Category: शिशु रोग
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जी हाँ! अंगूठा चूसने से बच्चों के दांत ख़राब हो जाते हैं और नया निकलने वाला स्थयी दांत भी ख़राब निकलता है। मगर थोड़ी सावधानी और थोड़ी सूझ-बूझ के साथ आप अपने बच्चे की अंगूठा चूसने की आदत को ख़त्म कर सकती हैं। इस लेख में जानिए की अंगूठा चूसने के आप के बच्चों की दातों पे क्या-क्या बुरा प्रभाव पडेग और आप अपने बच्चे के दांत चूसने की आदत को किस तरह से समाप्त कर सकती हैं। अंगूठा चूसने की आदत छुड़ाने के बताये गए सभी तरीके आसन और घरेलु तरीके हैं।

अधिकांश बच्चों में बचपन में अंगूठा चूसने की आदत पाई जाती है। जिन बच्चों में बचपन में अंगूठा चूसने की आदत पड़ती है उनमें से कुछ बच्चे 4 साल तक की उम्र तक अंगूठा चूसते पाए गए हैं।
यह एक बेहद सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है।
लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में 6 साल तक के बच्चे भी अंगूठा चूसते हुए पाए गए हैं। 6 साल से बड़े बच्चों में अगर अंगूठा चूसने की आदत पाई जाए तो उस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।
अंगूठा चूसने से बच्चों की सेहत पर कुछ अच्छे तो कुछ बुरे प्रभाव पड़ते हैं। लेकिन अगर हम दातों की बात करें तो अंगूठा चूसने का इन पर केवल बुरा प्रभाव ही पड़ता है।
बच्चों के अंगूठा चूसने के बहुत से कारण है। यह कारण मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक भी हो सकते हैं। जिस प्रकार से जब हम तनाव की स्थिति में होते हैं तो हमारा मन कुछ मीठा या फिर नमकीन (comfort food) खाने के लिए करता है उसी प्रकार से छोटे बच्चों का मन अपने अंगूठा को चूसने के लिए करता है।

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ऐसा इसलिए क्योंकि अपनी इच्छा से वे अपनी मां स्तनों का पान तो नहीं कर सकते हैं लेकिन हां, अपने अंगूठे को जरूर चूस सकते हैं। चलिए अब विस्तार से देखते हैं अंगूठा चूसने के कारणों के बारे में:
जो बच्चे लंबे समय तक अंगूठा चूसते हैं उनके दांतो की ऊपरी हड्डी पर बाहर की ओर अनावश्यक जोर पड़ता है। इस वजह से उनके ऊपरी दांत की हड्डी बाहर की ओर आ जाती है और ऐसे बच्चों के दांत दिखने में गिरने लगते हैं।
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कुछ बच्चों में नीचे के आगे के दांतों के बीच में रिक्त स्थान भी पैदा हो जाता है। ऊपर के दांत बाहर की ओर उभरे हुए और निकले हुए दिखाई दे सकते हैं।
अंगूठा चूसने की प्रक्रिया बच्चों के दांतों को अपने स्थान से धक्का देती है जिस वजह से बच्चों को आहार ग्रहण करने में भी समस्या आ सकती है। बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत उनके चेहरे की खूबसूरती को भी खराब कर सकते हैं। चलिए अब अंगूठा चूसने के कुप्रभावों को विस्तार से जाने:
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अगर आपके बच्चे 3 साल की उम्र से बड़े हैं तो आप उन्हें अंगूठा चूसने के दुष्परिणामों के बारे में समझाएं। उन्हें बताएं कि किस तरह से अंगूठा चूसना उन्हें बीमार कर सकता है तथा उनके दांतो को भी खराब कर सकता है।
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आप अपने शिशु को बताएं जिस उंगली को चूसा जा रहा है उस पर संक्रमण हो सकता है या सूजन हो सकता है तथा सांस लेने में दिक्कत भी पैदा हो सकती है।
बच्चों को यह भी बताएं कि अंगूठा चूसने से बड़े होकर दांत टेढ़े मेढ़े और ऊपर नीचे हो सकते हैं जिन्हें ठीक करने के लिए दांतो में तार लगवाना पड़ता है जिस में बहुत दर्द होता है।
आप अपने अंगूठा चूसने वाले बच्चे को यह भी बताएं कि यदि वह अपनी इस आदत को नहीं छोड़ता है तो बड़ा होकर जब वह स्कूल और कॉलेज जाएगा तो वहां पर वह सब की हंसी का पात्र भी बन सकता है।
आप अपनी बच्ची में अंगूठा चूसने की आदत को खत्म करने के लिए किसी योग्य डॉक्टर के परामर्श भी ले सकते हैं।
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बच्चों के दूध के दांतों में जलन होती है तो उसे बेबी बोतल टूथ डिकेय कहते हैं। यह कई कारणों से होता है।लेकिन इसकी मुख्य वजह है दातों का साथ नहीं रहना।

