Category: बच्चों का पोषण
By: Editorial Team | ☺8 min read
हर मां बाप अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते हैं कि अपने बच्चों को वह सभी आहार प्रदान करें जिससे उनके बच्चे के शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व मिल सके। पोषण से भरपूर आहार शिशु को सेहतमंद रखते हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि भारत में शिशु के भरपेट आहार करने के बावजूद भी वे पोषित रह जाते हैं। इसीलिए अगर आप अपने शिशु को भरपेट भोजन कराते हैं तो भी पता लगाने की आवश्यकता है कि आपके बच्चे को उसके आहार से सभी पोषक तत्व मिल पा रहे हैं या नहीं। अगर इस बात का पता चल जाए तो मुझे विश्वास है कि आप अपने शिशु को पोषक तत्वों से युक्त आहार देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
साल 2015 और 2016 में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों इस बात को बताते हैं कि कुपोषण की समस्या सबसे ज्यादा 6 महीने से लेकर 23 महीने तक की उम्र के बच्चों में पाई गई। यानी कि कुपोषण की दृष्टि से शिशु के प्रथम 2 साल सबसे महत्वपूर्ण हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि शिशु के प्रथम 2 साल उसके विकास की दृष्टि से भी सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इन 2 सालों में बच्चों का शारीरिक विकास उनके आने वाले जीवन में उनके डील-डौल को निर्धारित करता है। कुपोषण के शिकार बच्चे जिंदगी भर अपने औसत लंबाई थे कम रह जाते हैं या अन्य बच्चों की तुलना में शारीरिक दृष्टि से कमजोर पाए जाते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की तरफ से जारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं क्योंकि अगर उन आंकड़ों का अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि हर 10 में से एक बच्चे को सही पोषक तत्व से भरपूर डाइट नहीं मिल पा रहा है। यह आंकड़े मत चौकानेवाले नहीं परंतु चिंताजनक है।
पोषक तत्व और कैलोरी दोनों एक ही चीज नहीं है। कैलोरी शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है जिससे हम शारीरिक क्रिया कलाप कर सकें। वहीं पोषक तत्व शरीर को स्वस्थ रखने तथा शरीर के विकास में योगदान देते हैं। शिशु का शरीर विकास की प्रक्रिया में होता है और इस वजह से उसके शरीर को सबसे ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। जिस विकास प्रक्रिया से शिशु का शरीर बचपन में गुजरता है उस विकास प्रक्रिया से उसका शरीर फिर कभी जिंदगी भर नहीं गुजरेगा।
यानी पोषक तत्वों की कमी से बचपन में शिशु में जो विकास नहीं हो पाता है शिशु के बड़ा होने पर अगर पोषक तत्व मिले भी तो वह विकास दोबारा नहीं हो पाएगा। यानी कुछ विकास ऐसे होते हैं जो सिर्फ बचपन में ही होते हैं इसीलिए शिशु के प्रथम 2 वर्ष में यह जरूरी है कि उसे वह सारे पोषक तत्व मिले जो शारीरिक और मानसिक विकास की जरूरी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे इस बात का उजागर हुआ कि छह से आठ महीने के शिशुओं को ठोस या सेमी ठोस आहार के साथ मां का दूध मिलने का प्रतिशत भी बहुत अच्छा नहीं है। शहर में जन्मे मात्र 50.1 प्रतिशत बच्चे को ही छह से आठ महीने के दौरान सभी पोषक तत्व मिल पा रहे हैं - वही गांव में जन्मे शिशु की स्थिति और भी चिंताजनक है। गांव और देहात में जन्मे मात्र 39.9 फीसद बच्चों को ही उचित विकास के लिए पोषक तत्व मिल पा रहे हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े इस बात को बताते हैं की 29.1 फीसद शहरी बच्चों और 38.3 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों का वजन औसत से कम पाया गया है। यह आंकड़े पर्याप्त भारत में शिशुओं के पोषण की तस्वीर को उजागर करने के लिए। बच्चों में पोषण की कमी का सबसे बड़ा कारण यह है की हम ऐसे आहार को खिलाने में ज्यादा विश्वास करते हैं जिम में भरपूर कैलोरी होती है मगर पोषण पर्याप्त नहीं होता है।
उदाहरण के लिए चावल। लेकिन अगर बच्चों में पोषण की कमी को पूरा करना है तो उन्हें आहार में सब्जी और फल को खिलाने में ज्यादा जोर देना पड़ेगा। सब्जी और फल में कैलोरी बहुत ज्यादा नहीं होती है लेकिन इनमें पोषक तत्वों का अंबार होता है। अगर बच्चे आहार में सब्जी और फल को सम्मलित नहीं कर रहे हैं तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास कितना होगा इसका अंदाजा लगा सकती है।
