Category: शिशु रोग
By: Editorial Team | ☺9 min read
जब शिशु हानिकारक जीवाणुओं या विषाणु से संक्रमित आहार ग्रहण करते हैं तो संक्रमण शिशु के पेट में पहुंचकर तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और शिशु को बीमार कर देते हैं। ठीक समय पर इलाज ना मिल पाने की वजह से हर साल भारतवर्ष में हजारों बच्चे फूड प्वाइजनिंग की वजह से मौत के शिकार होते हैं। अगर समय पर फूड प्वाइजनिंग की पहचान हो जाए और शिशु का समय पर सही उपचार मिले तो शिशु 1 से 2 दिन में ही ठीक हो जाता है।
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इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार से आप फूड प्वाइजनिंग के लक्षणों को पहचान सकती हैं और घर पर ही फूड प्वाइजनिंग का ट्रीटमेंट भी कर सकती है। फूड प्वाइजनिंग जिसे विषाक्त भोजन कहा जाता है - इसका इलाज आसानी से घरेलू उपचार के माध्यम से किया जा सकता है।
फूड प्वाइजनिंग का शिकार कोई भी हो सकता है, लेकिन बच्चे सबसे आसानी से इसके शिकार हो जाते हैं क्योंकि उनका शरीर बड़ों की तुलना में कमजोर होता (कमजोर रोग प्रतिरोधक तंत्र प्रणाली) है और हानिकारक तत्वों से लड़ने में सक्षम नहीं होता है।
लेकिन अगर शिशु को पोषण से भरपूर आहार मिले तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र तेजी से विकसित होगा और शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं और विषाणुओं (bacteria and viruses) से लड़ने में सक्षम बनेगा।
पढ़ें: शिशु में Food Poisoning का इलाज - घरेलु नुस्खे

इसके तीन कारण है। पहला - बड़ों की तुलना में बच्चों के पेट में ‘पाचन संबंधी एसिड’ (stomach acid) कम होता है जो आहार में मौजूद जीवाणु और विषाणु को नष्ट कर सके। दूसरा - शिशु का शरीर बहुत छोटा होता है और बार-बार दस्त (diarrhea) करने की वजह से उसके शरीर में जल का स्तर बहुत घट जाता है जिससे डिहाइड्रेशन की वजह से उसका जान का खतरा बढ़ जाता है। तीसरा - शिशु के शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है और इतना सक्षम नहीं होता है कि वह रोगाणुओं और विषाणुओं से शरीर की रक्षा कर सकें।
रोगाणुओं या विषाणु से संक्रमित आहार ग्रहण करने के बाद फूड प्वाइजनिंग के लक्षण दिखने में आधे घंटे से लेकर 2 दिन तक का समय लग सकता है।

फूड प्वाइजनिंग की कई प्रकार के कारण हो सकते हैं और अलग-अलग कारणों के अलग-अलग लक्षण भी हो सकते हैं। लेकिन फिर भी कुछ लक्षण ऐसे हैं जो लगभग हर प्रकार के फूड पॉइजनिंग की घटनाओं में देखे जा सकते हैं। यह किस प्रकार से हैं -
बच्चों में फूड प्वाइजनिंग के अधिकांश मामलों में या बिना किसी उपचार के खुद ही ठीक हो जाता है। लेकिन क्योंकि बच्चों का शरीर कमजोर होता है, इसीलिए यह आवश्यक है कि आप अपने शिशु को विषाक्त भोजनके लक्षण दिखने पर तुरंत ‘बाल शिशु रोग विशेषज्ञ’ के पास लेकर जाएं। ताकि समय पर शिशु का सही उपचार हो सके।

