Category: बच्चों की परवरिश
By: Kidhealthcenter Team | ☺12 min read
बच्चे या तो रो कर या गुस्से के रूप में अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन बच्चे अगर हर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगे तो आगे चलकर यह बड़ों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। मां बाप के लिए आवश्यक है कि वह समय रहते बच्चे के गुस्से को पहचाने और उसका उपाय करें।

अधिकांश मां बाप अपने बच्चे के गुस्से को सफलतापूर्वक कंट्रोल नहीं कर पाते हैं जिस वजह से बाद में उन्हें खुद पर भी गुस्सा आता है। लेकिन जब बड़ों को गुस्सा आता है तो या तो मैं उसे जाहिर करते हैं या फिर उसे नियंत्रित करते हैं। बच्चों कोई ऐसा करने नहीं आता है। उन्हें जब गुस्सा आता है तो वह रोने सीखने लगते हैं, या फिर जमीन पर लेटने लगते हैं। ऐसे समय में बच्चे की गुस्से को नियंत्रित करना आसान काम नहीं है।
लेकिन थोड़ी समझदारी और थोड़ी सूझ-बूझ के साथ मां बाप अपने बच्चे के गुस्से को कुछ आसान तरीकों से बड़े ही प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
एक प्रकार का नकारात्मक भाव है जिसकी वजह से जब शिशु को गुस्सा आता है तो उसकी सकारात्मक सोच लगभग समाप्त हो जाती है। इस वजह से गुस्से के प्रभाव में बच्चों से सही और गलत में भेद समझने की उपेक्षा करना व्यर्थ है। एहन पर आप को थोड़ी चतुराई से काम लेना पड़ेगा। अपने बच्चे को यह बताने की बजाये की वो जो कर रहा है वो गलत है, आप उसके ध्यान को कहीं और केन्द्रित करने की कोशिश करें।

जब आप का बच्चा बहुत रो रहा है, या बहुत गुस्सा कर रहा है तो उसे समझाने की बजाएं उसके ध्यान को कहीं और बाँटिये जैसे की कोई नया खिलौना या कोई भी वस्तु जो उसके ध्यान को तुरंत आकर्षित कर ले। बच्चे को चुप कराने का यह प्रमाणित तरीका। अगर आप का बच्चा रोये या गुस्सा करे और शांत ना हो तो आप उसे घर के बाहर कुत्ता दिखने ले। इस दौरान आप उससे कुछ-कुछ बात या हंसी मजाक भी करते रहें। जब आप उससे तरह तरह की शकलें बना-बना के बातें करेंगी तो आप का बच्चे का गुस्सा शांत हो जायेगा, या हो सकता है की वो मुस्कुराने भी लगे।
कुछ समय बाद जब आप के बच्चे का गुस्सा शांत हो जायेगा तो आप उसके साथ खेलते-खेलते या उसके साथ बैठ कर उसे सही और गलत में अंतर बताक सकते हैं। गुस्सा शांत हो जाने की वजह से आप का बच्चा आप की बात को तार्किक तरीके से समझने की कोशिश करेगा।
अगर आप का बच्चा आप से ऊँची आवाज में बात करता है तो इसका मतलब यह नहीं है की आप का बच्चा आप का आदर नहीं करता है। बात इतनी सी है की छोटे बच्चे को यह नहीं पता होता है की अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति वो किस तरह से करे।

जन्म के बाद शिशु रो - रो कर अपनी माँ का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता है। माँ का ध्यान ना मिलने पे बच्चा चीख चीख रोने लगता है। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होते है, वो यही समझता है की ऊँची आवाज में बात करने से ही उसकी बात सुनी जाएगी या वो दूसरों के ध्यान को आकर्षित कर सकता है।
आप को अपने बच्चे को प्यार से समझाना पड़ेगा की अपनी बात रखने के लिए उसे चीखने उया गुस्सा करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन आप अपने बच्चे को ये बात तब समझाएं जब उसका गुस्सा शांत हो जाये। शांत मन से आप का बच्चा आप की बात को सकारात्मक तरीके से लेगा।
आपको सुनकर शायद ताजुब लगे कि आपका व्यवहार भी इस बात पर निर्भर करता है कि एक नाराज बच्चा कितना जल्दी शांत हो जाता है या फिर कितना ज्यादा और नाराज होता है।
कुछ अभिभावक थोड़ी सी इधर-उधर की बातें करके तुरंत ही बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित कर लेते हैं। वहीं कुछ अभिभावकों का व्यवहार इस तरह का होता है कि बच्चों का स्वभाव और ज्यादा उग्र हो जाता है।
इसलिए यह आवश्यक है कि आप चतुराई से कार्य करें ताकि आपका शिष्य जल्दी से शांत हो जाए। आप इधर उधर की बातें करके बच्चों का ध्यान आसानी से भटका सकती है। इसीलिए अगर बच्चे नाराज हो तो बिल्कुल ही दूसरे मुद्दों की विषय में बात करने लगे उससे। ऐसे विषयों के बारे में जिनमें उनका मन लगता है या जो उनके हृदय को खुश कर दे।

लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि जब बच्चे नाराज हो उस समय अगर आप भी सीखेंगे और चिल्ला आएंगे तो स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। बच्चे चाहे कितना भी नाराज क्यों ना हो - आपके लिए बेहतर यह होगा कि आप उनसे लड़ने से बचें। एक बार जब बच्चे शांत हो जाए तो कुछ घंटों के बाद आप उन्हें सही और गलत में भेद करना सिखा सकते हैं। जब बच्चे शांत होते हैं, तब वे आपकी बात को बेहतर तरीके से समझने में सक्षम होते हैं। जब बच्चे शांत होते हैं तब इस बात की संभावना कम होती है कि वह आपसे कर करें - और अगर वे तर्क करते भी हैं तो आप उनको आसानी से समझा सकती है। लेकिन जब बच्चे नाराज हो तब उन्हें समझाना मुश्किल होता है। क्योंकि उस समय वे कुछ भी समझना नहीं चाहते हैं।
कई बार अपने जीवन की व्यस्तता के कारण मां-बाप बच्चों पर समुचित ध्यान नहीं दे पाते हैं - ऐसी स्थिति में कई बार बच्चे मां-बाप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भी इस प्रकार का व्यवहार करते हैं।

उन्हें लगता है कि जब भी चिल्लाते हैं या फिर जब रोते हैं तो मां-बाप का पूरा ध्यान उनकी तरफ जाता है। चाहे आप अपने जीवन में कितनी भी व्यस्त क्यों ना हो, हर दिन अपने बच्चों के लिए कुछ समय निकालकर रखें। यह समय ऐसा होना चाहिए जब आप उनके साथ बातें करें या फिर उनके साथ थोड़ा खेलें जिससे बच्चों को यह लगे कि उन्हें मां-बाप का पूरा ध्यान मिल रहा है।
अधिकांश मामलों में दैनिक जीवन तथा आसपास के माहौल का बच्चों के व्यवहार पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए स्कूल का और ट्यूशन का प्रेशर कई बार बच्चों को डिप्रेशन का शिकार बना देता है। कुछ बच्चों में एग्जाम में कम नंबर लाना या फेल हो जाने का डर या फिर इस वजह से अपमान का सामना करने की वजह से भी बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। कई बार बच्चे शिक्षकों के ठीक व्यहवार ना होने की वजह से काफी दबाव में आ जाते हैं और उनके व्यवहार में इस प्रकार का परिवर्तन आता है जो उनके उग्र स्वभाव में झलकता है।

जितना हो सके आप अपने बच्चों को इन सभी प्रकार के डिप्रैस कर देने वाले माहौल से अपने बच्चों को बचाने की कोशिश करें। इससे आपके बच्चे शांत रहेंगे, उनके कोमल मन पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा, तथा उनके अंदर सकारात्मक सोच का विकास होगा। उन्हें इस बात का एहसास होने लगेगा कि उनके जीवन में कोई भी बात इतनी गंभीर नहीं है कि उन्हें अपमान झेलना पड़ेगा या डांट का सामना करना पड़ेगा।
हम यहां पर आपको पांच ऐसी बातें बना बताएंगे जिनका अगर आप ध्यान रखें तो आपके बच्चे गुस्सा कम करेंगे और उनका उग्र स्वभाव शांत होगा:

जाने अनजाने में आप कभी भी अपने बच्चों की तुलना अपने बचपन से ना करें और ना ही उनके स्वभाव की तुलना दूसरे बच्चों से करें। जब बच्चों का स्वभाव उग्र से भरा होता है तो उस वक्त भी केवल आक्रोशित ही नहीं होते हैं वरन दुखी भी होते हैं। ऐसे समय में वे चाहते हैं कि कोई उनसे हमदर्दी बढ़ते और उनके मनोभावों को समझे। बच्चों के साथ कभी भी अपने बकवास को खराब ना करें और इस प्रकार से प्रयास करें कि बच्चे आपके और करीब आए। अगर आपके बच्चे कुछ गलत करें तो आप उन्हें प्यार से समझाएं।

