Category: शिशु रोग
By: Editorial Team | ☺5 min read
स्वस्थ शरीर और मजबूत हड्डियों के लिए विटामिन डी बहुत जरूरी है। विटामिन डी हमारे रक्त में मौजूद कैल्शियम की मात्रा को भी नियंत्रित करता है। यह हमारे शारीरिक विकास की हर पड़ाव के लिए जरूरी है। लेकिन विटामिन डी की सबसे ज्यादा आवश्यक नवजात शिशु और बढ़ रहे बच्चों में होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि छोटे बच्चों का शरीर बहुत तेजी से विकास कर रहा होता है उसके अंग विकसित हो रहे होते हैं ऐसे कई प्रकार के शारीरिक विकास के लिए विटामिन डी एक अहम भूमिका निभाता है। विटामिन डी की आवश्यकता गर्भवती महिलाओं को तथा जो महिलाएं स्तनपान कराती है उन्हें भी सबसे ज्यादा रहती है।

अधिकांश बच्चों को विटामिन डी की उपयुक्त मात्रा उनके आहार से नहीं मिल पाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत से आहार हैं जिन में विटामिन डी पाया जाता है लेकिन इतना नहीं होता कि शरीर की दैनिक आवश्यकता को पूरी कर सके।
बच्चों के कुछ आहार ऐसे होते हैं जिन्हें विटामिन डी से fortified किया जाता है। यह आहार शिशु के शरीर में विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए बेहतर है। बाजार में बिकने वाले बच्चों के अधिकरण आहार में विटामिन डी की उपयुक्त मात्रा मिलती है।
क्योंकि इन आहार का निर्माण ही बच्चों की पोषण से संबंधित आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है। बच्चों को जो फार्मूला दूध (formula milks) दिया जाता है उनमें भी विटामिन डी की उपयुक्त मात्रा होती है। स्तनपान के जरिए शिशु को मिलने वाले दूध में भी विटामिन डी की कुछ मात्रा पाई जाती है।

लेकिन एक बच्चे को सबसे ज्यादा विटामिन डी तब मिलता है जब उसकी त्वचा सूरज के किरणों के संपर्क में आती है। नवंबर से लेकर मार्च तक के महीने ऐसे होते हैं ठंड होने की वजह से बच्चों को घर के भीतर ही रखा जाता है। ऐसे में बच्चों के अंदर विटामिन डी की कमी होना स्वाभाविक है। ठंड के मौसम में जब बाहर का वातावरण अच्छा हो तो उस समय कुछ देर के लिए बच्चों को लेकर सुबह के वक्त बाहर बैठे बच्चों के शरीर को थोड़ा सूरज का धूप मिल सके।
विटामिन डी कई तरह से शिशु के शारीरिक विकास में योगदान देता है।
छोटे बच्चों को अधिकांश समय घरों के अंदर ही रखा जाता है इस वजह से स्वाभाविक है कि छोटे बच्चों के शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। कई बार हमें पता भी नहीं होता कि हमारे बच्चों में विटामिन डी की कमी हो रही है।

अब हम आपको बताने जा रहे हैं इस तरह से आप अपनी शिशु के शरीर में विटामिन डी की उपयुक्त मात्रा को सुनिश्चित कर सकती है। सबसे आसान तरीका तो यह है कि आप अपने शिशु को वह आहार ज्यादा खिलाना शुरू करें जिनमें विटामिन डी की मात्रा होती है।
प्रतिदिन 400 units Vitamin D डोज़ लगभग सभी उम्र के लोगों के लिए पर्याप्त है। गर्भवती महिलाएं तथा वह महिलाएं जो स्तनपान कराती हैं उनके लिए 400 units Vitamin D सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर स्तनपान कराने वाली महिला को कितनी मात्रा में हर दिन विटामिन डी नहीं मिलता है तो यह निश्चित तौर पर मान लीजिए कि उसके शरीर में विटामिन डी की कमी हो रही है।