जो बच्चे दिनभर चॉकलेट खाते हैं या फिर दिनभर अपने अंगूठे को चूसते रहते हैं उन बच्चों के दांतों में बैक्टीरिया को पनपने का पर्याप्त माहौल मिल जाता है।
यह बैटरी दिया एसिड का निर्माण करते हैं जो दांतो को अंदर ही अंदर गलाने का काम करता है। इससे दांत अंदर से खोखले और कमजोर हो जाते हैं और उनमें कैविटीज़ हो।
आपको यह कोशिश करनी चाहिए कि आप शुरुआत से ही अपने बच्चों को ज्यादा मीठे का सेवन करने ना दें और ना ही उनमें अंगूठा चूसने का आदत पड़ने दे।
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अंगूठा चूसने की वजह से शिशु के सबसे पहले ऊपर वाले और सामने वाले दांत खराब होते हैं और फिर यह समस्या बाकी के दातों तक भी फैल जाती है।

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अंगूठा चूसने की वजह से मुख्य रूप से दो प्रकार की समस्याओं का सामना बच्चों को करना पड़ता है। पहला तो यह कि उनके दातों में चरण की संभावना बढ़ जाती है और दूसरा यह कि उनके दातों का आकार टेढ़ा मेढ़ा हो जाता है। यह दोनों समस्याएं आगे चलकर के नए निकलने वाले दांतो को भी प्रभावित कर सकती हैं।
कुछ माता पिता यह सोचते हैं कि अभी तो उनके बच्चों के दांत दूध के दांत हैं। जब दूध के दांत गिर जायेंगे और नए दांत निकलेंगे तब वह उनके दातों पर ज्यादा ध्यान देंगे।
इस वजह से मां-बाप अपने छोटे बच्चों के दांतों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि दूध के दांतों की खराबी का असर बाद में उगने वाले दांतो पर भी पड़ता है।
अगर बच्चों के दूध के दांत में पहले से ही समस्या होगी तो आने वाले दांत भी कमजोर होंगे या टेढ़े-मेढ़े उगेंगे तथा उनमें संक्रमण का खतरा भी लगा रहेगा क्योंकि उनके मुंह में दातों का संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया पहले से मौजूद रहेंगे।
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अगर आप समय रहते अपने बच्चे के अंगूठा चूसने की आदत पर काबू नहीं पाते हैं तो आगे चलकर के आपके शिशु को बहुत ही दातों की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

कई बार नए उगने वाले दातों में संक्रमण इतना बढ़ जाता है कि उन्हें निकालना पड़ जाता है। ऐसे में शिशु को बोलने में तथा खाने में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। इसीलिए समय रहते उनकी बातों को संक्रमण से बचाना बहुत जरूरी है।
बच्चों की रातों को संक्रमण से बचाने के लिए आपको बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। आपको केवल उनकी थोड़ी साफ सफाई पर ध्यान देने की जरूरत है और अपनी तरफ से प्रयास करने की जरूरत है कि उनके अंगूठा चूसने का आदत खत्म हो जाए।

जरूरी नहीं है कि बच्चों के दांत केवल संक्रमण या अंगूठा चूसने की वजह से ही खराब हो। अगर आप चाहती हैं कि आपके बच्चों के दांत स्वस्थ और सुरक्षित रहें तो आपको और भी बहुत सी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
अब हम आपको बताने जा रहे हैं बच्चों के दांत खराब होने के कुछ ऐसे कारणों के बारे में जिनका जिक्र हमने ऊपर नहीं किया है।
सुनने में यह बात हुई चौकाने वाली लग सकती है लेकिन कुछ बच्चों के दांत जो बचपन से ही कमजोर हैं या पीले पड़ जाते हैं उनका एक बहुत बड़ा कारण होता है गर्भावस्था में की गई लापरवाही।

