Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺8 min read
विटामिन डी की कमी से शिशु का शारीर कई प्रकार के रोगों से ग्रसित हो सकता है। शिशु का शारीरिक विकास भी रुक सकता है। इसीलिए जरुरी है की शिशु के शारीर को पर्याप्त मात्र में विटामिन डी मिले। जब बच्चे बाहर धूप में खेलते हैं और कई प्रकार के पौष्टिक आहार ओं को अपने भोजन में सम्मिलित करते हैं तो उन के शरीर की विटामिन डी की आवश्यकता पूरी हो जाती है साथ ही उनकी शरीर को और भी अन्य जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं जो शिशु को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है।

ठंड के दिनों में जब कई कई दिनों तक सूरज नहीं निकलता है और बाहर का तापमान बहुत घट जाता है तब यह संभव नहीं होता कि बच्चों को बाहर खेलने दिया जाए - तो जाहिर है सूरज की रोशनी से उनके शरीर में बनने वाला विटामिन डी का स्तर घट जाता है।
साथ ही अगर शिशु के भोजन में ऐसे आहारों की कमी है जिनसे शरीर को विटामिन डी मिलता है तो भी शिशु के शरीर में विटामिन डी की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है।

यह लक्षण इस बात की तरफ संकेत करते हैं कि आपके बच्चे में विटामिन डी की कमी हो रही है। लेकिन इसकी सही पुष्टि केवल डॉक्टर के परीक्षण के द्वारा ही हो सकती है।
इसीलिए अगर आपको यह लगे कि आपके शिशु में विटामिन डी की कमी हो रही है तो अपने शिशु को डॉक्टर के पास लेकर जाएं ताकि आवश्यक जांच और परीक्षण किया जा सके।
डॉक्टर जांच और परीक्षण के नतीजों के आधार पर सटीक तरह से बता पाएंगे कि शिशु के शरीर में विटामिन डी का क्या स्तर है।


विटामिन डी की कमी से शरीर में अनेक तरह की बीमारियां तथा विकार पैदा हो सकते हैं। विटामिन डी शरीर को हृदय संबंधी रोगों से, डायबिटीज यानी मधुमेह से, कैंसर से और हाइपरटेंशन की समस्या से बचाता है।
बच्चों पर हुए शोध इस बात को बताते हैं कि भारी तादाद में ऐसे बच्चे और टीनऐज (teenage) है जिनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं है। इसीलिए माता पिता को सजग रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चों के शरीर में विटामिन डी का स्तर पर्याप्त मात्रा में है।

व्यस्क की तुलना में शिशु के शरीर को विटामिन डी की आवश्यकता ज्यादा पड़ती है। शिशु के शरीर को विकसित होने के लिए और स्वस्थ रहने के लिए विटामिन डी की आवश्यकता पड़ती है।
विटामिन डी शरीर में हड्डियों और दातों के निर्माण में और उन्हें मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। बच्चे जब ऐसे भोजन को ग्रहण करते हैं जिसमें कैल्शियम और फास्फोरस पाया जाता है तो शिशु के शरीर में मौजूद विटामिन डी सहायता करता है कैल्शियम और फास्फोरस को अवशोषित करने में।

अपने जन्म के प्रारंभिक कुछ सालों में बहुत ज्यादा बीमार पड़ते हैं। उन्हें आसानी से कोई भी संक्रमण लग जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी शरीर में रोगाणुओं से लड़ने वाला रोग प्रतिरोधक तंत्र बहुत कमजोर होता है।
जो बच्चे स्तनपान करते हैं उन्हें मां के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी दूध के जरिए मिल जाती है इसीलिए दूसरे बच्चों की तुलना में यह बच्चे ज्यादा स्वस्थ होते हैं।
जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है उसके शरीर की खुद की रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होने लगती है और जैसे-जैसे उसका शरीर बीमारियों की पहचान करता है उसके अंदर उन बीमारियों से लड़ने के लिए एंटीबॉडी भी निर्मित होने लगता है। इस पूरी प्रक्रिया में विटामिन डी बहुत बड़ा योगदान देता है।
विटामिन डी की कमी से शिशु के शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर पड़ जाता है। इसीलिए यह जरूरी है कि शिशु के शरीर में विटामिन डी का स्वस्थ स्तर बना रहे।
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विटामिन डी एक वसा विलय विटामिन है - इसीलिए जब शिशु ऐसे आहार को ग्रहण करें जिनके द्वारा उसके शरीर को विटामिन डी मिलता है तो उस आहार को थोड़ा तेल के साथ जरूर पकाएं।
जब शिशु का शरीर आहार मौजूद तिल को अवशोषित करेगा तो तेल के साथ साथ तेल में विलीन विटामिन डी शिशु के शरीर में अवशोषित हो जाएगा।

शिशु के शरीर को विटामिन डी मां पहाड़ों से ही प्राप्त नहीं होता है बल्कि शिशु का शरीर स्वयं भी विटामिन डी बनाने में सक्षम है। जब शिशु का शरीर सूरज की किरणों के संपर्क में आता है तो वह खुद-ब-खुद विटामिन डी बनाना शुरू कर देता है।
इसलिए अगर मौसम अच्छा है तो अपने बच्चों को दिन में कुछ देर के लिए बाहर धूप में या छांव में खेलने के लिए प्रेरित करें। सप्ताह में कम से कम 2 बार शिशु को 30 मिनट के लिए धूप में खेलना चाहिए।
इतना पर्याप्त है उसके शरीर को आवश्यकता के अनुसार विटामिन डी बनाने के लिए। यानी कि अगर शिशु 5 मिनट के लिए भी हर दिन घर से बाहर निकलता है तो उसका शरीर अपनी आवश्यकता के अनुसार विटामिन डी बना लेता है।

अगर किसी कारणवश शिशु को उसके आहार के द्वारा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिल रहा है और डॉक्टरी परीक्षण में उसके शरीर में विटामिन डी चिंताजनक स्तर पर पाया जाता है तो शिशु को विटामिन डी का सप्लीमेंट डॉक्टर की परामर्श से दिया जा सकता है।
अगर शिशु के शरीर में विटामिन डी की मात्रा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है तो शिशु को विटामिन डी का सप्लीमेंट जरूर देना चाहिए नहीं तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
शिशु के शरीर को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है तथा शारीरिक विकास भी अवरुद्ध हो सकता है जिससे शिशु का शरीर अन्य बच्चों की तुलना में स्वस्थ रूप से विकास नहीं करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर बच्चे को विटामिन डी का सप्लीमेंट दिया जाना चाहिए।
बच्चों को विटामिन डी की सप्लीमेंट देना अच्छी बात नहीं है क्योंकि शिशु के शरीर को खुद इतना सक्षम होना चाहिए कि वह भोजन से आवश्यकता के अनुसार विटामिन डी अवशोषित कर सके और जब भी धूप के संपर्क में आए खुद भी अपनी आवश्यकता के अनुसार विटामिन डी का निर्माण कर सके।
इसीलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि बच्चों को विटामिन डी का supplement ना दिया जाए, इसके बदले उसके आहार में ऐसे भोजन को सम्मिलित किया जाए जिनमें विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होती है तथा बच्चों को हर दिन थोड़ा-थोड़ा धूप दिखाना चाहिए।
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