बच्चों के उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए मां बाप को काफी धैर्य और संयम की आवश्यकता है। जब बच्चे बेहद उग्र स्वभाव में हो तो आप अपने स्वभाव को उग्र होने से बचाएं। अगर आपको स्थिति नियंत्रण से बाहर लगे तो कुछ समय के लिए कहीं और चले जाएं और मन शांत होने पर वापस आए और बच्चों के ध्यान को कहीं और बटाने का प्रयास करें।
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बच्चों को उनके उम्र और वजन के अनुसार हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे संतुलित आहार के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों को 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरुरत पड़ती है। किशोर अवस्था के बच्चों को हर दिन 1300 मिग्रा, तथा व्यस्क और बुजुर्गों को 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम आहारों के माध्यम से लेने की आवश्यकता पड़ती है।
शिशु के जन्म के बाद यानी डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या देखी गई है। हालांकि बाजार में बाल झड़ने को रोकने के लिए बहुत तरह की दवाइयां उपलब्ध है लेकिन जब तक महिलाएं अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही हैं तब तक यह सलाह दी जाती है कि जितना कि जितना ज्यादा हो सके दवाइयों का सेवन कम से कम करें। स्तनपान कराने के दौरान दवाइयों के सेवन से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
अक्सर गर्भवती महिलाएं इस सोच में रहती है की उनके शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी में से क्या बेहतर है। इस लेख में हम आप को दोनों के फायेदे और नुक्सान के बारे में बताएँगे ताकि दोनों में से बेहतर विकल्प का चुनाव कर सकें जो आप के लिए और आप के शिशु के स्वस्थ के लिए सुरक्षित हो।
सभी बचों का विकास दर एक सामान नहीं होता है। यही वजह है की जहाँ कुछ बच्चे ढाई साल का होते होते बहुत बोलना शुरू कर देते हैं, वहीँ कुछ बच्चे बोलने मैं बहुत समय लेते हैं। इसका मतलब ये नहीं है की जो बच्चे बोलने में ज्यादा समय लेते हैं वो दिमागी रूप से कमजोर हैं, बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है की उन्हें शारीरिक रूप से तयार होने में थोड़े और समय की जरूरत है और फिर आप का भी बच्चा दुसरे बच्चों की तरह हर प्रकार की छमता में सामान्य हो जायेगा।आप शिशु के बोलने की प्रक्रिया को आसन घरेलु उपचार के दुवारा तेज़ कर सकती हैं।
सांस के जरिये भाप अंदर लेने से शिशु की बंद नाक खुलने में मदद मिलती है। गर्मा-गर्म भाप सांस के जरिये अंदर लेने से शिशु की नाक में जमा बलगम ढीला हो जाता है। इससे बलगम (कफ - mucus) के दुवारा अवरुद्ध वायुमार्ग खुल जाता है और शिशु बिना किसी तकलीफ के साँस ले पाता है।
कुछ साधारण से उपाय जो दूर करें आप के बच्चे की खांसी और जुकाम को पल में - सर्दी जुकाम की दवा - तुरंत राहत के लिए उपचार। बच्चों की तकलीफ को दूर करने के लिए बहुत से आयुर्वेदिक घरेलु उपाय ऐसे हैं जो आप के किचिन (रसोई) में पहले से मौजूद है। बस आप को ये जानना है की आप उनका इस्तेमाल किस तरह कर सकती हैं अपने शिशु के खांसी को दूर करने के लिए।
शिशु को 5 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला, डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
अब तक ३०० बच्चों की जन ले चूका है हत्यारा ब्लू-व्हेल गेम। अगर आप ने सावधानी नहीं बाराती तो आप का भी बच्चा हो सकता है शिकार। ब्लू-व्हेल गेम खलता है बच्चों के मानसिकता से। बच्चों का दिमाग बड़ों की तरह परिपक्व नहीं होता है। इसीलिए बच्चों को ब्लू-व्हेल गेम से सुरक्षित रखने के लिए माँ-बाप की समझदारी और सूझ-बूझ की भी आवश्यकता पड़ेगी।
जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।
हमें आपने बच्चों को मातृभूमि से प्रेम करने की शिक्षा देनी चाहिए तथा उनके अंदर ये भावना पैदा करनी चाहिए की वे अपने देश के प्रति समर्पित रहें और ये सोचे की हमने अपने देश के लिए क्या किया है। वे यह न सोचे की देश ने उनके लिए क्या किया है। Independence Day Celebrations India गणतंत्र दिवस भारत नरेन्द्र मोदी 15 August 2017