यदि गर्भावस्था के दौरान मां अपना ख्याल ना रखें और संतुलित आहार ना ग्रहण करें तो गर्भ में पल रहे बच्चे की दांत आगे चलकर कमजोर हो सकते हैं।
इसकी वजह यह है कि जब गर्भवती महिला संतुलित आहार ग्रहण नहीं करती है तो उसकी शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम नहीं मिल पाता है जो कि गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए बहुत जरूरी है। इससे आने वाले समय में शिशु के दांत खराब और कमजोर हो सकते हैं।
बच्चे रात में कई बार दूध पीते हैं। यह उनके शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। शिशु के प्रथम वर्ष में उसका जितना विकास होता है शायद ही उतना ज्यादा विकार उसके शरीर का फिर कभी हो।

शारीरिक विकास की इस गति को कायम रखने के लिए बच्चे को बहुत पोषण की आवश्यकता होती है। यही वजह है कि बच्चे को बहुत भूख लगती है।
रात में सोते सोते बच्चे कई बार उठते हैं और दूध की मांग करते हैं। ऐसे में रात में बच्चों का मुंह में बोतल लेकर किस होना आम बात हो जाता है।
लेकिन यह आदत आगे चलकर उनके दांतो को प्रभावित करते हैं। बच्चों के दांत काले और धब्बेदार हो सकते हैं। इस समस्या को बेबी बोतल टूथ डिकेय कहते हैं।
बच्चे को बेबी बोतल टूथ डिकेय की समस्या से बचाने के लिए जब भी आप उसे रात में दूध पिलाएं तो बोतल में दूध खत्म होते ही बच्चे के मुंह से बोतल को हटा दें ताकि बोतल में बची कुछ बूंदें बच्चे कि दांतो को देर तक गंदा ना रख सके।
कुछ विशेषज्ञ बच्चे को रात में दूध की जगह पानी पिलाने की सलाह देते हैं ताकि बच्चे का मुंह साफ रहे। लेकिन आप ऐसा बिल्कुल भी ना करें।
6 माह से छोटे बच्चों को दूध पिलाना उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। कुछ विशेषज्ञ इस बात की भी राय देते हैं कि रात में सोते वक्त बच्चे को जो पानी पिलाया जाए उसमें क्लोराइड की कुछ टैबलेट डाल दिए जाएं ताकि दांतों के कीड़े पड़ने की संभावना खत्म हो जाए।
आप को यह भी करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि बच्चों के मुंह में मौजूद सलाइवा दांतों में पनप रहे अतिक्रमण को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है।
आपको बस इस बात का ध्यान रखना है कि आप बच्चे के दूध पीते ही उसके बोतल को उसके मुंह से हटा दें।

कुछ बच्चों में दांतों की समस्या उनके दातों में चोट लगने की वजह से भी होती है। कई बार बच्चे खेलते खेलते गिर जाते हैं और उनके दातों में चोट लग जाती है जिस वजह से बाद में स्थाई दांत आने में उन्हें थोड़ी परेशानी होती है।
अगर बच्चे के दूध के दांत समय से पहले टूट जाए तो एक बार अपने बच्चे का डॉक्टर से चेकअप जरूर करवा ले।
जब बच्चों के दांत निकलने वाले होते हैं तो उनके दातों में एक अजीब सा एहसास होता है जो बहुत ही तकलीफ देने वाला और परेशान करने वाला होता है।

