Category: शिशु रोग
By: Editorial Team | ☺6 min read
अन्य बच्चों की तुलना में कुपोषण से ग्रसित बच्चे वजन और ऊंचाई दोनों ही स्तर पर अपनी आयु के हिसाब से कम होते हैं। स्वभाव में यह बच्चे सुस्त और चढ़े होते हैं। इनमें दिमाग का विकास ठीक से नहीं होता है, ध्यान केंद्रित करने में इन्हें समस्या आती है। यह बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। कुछ बच्चों में दांत निकलने में भी काफी समय लगता है। बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि शिशु के भोजन में हर प्रकार के आहार को सम्मिलित किया जाएं।

हर मां बाप अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर आहार देना चाहते हैं ताकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से हो सके। एक सेहतमंद और तंदुरुस्त बच्चे के लिए पौष्टिक आहार बहुत जरूरी है। लेकिन सरकारी आंकड़े इस बात को बताते हैं कि भारत में सभी बच्चों को समुचित पोषक आहार नहीं मिल पाता है। या नहीं बच्चों को पेट भर आहार तो मिलता है लेकिन उस आहार से बच्चे को वह सभी पोषक तत्व नहीं मिलते हैं जो उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है।
12 साल तक की उम्र तक शिशु का शरीर बहुत तेजी से विकसित होता है और इस दौरान उसके बढ़ते शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि कैल्शियम, दांतो और हड्डियों के विकास के लिए, आयरन दिमागी विकास के लिए, प्रोटीन मांसपेशियों के निर्माण के लिए तथा कई अन्य प्रकार के विटामिंस और मिनरल्स की भी आवश्यकता पड़ती है।
अगर बच्चों को यह सभी पोषक तत्व ना मिले तो उनका शारीरिक और बौद्धिक विकास रुक जाता है या धीमा हो जाता है। जिस यह बच्चे शारीरिक तौर पर और बौद्धिक स्तर पर अन्य बच्चों की तुलना में कम विकसित करते हैं।
पढ़ें: क्यों होते हैं बच्चें कुपोषण के शिकार?
यह लेख सभी माता-पिता के लिए बहुत आवश्यक है। बहुत से मां-बाप यह सोचते हैं कि वह अपने बच्चों को पेट भरा आहार दे रहे हैं तो उनका विकास सही तरह से होना चाहिए। लेकिन क्या आपको पता है कि जो आहार आप अपने बच्चे को दे रहे हैं उससे आपके शिशु को वह सारे पोषक तत्व मिल भी रहे हैं जो उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।
हर प्रकार के आहार पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। लेकिन सभी आहार में हर तरह के पोषक तत्व नहीं होते हैं। इसीलिए अगर आप अपने शिशु को केवल एक ही तरह का आहार हर दिन खिलाएंगे तो आपके शिशु को एक ही प्रकार का पोषक तत्व हर दिन मिलेगा लेकिन आपका शिशु अन्य प्रकार के पोषक तत्वों से वंचित रह जाएगा।
शिशु के शरीर को कई प्रकार की पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है जिन की पूर्ति तभी हो सकती है अगर शिशु को आप हर तरह के आहार खिला रहे हैं। इसके लिए सबसे बेहतर विकल्प यह है कि आप अपने शिशु को मौसम के अनुरूप उपलब्ध फल और सब्जियों को उसके आहार में सम्मिलित करें।
सन 2015-16 मैं भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 4 (एनएफएचएस4) के आंकड़ों के अनुसार 6 महीने से लेकर 2 साल तक के बच्चों मे 11.6 प्रतिशत शहरी बच्चे और 8.8 ग्रामीण बच्चों को ही सभी प्रकार के पोषक तत्व मिल पाते हैं जो उनके सही विकास के लिए आवश्यक है।

यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। इसका मतलब यह है कि अधिकांश मां-बाप जो यह समझते हैं कि उनके बच्चों को सभी पोषक तत्व मिल रहे हैं वास्तव में ऐसा नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि हर 10 में से मात्र एक ही बच्चे को सही मायने में सभी पोषक युक्त आहार मिल पाता है।
यह आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। यानी कि हम अपने चारों तरफ जो भी स्वस्थ बच्चों को देखते हैं वह और भी बेहतर कर सकते हैं अगर उनके आहार को सही मायने में पोस्टिक बना दिया जाए तो।

जब बच्चों को हम भरपेट खाना खिलाते हैं तो उस अनाज से शिशु को भरपूर कैलोरी मिलता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शिशु को भरपूर पोषण भी मिल रहा है। फल और सब्जियों में अनाज की तुलना में कैलोरी बहुत थोड़ा सा होता है लेकिन पोषक तत्वों की मात्रा अनाज की तुलना में बहुत ज्यादा होता है।
फल और सब्जियों में 90% से ज्यादा पानी और फाइबर होता है। लेकिन फिर भी अनाज तुलनात्मक रूप में इनमें ज्यादा पोषक तत्व होते हैं जो शिशु के शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं, शारीरिक विकास में सहयोग करते हैं, शिशु के बौद्धिक स्तर को बढ़ाते हैं।

शिशु को दूध के साथ साथ ऐसे आहार दें जिन में प्रचुर मात्रा में
जब शिशु के शरीर को उचित मात्रा में माइक्रोन्यूटियंट नहीं मिलता है तो न केवल उसका बौद्धिक विकास रुक जाता है बल्कि बच्चे में निमोनिया का खतरा भी बढ़ जाता है, उसे गंभीर डायरिया की समस्या हो सकती है तथा शिशु के शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो सकती है।
शिशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार शिशु के लिए उसके प्रथम 1000 दिन बहुत महत्वपूर्ण है और यह उसकी बाकी के जिंदगी के शारीरिक स्वास्थ्य को निर्धारित करते हैं। इस समय शिशु को जो पोषक तत्व उसके आहार से मिलते हैं वह उसकी भविष्य के लिए एक मजबूत नींव का काम करता है।

अनेक प्रकार की पोषक तत्वों से युक्त आहार जब शिशु को प्रदान किया जाता है तो उसका शारीरिक विकार, सोचने और विश्लेषण करने की बौद्धिक क्षमता, शरीर की बीमारियों से लड़ने की योग्यता विकसित होती है। इस दौरान अगर शिशु को सही पोषण ना मिले तो उसके दिमाग का विकास ठीक तरह से नहीं होता है और सारी जिंदगी शारीरिक और बौद्धिक योग्यता के मामले में दूसरे बच्चों से पीछे रह जाते हैं।
भारत में हर साल कुपोषण की वजह से लाखों बच्चे मौत के शिकार होते हैं। भारत में कुपोषण की यह स्थिति दुनिया के कई देशों से ज्यादा खराब है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़ों के अनुसार हर दिन दुनिया भर में करीब 15000 बच्चे कुपोषण की वजह से मृत्यु को प्राप्त होते हैं। कुपोषण से शिशु मृत्यु कि दो वजह है।

