Category: प्रेगनेंसी
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प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर (बीपी) ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए आप नमक का कम से कम सेवन करें। इसके साथ आप लैटरल पोजीशन (lateral position) मैं आराम करने की कोशिश करें। नियमित रूप से अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाते रहें और ब्लड प्रेशर (बीपी) से संबंधित सभी दवाइयां ( बिना भूले) सही समय पर ले।
गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर का होना आम बात है। अधिकांश मामलों में, शिशु के जन्म के बाद हाई ब्लड प्रेशर की समस्या खुद-ब-खुद समाप्त हो जाती है।
लेकिन अगर प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर के साथ साथ आपके हाथ पैरों में सूजन और पेशाब में प्रोटीन की समस्या भी है तो यह प्री-क्लैम्पसिया के लक्षण की ओर इशारा करती है।
इसका मतलब, अगर आपने समय पर गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर का इलाज नहीं किया तो मां और शिशु दोनों के जीवन के लिए खतरा पैदा हो सकता है। प्री-क्लैम्पसिया एक ऐसी अवस्था है जो गर्भावस्था के बीच में हफ्ते से शुरू होता है।
प्रेगनेंसी के दौरान मां के ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव दोनों मां तथा बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यह स्थिति गर्भ में विकसित हो रहे शिशु की वृद्धि दर को प्रभावित करता है।
क्योंकि ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव बच्चे की विकास को सुचारु रुप से नहीं होने देता है, इसीलिए आप के लिए यह जरूरी है कि आप पूरे गर्भावस्था के दौरान अपने ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के लिए हर संभव प्रयास करें।
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गर्भवती महिलाओं में अक्सर उच्च रक्तचाप की समस्या बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में आप उनमें निम्न लक्षण देख सकते हैं:
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गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर होना एक बहुत ही आम बात है लेकिन थोड़ी समझदारी से और कुछ बातों का ध्यान रख कर के आप इस पर आसानी से नियंत्रण पा सकती है। हम आपको नीचे कुछ तरीके बताने जा रहे हैं जिनके इस्तेमाल से आप अपने हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को कंट्रोल कर सकती है।
तरल पदार्थों का सेवन - गर्भ अवस्था के दौरान अब जितना ज्यादा हो सके उतना ज्यादा तरल पदार्थ का सेवन करें। खूब पानी पिएं और जूस धूप आदि का सेवन करें। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने का यह सबसे बेहतर तरीका है।
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शिशु के स्वास्थ्य के लिए - आपके घर में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए आप अपने आहार में सोयाबीन अखरोट अलसी तथा पालक जैसे हरे रंग वाले पत्तेदार सब्जियों को सम्मिलित करें। इससे आपको तथा आपके बच्चे को दोनों को बहुत फायदा मिलेगा।
नमक का सेवन कम करने - उच्च रक्तचाप में नमक आपकी समस्या को और ज्यादा बढ़ा सकता है। इसीलिए जितना ज्यादा हो सके उतना ज्यादा नमक का सेवन कम कर दें। उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने का यह भी एक बहुत ही बेहतर तरीका है। पूरी गर्भावस्था के दौरान आप नमक का सेवन बहुत ही सीमित मात्रा में करें।
ओमेगा-3 - अपने भोजन में ऐसे आहार को सम्मिलित करें जिसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड मिलते हैं। ओमेगा-3 वसीय अम्ल आपको मिलता है अखरोट में, सारडीन में कथा कॉड लिवर ऑयल में।