इस स्थिति में बच्चों की तीव्र इच्छा होती है कि वह मुंह में कुछ भी डाल कर चलाएं और इस दौरान कई बार बच्चे कुछ ऐसी नौकरी चीज को अपने मुंह में डाल लेते हैं जो उनके आने वाले दांत को खुरच देता है जिस वजह से उनके दांत खराब हो जाते हैं।
आप अपने बच्चों के दांतों खरीदने से बचाने के लिए, जब उनके दांत उगने वाले हो, तब आप उन्हें ऐसे खिलौने ला कर के दे जो बहुत मुलायम हो ताकि मैं उन्हें अपने मुंह में डालकर सुरक्षित रूप से चबा सके।
आप अपने बच्चों को गाजर और सेब के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर के भी दे सकते हैं ताकि बच्चे इन्हें मुंह में डाल कर चला सके।
इस बात का ध्यान रहे कि फलों के टुकड़े इतने छोटे ना हो कि उनके गले में अटक जाए लेकिन इतने बड़े भी ना हो कि जिसे मैं अपने हाथों में पकड़ कर अपने मुंह से चबाना सके।
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पूरी गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के लिए यह बहुत आवश्यक है की वह ऐसे पोषक तत्वों को अपने आहार में सम्मिलित करें जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं तथा गर्भ में पल रहे शिशु का विकास भी बहुत तेजी से होता है और इस वजह से शरीर को कई प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। पोषक तत्वों की कमी शिशु और माँ दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसी तरह का एक बहुत महत्वपूर्ण पोषक तत्व है Vitamin B12.
बच्चों को उनके उम्र और वजन के अनुसार हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे संतुलित आहार के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों को 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरुरत पड़ती है। किशोर अवस्था के बच्चों को हर दिन 1300 मिग्रा, तथा व्यस्क और बुजुर्गों को 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम आहारों के माध्यम से लेने की आवश्यकता पड़ती है।
बच्चों में अस्थमा के कई वजह हो सकते हैं - जैसे की प्रदुषण, अनुवांशिकी। लेकिन यह बच्चों में ज्यादा इसलिए देखने को मिलती है क्यूंकि उनका श्वसन तंत्र विकासशील स्थिति में होता है इसीलिए उनमें एलर्जी द्वारा उत्पन्न अस्थमा, श्वसन में समस्या, श्वसनहीनता, श्वसनहीन, फेफड़े, साँस सम्बन्धी, खाँसी, अस्थमा, साँस लेने में कठिनाई देखने को मिलती है। लेकिन कुछ घरेलु उपाय, बचाव और इलाज के दुवारा आप अपने शिशु को दमे की तकलीफों से बचा सकती हैं।
बच्चों का शारीर कमजोर होता है इस वजह से उन्हें संक्रमण आसानी से लग जाता है। यही कारण है की बच्चे आसानी से वायरल बुखार की चपेट पद जाते हैं। कुछ आसन घरेलु नुस्खों के दुवारा आप अपने बच्चों का वायरल फीवर का इलाज घर पर ही कर सकती हैं।
अन्य बच्चों की तुलना में कुपोषण से ग्रसित बच्चे वजन और ऊंचाई दोनों ही स्तर पर अपनी आयु के हिसाब से कम होते हैं। स्वभाव में यह बच्चे सुस्त और चढ़े होते हैं। इनमें दिमाग का विकास ठीक से नहीं होता है, ध्यान केंद्रित करने में इन्हें समस्या आती है। यह बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। कुछ बच्चों में दांत निकलने में भी काफी समय लगता है। बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि शिशु के भोजन में हर प्रकार के आहार को सम्मिलित किया जाएं।
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।
ठण्ड के मौसम में माँ - बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की शिशु को सर्दी जुकाम से कैसे बचाएं। अगर आप केवल कुछ बातों का ख्याल रखें तो आप के बच्चे ठण्ड के मौसम न केवल स्वस्थ रहेंगे बल्कि हर प्रकार के संक्रमण से बचे भी रहेंगे।
A perfect sling or carrier is designed with a purpose to keep your baby safe and close to you, your your little one can enjoy the love, warmth and closeness. Its actually even better if you also have a toddler in a pram.
