो कर रिश्तों के अहमियत (गम्भीरता) को समझ नहीं पाते हैं।
अगली बार जब आप अपने बच्चे पे चिल्लाने जाएँ तो इस लेख को अवश्य याद किजियेगा।
आखिर आप के बच्चे के जिंदगी का सवाल जो है!
बच्चे पालना बहुत धैर्य का काम है - और बहुत जिम्मेदारी भरा भी।
कई बार तो बहुत निराशा का सामना भी करना पड़ता है। माँ-बाप का निराशा से धैर्य का सफर आसान नहीं होता है।
अच्छी परवरिश के लिए, बच्चों को प्यार, दृढ़ निश्चय और उत्साह से संभालना चाहिए।
बच्चे बहुत नटखट होते हैं, और इस वजह से कई बार माँ-बाप अपना आपा खो देते हैं। छोटे बच्चे किसी की बात नहीं सुनते हैं। और इस वजह से माँ-बाप को काफी निराशा का सामना करना पड़ता है।
इसका नतीजा ये होता है की कई बार माँ-बाप अपने आप को बच्चों पे चिल्लाने से रोक नहीं पाते हैं।
लेकिन बच्चों पे चिल्लाने से उनपर इसका बुरा असर पड़ता है। बच्चे जो सब कुछ माँ-बाप से सीखते हैं, माँ-बाप के बुरे व्यवहार को भी सिख जाते हैं।
अगर आप अपने बच्चों को अच्छी सिख देना चाहते हैं तो आप को भी वैसा ही व्यवहार उनके सामने प्रस्तुत करना पड़ेगा। हमारे व्यहार का बच्चों पे सीधा प्रभाव पड़ता है - और उनसे बच्चे सीखते हैं।
हम सभी बच्चों के सामने अच्छा व्यवहार प्रस्तुत करना चाहते हैं। समय-समय पे अपनी भावनाओं को प्रकट करना भी ठीक है। लेकिन यह भी उचित नहीं है की आप अपने बच्चों से ये उपेक्षा करें की वे हमेशा "आज्ञाकारी बच्चे" की तरह बर्ताव करें।
बच्चों का परेशान होना, चिड़चिड़ाना, बिलकुल स्वाभाविक स्वाभाव है। लेकिन ऐसे समय में उन्हें संभालना बहुत ही मुश्किल काम होता है।
इन मुश्किल घडी में आप बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, ये निर्धारित करता है की बच्चे का स्वाभाव बेहतर होगा या और बिगड़ेगा।
ऐसे मौके पे अगर आप भी बच्चों पे चिल्लाने लगे तो स्थिति सिर्फ बिगड़े गा। साथ ही बच्चे और माँ-बाप के बीच के रिश्ते पे भी प्रभाव पड़ेगा।
जब माहौल अनुकूल न हो तो उसे नियंत्रित करने की कोशिश न करें। इससे माहौल और बिगड़ सकता है।
बच्चों के बर्ताव के कारण अगर आप को कभी बहुत गुस्सा आये तो थोड़ी देर के लिए दुसरे कमरे में चले जायें। जब गुस्सा शांत हो जाये तब उनके सामने जाएँ।
शांत मन से आप स्थिति को ज्यादा बेहतर तरीके सा संभल सकती हैं। आप स्थिति को कैसे संभालती हैं, बच्चे आप से ये भी सीखते हैं।
नाराजगी की स्थिति में आप तार्किक तरीके से सोच नहीं पाएंगी। और आप जो सन्देश अपने बच्चों को देना चाहती हैं वो उन्हें नहीं मिलेगा।
बच्चों के साथ जब माहौल बहुत ख़राब हो तो आप का भावुक होना स्वाभाविक है, लेकिन आप को समझना होगा की ऐसी स्थिति में आप के बच्चे भी भावुक होते हैं।
विशेषकर जब वे नाराज हों। जब आप नाराज होती हैं तो आप अपने बच्चों से कैसे स्वाभाव की उपेक्षा करती हैं? आप के बच्चे भी आप से ऐसे ही स्वाभाव की उपेक्षा करते हैं।
जब बच्चे गलतियां करते हैं तो चाहे आप को उन पे कितना भी गुस्सा आये, आप कुछ ऐसा उन्हें मत कह दीजियेगा की बाद में आप को पछतावा हो।
बच्चों पे चिल्लाना किसी भी समस्या का हल नहीं है। अगर आप अपने बच्चे पे चिल्लायेंगे तो वो आप की बात न सीखेंगे और ना ही समझने की कोशिश करेंगे।
और फिर,
हो सकता है की आप के बच्चे आप की बात फिर कभी जिंदगी भर ना सुने।
अगर आप सही मायने में अपने बच्चों को कुछ सिखाना चाहते हैं और उन्हें अच्छे संस्कार देना चाहते हैं तो आप को दुसरे रस्ते अपनाने पड़ेंगे। बच्चों पे चिल्लाना रास्ता नहीं है।
कई बार न चाहते हुए भी माँ-बाप को बच्चों पे चिल्लाना पड़ जाता है। अगर लाख कोशिशों के बावजूद भी आप अपना सयम न रख पाएं और अपने बच्चों पे चिल्लाएं तो - निम्न लिखित तरीके से स्थिति को ठीक करने की कोशिश करें ताकि बच्चे पे आप के चिल्लाने का बुरा प्रभाव न पड़े।
एक बार जब स्थिति शांत हो जाये तो आप को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने पड़ेंगे ताकि आप के बच्चे समझ सकें की उन्हें क्या करना चाहिए ताकि उन परिस्थितियोँ से बचा जा सके जिन की वजह से आप को गुस्सा आया था।
इस बात को एक उदहारण की सहायता से समझने की कोशिश करते हैं। अगर आप अपने बच्चे पे इसलिए चिल्लाई थीं कि उसने दीवाल पे कुछ बनाया था, तो अपने बच्चे को प्यार से बताएं की उसे किताब में बनाना चाहिए था। बच्चे को किताब और पेंसिल दें बनाने के लिए।
बच्चे के कार्य के लिए उसे मुस्कुराकर प्रोत्साहित करें की उसने आप की बात को मन है। बच्चों को सँभालते वक्त प्यार से बड़े-बड़े काम बन जाते हैं।
जीवन एक लम्बी यात्रा है और हर इंसान कभी-ना-कभी गलती करता है। अपने बचपन को याद कीजिये की जब आप छोटी थीं तो आप ने क्या-क्या गलतियां की।
अगर आप के बच्चे गंभीर परिस्थितियोँ में हों या उनके कार्य से दुर्घटना होने की सम्भावना है और आप के चिल्लाने से आप के बच्चे दुर्घटना से बच सकते हैं तो जरूर चिल्लाएं।
बस इस बात का ध्यान रखें की आप का चलना आप की आदत न बन जाये।
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