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हरी पत्तेदार सब्जियां - आप अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों को सम्मिलित करना शुरू कर दें। विशेष रूप से पालक गाजर क्योंकि यह आपके उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नियमित व्यायाम करें - शारीरिक रूप से अगर आप अपने आप को एक्टिव रहती हैं तो इससे आपका रक्तचाप बहुत हद तक अपने आप ही नियंत्रण में आ जाएगा।
लेकिन गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करते वक्त आपको इस बात का ध्यान रखना है कि जो व्यायाम आप करने जा रही हैं उसका आपके शिशु पर बुरा प्रभाव ना पड़े।
व्यायाम करने से पहले आप अपने डॉक्टर से इसके बारे में राय अवश्य प्राप्त कर लें और खुल कर बताएं कि आप कौन-कौन से व्यायाम करने जा रही हैं।
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उच्च रक्तचाप में आहार - उच्च रक्तचाप में आहार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। विशेषज्ञ इस बात की राय देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान आप संतुलित आहार का सेवन करें जिससे मां और बच्चे दोनों को फायदा मिले।
संतुलित आहार का मतलब यह है कि आपको अपने आहार में कई प्रकार के भजनों को सम्मिलित करना पड़ेगा जैसे हरी पत्तेदार सब्जियां, चावल दाल रोटी और मौसम के अनुसार फलों का सेवन। इससे आपका ब्लड प्रेशर नियंत्रण में बना रहेगा।
संगीत का प्रभाव - संगीत सुनने से मन शांत होता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान जो संगीत आपको पसंद है उस संगीत को जरूर सुने। आप चाहें तो अपने मन को शांत करने के लिए मेडिटेशन भी कर सकती हैं।
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प्रेगनेंसी के दौरान अगर आप अपने ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में नहीं रहती है तो प्रेगनेंसी के 20 वें सप्ताह में उच्च रक्तचाप की यह अवस्था प्री-एकलैमप्सिया का रूप ले सकती है।
इसे टॉक्सेमिया या फिर गर्भावस्था जनित उच्च रक्तचाप कहते हैं। इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं जिसकी वजह से यह स्थिति आपके मस्तिष्क के साथ-साथ आपके शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें हाथ और पैरों में असामान्य तरीके से सूजन पैदा होता है कथा लगातार सर दर्द भी बना रहता है।
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गर्भावस्था में हाइपरटेंशन एक बहुत ही गंभीर समस्या है। आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में करीब 6 प्रतिनिधि गर्भवती महिलाएं उच्च रक्तचाप की समस्या से।
गर्भावस्था से 20 सप्ताह पहले अगर कोई गर्भवती महिला हाइपरटेंशन से पीड़ित हो जाए तो उसे उच्च रक्तचाप कहते हैं।
लेकिन अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप से पीड़ित हो जाए तो उसे रेगनेंसी इन्डूस्ट हाइपरटेंशन (PIH) या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन (gestational hypertension) कहते हैं।
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प्रेगनेंसी में हाइपरटेंशन की दवाओं को बहुत ज्यादा नहीं खाना चाहिए। अगर आप गर्भवती हैं और अपने हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने के लिए नियमित रूप से हाइपरटेंशन की दवाएं खा रही हैं तो इस बारे में अपने डॉक्टर को जरूर सूचित करें।
प्रेगनेंसी के दौरान हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने के लिए हो सकता है आपका चिकित्सक उन्हें बदल दे।
इसी तरह अगर आप गेस्टेशनल हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं तो आपका डॉक्टर उसी हिसाब से आप को हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने के लिए दवाओं का सुझाव देगा। इंसाफ आपका डॉक्टर आपको नियमित रूप से ब्लड प्रेशर की जांच करने के लिए भी कह सकता है।
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समानता गर्भावस्था के दौरान अगर आप हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं तो आपको 28 हफ्तों तक लगातार हर चौथे हफ्ते अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) जरूर चेक करवा लेना चाहिए तथा इसके उपरांत आपको हर दूसरे सप्ताह आपको अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाना चाहिए।
आपके प्रेगनेंसी को एक बार 40 हफ्ते गुजर जाएं तब हर हफ्ते की आपको अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाना चाहिए।
प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर (बीपी) ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए आप नमक का कम से कम सेवन करें। इसके साथ आप लैटरल पोजीशन (lateral position) मैं आराम करने की कोशिश करें।
नियमित रूप से अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाते रहें और ब्लड प्रेशर (बीपी) से संबंधित सभी दवाइयां ( बिना भूले) सही समय पर ले।
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प्रेगनेंसी के दौरान स्त्री के शरीर में अनेक तरह के बदलाव होते हैं। यह बदलाव स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु के सही विकास के लिए बहुत जरूरी है।
इन बदलावों के जरिए स्त्री का शरीर गर्भ में पल रहे शिशु के लिए अपने आपको तैयार करता है। स्त्री के शरीर में होने वाले यह बदलाव मुख्य रूप से हार्मोन के द्वारा होते हैं। हमारा शरीर हार्मोन के द्वारा नियंत्रित होता है।
लेकिन गर्भावस्था के दौरान स्त्री के शरीर में हार्मोन मैं बदलाव आता है जो सामान्य तौर पर नहीं होता है। इस वजह से गर्भावस्था के दौरान स्त्री को शारीरिक रूप से अनेक प्रकार की समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
लेकिन हार्मोन में हो रहे इन बदलाव का होना भी शिशु के विकास के लिए बहुत जरूरी है। हार्मोन में होने वाले इस बदलाव की वजह से गर्भावस्था के दौरान बहुत सी महिलाओं को हाई बीपी की समस्या का सामना करना पड़ जाता है।
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गर्भावस्था के दौरान होने वाले हाई बीपी की समस्या, अधिकांश मामलों में शिशु के जन्म के बाद अपने आप खत्म हो जाता है। लेकिन अगर इसे नियंत्रित नहीं रखा जाए तो यह हाई बीपी की समस्या में भी तब्दील हो सकता है।
यह वह स्थिति है जिसमें प्रेग्नेंट महिला में सिस्टोलिक रक्तचाप 140 मि.मी. और डायस्टोलिक रक्तचाप 90 मि.मी. से ज्यादा हो जाता है। इस अवस्था को हाई बीपी यानी उच्च रक्तचाप की अवस्था कहते हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान अगर आप अपना ब्लड प्रेशर घर पर ही चेक करती हैं तो अगर आपका ब्लड प्रेशर 140/90 मिमी /एचजी यह आस पास पहुंचता है तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
प्रेगनेंसी के दौरान पैरों में सूजन की समस्या का होना भी एक बहुत ही आम बात है। लेकिन आपको सावधान हो जाने की आवश्यकता है अगर पैरों का यह सूजन कम नहीं हो रहा है और उनमें अगर लगातार दर्द बना हुआ है तो।
इस प्रकार सूजन का कम ना होना और दर्द का लगातार बने रहना, इस बात की ओर इशारा करता है कि आपको जेस्टेशनल हाइपरटेंशन होने की संभावना है। इसके और भी लक्षण हैं उदाहरण के तौर पर सर दर्द, हीटबर्न, कथा हाथों में सूजन और आंखों की रोशनी में कमी का होना।
प्रेग्नेंसी के दौरान अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो प्राकृतिक प्रसव संभव है लेकिन मुश्किल जरूर है।
आपका ब्लड प्रेशर जितना ज्यादा होगा प्राकृतिक प्रसव करना उतना मुश्किल होता जाएगा। हाई ब्लड प्रेशर में प्राकृतिक प्रसव के दौरान मां और बच्चे दोनों की जीवन को खतरा पैदा होता है।
