Category: प्रेगनेंसी
By: Editorial Team | ☺6 min read
दिल्ली की सॉफ्टवेयर काम करने वाले दिलीप ने अपनी जिंदगी को बहुत करीब से बदलते हुए देखा है। बात उन दिनों की है जब दिलीप और उनकी पत्नी रेखा अपनी पहली संतान के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। नन्हे से बच्चे की जन्म तक सब कुछ ठीक चला लेकिन उसके बाद एक दिन अचानक….
शिशु के जन्म के समय रेखा की उम्र करीब 26 साल थी। गर्भावस्था के दौरान रेखा ने अपने खान-पान का पूरा ख्याल रखा। तथा समय-समय पर डॉक्टरों से भी मिलती रही ताकि स्वास्थ्य के बारे में सभी जानकारी मिल सके और घर में पल रहे शिशु का स्वास्थ्य अच्छा रहे। यूं देखा जाए तो सब कुछ ठीक चल रहा था। फिर ड्यू डेट के कुछ दिन पहले तकलीफें बढ़ने लगी तो रेखा ने डॉक्टर से परामर्श लेने का निश्चय किया।
डॉक्टर ने बताया कि गर्भ में पल रहे बच्चे ने हिलना डुलना बंद कर दिया है। डॉक्टर ने यह भी बताया कि यह एक आम बात है और इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। डॉक्टर ने रेखा को सिजेरियन डिलीवरी कराने की सलाह दी।
सिजेरियन की डिलीवरी में करीब पचीस हजार का खर्चा आया। पूरी ऑपरेशन प्रक्रिया ठीक तरह पूरी हुई। शिशु के जन्म के बाद मां और बच्चे दोनों स्वस्थ थे। बेटी के जन्म से पूरा घर किलकारीयों से भर गया। परिवार ने बच्ची का नाम तारा रखा।
अगले 2 दिन तक पूरे घर में उत्सव का माहौल बना रहा। लेकिन उसके बाद रेखा का ब्लड प्रेशर अचानक से गिरने लगा। स्थिति यहां तक पहुंच गई की ब्लड प्रेशर गिरने की वजह से वह कांपने लगी। आनन-फानन में परिवार वालों ने रेखा को नजदीकी नर्सिंग होम में भर्ती कराया। लेकिन वहां के डॉक्टर को यह समझ नहीं आया कि क्या किया जाए इस वजह से रेखा को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में शिफ्ट किया गया। मगर तक हालत इतनी नाजुक हो चुकी थी की रेखा को आईसीयू में भर्ती कराना पड़ गया। 2 दिनों के बाद रेखा की मौत हो गई। दिलीप को समझ नहीं आ रहा था कि तू कहां हुई।
दोस्तों यह बात सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन सिजेरियन डिलीवरी में मां का खतरा बना रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिशु को जन्म देने के लिए पेट पर C के आकार का चीर लगाया जाता है।
शिशु के जन्म के बाद सिजेरियन डिलीवरी की वजह से पेट पर बने घाव के साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो इसमें बैक्टीरिया से उत्पन्न होने वाले संक्रमण का खतरा बना रहता है। इस संक्रमण को 'सेप्सिस' कहते हैं। विकसित देशों से अगर भारत की तुलना की जाए तो भारत में सेप्सिस कि मामले बहुत देखने को मिलते हैं। भारत में हर साल करीब 45000 महिलाओं की मृत्यु सिजेरियन डिलीवरी के बाद सेप्सिस के संक्रमण की वजह से होता है।
प्रसव के दौरान महिलाओं में होने वाली मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण सेप्सिस है। इस विषय पर टोरंटो की विश्वविद्यालय में शोध भी किया गया।
शोध में सेप्सिस की वजह से हुई दस लाख मौतों का विश्लेषण किया गया - और साथ ही इनकी कारणों को समझने की कोशिश की गई। भारत में सेप्सिस के अधिकांश मामले सिजेरियन डिलीवरी की वजह से होते हैं। यह बहुत ही दुखद बात है। सिजेरियन डिलीवरी के बाद अगर साफ सफाई का ध्यान रखा जाए तू किसी भी तरह की इंफेक्शन को फैलने से रोका जा सकता है और सिजेरियन के द्वारा होने वाली मौत से पूरी तेरा तरह से बचा जा सकता है।
दिलीप आज भी सदमे में हैं उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि चुक कहां पर हुई। उन्हें अभी भी यही लगता है कि गलती शायद डॉक्टर की या अस्पताल की थी।
दिलीप आज भी उस बात को याद करके कहते हैं कि उस वक्त हम गहरे सदमे में थे और उस हालात में ना तो अस्पताल से और ना ही डॉक्टर से यह पूछ सके कि आखिर हुआ क्या था? रेखा के भाई बताते हैं कि जिस नर्सिंग होम में पहले लेकर गए थे वहां पर बहुत ज्यादा गंदगी और धूल था। वहां पर काम करने वाले लोगों को सफाई का ठीक तरह से प्रशिक्षण नहीं दिया गया था।
आज अगर यह बात भारत में रहने वाले सभी लोगों को समझ में आ जाए तो हर साल 45 हजार से ज्यादा महिलाओं को सिजेरियन डिलीवरी की वजह से होने वाली मौत से बचाया जा सकता है।
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