Category: शिशु रोग
By: Vandana Srivastava | ☺4 min read
जानिये स्किन रैशेस से छुटकारे के घरेलू उपाय। बच्चों में स्किन रैश शीतपित्त आम तौर पर पाचन तंत्र की गड़बड़ी और खून में गर्मी बढ़ जाने के कारण होता है। तेल, मिर्च, बाजार में बिकने वाले फ़ास्ट फ़ूड, व चाइनीज़ खाना खाने से बच्चों में इस रोग के होने का खतरा रहता है। वातावरण में उपस्थित कई तरह के एलर्जी कारक भी इसके कारण होते हैं

माँ होना एक बहुत ही जिम्मेदारी भरा दायित्व है।हम या आप अपने बच्चों की सही ढंग से देख -रेख कर सकें , इसके लिए हम सभी को कुछ बातों की जानकारी होना आवश्यक है।
स्किन रैशेस की शिकायत आम तौर पर गर्मी के महीनों में होती है। गर्मी का मतलब है तेज धूप और अत्यधिक पसीना।
शरीर के हिस्सों में जहाँ -जहाँ पसीना होता है वहां- वहां स्किन रैशेस होते हैं। परंतु शीत ऋतु में भी यह रोग दिखाई देता हैं जिसे अर्टिकेरिया या शीतपित्त कहते हैं।
शीतपित्त जल्दी ठीक न होने वाला और बच्चों को कष्ट देने वाला रोग है, जिसकी उत्पत्ति दूषित खान - पान और सर्द-गर्म भोजन से होता है और एलर्जी का रूप ले लेता है।
ठंडी हवा के संपर्क से वात एवं कफ़ दूषित होकर पित्त के साथ मिल कर त्वचा पर लाल चकत्ते की उत्पत्ति करता है और पूरे शरीर में खुजली और जलन उत्पन्न करता है।
एक तरह से कहा जा सकता है कि यह एक प्रकार का एलर्जिक रोग है, जिसमें हिस्टामीन नामक एक हानिकारक पदार्थ त्वचा में प्रवेश कर खुजली के साथ चकत्ते पैदा करता है जो किसी कीड़े के काटने के समान सूजन के साथ एक पर्त के रूप में सामने आता है।

जैसे ही आपके बच्चे में कुछ असामान्य लक्षण दिखते हैं जैसे - उसकी त्वचा लाल और सूजनयुक्त हों जाती है और चकत्ते के रूप में त्वचा उभरी हुई दिखाई देने लगती है तो उसको किसी वजह से एलर्जी के कारण रैशेस हों गए हैं।
लगातार त्वचा में खुजली और जलन होने लगती है। यह चित्तियाँ छह सप्ताह से कम समय तक रहती हैं। जो चित्तियाँ छह सप्ताह से ज्यादा रहती हैं वह गैर एलर्जिक भी हों सकती हैं।

शीतपित्त आम तौर पर पाचन तंत्र की गड़बड़ी और खून में गर्मी बढ़ जाने के कारण होता है। तेल, मिर्च, बाजार में बिकने वाले फ़ास्ट फ़ूड, व चाइनीज़ खाना खाने से बच्चों में इस रोग के होने का खतरा रहता है।
वातावरण में उपस्थित कई तरह के एलर्जी कारक भी इसके कारण होते हैं।संयोग विरुद्ध काम जैसे गर्मी से आने के बाद ठंडा पानी पीना, कोल्ड ड्रिंक या आइस क्रीम खाना।य
ह रोग प्रकृति विरुद्ध आहार जैसे दूध के साथ नमक का प्रयोग, दही के साथ मछली , सर्दियों में कोल्ड ड्रिंक तथा कफ़ वर्धक पदार्थों का सेवन और एंटीबायोटिक दवा का दुष्प्रभाव होने से हमारे बच्चों में यह परेशानी आती है।
इसके अलावा, बच्चे जब खेल के आते हैं उसके बाद स्नान करने से भी शीतपित्त की दिक्कत होती है। त्वचा में खुश्की होना , स्वेद ग्रंथियों की क्रिया का अभाव तथा एलर्जी पैदा करने वाली चीजें जैसे धूल,पेट्रोल की गंध , विभिन्न प्रकार के फूल से उठने वाली गंध भी शीतपित्त का कारण होता है।

