Category: बच्चों की परवरिश
By: Admin | ☺4 min read
सभी बचों का विकास दर एक सामान नहीं होता है। यही वजह है की जहाँ कुछ बच्चे ढाई साल का होते होते बहुत बोलना शुरू कर देते हैं, वहीँ कुछ बच्चे बोलने मैं बहुत समय लेते हैं। इसका मतलब ये नहीं है की जो बच्चे बोलने में ज्यादा समय लेते हैं वो दिमागी रूप से कमजोर हैं, बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है की उन्हें शारीरिक रूप से तयार होने में थोड़े और समय की जरूरत है और फिर आप का भी बच्चा दुसरे बच्चों की तरह हर प्रकार की छमता में सामान्य हो जायेगा।आप शिशु के बोलने की प्रक्रिया को आसन घरेलु उपचार के दुवारा तेज़ कर सकती हैं।
जब बच्च पहली बार अपनी मुह से "माँ" शब्द बोलता है तो जितनी प्रसन्नता होती है, उसका वर्णन करना आसंभव है।
बच्चे जुबान से तोतली भाषा में मीठे मीठे शब्द कानो में घंटियों की तरह बजते हैं।
हर बच्चे में विकास की दर अलग-अलग होती है।
यही वजह है की कुछ बच्चे जल्दी और कुछ बच्चे अच्छे देर से बोलना शुरू करते हैं।
बच्चों में स्वाभाव-स्वाभाव का भी अंतर होता है। यही कारण है की कुछ बच्चे बहुत कम बोलते हैं तो वहीँ कुछ बच्चे न जाने क्या - क्या बोलते हैं।
इससे आप को यह समझ जाना चाहिए की बच्चे के शारीरिक विकास के साथ साथ उसका मानसिक विकास के मापदंड को दुसरे बच्चों से तुलना कर के नापा नहीं जा सकता है।
विकास तो सभी बच्चों का होगा। बस अंतर इतना है की किसी बच्चे का विकास थोड़ा देरी से तो किसी बच्चे का विकास थोड़ा जल्दो हो जायेगा। किसी बच्चे के सभी दाँत जल्दी निकल जायेंगे तो किसी बच्चे के सभी दाँत निकलने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा।
चूँकि हर बच्चे में मानसिक (बौद्धिक) विकास की दर सामान्य नहीं होती है। इसी वजह से कुछ बच्चे देर से बोलना शुरू करते है तो कुछ बच्चे बहुत कम बोलते हैं।
जो बच्चे तुतला के बोलते हैं उनके माता-पिता को चिंता करने की बजाये सूझ-बूझ से काम लेने की आवश्यकता है।
जितना जल्दी हो सके स्पीच थेरेपिस्ट से सलाह ले ताकि बच्चे के तुतलाने की वजह का पता चल सके। एक बार यह पता चल जाये की बच्चे का तुतलाना शारीरिक दोष की वजह से है या फिर मास्कीक दोष की वजह से है तो फिर बच्चे का उस वजह के लिए इलाज किया जा सकता है।
शिशु में भाषा का विकास देर से होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। तीन मुख्या कारण का जिक्र हम यहां कर रहे हैं।
हमारे सोचने समझने और सफलता पूर्वक कार्य कर सकने की छमता ब्रेन सेल कनेक्शंस जिसे स्य्नाप्सेस (Synapse) कहते हैं, उस पे निर्भर करती है। शिशु के आठ महीने के होते होते उसकी मस्तिष्क में एक हजार ट्रिलियंस ब्रेन सेल कनेक्शंस बन चुके होते हैं।
लेकिन आप को ताजूब होगा यह जान के की आने वाले समय में ये कनेक्शंस बहुत तेजी से घटते जायेंगे। जिन कनेक्शंस का इस्तेमाल नहीं होगा वो ख़त्म भी हो जायेंगे।
बच्चों पे हुए एक शोध में यह बात पता चली है की छहमहीने के बच्चे 17 प्रकार की विभिन्न ध्वनियों को पहचानने की क्षमता रखता है। ये ध्वनियां ही विभिन्न प्रकार की भाषाओँ का आधार है।
यही कारण है की जो माताएं अपने बच्चों से खूब बातें करती हैं उनके बच्चे जल्दी बोलना भी सिख जाते हैं।
कुछ आसान से लक्षण है जिन्हें देखकर आप आसानी से देरी से बोलने वाले बच्चों की पहचान कर सकते हैं। ऐसी बच्चों की पहचान जितना जल्दी हो जाए, उतना अच्छा है। क्योंकि उचित मार्गदर्शन और सहायता से यह बच्चे दूसरे बच्चों की तरह बोलने में सक्षम हो सकते हैं। दूसरे बच्चों की तुलना में इन बच्चों को थोड़ा ज्यादा मदद की जरूरत है।
3 से 4 महीने की आयु से ही आप देरी से बोलने वाले बच्चे को उसके लक्षण से पहचान सकते हैं। 3 से 4 महीने की आयु वाले देरी से बोलने वाले बच्चों को आप निम्न लक्षणों से पहचान सकते हैं:
14 महीने के बच्चे एक आध शब्दों को पकड़कर बोलना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए मामा। लेकिन देरी से बोलने वाले बच्चे 14 महीने की होने पर भी किसी शब्दों को पकड़कर बोलना शुरू नहीं करते हैं। इनमें आप यह लक्षण देख सकते हैं:
जो बच्चे देर से बोलना सीखते हैं इस उम्र में 15 शब्द भी नहीं बोल सकते हैं।