पहला तो कुपोषण की वजह से शिशु का रोग प्रतिरोधक तंत्र बहुत कमजोर हो जाता है जिस वजह से शिशु की हर प्रकार के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है। चुकी शिशु का शरीर संक्रमण से लड़ने में सक्षम नहीं होता है, एक बार संक्रमित होने पर शिशु फिर ठीक नहीं हो पाता है और संक्रमण की वजह से अत्यधिक बीमार हो होकर मृत्यु प्राप्त करता है।
बच्चों को जब सभी प्रकार के पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तो ऐसे बच्चों में एनीमिया की समस्या भी सबसे ज्यादा देखी गई है। बच्चों में एनीमिया की वजह शरीर में आयरन की कमी है। एनीमिया होने पर शिशु का शरीर ठीक प्रकार से ऑक्सीजन को अवशोषित नहीं कर पाता है जिसकी वजह से शिशु का दिमाग प्रभावित होता है और आगे चलकर शिशु किसी भी कार्य में एकाग्रता करने में असफल होता है।
शिक्षा या करियर में सफलता पाने के लिए दिमाग की एकाग्रता बहुत आवश्यक है और जो बच्चे ध्यान केंद्रित करने में असफल होते हैं वह आगे चलकर पढ़ाई और अपने करियर में असफल देखे गए हैं।
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बहुत सारे माँ बाप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की क्या वे अपने बच्चे को UHT milk 'दे सकते हैं' या 'नहीं'। माँ बाप का अपने बच्चे के खान-पान को लेकर परेशान होना स्वाभाविक है और जायज भी। ऐसा इस लिए क्यूंकि बच्चों के खान-पान का बच्चों के स्वस्थ पे सीधा प्रभाव पड़ता है। कोई भी माँ बाप अपने बच्चों के स्वस्थ के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता है।
जब शिशु हानिकारक जीवाणुओं या विषाणु से संक्रमित आहार ग्रहण करते हैं तो संक्रमण शिशु के पेट में पहुंचकर तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और शिशु को बीमार कर देते हैं। ठीक समय पर इलाज ना मिल पाने की वजह से हर साल भारतवर्ष में हजारों बच्चे फूड प्वाइजनिंग की वजह से मौत के शिकार होते हैं। अगर समय पर फूड प्वाइजनिंग की पहचान हो जाए और शिशु का समय पर सही उपचार मिले तो शिशु 1 से 2 दिन में ही ठीक हो जाता है।
शिशु के जन्म के पश्चात मां को अपनी खान पान (Diet Chart) का बहुत ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय पौष्टिक आहार मां की सेहत तथा बच्चे के स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी है। अगर आपके शिशु का जन्म सी सेक्शन के द्वारा हुआ है तब तो आपको अपनी सेहत का और भी ज्यादा ध्यान रखने की आवश्यकता। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद कौन सा भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर है।
जब तक आपका शिशु पूर्ण रूप से स्तनपान पर निर्भर है तब तक आप को अपने भोजन का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। कुछ आहार ऐसे हैं जो आपके शिशु के विकास में बाधा डाल सकते हैं। वहीं कुछ ऐसे आहार हैं जो आप के स्तनपान को आपके शिशु के लिए अरुचि पूर्ण बना सकते हैं। तथा कुछ ऐसे भी आ रहे हैं जिन्हें स्तनपान के दौरान ग्रहण करने से आपकी शिशु को एलर्जी तक हो सकती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि स्तनपान के दौरान आपको कौन-कौन से आहारों से दूर रहने की आवश्यकता है। Foods you should avoid during breastfeeding.