आज के दौर के बच्चे बहुत egocentric हो गए हैं। आज आप बच्चों को डांट के कुछ भी नहीं करा सकते हैं। उन्हें आपको प्यार से ही समझाना पड़ेगा। माता-पिता को एक अच्छे गुरु की तरह अपने सभी कर्तव्योँ का निर्वाह करना चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी उन्ही कर्तव्योँ में से एक है।
Benefits of Breastfeeding for the Mother - स्तनपान करने से सिर्फ बच्चे को ही नहीं वरन माँ को भी कई तरह की बीमारियोँ से लड़ने का ताकत मिलता है। जो महिलाएं अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन कैंसर और गर्भाशय का कैंसर होने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।
जन्म के बाद गर्भनाल की उचित देखभाल बहुत जरुरी है। अगर शिशु के गर्भनाल की उचित देखभाल नहीं की गयी तो इससे शिशु को संक्रमण भी हो सकता है। नवजात शिशु में संक्रमण से लड़ने की छमता नहीं होती है। इसीलिए थोड़ी सी भी असावधानी बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
कुछ बातों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चे के बुद्धिस्तर को बढ़ा सकते हैं और बच्चे में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं। जैसे ही उसके अंदर आत्मविश्वास आएगा उसकी खुद की पढ़ने की भावना बलवती होगी और आपका बच्चा पढ़ाई में मन लगाने लगेगा ,वह कमज़ोर से तेज़ दिमागवाला बन जाएगा। परीक्षा में अच्छे अंक लाएगा और एक साधारण विद्यार्थी से खास विद्यार्थी बन जाएगा।
अगर आप का शिशु 6 महिने का हो गया है और आप सोच रही हैं की अपने शिशु को क्या दें खाने मैं तो - सूजी का खीर सबसे बढ़िया विकल्प है। शरीर के लिए बेहद पौष्टिक, यह तुरंत बन के त्यार हो जाता है, शिशु को इसका स्वाद बहुत पसंद आता है और इसे बनाने में कोई विशेष तयारी भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
हर प्रकार के आहार शिशु के स्वस्थ और उनके विकास के लिए ठीक नहीं होता हैं। जिस तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए सही तो उसी तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए बुरे भी होते हैं। बच्चों के आहार को ले कर हर माँ-बाप परेशान रहते हैं।क्योंकि बच्चे खाना खाने में बहुत नखड़ा करते हैं। ऐसे मैं अगर बच्चे किसी आहार में विशेष रुचि लेते हैं तो माँ-बाप अपने बच्चे को उसे खाने देते हैं, फिर चाहे वो आहार शिशु के स्वस्थ के लिए भले ही अच्छा ना हो। उनका तर्क ये रहता है की कम से कम बच्चा कुछ तो खा रहा है। लेकिन सावधान, इस लेख को पढने के बाद आप अपने शिशु को कुछ भी खिलने से पहले दो बार जरूर सोचेंगी। और यही इस लेख का उद्देश्य है।
बच्चो में कुपोषण का मतलब भूख से नहीं है। हालाँकि कई बार दोनों साथ साथ होता है। गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को उसकी बढ़ने के लिए जरुरी पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते। बच्चों को कुपोषण से बचने के लिए हर संभव प्रयास जरुरी हैं क्योंकि एक बार अगर बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाये तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता।
शोध (research studies) में यह पाया गया है की जेनेटिक्स सिर्फ एक करक, इसके आलावा और बहुत से करक हैं जो बढ़ते बच्चों के लम्बाई को प्रभावित करते हैं। जानिए 6 आसान तरीके जिनके द्वारा आप अपने बच्चे को अच्छी लम्बी पाने में मदद कर सकते हैं।
न्यूमोनिया फेफड़ो पर असर करने वाला एक ऐसा संक्रमण है जिसकी वजह से फेफड़ो में सूजन होती है और उसमें एक प्रकार का गीला पन आ जाता है, जिससे श्वास नली अवरुद्ध हो जाती है और बच्चे को खाँसी आने लगती है। यह बीमारी सर्दी जुकाम का बिगड़ा हुआ रूप है जो आगे चल कर जानलेवा भी साबित हो सकती है। यह बीमारी जाड़े के मौसम में अधिकतर होती है।