इसीलिए डॉक्टर कृत्रिम रूप से प्रसव कराने की संभावना पर जोर देते हैं ताकि सुरक्षित रूप से प्रसव प्रक्रिया को पूरा किया जा सके और मां तथा बच्चे दोनों की जीवन को सुरक्षित रखा जा सके। ब्लड प्रेशर बढ़ने की स्थिति में इंडक्शन की संभावना भी बढ़ जाता है।
लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हाई ब्लड प्रेशर का आप की गर्भ में पल रहे बच्चे पर क्या असर पड़ रहा है। जो भी डॉक्टर आप के प्रेगनेंसी को देख रहा है वह इससे संबंधित सभी जटिलताओं के बारे में आप से चर्चा करेगा आप निर्णय ले सके कि आप किस तरह अपने शिशु का जन्म चाहती हैं।
प्रसव के दौरान उच्च रक्तचाप की निगरानी बहुत जरूरी है। इसीलिए सामान्य तौर पर प्रसव के दौरान डॉक्टर दल आपके उच्च रक्तचाप कि बार-बार निगरानी करेंगे।
अगर आप का रक्तचाप हल्का या माध्यमिक स्तर का है तो इसे हर घंटे मापा जायेगा। लेकिन अगर आपका रक्तचाप ज्यादा गंभीर स्थिति में है तो इसी मशीन की सहायता से लगातार निगरानी पर रखा जाएगा।
गर्भावस्था के दौरान अगर आप ब्लड प्रेशर संबंधित दवाइयां ले रही हैं तो आपको प्रसव के दौरान भी यह दवाइयां लेते रहना पड़ेगा। इसके साथ ही अगर आपका रक्तचाप दवाइयों की सहायता से नियंत्रण में है तो सामान्य प्रसव की संभावना रहती है।
प्रसव के दौरान डॉक्टर दल लगातार आपकी शिशु पे भी नजर बनाए रखता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह संकट या तनाव की स्थिति में ना आए।
कुछ महिलाएं जो उच्च रक्तचाप की गंभीर अवस्था से गुजर रही होती हैं, उन्हें डॉक्टर कई बार असिस्टेड बर्थ (Assisted Birth) के लिए राय देते हैं।
इस प्रक्रिया में डॉक्टरों का दल उपकरण की सहायता से शिशु को जन्म देते हैं। इसमें डॉक्टर वेंटूस की सहायता से शिशु के सिर को पकड़ के उसे मां के गर्भ से बाहर निकालते हैं।
यह मां तथा बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित प्रक्रिया है। लेकिन कुछ जटिल परिस्थितियों में डॉक्टर सिजेरियन ऑपरेशन की भी राय दे सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान अगर आप उच्च रक्तचाप की समस्या से पीड़ित थी तो आपको अपने शिशु के जन्म के बाद कम से कम 2 दिन तक हर दिन अपना ब्लड प्रेशर चेक करना चाहिए। 2 दिन गुजर जाने के बाद आपको हर 3 से 5 दिन में एक बार अपने ब्लड प्रेशर को जरूर जानना चाहिए।
प्रेगनेंसी के पहले अगर आपका रक्तचाप सामान्य था तो यह पूरी संभावना है कि शिशु के जन्म के कुछ हफ्तों के बाद आपका रक्तचाप फिर से सामान्य अवस्था में लौट आए।
इस बात का ध्यान रखिएगा कि जब आप अगली बार गर्भवती होती हैं तो आपके उच्च रक्तचाप होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
शिशु के जन्म के बाद अगर आपका रक्तचाप फिर से सामान्य अवस्था में नहीं लौटता है तो इसकी पूरी संभावना है कि शायद आपको गर्भावधि हाइपरटेंशन न हो।
इसका मतलब यह है कि आपको एसेंशियल क्रोनिक हाइपरटेंशन है। यह बेहद अफसोस की बात है लेकिन इस स्थिति में आपका उच्च रक्तचाप शिशु के जन्म के बाद भी बना रहेगा।
आपको उच्च रक्तचाप को संबंधित दवाएं जारी रखनी पड़ सकती है ताकि आप अपना रक्तचाप नियंत्रण में रख सकें। आप के लिए यह आवश्यक है कि आप उच्च रक्तचाप से संबंधित जरूरी सलाह अपने डॉक्टर से जरूर प्राप्त करें।
प्रसव के 6 महीने के बाद डॉक्टर आपके उच्च रक्तचाप का चेकअप करेगा और साथी आपके दवाओं की समीक्षा भी करेगा। आपके रक्तचाप की स्थिति के आधार पर डॉक्टर आपको दबाव से संबंधित राय दे सकते हैं।
अगर आप अपने बच्चे को स्तनपान करा रही हैं, तो भी आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सामान्य तौर पर रक्तचाप से संबंधित अधिकांश दवाएं बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। लेकिन उच्च रक्तचाप से संबंधित कोई भी दवा आप बिना डॉक्टर के राय के नहीं ले।
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