अगर आपके शिशु को बार बार पतला दस्त और उल्टी हो रहा है तो बिना समय कमाए डॉक्टर के पास तुरंत लेकर जाएं क्योंकि इससे शिशु के शरीर में डिहाइड्रेशन होने की संभावना है। यह फूड प्वाइजनिंग की गंभीर स्थिति है। ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर आपके शिशु को इंजेक्शन के माध्यम से IV देगा, या फिर अगर शिशु कचरी सक्षम है तो उसे ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन देने की सलाह देगा।
इससे शिशु के शरीर में electrolytes का स्तर फिर से सामान्य होने में मदद मिलेगा। IV या ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन में मिनरल्स होते हैं जो शरीर में electrolytes का काम करते हैं। मुख्य था यह मंदिर सोडियम और पोटैशियम होते हैं। यह शरीर में दिल की धड़कन को नियंत्रित करने और सामान्य बनाए रखने में मदद करते हैं। यह शरीर में जल के स्तर को भी बनाए रखने में मदद करते हैं।
कुछ जीवाणुओं द्वारा शिशु के शरीर में फूड प्वाइजनिंग गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है। यह मुख्यता listeria नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है।
इस परिस्थिति में आपके शिशु का डॉक्टर आपके शिशु को एंटीबायोटिक (antibiotics) भी दे सकता है। लेकिन अगर आपके शिशु का रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर नहीं है तो फूड प्वाइजनिंग के अधिकांश मामलों में आपकी शिशु को एंटीबायोटिक की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
शिशु का शरीर उनसे खुद ब खुद निपट लेने में सक्षम होता है। हां लेकिन शिशु के शरीर को इनसे निपटने में एक से 2 दिन का समय लग जाता है।
फूड प्वाइजनिंग में शिशु का सबसे बेहतरीन घरेलू उपचार है कि उसे हर थोड़ी थोड़ी देर पर आप चम्मच से चीनी पानी का घोल पिलाते रहे या सर द्वारा बताए गए तरीके से ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन देते रहे। यीशु के शरीर में जल का स्तर कम नहीं होगा और उसे डिहाइड्रेशन का सामना नहीं करना पड़ेगा।


हम आपको कुछ ऐसी स्थितियों के बारे में बता रहे हैं जो अगर आप अपने बच्चे में देखें तो तुरंत उसे नजदी अस्पताल में लेकर जाएं।


बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
गर्भावस्था के दौरान पेट में गैस का बनना आम बात है। लेकिन मुश्किल इस बात की है की आप इसे नियंत्रित करने की लिए दवाइयां नहीं ले सकती क्यूंकि इसका गर्भ में पल रहे बच्चे पे बुरा असर पड़ेगा। तो क्या है इसका इलाज? आप इसे घरेलु उपचार के जरिये सुरक्षित तरीके से कम सकती हैं। इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी आप को इस लेख में मिलेगी।
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) से प्रभावित बच्चों को पढाई में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है। ये बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) के लक्षणों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों पे ध्यान देने की ज़रुरत है। उन्हें डांटे नहीं वरन प्यार से सिखाएं और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करें।
6 महीने के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। जबकि 6 महीने की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
शिशु को 6 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेपेटाइटिस बी और इन्फ्लुएंजा से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु के जन्म के तुरन बाद ही उसे कुछ चुने हुए टीके लगा दिए जाते हैं - ताकि उसका शारीर संभावित संक्रमण के खतरों से बचा रह सके। इस लेख में आप पढेंगे की शिशु को जन्म के समय लगाये जाने वाले टीके (Vaccination) कौन कौन से हैं और वे क्योँ जरुरी हैं।
अब तक ३०० बच्चों की जन ले चूका है हत्यारा ब्लू-व्हेल गेम। अगर आप ने सावधानी नहीं बाराती तो आप का भी बच्चा हो सकता है शिकार। ब्लू-व्हेल गेम खलता है बच्चों के मानसिकता से। बच्चों का दिमाग बड़ों की तरह परिपक्व नहीं होता है। इसीलिए बच्चों को ब्लू-व्हेल गेम से सुरक्षित रखने के लिए माँ-बाप की समझदारी और सूझ-बूझ की भी आवश्यकता पड़ेगी।
शिशु का टीकाकार शिशु को बीमारियोँ से बचाने के लिए बहुत जरुरी है। मगर टीकाकार से शिशु को बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है। जानिए की आप किस तरह अपने शिशु को टीकाकरण २०१८ से हुए दर्द से शिशु को कैसे राहत पहुंचा सकते हैं।
अक्सर नवजात बच्चे के माँ- बाप जल्दबाजी या एक्साइटमेंट में अपने बच्चे के लिए ढेरों कपडे खरीद लेते हैं। यह भी प्यार और दुलार जाहिर करने का एक तरीका है। मगर माँ-बाप अगर कपडे खरीदते वक्त कुछ बातों का ध्यान न रखे तो कुछ कपड़ों से बच्चे को स्किन रैशेज (skin rash) भी हो सकता है।
अगर आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगाता है, होमवर्क करने से कतराता है और हर वक्त खेलना चाहता है तो इन 12 आसान तरीकों से आप अपने बच्चे को पढाई के लिए अनुशाषित कर सकते हैं।
बच्चों के साथ यात्रा करते वक्त बहुत सी बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि बच्चे पुरे सफ़र दौरान स्वस्थ रहें - सुरक्षित रहें| इन आवश्यक टिप्स का अगर आप पालन करेंगे तो आप भी बहुत से मुश्किलों से अपने आप को सुरक्षित पाएंगे|
गाजर, मटर और आलू से बना यह एक सर्वोतम आहार है 9 महीने के बच्चे के लिए। क्यूंकि यह आलू के चोखे की तरह होता है, ये बच्चों को आहार चबाने के लिए प्ररित करता है। इससे पहले बच्चों को आहार प्यूरी के रूप में दिया जा रहा था। अगर आप अब तक बच्चे को प्यूरी दे रहें हैं तो अब वक्त आ गया है की आप बच्चे को पूरी तरह ठोस आहार देना शुरू कर दें।
तीन दिवसीय नियम का सीधा सीधा मतलब यह है की जब भी आप आपने बच्चे को कोई नया आहार देना प्रारम्भ कर रहे हैं तो तीन दिन तक एक ही आहार दें। अगर बच्चे मैं food allergic reaction के कोई निशान न दिखे तो समझिये की आप का बच्चा उस नए आहार से सुरक्षित है
बहुत लम्बे समय तक जब बच्चा गिला डायपर पहने रहता है तो डायपर वाली जगह पर रैशेस पैदा हो जाते हैं। डायपर रैशेस के लक्षण अगर दिखें तो डायपर रैशेस वाली जगह को तुरंत साफ कर मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम लगा दें। डायपर रैशेज होता है बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से और मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम में एंटी बैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो नैपी रैशिज को ठीक करते हैं।
बचपन के समय का खान - पान और पोषण तथा व्यायाम आगे चल कर हड्डियों की सेहत निर्धारित करते हैं।
आइये अब हम आपको कुछ ऐसे आहार से परिचित कराते है , जिससे आपके बच्चे को कैल्शियम और आयरन से भरपूर पोषक तत्व मिले।
गर्मियों की आम बीमारियां जैसे की बुखार, खांसी, घमोरी और जुखाम अक्सर बच्चो को पीड़ित कर देती हैं। साधारण लगने वाली ये मौसमी बीमारियां जान लेवा भी हो सकती हैं। जैसे की डिहाइड्रेशन, अगर समय रहते बच्चे का उपचार नहीं किया गया तो देखते देखते बच्चे की जान तक जा सकती है।
शोध (research studies) में यह पाया गया है की जेनेटिक्स सिर्फ एक करक, इसके आलावा और बहुत से करक हैं जो बढ़ते बच्चों के लम्बाई को प्रभावित करते हैं। जानिए 6 आसान तरीके जिनके द्वारा आप अपने बच्चे को अच्छी लम्बी पाने में मदद कर सकते हैं।
कुछ बातों का अगर आप ख्याल रखें तो आप अपने बच्चों को गर्मियों के तीखे तेवर से बचा सकती हैं। बच्चों का शरीर बड़ों की तरह विकसित नहीं होता जिसकी वजह से बड़ों की तुलना में उनका शरीर तापमान को घटाने और रेगुलेट करने की क्षमता कम रखता है।