शिशु को भी जन्म के तुरंत बाद उसके आहार से उसे विटामिन डी मिलना शुरू हो जाना चाहिए। अगर मां के शरीर में विटामिन डी की कमी है तो शिशु को सप्लीमेंट की सहारे विटामिन डी देने की आवश्यकता है।
हमने नीचे बताए गई चार्ट में शारीरिक अवस्था के अनुसार विटामिन डी की दैनिक आवश्यकता को दर्शाया है। ऐसा हमने सिर्फ जानकारी के लिए आपको। आपके लिए आवश्यक है कि विटामिन डी से संबंधित किसी भी प्रकार का सप्लीमेंट या दवा लेने से पहले, चाहे खुद के लिए या अपने शिशु के लिए, आप डॉक्टर की राय अवश्य ले लें।
Note: A dose of 10 micrograms of Vitamin D is 400 units.
बच्चों में विटामिन डी की कमी के लक्षण केवल एक डॉक्टर ही सही तरह से परीक्षण के जरिए बता सकता है। फिर भी हम आपको यहां पर कुछ लक्षण बता रहे हैं जो इस बात की तरफ इशारा करता है कि शरीर में विटामिन डी की कमी हो रही है।
बच्चों में विटामिन डी की कमी होना बहुत ही आम बात है लेकिन अधिकांश लोगों को इसके बारे में पता नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं होते हैं। इस वजह से यह जानना मुश्किल है बच्चों के शरीर में हो रही परेशानियां विटामिन डी की वजह से है या फिर किन्ही कारणों से है।

अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे में विटामिन डी की कमी हो रही तो आपको तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। डॉक्टर आपके शिशु के खून के जांच के द्वारा इस बात को स्पष्टता से बता सकता है कि आपके शिशु में विटामिन डी की कमी हो रही है या नहीं।
अच्छी बात यह है कि हो रही विटामिन डी की कमी को आसानी से पूरा किया जा सकता है। हमने जो आपको ऊपर आहार बताएं हैं बस आप को ही अपने बच्चों को देना शुरू कर दीजिए।

विटामिन डी की कमी से कुछ बच्चों में rickets तथा hypocalcaemia जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती है। यह ऐसी परिस्थितियां हैं जिनमें बच्चों का blood levels 25 nmol/L के निचले स्तर तक पहुंच जाता है। ऐसी अधिकांश मामलों में डॉक्टर प्रथम विटामिन डी के सप्लीमेंट से इलाज की शुरुआत करता है।
ऊपर बताए गए निर्धारित के अलावा मां-बाप को इस बात को भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि उनकी शिशु को आहार से पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिल पा रहा है या नहीं।
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केला पौष्टिक तत्वों का बेहतरीन स्रोत है। ये उन फलों में से एक हैं जिन्हे आप अपने बच्चे को पहले आहार के रूप में भी दे सकती हैं। इसमें लग-भग वो सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हैं जो एक व्यक्ति के survival के लिए जरुरी है। केले का प्यूरी बनाने की विधि - शिशु आहार (Indian baby food)
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
समय से पहले बच्चों में ठोस आहार की शुरुआत करने के फायदे तो कुछ नहीं हैं मगर नुकसान बहुत हैं| बच्चों के एलर्जी सम्बन्धी अधिकांश समस्याओं के पीछे यही वजह हैं| 6 महीने से पहले बच्चे की पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होती है|
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बचपन के समय का खान - पान और पोषण तथा व्यायाम आगे चल कर हड्डियों की सेहत निर्धारित करते हैं।
आइये अब हम आपको कुछ ऐसे आहार से परिचित कराते है , जिससे आपके बच्चे को कैल्शियम और आयरन से भरपूर पोषक तत्व मिले।
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बुखार होना शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना है। बुखार अपने आप मे कोई बीमारी नहीं है लेकिन एक अंतर्निहित बीमारी का एक लक्षण हो सकता है। यह एक संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ रही है।