यह बहुत दुखद बात है कि यूनिसेफ की रिपोर्ट इस बात को बताती है विकासशील देशों में 5 साल से कम उम्र के 40% बच्चे एनीमिया की शिकार। इसका वजह यह है कि अभिभावक जब बच्चों को ठोस आहार देना शुरू करते हैं तो वह बच्चे के शारीरिक विकास पर ज्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन भारत में जागरूकता की आवश्यकता है ताकि सभी मां बाप इस बात को समझ सकें कि शिशु के मानसिक विकास के लिए पोषक तत्व विशिष्ट माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण है।
शिशु के शुरुआती कुछ वर्षों में आयोडीन जो कि एक पोषक तत्व, उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। आयोडीन शुरुआती दौर में शिशु के दिमागी विकास के लिए बेहद जरूरी है। आपको इस बात को जानकर हैरानी होगा कि पूरी दुनिया में 30% जनसंख्या आयोडीन की कमी से जूझ रही है। विटामिन ए दूसरा पोषक तत्व है जिसकी कमी बच्चों में आम पाई गई है।
6 महीने की उम्र से ही जब शिशु में ठोस आहार की शुरुआत की जाती है तब मां के दूध के साथ साथ बच्चे को ऐसे आहार देने की आवश्यकता है जिसमें प्रचुर मात्रा में मैक्रोन्यूटियंट जैसे कि काबरेहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और माइक्रोन्यूटियंट जैसे विटामिन व मिनरल शामली हों देना चाहिए। जब बच्चे की आहार में भरपूर मात्रा में मैक्रोन्यूटियंट और माइक्रोन्यूटियंट मिलता है तो बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास दोनों ही बहुत अच्छी तरीके से होता है।
यह इस बात को भी समझने की आवश्यकता है कि जब बच्ची को उसके हाथ से पोषक तत्व नहीं मिलता है तो केवल उसका मानसिक और शारीरिक विकास ही प्रभावित नहीं होता है - बल्कि - शिशु का रोग प्रतिरोधक तंत्र जिसे इम्यून सिस्टम भी कहते हैं - बुरी तरह से लड़खड़ा जाता है। जिन बच्चों में इम्यूनिटी कम पाई जाती है वे बच्चे आसानी से निमोनिया और डायरिया जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।
शिशु रोग विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं बच्चे के प्रथम 1000 दिन विकास की दृष्टि से बेहद खास है। उनके अनुसार शिशु के शुरुआती आगामी जिंदगी के आधार है। अगर इस दौरान बच्चे को पोषक तत्वों से युक्त आहार नहीं मिला तो उसका शारीरिक विकास, सोचने तथा याद करने की क्षमता, और व्यस्क होने पर उनकी बीमारी से लड़ने की क्षमता को सुनिश्चित करता है।
शिशु के जिंदगी के शुरुआत की पहले 1000 दिन मैं उसे सारे जरूरी पोषक तत्व ना मिले तो उसके शरीर को और दिमाग को क्षति पहुंचती है। इस क्षति की भरपाई जिंदगी भर नहीं हो सकती है ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे के दिमाग का 80% विकास शिशु के पहले 2 साल में ही हो जाता है।
कुपोषण मात्र विकास ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि तमाम बच्चों में मौत का कारण भी बनता है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण की वजह पूरी दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के करीब 15,000 बच्चों की हर रोज मृत्यु होती है। इसकी वजह यह है कि पोषक तत्वों की कमी की वजह से 5 साल से कम उम्र के बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी मजबूत नहीं होती है जिसकी वजह से यह बच्चे कई प्रकार की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जिनसे उनकी मृत्यु हो जाती है।
इनमें अधिकांश बच्चों की मृत्यु एनीमिया की वजह से होती है। जब बच्चों को उनके हाथ से आयरन जैसे पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तो उनकी शरीर में खून की कमी हो जाती है या यूं कहें कि उनका शरीर पर्याप्त मात्रा में खून का निर्माण नहीं कर पाता है। शरीर में खून की कमी से शिशु को याद करने और एकाग्रता ना होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बचपन में जो बच्चे एनीमिया की शिकार होते हैं या जिन में आयरन की कमी पाई जाती है - वह बच्चे बड़े होकर एक तरह से अपना करियर नहीं बना पाते हैं तथा यह बच्चे पढ़ाई में भी कमजोर पाए जाते हैं।
बच्चे के शुरूआती जीवन में इस बात का ध्यान दें कि उसकी खोज आहार में पर्याप्त मात्रा में माइक्रोन्यूक्लियस जैसे कि विटामिन और मिनरल पर्याप्त मात्रा में हो। शिशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार माइक्रोन्यूटियंट की कमी खासतौर से आयोडीन, आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन ए और जिंक से हर घंटे करीब 300 बच्चे की मृत्यु। अगर आपको इस बात का शक है कि आपके बच्चे को पर्याप्त मात्रा में उसके हाथ से पोषक तत्व नहीं मिल पा रहा है तो आप अपने शिशु को सप्लीमेंटेशन और फूड फोर्टीफिकेशन दे सकती है - जैसे कि horlicks, complan और bournvita.