कभी- कभी कोई दवा रिएक्शन कर जाती है , ऐसी स्थिति में भी त्वचा पर लाल चकत्ते और लाल दाने आ जाते हैं। ज़हरीले पौधों से संपर्क होना भी इसका एक कारण है।
इसके अलावा बच्चों में घमौरी होना, उनके बालों में रूसी होना , उनके कपड़ों के रंग उतरने से , कपड़ों के गीलेपन से , कपड़ों में निकले हुए रोएं की वजह से भी शीतपित्त होने की सम्भावना रहती है।
कभी-कभी किसी उड़ने वाले कीड़े के बैठ जाने से या मच्छरों के काटने से या किसी भी अन्य तरह के कीड़ों के काटने से भी शीतपित्त होता है।
बच्चों में यदि स्किन रैशेस दिखाई पड़ता है , तो उस पर ओलिव आयल या नारियल का तेल लगाने से उन्हें तुरंत आराम मिलेगा और जलन और खुजली में भी आराम मिलेगा।
इसके अलावा विटामिन ई आयल में कॉर्ड लिवर आयल मिलाकर रैशेस पर लगाएं और रात भर छोड़ दे ,सुबह तक रैशेस ख़त्म हो जायेंगे।
तुलसी के पत्ते के लेप में लहसुन , नमक, काली मिर्च तथा ओलिव आयल मिलाकर लगाएं। इसके आलावा , एक चम्मच विनेगर में शहद डालकर एक गिलास पानी में मिलाकर स्किन पर लगाने से राहत मिलती है।
गर्मी और जाड़ें दोनों में होने वाले त्वचा के रैशेस (शीतपित्त) का उपचार मुख्य रूप से रोगी को दिए जाने वाले शिक्षण , तुरंत किये जाने वाले बचाव पर निर्भर करता है।
शीतपित्त के रोगियों को इमरजेंसी उपचार की आवशकता होती है।