बहुत आसन घरेलु तरीकों से आप अपने शिशु का वजन बढ़ा सकती हैं। शिशु के पहले पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये ऐसा समय है जब शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास अपने चरम पे होता है। इस समय शिशु के विकास के रफ़्तार को ब्रेक लग जाये तो यह क्षति फिर जीवन मैं कभी पूरी नहीं हो पायेगी।
बदलते मौसम में शिशु को जुकाम और बंद नाक की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन अच्छी बात यह है की कुछ बहुत ही सरल तरीकों से आप अपने बच्चों की तकलीफों को कम कर सकती हैं और उन्हें आराम पहुंचा सकती हैं।
शिशु की खांसी एक आम समस्या है। ठंडी और सर्दी के मौसम में हर शिशु कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता है। इसके लिए डोक्टर के पास जाने की अव्शाकता नहीं है। शिशु खांसी के लिए घर उपचार सबसे बेहतरीन है। इसका कोई side effects नहीं है और शिशु को खांसी, सर्दी और जुकाम से रहत भी मिल जाता है।
शिशु में जुखाम और फ्लू का कारण है विषाणु (virus) का संक्रमण। इसका मतलब शिशु को एंटीबायोटिक देने का कोई फायदा नहीं है। शिशु में सर्दी, जुखाम और फ्लू के लक्षणों में आप अपने बच्चे का इलाज घर पे ही कर सकती हैं। सर्दी, जुखाम और फ्लू के इन लक्षणों में अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं।
टाइफाइड कन्जुगेटेड वैक्सीन (TCV 1 & TCV2) (Typhoid Conjugate Vaccine in Hindi) - हिंदी, - टाइफाइड का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
Ambroxol Hydrochloride - सर्दी में शिशु को दिया जाने वाला एक आम दावा है। मगर इस दावा के कुछ घम्भीर (side effects) भी हैं। जानिए की कब Ambroxol Hydrochloride को देना हो सकता है खतरनाक।
इस यौजना का मुख्या उद्देश्य है की इधर-उधर फेंके गए बच्चों की मृत्यु को रोकना| समाज में हर बच्चे को जीने का अधिकार है| ऐसे में शिशु पालना केंद्र इधर-उधर फेंके गए बच्चों को सुरख्षा प्रदान करेगा|
जब बच्चे इस तरह के खेल खेलते हैं तो उनके हड्डीयौं पे दबाव पड़ता है - जिसकी वजह से चौड़ी और घनिष्ट हो जाती हैं। इसका नतीजा यह होता है की इन बच्चों की हड्डियाँ दुसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा मजूब हो जाती है।
माँ का दूध बच्चे की भूख मिटाता है, उसके शरीर की पानी की आवश्यकता को पूरी करता है, हर प्रकार के बीमारी से बचाता है, और वो सारे पोषक तत्त्व प्रदान करता है जो बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए और अच्छे शारारिक विकास के लिए जरुरी है। माँ का दूध बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मेनिंगोकोकल वैक्सीन (Meningococcal Vaccination in Hindi) - हिंदी, - मेनिंगोकोकल का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
सब्जियौं में ढेरों पोषक तत्त्व होते हैं जो बच्चे के अच्छे मानसिक और शारीर विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब शिशु छेह महीने का हो जाये तो आप उसे सब्जियों की प्यूरी बना के देना प्रारंभ कर सकती हैं। सब्जियों की प्यूरी हलकी होती है और आसानी से पच जाती है।
बच्चों में पेट दर्द का होना एक आम बात है। और बहुत समय यह कोई चिंता का कारण नहीं होती। परन्तु कभी कभार यह गंभीर बीमारियोँ की और भी इशारा करती। पेट का दर्द एक से दो दिनों के अंदर स्वतः ख़तम हो जाना चाहिए, नहीं तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
छोटे बच्चों के लिए शहद के कई गुण हैं। शहद बच्चों को लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शदह मैं पाए जाने वाले विटामिन और मिनिरल जखम को जल्द भरने में मदद करते है, लिवर की रक्षा करते हैं और सर्दियों से बचते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया के लगभग आधे बच्चों को किसी न किसी प्रकार की एलर्जी होगा। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है, उन बच्चों में इस रोग की संभावना अधिक होती है क्यों कि ये बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें सबसे आम दमा, एक्जिमा, पित्ती (त्वचा पर चकत्ते) और भोजन से संबंधित हैं।
टाइफाइड जिसे मियादी बुखार भी कहा जाता है, जो एक निश्चित समय के लिए होता है यह किसी संक्रमित व्यक्ति के मल के माध्यम से दूषित वायु और जल से होता है। टाइफाइड से पीड़ित बच्चे में प्रतिदिन बुखार होता है, जो हर दिन कम होने की बजाय बढ़ता रहता है। बच्चो में टाइफाइड बुखार संक्रमित खाद्य पदार्थ और संक्रमित पानी से होता है।