Category: बच्चों की परवरिश
By: Vandana Srivastava | ☺5 min read
आज के दौर के बच्चे बहुत egocentric हो गए हैं। आज आप बच्चों को डांट के कुछ भी नहीं करा सकते हैं। उन्हें आपको प्यार से ही समझाना पड़ेगा। माता-पिता को एक अच्छे गुरु की तरह अपने सभी कर्तव्योँ का निर्वाह करना चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी उन्ही कर्तव्योँ में से एक है।
प्रेम में असीम सुख हैं , धैर्य हैं , समपर्ण हैं , त्याग हैं , जिस पर व्यक्ति का जीवन टिका रहता हैं।
प्रेम की परिभाषा आज बदल गई हैं। आज का प्रेम व्यक्तिगत और थोड़े देर का होता हैं ,जो थोड़े देर का सुख देता हैं। प्रेम में स्थायित्व होता हैं। आज की युवा पीढ़ी इतनी भृमित हो गई हैं की पता ही नहीं है की अच्छा क्या बुरा क्या ? उसके अंदर सहनशीलता की कमी हो गयी है , वह अपने संवेगो को तुरंत प्रकट करना चाहता है।
अगर हम समझ सके की आज का युवा पीढ़ी ऐसा क्यों हो गया है तो माता-पिता होने के नाते हम शायद अपने बच्चों को एक बेहतर इंसान बना सकें। हम लोगों का दौर अलग था जब घर पे हमारे ढेर सरे भाई बहन हुआ करते थे। पहले का परिवार बड़ा होता था। आज के दौर में अधिकतर परिवार चाहतें है की एक ही बच्चा हो ये फिर दो। मगर इससे ज्यादा नहीं। उनका मानना है की अगर छोटा परिवार होगा तो बच्चों की परवरिश अच्छे से हो सकेगी और बच्चों पे ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा।
इससे हो ये रहा है की सिर्फ एक बच्चा होने की वजह से बच्चे की सारी ख्वाइशें पूरी हो जा रही है। जहाँ बच्चे को सजा देनी है वहां सजा नहीं दिया जा रहा है। लेकिन माँ-बाप का प्यार खूब मिल रहा है। चूँकि माता-पिता दोनों काम कर रहे हैं, इसलिए जब-तब नए खिलौने आ रहे हैं। माँ-बाप का सारा प्यार सिमट कर एक ही बच्चे को मिल जा रहा है। ऐसे में आज के दौर के बच्चे बहुत egocentric हो गए हैं।
आज आप बच्चों को डांट के कुछ भी नहीं करा सकते हैं। उन्हें आपको प्यार से ही समझाना पड़ेगा। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और स्मार्टफोन की वजह से बच्चे समय से पहले समझदार भी होते जा रहें हैं। और उन्हें ये ज्ञान भी है की वे माँ-बाप से ज्यादा जानते हैं या यूँ कहें की उन्हें बेवकूफ समझते हैं। किशोर बच्चों को लगता हैं की उनके अंदर परिपक्वता आ गई है, लेकिन उनके माता-पिता से बेहतर कौन जनता है की वे कितने परिपक्व हैं। वे अपने मनोभावों और संवेगो पर नियंत्रण नहीं रख पाते है और इसी लिए कभी - कभी ऐसा कदम उठा लेते है की जिसके लिए उन्हें जिंदगी भर पछताना पड़ता है।
जिन बच्चों की सही परवरिश नहीं होती है या जिन्हे उनके माता-पिता ने सही और बुरे में फर्क करना नहीं सिखाया, ऐसे बच्चों का व्यवहार आम बच्चों से बहुत अलग होता है। ये बच्चे अपने आचरण से खुद को उन युवाओं से अलग कर लेते हैं जो आकाश की ऊंचाईयों को छूना चाहते हैं और अपने मन में एक लक्ष्य निर्धारित कर अपने उन साधनों पे ध्यान केंद्रित करते हैं जो उन्हें उस ऊचाई तक पहुंचाने में सहायक हो सके। उनके उस साध्य में उनकी पाठ्य - पुस्तिकों के आलावा उनके माता - पिता , भाई - बहिन तथा गुरुजनों का प्यार और फटकार भी शामिल होता है।
प्यार और फटकार वह मधुर औषधि है , जो बच्चों में एक नई ऊर्जा का संचार करती है। माँ का प्यार भरा स्पर्श और गुरु की डांट दोनों ही पूरक हैं। एक पौधे को फलने - फूलने के लिए जिस प्रकार धुप और पानी की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार एक बच्चे को माँ का दुलार और गुरु का डांट दोनों की ही आवश्यकता होती है।अब जरुरत इस बात की है की वह बच्चा या युवा किस हद तक अपने माता - पिता और खुद से प्रेम करता हैं।
अच्छे संस्कार की कीमत
एक बच्चे का जीवन तभी सार्थक है ,जब उसके माता - पिता के चेहरे पर प्रसन्ता के भाव आये। जिस प्रकार एक माता - पिता भी तभी धन्य होते हैं , जब उनका बच्चा एक बार मुस्कुरा देता है। लकिन जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को कभी भी अच्छे संस्कार की कीमत नहीं समझायी, उन्हें अपने बच्चे से उस मधुर मुस्कराहट की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। माता-पिता को एक अच्छे गुरु की तरह अपने सभी कर्तव्योँ का निर्वाह करना चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी उन्ही कर्तव्योँ में से एक है।
गुरु कृतार्थ तब होता हैं , जब शिष्य की आँखों में श्रद्धा , हृदय में उत्साह और मस्तक गर्व से उन्नत हो।
बच्चों को प्रेम और सहनशीलता का पाठ सीखने का सबसे अच्छा तरीका की आप खुद उन्हें अपने जीवन में लागु करें। बच्चों के लिए आप उनके मार्गदर्शक हैं। बच्चे आप को हर परिस्थिति में देखते हैं और उन परिस्थितियोँ में आप जैसा आचरण करते हैं बच्चे उसी से सीखते हैं। अगर विपरीत परिस्थिति में आप अपना आप खो देते हैं, तो आपके बच्चे भी यही सीखेंगे। मुश्किलों में अगर आप अपना सयम बना के रखेंगे तो बच्चे भी हर परिस्थिति में सयम से काम लेंगे। अपने बच्चों में अगर आप अच्छे संस्कार देखना चाहते हैं तो उन्हें सिखाएं चार अच्छे आचरण: