Category: प्रेगनेंसी
By: Admin | ☺7 min read
गर्भावस्था के दौरान पेट में गैस का बनना आम बात है। लेकिन मुश्किल इस बात की है की आप इसे नियंत्रित करने की लिए दवाइयां नहीं ले सकती क्यूंकि इसका गर्भ में पल रहे बच्चे पे बुरा असर पड़ेगा। तो क्या है इसका इलाज? आप इसे घरेलु उपचार के जरिये सुरक्षित तरीके से कम सकती हैं। इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी आप को इस लेख में मिलेगी।

माँ बनना एक बहुत ही गौरव वाली बात है। सबको ये सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है।
लेकिन गर्भावस्था से गुजरना इतना आसन भी नहीं है। गर्भावस्था में शारीर अनेक प्रकार के बदलावों से गुजर रहा होता है ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए उचित शारीरिक माहौल तयार हो सके।
और इसकी वजह से एक माँ को कई प्रकार के साइड इफेक्ट्स (side effect) का सामना करना पड़ता है – जैसे उलटी, जी मचलना, गैस की समस्या और पल-पल मूड का बदलना।
इस लेख में हम विस्तार से बात करेंगे की प्रेगनेंसी में गैस की समस्या से कैसे निपटा जाये।

आप के गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास जैसे-जैसे होता है, वो अपने आकर में बढ़ता है। अगर आप का शारीर लचीला नहीं होगा तो शिशु आप के गर्भ में बढ़ नहीं पायेगा और छोटे से जगह में दब कर के रह जायेगा।
इस स्थिति से निपटने के लिए आप के शारीर में progesterone नमक हॉर्मोन का निर्माण होता है। ये हॉर्मोन आप के शारीर की मस्पेशियौं को बहुत लचीला बना देते है ताकि जैसे जैसे शिशु आकर में बढे, आप का शारीर उसी के अनुपात में फ़ैल सके और बच्चे के लिए उचित जगह बना सके।
लेकिन इसका आसार आप के पेट के पाचन तंत्र पे भी पड़ता है। आप का पाचन तंत्र सुस्त पड़ जाता है जिस वजह से आहार को पचाने में अब समय लगता है।
और इस कारण पेट में गैस बनना प्रारंभ हो जाता है। खट्टी डकार और बार-बार गैस बन्ने की समस्या इसी का नतीजा है।

हाँ, बिलकुल। प्रेगनेंसी के अंतिम चरण में हार्मोनल बदलाव अपने चरम पे होता है और uterus बहुत बढ़ चूका होता है।
पाचन तंत्र के लिए जगह बहुत थोड़ी सी बची होती है और इसका प्रभाव पाचन तंत्र पे पड़ता है। हर बार आहार ग्रहण करने के बाद आप को bloating की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। हार्ट बर्न (heartburn), acidity और constipation इन्ही सब का नतीजा है।
इन बातों के आलावा भी और बहुत कारणों से आप के पेट में गैस बन सकता है। इन सभी कारणों के बारे में हम आप को थोडा संचिप्त में बताते हैं।

गर्भावस्था के दौरान आहार पाचन तंत्र में बहुत समय तक पड़ा रहता है। ऐसा इस लिए होता है ताकि fetus आहार से सारे पोषक तत्वों को सोख सके, यहाँ तक की पानी भी। लेकिन इस वजह से मल बहुत सूख जाती है और मल त्याग के दौरान बहुत दिक्कत आती है। इसका नतीजा होता है कब्ज और पेट में गैस की समस्या।
कुछ आहार तुलनात्मक रूप से ज्यादा गैस की समस्या के लिए प्रसिद्ध हैं। उदहारण के लिए जो लोग celiac रोग से पीड़ित हैं उन्हें गेहूं से बने आहार पचाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गेहूं या gluten वाले आहार इनमें गैस की समस्या पैदा कर सकते हैं।
इसी तरह से जिन लोगों को lactose intolerance की समस्या है उन्हें दूध उत्पादों से बने आहार ग्रहण करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।

दूध उत्पाद इन लोगों में गैस की समस्या पैदा कर सकता है। ऐसा इस लिए क्यूंकि इन लोगों का शारीर इतना lactase पैदा नहीं करता है lactose को पूर्ण रूप से हजम किया जा सके।
हमारे पुरे शारीर में किसी भी वक्त अनगिनत बैक्टीरिया होते हैं। इन बैक्टीरिया का हमारे जीवित रहने और हमारे स्वस्थ रहने में बहुत बड़ा योगदान है।
हमारे शारीर में दो प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं एक अच्छे और एक बुरे। अच्छे बैक्टीरिया हमारे शारीर में बुरे बैक्टीरिया को बढ़ने नहीं दते हैं।
यूँ समझ लीजिये की वे हमारे शारीर को बुरे बैक्टीरिया से रक्षा करते हैं। केवल रक्षा ही नहीं वरन हमारे शारीर के बहुत सारे कार्यौं में हाथ-भी बाटते हैं।

उदहारण के लिए आहारों को पचाने के लिए हमारे पाचन तंत्र की मदद भी करते हैं। लेकिन अगर हमारे शारीर में इन अच्छे बैक्टीरिया की कमी हो जाये तो बुरे बैक्टीरिया की संख्या तेज़ी से बढ़ने लगती है।
इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है हमारे पाचन तंत्र पे और रख्सा प्रणाली पे। जब बैक्टीरिया आहारों को पचाने में मदद ना करे तो पाचन में बहुत समय लग जाता है।
इस दौरान पाचन तंत्र में पड़े आहारों पे बुरे बैक्टीरिया के प्रभाव से गैस और कब्ज जैसी समस्या पैदा हो जाती है।
गर्भावस्था के दौरान भूख बहुत लगती है और इस वजह से दिन-भर कुछ-ना कुछ खाने की इक्षा होती है। पोषक आहार के साथ vitamin supplements लेने से आप का वजन बहुत तेजी से बढ़ सकता है। और ये आपको आलसी भी बना सकता है। शारीरिक क्रिया ज्यादा ना होने से गैस और अपच की समस्या होना आम बात है।

इसके आलावा भी आप के पाचन तंत्र में कई तरह स एग्स पहुँच सकता है। उदहारण के लिए आहार ग्रहण करते समय हवा गटक लेना।
पाचन तंत्र में पड़े आहार पे बुरे बैक्टीरिया के प्रभाव से गैस का बनना। इस तरह की अधिकांश गैस डकार दुवारा निकल जाती है। लेकिन गैस की समस्य वो पैदा करती है जो गैस पेट (colon) तक पहुंचती है।
कार्बोहायड्रेट वाले आहार बहुत ज्यादा गैस का निर्माण करते हैं। प्रोटीन और वासा वाले आहार उतना गैस का निर्माण नहीं करते हैं।

वासा वाले आहार पाचन की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। इससे पेट के खली होने में बहुत समय लग जाता है – नतीजा पेट में गैस का बनना।
गर्भावस्था के दौरान अधिकांश मामलों में स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती है की चिकित्सीय मदद की जरुरत पड़े। शिशु के जन्म के बाद गैस की समस्या स्वता ही समाप्त हो जाती है।
अनेक प्रकार के घरेलु हेर्ब्स के दुवारा गैस की समस्या से बहुत हद तक निजत पाया जा सकता है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान किसी भी प्रकार की घरेलु औषधि लेने से पूर्व अपने डोक्टर से जरूर संपर्क कर लें। कहीं ऐसा ना हो की इनका आप के गर्भ में पल रहे बच्चे पे बुरा प्रभाव पड़े।

घरों में मिलने वाली बहुत सी घरेलु औषधि ऐसे हैं जो birth defects के लिए जानी जाती हैं – इसीलिए कुछ भी लेने से पहले पूरी सतर्कता बरतें।
Important Note: यहाँ दी गयी जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है । यहाँ सभी सामग्री केवल पाठकों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दी गई है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि यहाँ दिए गए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। आपका चिकित्सक आपकी सेहत के बारे में बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्प नहीं है। अगर यहाँ दिए गए किसी उपाय के इस्तेमाल से आपको कोई स्वास्थ्य हानि या किसी भी प्रकार का नुकसान होता है तो kidhealthcenter.com की कोई भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है।
Vitamin A एक वसा विलेय विटामिन है जिस के अत्यधिक सेवन से गर्भ में पल रहे शिशु में जन्म दोष की समस्या की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विटामिन ए गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि शिशु के विकास के लिए विटामिन ए एक महत्वपूर्ण घटक भी है।
आप पाएंगे कि अधिकांश बच्चों के दांत ठेडे मेढे होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे अपने दांतो का ख्याल बड़ों की तरह नहीं रखते हैं। दिनभर कुछ ना कुछ खाते रहते हैं जिससे उनके दांत कभी साफ नहीं रहते हैं। लेकिन अगर आप अपने बच्चों यह दातों का थोड़ा ख्याल रखें तो आप उनके दातों को टेढ़े (crooked teeth) होने से बचा सकते हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आपको अपने बच्चों के दातों से संबंधित कौन-कौन सी बातों का ख्याल रखना है, और अपने बच्चों को किन बातों की शिक्षा देनी है जिससे वे खुद भी अपने दांतो का ख्याल रख सके।
ताजे दूध की तुलना में UHT Milk ना तो ताजे दूध से बेहतर है और यह ना ही ख़राब है। जितना बेहतर तजा दूध है आप के शिशु के लिए उतना की बेहतर UHT Milk है आप के बच्चे के लिए। लेकिन कुछ मामलों पे अगर आप गौर करें तो आप पाएंगे की गाए के दूध की तुलना में UHT Milk आप के शिशु के विकास को ज्यादा बेहतर ढंग से पोषित करता है। इसका कारण है वह प्रक्रिया जिस के जरिये UHT Milk को तयार किया जाता है। इ लेख में हम आप को बताएँगे की UHT Milk क्योँ गाए के दूध से बेहतर है।
बदलते परिवेश में जिस प्रकार से छोटे बच्चे भी माइग्रेन की चपेट में आ रहे हैं, यह जरूरी है कि आप भी इसके लक्षणों को जाने ताकि आप अपने बच्चों में माइग्रेन के लक्षणों को आसानी से पहचान सके और समय पर उनका इलाज हो सके।
विटामिन डी की कमी से शिशु के शरीर में हड्डियों से संबंधित अनेक प्रकार की विकार पैदा होने लगते हैं। विटामिन डी की कमी को उचित आहार के द्वारा पूरा किया जा सकता। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आप अपने शिशु को कौन कौन से आहार खिलाए जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन डी पाया जाता है। ये आहार आपके शिशु को शरीर से स्वस्थ बनाएंगे और उसकी शारीरिक विकास को गति प्रदान करेंगे।
डिलीवरी के बाद लटके हुए पेट को कम करने का सही तरीका जानिए। क्यूंकि आप को बच्चे को स्तनपान करना है, इसीलिए ना तो आप अपने आहार में कटौती कर सकती हैं और ना ही उपवास रख सकती हैं। आप exercise भी नहीं कर सकती हैं क्यूंकि इससे आप के ऑपरेशन के टांकों के खुलने का डर है। तो फिर किस तरह से आप अपने बढे हुए पेट को प्रेगनेंसी के बाद कम कर सकती हैं? यही हम आप को बताएँगे इस लेख मैं।
शिशु को 14 सप्ताह की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी, रोटावायरस, डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
आप के शिशु को अगर किसी विशेष आहार से एलर्जी है तो आप को कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ेगा ताकि आप का शिशु स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मगर कभी medical इमरजेंसी हो जाये तो आप को क्या करना चाहिए?
कुछ बातों का ख्याल अगर रखा जाये तो शिशु को SIDS की वजह से होने वाली मौत से बचाया जा सकता है। अकस्मात शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) की वजह शिशु के दिमाग के उस हिस्से के कारण हो सकता है जो बच्चे के श्वसन तंत्र (साँस), दिल की धड़कन और उनके चलने-फिरने को नियंत्रित करता है।
शिक्षक वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ माना जाता है। शिक्षक ही एक अबोध तथा बाल - सुलभ मन मस्तिष्क को उच्च शिक्षा व आचरण द्वारा श्रेष्ठ, प्रबुद्ध व आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के माध्यम आश्रम व गुरुकुल हुआ करते थे। वहां गुरु जन बच्चों के आदर्श चरित के निर्माण में सहायता करते थे।
संगती का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| बच्चे दोस्ती करना सीखते हैं, दोस्तों के साथ व्यहार करना सीखते हैं, क्या बात करना चाहिए और क्या नहीं ये सीखते हैं, आत्मसम्मान, अस्वीकार की स्थिति, स्कूल में किस तरह adjust करना और अपने भावनाओं पे कैसे काबू पाना है ये सीखते हैं| Peer relationships, peer interaction, children's development, Peer Influence the Behavior, Children's Socialization, Negative Effects, Social Skill Development, Cognitive Development, Child Behavior
दो साल के बच्चे के लिए शाकाहारी आहार सारणी (vegetarian Indian food chart) जिसे आप आसानी से घर पर बना सकती हैं। अगर आप सोच रही हैं की दो साल के बच्चे को baby food में क्या vegetarian Indian food, तो समझिये की यह लेख आप के लिए ही है। संतुलित आहार चार्ट
6 महीने की उम्र में आप का बच्चा तैयार हो जाता है ठोस आहार के लिए| ऐसे मैं आप को Indian baby food बनाने के लिए तथा बच्चे को ठोस आहार खिलाने के लिए सही वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी| जानिए आपको किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी अपने बच्चे को ठोस आहार खिलाने में|
बचपन के समय का खान - पान और पोषण तथा व्यायाम आगे चल कर हड्डियों की सेहत निर्धारित करते हैं।
आइये अब हम आपको कुछ ऐसे आहार से परिचित कराते है , जिससे आपके बच्चे को कैल्शियम और आयरन से भरपूर पोषक तत्व मिले।
अनुपयोगी वस्तुओं से हेण्डी क्राफ्ट बनाना एक रीसाइक्लिंग प्रोसेस है। जिसमें बच्चे अनुपयोगी वास्तु को एक नया रूप देना सीखते हैं और वायु प्रदुषण और जल प्रदुषण जैसे गंभीर समस्याओं से लड़ने के लिए सोच विकसित करते हैं।
एक साल से ले कर नौ साल (9 years) तक के बच्चों का डाइट प्लान (Diet Plan) जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में सकारात्मक योगदान दे। शिशु का डाइट प्लान (Diet Plan) सुनिश्चित करता है की शिशु को सभी पोषक तत्त्व सही अनुपात में मिले ताकि शिशु के विकास में कोई रूकावट ना आये।
अगर आप इस बात को ले के चिंतित है की अपने 4 से 6 माह के बच्चे को चावल की कौन सी रेसेपी बना के खिलाये - तो यह पढ़ें चावल से आसानी से बन जाने वाले कई शिशु आहार। चावल से बने शिशु आहार बेहद पौष्टिक होते हैं और आसानी से शिशु में पच भी जाते हैं।
पांच दालों से बनी खिचड़ी से बच्चो को कई प्रकार के पोषक तत्त्व मिलते हैं जैसे की फाइबर, विटामिन्स, और मिनरल्स (minerals)| मिनरल्स शरीर के हडियों और दातों को मजबूत करता है| यह मेटाबोलिज्म (metabolism) में भी सहयोग करता है| आयरन शरीर में रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है और फाइबर पाचन तंत्र को दरुस्त रखता है|
हेपेटाइटिस ‘बी’ वैक्सीन (Hepatitis B vaccine) के टीके के बारे में समपूर्ण जानकारी - complete reference guide - हेपेटाइटिस बी एक ऐसी बीमारी है जो रक्त, थूक आदि के माध्यम से होती है। हेपेटाइटिस बी के बारे में कहा जाता है की इसमें उपचार से बेहतर बचाव है इस रोग से बचने के लिए छह महीने के अंदर तीन टीके लगवाएं जाते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन का कहना है की दुनिया भर में ढाई करोड़ लोगों को लिवर की गंभीर बीमारी है। हेपेटाइटिस बी से हर साल अत्यधिक मृत्यु होती है, परंतु इस का टीका लगवाने से यह खतरा 95 % तक कम हो जाता है।
दस्त के दौरान बच्चा ठीक तरह से भोजन पचा नहीं पाता है और कमज़ोर होता जाता है। दस्त बैक्टीरियल संक्रमण बीमारी है। इस बीमारी के दौरान उसको दिया गया ८०% आहार दस्त की वजह से समाप्त हो जाता है। इसी बैलेंस को बनाये रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण आहार हैं जिससे दस्त के दौरान आपके बच्चे का पेट भरा रहेगा।