बच्चों में स्किन रैशेस होने पर कुछ सावधनियां बरतें -
इसके अतिरिक्त, ऐ सी तथा कूलर से एकाएक बाहर गर्म तथा ठन्डे वातावरण में न जाने दें। सर्दियों से बचने का उपाय करें। एलर्जिक कारणों से अपने बच्चे को दूर रखने का प्रयास करें। अपने बच्चे के खान- पान का ध्यान रखें।
छोटे बच्चों की सही और गलत पर करना नहीं आता इसी वजह से कई बार अपनी भावनाओं को काबू नहीं कर पाते हैं और अपने अंदर की नाराजगी को जाहिर करने के लिए दूसरों को दांत काट देते हैं। अगर आपका शिशु भी जिसे बच्चों को या बड़ो को दांत काटता है तो इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस तरह से आप उसके इस आदत को छुड़ा सकती है।
महिलाओं में गर्भधारण न कर पाने की समस्या बहुत से कारणों से हो सकती है। अगर आप आने वाले दिनों में प्रेगनेंसी प्लान कर रहे हैं तो हम आपको बताएंगे कुछ बातें जिनका आपको खास ध्यान रखने की जरूरत है। लाइफस्टाइल के अलावा और भी कुछ कारण है जिनकी वजह से बहुत सारी महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं।
कुछ बातों का ख्याल रख आप अपने बच्चों की बोर्ड एग्जाम की तयारी में सहायता कर सकती हैं। बोर्ड एग्जाम के दौरान बच्चों पे पढाई का अतिरिक्त बोझ होता है और वे तनाव से भी गुजर रहे होते हैं। ऐसे में आप का support उन्हें आत्मविश्वास और उर्जा प्रदान करेगा। साथ ही घर पे उपयुक्त माहौल तयार कर आप अपने बच्चों की सफलता सुनिश्चित कर सकती हैं।
कहानियां सुनने से बच्चों में प्रखर बुद्धि का विकास होता है। लेकिन यह जानना जरुरी है की बच्चों को कौन सी कहानियां सुनाई जाये और कहानियौं को किस तरह से सुनाई जाये की बच्चों के बुद्धि का विकास अच्छी तरह से हो। इस लेख में आप पढ़ेंगी कहानियौं को सुनने से बच्चों को होने वाले सभी फायेदों के बारे में।
सांस के जरिये भाप अंदर लेने से शिशु की बंद नाक खुलने में मदद मिलती है। गर्मा-गर्म भाप सांस के जरिये अंदर लेने से शिशु की नाक में जमा बलगम ढीला हो जाता है। इससे बलगम (कफ - mucus) के दुवारा अवरुद्ध वायुमार्ग खुल जाता है और शिशु बिना किसी तकलीफ के साँस ले पाता है।
कुछ साधारण से उपाय जो दूर करें आप के बच्चे की खांसी और जुकाम को पल में - सर्दी जुकाम की दवा - तुरंत राहत के लिए उपचार। बच्चों की तकलीफ को दूर करने के लिए बहुत से आयुर्वेदिक घरेलु उपाय ऐसे हैं जो आप के किचिन (रसोई) में पहले से मौजूद है। बस आप को ये जानना है की आप उनका इस्तेमाल किस तरह कर सकती हैं अपने शिशु के खांसी को दूर करने के लिए।
क्या आप के पड़ोस में कोई ऐसा बच्चा है जो कभी बीमार नहीं पड़ता है? आप शायद सोच रही होंगी की उसके माँ-बाप को कुछ पता है जो आप को नहीं पता है। सच बात तो ये है की अगर आप केवल सात बातों का ख्याल रखें तो आप के भी बच्चों के बीमार पड़ने की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी।
शिशु के जन्म के तुरन बाद ही उसे कुछ चुने हुए टीके लगा दिए जाते हैं - ताकि उसका शारीर संभावित संक्रमण के खतरों से बचा रह सके। इस लेख में आप पढेंगे की शिशु को जन्म के समय लगाये जाने वाले टीके (Vaccination) कौन कौन से हैं और वे क्योँ जरुरी हैं।
गर्भावस्था के बाद तंदरुस्ती बनाये रखना बहुत ही चुनौती पूर्ण होता है। लेकिन कुछ छोटी-मोती बातों का अगर ख्याल रखा जाये तो आप अपनी पहली जैसी शारीरिक रौनक बार्कर रख पाएंगी। उदहारण के तौर पे हर-बार स्तनपान कराने से करीब 500 600 कैलोरी का क्षय होता है। इतनी कैलोरी का क्षय करने के लिए आपको GYM मैं बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
अगर आप का शिशु जब भी अंडा खाता है तो बीमार पड़ जाता है या उसके शारीर के लाल दाने निकल आते हैं तो इसका मतलब यह है की आप के शिशु को अंडे से एलर्जी है। अगर आप के शिशु को अंडे से एलर्जी की समस्या है तो आप किस तरह अपने शिशु को अंडे की एलर्जी से बचा सकती है और आप को किन बातों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
छोटे बच्चों में और नवजात बच्चे में हिचकी आना एक आम बात है। जानिए की किन-किन वजहों से छोटे बच्चों को हिचकी आ सकती है और आप कैसे उनका सफल निवारण कर सकती हैं। नवजात बच्चे में हिचकी मुख्यता 7 कारणों से होता है। शिशु के हिचकी को ख़त्म करने के घरेलु नुस्खे।
दिन भर की व्यस्त जिंदगी में अगर आप को इतना समय नहीं मिलता की बच्चे के साथ कुछ समय बिता सकें तो रात को सोते समय आप बच्चे को अपना समय दे सकती हैं| बच्चों को रात में सोते वक्त कहानी सुनाने से बच्चे के बौद्धिक विकास को गति मिलती है और माँ और बच्चे में एक अच्छी bonding बनती है|
अगर आप भी अपने लाडले को भारत के सबसे बेहतरीन बोडिंग स्कूलो में पढ़ने के लिए भेजने का मन बना रहे हैं तो निचे दिए बोडिंग स्कूलो की सूचि को अवश्य देखें| आपका बच्चा बड़ा हो कर अपनी जिंदगी में ना केवल एक सफल व्यक्ति बनेगा बल्कि उसे शिक्षा के साथ इन बोडिंग स्कूलो से मिलगे ढेरों खुशनुमा यादें|
खिचड़ी हल्का होता है और आसानी से पच जाता है| पकाते वक्त इसमें एक छोटा गाजर भी काट के डाल दिया जाये तो इस खिचड़ी को बच्चे के लिए और भी पोषक बनाया जा सकता है| आज आप इस रेसिपी में एहि सीखेंगी|
दूध वाली सेवई की इस recipe को 6 से 12 महीने के बच्चों को ध्यान मे रख कर बनाया गया है| सेवई की यह recipe है छोटे बच्चों के लिए सेहत से भरपूर| अब नहीं सोचना की 6 से 12 महीने के बच्चों को खाने मे क्या दें|
बच्चों में आहार शुरू करने की सबसे उपयुक्त उम्र होती है जब बच्चा 6 month का होता है। इस उम्र में बच्चे को दूध के साथ साथ पौष्टिक आहार की भी आवश्यकता पड़ती है। लेकिन पहली बार बच्चों के ठोस आहार शुरू करते वक्त (weaning) यह दुविधा होती है की क्या खिलाएं और क्या नहीं। इसीलिए पढ़िए baby food chart for 6 month baby.
गलतियों से सीखो। उनको दोहराओ मत। ऐसी ही कुछ गलतियां हैं। जो अक्सर माता-पिता करते हैं बच्चे को अनुशासित बनाने में।
सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।
टीकाकरण बच्चो को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।अपने बच्चे को टीकाकरण चार्ट के अनुसार टीके लगवाना काफी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के जरिये आपके बच्चे के शरीर का सामना इन्फेक्शन (संक्रमण) से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
हाइपोथर्मिया होने पर बच्चे के शरीर का तापमान, अत्यधिक कम हो जाता है। हाईपोथर्मिया से पीड़ित वे बच्चे होते हैं, जो अत्यधिक कमज़ोर होते हैं। बच्चा यदि छोटा हैं तो उससे अपने गोद में लेकर ,कम्बल आदि में लपेटकर उससे गर्मी देने की कोशिश करें।