बच्चे राष्ट्र के निर्माता होते हैं ,जिस देश के बच्चे जितने शक्तिशाली होंगे , वह देश उतना ही मजबूत होगा। बालदिवस के दिन देश के नागरिको का कर्त्तव्य है की वे बच्चों के अधिकारों का हनन न करें , बल्कि उनके अधिकारों की याद दिलाएं।देश के प्रत्येक बच्चे का मुख्य अधिकार शिक्षा ग्रहण कर अपना सम्पूर्ण विकास करना है , यह उनका मौलिक अधिकार है। - children's day essay in hindi
शिशु के नौ महीने पुरे होने पे केवल दो ही टीके लगाने की आवश्यकता है - खसरे का टीका और पोलियो का टिका। हर साल भारत में 27 लाख बच्चे खसरे के संक्रमण के शिकार होते है। भारत में शिशु मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण खसरा है।
मुंग के दाल में प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। शिशु में ठोस आहार की शुरुआत करते वक्त उन्हें आप मुंग दाल का पानी दे सकते हैं। चूँकि मुंग का दाल हल्का होता है - ये 6 माह के बच्चे के लिए perfect आहार है।
12 महीने या 1 साल के बच्चे को अब आप गाए का दूध देना प्रारम्भ कर सकते हैं और साथ ही उसके ठोस आहार में बहुत से व्यंजन और जोड़ सकते हैं। बढ़ते बच्चों के माँ-बाप को अक्सर यह चिंता रहती है की उनके बच्चे को सम्पूर्ण पोषक तत्त्व मिल पा रहा है की नहीं? इसीलिए 12 माह के बच्चे का baby food chart (Indian Baby Food Recipe) बच्चों के आहार सारणी की जानकारी दी जा रही है। संतुलित आहार चार्ट
चूँकि इस उम्र मे बच्चे अपने आप को पलटना सीख लेते हैं और ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, आप को इनका ज्यादा ख्याल रखना पड़ेगा ताकि ये कहीं अपने आप को चोट न लगा लें या बिस्तर से निचे न गिर जाएँ।
6 से 7 महीने के बच्चे में जरुरी नहीं की सारे दांत आये। ऐसे मैं बच्चों को ऐसी आहार दिए जाते हैं जो वो बिना दांत के ही आपने जबड़े से ही खा लें। 7 महीने के baby को ठोस आहार के साथ-साथ स्तनपान करना जारी रखें। अगर आप बच्चे को formula-milk दे रहें हैं तो देना जारी रखें। संतुलित आहार चार्ट
मां का दूध बच्चे के लिए सुरक्षित, पौष्टिक और सुपाच्य होता है| माँ का दूध बच्चे में सिर्फ पोषण का काम ही नहीं करता बल्कि बच्चे के शरीर को कई प्रकार के बीमारियोँ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करता है| माँ के दूध में calcium होता है जो बच्चों के हड्डियोँ के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|
पांच दालों से बनी खिचड़ी से बच्चो को कई प्रकार के पोषक तत्त्व मिलते हैं जैसे की फाइबर, विटामिन्स, और मिनरल्स (minerals)| मिनरल्स शरीर के हडियों और दातों को मजबूत करता है| यह मेटाबोलिज्म (metabolism) में भी सहयोग करता है| आयरन शरीर में रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है और फाइबर पाचन तंत्र को दरुस्त रखता है|
बच्चों को दातों की सफाई था उचित देख रेख के बारे में बताना बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों के दातों की सफाई का उचित ख्याल नहीं रखा गया तो दातों से दुर्गन्ध, दातों की सडन या फिर मसूड़ों से सम्बंधित कई बिमारियों का सामना आप के बच्चे को करना पड़ सकता है।
अगर बच्चे को किसी कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। डॉक्टरों के कथनानुसार यदि 72 घंटे के अंदर में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो, वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है।
मूत्राशय के संक्रमण के कारण बच्चों में यूरिन कम या बार-बार होना होने लगता है जो की एक गंभीर समस्या है। मगर सही समय पर सजग हो जाने से आप अपने बच्चे को इस बीमारी से और इस की समस्या को बढ़ने से रोक सकती हैं।
दूध से होने वाली एलर्जी को ग्लाक्टोसेमिया या अतिदुग्धशर्करा कहा जाता है। कभी-कभी आप का बच्चा उस दूध में मौजूद लैक्टोज़ शुगर को पचा नहीं पाता है और लैक्टोज़ इंटॉलेन्स का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से उसे उलटी , दस्त व गैस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बच्चों में दूध में मौजूद दूध से एलर्जी होती है जिसे हम और आप पहचान नहीं पाते हैं और त्वचा में इसके रिएक्शन होने लगता है।